मौसम की मेहरबानी से उत्तराखण्ड के जंगल बुरांश के फूलों से लकदक हैं। बुरांश के फूलों से तैयार जूस व अन्य उत्पादों के सेवन से हृदय रोग नियंत्रण, खून बढ़ने के साथ शारीरिक विकास होता है। इसके बावजूद सरकारी स्तर पर बुरांश के फूलों का अपेक्षा के अनुरूप उपयोग नहीं किया जा रहा है।
प्राचीन काल से ही बुरांश को आयुर्वेद में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। रोडोडेन्ड्रोन प्रजाति के इस पेड़ में सीजनल बुरांश के लाल, सफेद, नीले फूल लगते हैं। लाल फूल औषधिय गुणों से भरपूर हैं। खास कर हृदय रोग से पीड़ित लोग यदि प्रतिदिन एक गिलास बुरांश का जूस पिएं तो रोग जड़मुक्त हो जाएगा। जबकि शारीरिक विकास व खूनी की कमी में बुरांश का जूस व इससे तैयार उत्पाद अचूक औषधि का काम करती है।
विटामिन बी कॉम्पलैक्स व खांसी, बुखार जैसी बीमारियों में भी बुरांश का जूस दवा का काम करता है। इस बार जमकर हुई बर्फबारी व बारिश ने बुरांश के जंगलों में वर्षो पुरानी रौनक लौटा दी है। खास कर चौरंगीखाल, संगमचट्टी, डोडीताल, दयारा बुग्याल, कुश कल्याण, बेलक क्षेत्र, वरुणा घाटी धनारी, चिन्यालीसौड़, भण्डारस्यूं, बनचौंरा, ब्रहमखाल, मोरी, पुरोला, बड़कोट आदि कस्बों में बुरांश के जंगल फूलों से लाल नजर आ रहे हैं।
पहाड़ी क्षेत्रों के अनुकूल वातावरण में उगने वाला बुरांश का पौधा फूलों के साथ ही पत्ती, लकड़ी भी बहुउपयोगी है। पर्यावरण संरक्षण में बुरांश का मत्वपूर्ण योगदान है। पत्तियां जैविक खाद बनाने में उपयोग होती है। बुरांश की लकड़ियां फर्नीचर, कृषि उपकरण आदि बनाने में काम आती है।