Author Topic: Rhododendron(Buransh) The Famous Flower of Uttarakhand - बुरांश  (Read 109455 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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Re: Rhododendron(Buransh) The Famous Flower of Uttarakhand - बुरांश
« Reply #60 on: February 09, 2011, 10:35:50 AM »
The Burans flower is used for making juice which is suppose to be very good for heart.


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Re: Rhododendron(Buransh) The Famous Flower of Uttarakhand - बुरांश
« Reply #61 on: February 09, 2011, 10:41:56 AM »
photo by  राकेश परमार


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Re: Rhododendron(Buransh) The Famous Flower of Uttarakhand - बुरांश
« Reply #62 on: February 09, 2011, 10:44:12 AM »
बुरांस जब खिलता है, तो पहाड़ों की छटा देखने लायक होती है। हिमाचल, गढ़वाल से लेकर जापान तक मिलने वाला खूबसूरत बुरांस का फूल आज लुप्त होने की कगार पर हैं।


बुरांस खिलता है, तो पहाड़ों में बहार आ जाती है। बुरांस मुरझाता है, तो पहाड़ उदास होने लगते हैं। इन फूलों के खिलते ही कई भूले-बिसरे लोकगीत सहसा होंठों पर मचलने लगते हैं। यह बुरांस ही है, जिसने सदियों से लेखकों, कवियों, घुम्मकड़ों और प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित किया है। पहाड़ी बोली में इसे ‘ब्राह’ कहा जाता है।


अंग्रेज़ इसे ‘रोहाडोडेड्रान’ कहते हैं। नेपाल में इसे राष्ट्रीय फूल का दर्जा हासिल है। वहां की घाटियों में बुरांस के पेड़ बहुतायत में देखने को मिलते हैं। हिमाचल प्रदेश और गढ़वाल अंचल में कई लोकगीत इन फूलों के इर्द-गिर्द घूमते हैं। महिलाओं ने कई विरह गीत इन फूलों के खिलने को लेकर रचे हैं।


जंगल की घनी हरितमा के बीच जब एकाएक सुर्ख लाल बुरांस के फूल खिल उठते हैं, तो जंगल के दहकने का भ्रम हो उठता है। यही भ्रम सहसा सम्मोहित भी करता है। उत्तराखंड में बुरांस को आत्मीयता का प्रतीक माना जाता है। बुरांस के पेड़ जापान, तिब्बत, चीन, श्रीलंका, बर्मा और भारत में हिमाचल, गढ़वाल-कुमायूं और कश्मीर आदि क्षेत्रों में पाए जाते हैं।


फरवरी से जुलाई माह तक खिलने वाले इस फूल के पेड़ की विश्व में करीब 110 प्रजातियां पाई जाती हैं और फूल भी कई रंगों में- कहीं सुर्ख लाल, कहीं गुलाबी, कहीं पीले, तो कहीं सफेद।


बुरांस समुद्र तल से पांच से दस हजार फुट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। इसके पेड़ की ऊंचाई 60 से 90 फीट तक होती है और तने का घेरा डेढ़ से दो मीटर तक मोटा होता है। इसकी पत्तियां सख्त चौड़ी और नुकीली होती हैं। शिमला में बुरांस के पेड़ बहुतायत में देखने को मिलते हैं।


आयुर्वेदाचार्यो ने इस फूल को काफी गुणी माना है। इसका शरबत दिमाग को शीतलता प्रदान करता है। इसकी पंखुड़ियां चटनी बनाने में प्रयुक्त होती हैं। नकसीर रोकने का भी यह एक अचूक नुस्खा है। ब्राह की चटनी गज़ब की स्वादिष्ट होती है और लू से भी बचाती है। पहाड़ों में तो लोग इसे सुखाकर रख लेते हैं और फिर साल भर इसका ज़ायका लेते हैं।


इसकी मुलायम पत्तियों की सब्ज़ी बड़ी स्वादिष्ट बनती है। बुरांस की लकड़ी से पहाड़ में दूध-दही रखने के बर्तन भी बनाए जाते हैं। मुलायम होने के कारण इस पेड़ की लकड़ी आग भी जल्दी पकड़ती है और देर तक जलती है। इसलिए लोग इसका ईंधन के रूप में उपयोग करते हैं।


बुरांस की चौड़ी पत्तियां वर्षा की तेज़ बूंदों को रोकने में सक्षम होती हैं, जिससे भू-क्षरण रोकने में मदद मिलती है। हालांकि जंगलों में समय-समय पर लगने वाली आग की घटनाओं ने भी बुरांस को निशाना बनाया है, जिससे इसके पुराने पेड़ खत्म हो रहे हैं। नई पौध बहुत कम लग रही है।


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Re: Rhododendron(Buransh) The Famous Flower of Uttarakhand - बुरांश
« Reply #63 on: February 09, 2011, 10:46:48 AM »
               बुरांस के पौधों को कैसे लगाया जाता है

बुरांस के पौधे को गर्मियों में लगाना चाहिए और इसकी सिंचाई नल के पानी से नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इसका पीएच मान अधिक होता है।  बुरांस के बारे में कुछ और जानकारी…
गमले में इसके पौधे बोने के लिए गमले गहरे व चौड़े होने चाहिएं। गमले में पौधों को गर्मियों में लगाएं, जब फूल कलिका निकलने वाली हो और बुआई के तुरंत बाद पानी दे दें। नल का पानी सिंचाई के लिए प्रयोग न करें, क्योंकि इसका पीएच मान अधिक होता है। अतः सिंचाई के लिए वर्षा के पानी का ही प्रयोग करें। गमले के कंपोस्ट को हमेशा नम बनाए रखें और जाड़ों में जलमग्नता से बचाएं।

खुले स्थानों पर बुरांस की रोपाई, गमले के समान ही 7-10 से.मी. की गहराई पर करें, क्योंकि बुरांस एक सतही जड़ों वाला वृक्ष है। पौधे के अच्छे स्थापन के लिए जड़ों के आसपास निराई-गुड़ाई न करें। एक बार पौधा जड़ पकड़ जाए, तो उसे ज्यादा देखभाल की आवश्यकता नहीं होती। खरपतवार नियंत्रण के लिए जमीन पर फैलने वाले पौधे लगाए जा सकते हैं, जैसे- जंगली मूंगफली आदि, जो पौधे की शोभा और बढ़ाएगी।

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Re: Rhododendron(Buransh) The Famous Flower of Uttarakhand - बुरांश
« Reply #64 on: February 09, 2011, 10:49:08 AM »
           बुरांस के पौधों की देख-भाल कैसे की जाती है

बुरांस नमी युक्त ठंडी जलवायु में सफलता पूर्वक उगता है। इस जलवायु में सूक्ष्म जीवों का प्रकोप अधिक होता है। बुरांस में मुख्यतः चूर्णिल आसिता रोग लगता है, जिसमें पत्तियों की निचली सतह पर सफेद चूर्ण और ऊपरी सतह पर पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। इससे पौधों में पतझड़ हो जाता है और अगले वर्ष बसंत ऋतु में फिर नए पत्ते आ जाते हैं।

 इसकी रोकथाम के लिए कैराथिन की दो प्रतिशत मात्रा महीने में एक बार फरवरी से अक्तूबर तक छिड़कते रहें। गमले में उगे बुरांस के पौधों पर वाइन वीवील का प्रकोप देखने को मिलता है।
 वयस्क कीड़े पौधे की पत्तियों के किनारे काटते हैं। जबकि इसका अवयस्क कीट जड़ों के सहारे पौधों को काटता है। कभी-कभी सफेद मक्खी का प्रकोप भी देखने को मिलता है। इन कीटों की रोकथाम के लिए इंडोसल्फान का 0.2 प्रतिशत घोल कीड़ों के प्रकोप के समय छिड़कें।

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Re: Rhododendron(Buransh) The Famous Flower of Uttarakhand - बुरांश
« Reply #65 on: February 09, 2011, 10:53:15 AM »
               बुरांस  के पेड़ और फूल से क्या फायदे होते हैं तो सभी जानते हैं

 
बुरांस एक बहुउपयोगी वृक्ष है। इसकी सुंदरता पर्वतीय क्षेत्रों में मार्च से मई तक देखते ही बनती है। इस वृक्ष को आज के परिपेक्ष्य में घरों में सजावटी पौधे के रूप में गमलों में या बोनसाई की तरह प्रयोग किया जा सकता है और पर्वतीय क्षेत्रों में इसके पुष्पोत्पाद बनाकर आय का अच्छा साधन बनाया जा सकता है। जबकि इसके औषधीय गुणों पर अनुसंधान करने की आवश्यकता है।


 बुरांस की चौड़ी पत्तियां वर्षा की  तेज़ बूंदों को रोकने में सक्षम होती हैं, जिससे भू-क्षरण रोकने में मदद मिलती है।  हालांकि जंगलों में समय-समय पर लगने वाली आग की घटनाओं ने भी बुरांस को निशाना  बनाया है, जिससे इसके पुराने पेड़ खत्म हो रहे हैं। नई पौध बहुत कम लग रही है। 
 
 पहाड़ों का सौंदर्य बनाए रखने और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बुरांस के पेड़ों की रक्षा करने की तत्काल आवश्यकता है। बुरांस लुप्त हो गया, तो पहाड़ों का  सौंदर्य गुम हो जाएगा और बुरांस के खिलने में रचे गए लोकगीत खो जाएंगे


 

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Re: Rhododendron(Buransh) The Famous Flower of Uttarakhand - बुरांश
« Reply #66 on: February 09, 2011, 11:00:01 AM »
       देवभूमि उत्तराखंड के अलावा दुसरे राज्यों में भी बुरांस को पूज्य पुष्प के रूप में माना जाता है

 शिमला में बिशु  के त्यौहार की तैयारियां चल रही हैं। घरों और देवालयों की साफ-सफाई की जा रही है और उन्हें सजाने के लिए बुरांस के फूलों और पत्तियों की सतरेवडिय़ां बनाई जा चुकी हैं। हालांकि साल के सबसे बड़े त्यौहार के लिए  अब पहले जैसा उत्साह नहीं है, मगर सुदूर गांवों में आज भी बिशू की संक्रांति धूमधाम से मनाई जाती है।  ठियोग और अपर शिमला की प्रमुख देवठियों में बिशु के दिन देवनृत्य चोल्टू भी किया जाता है। कुछ दशक पूर्व बिशू मेलों का आयोजन होता था, जो अब बहुत से कम स्थानों पर मेलों का आयोजन होता है। कई लोग बिशु को नववर्ष से भी जोड़ते हैं। इस त्यौहार के बाद खेतोंं और अन्य नए काम किए जाते हैं

 सर्दियां जाने के बाद गर्मी का मौसम पहाड़ों में बेहद सुहाना होता है बाग बागीचों और खेतों में बहार आ जाती है, मगर शिमला, सिरमौर और अन्य जिलों में बिशु उसी दिन मनाया जाता है,जिस दिन पंजाब में बैसाखी, आसाम में बिहू और केरल में पोंगल मनाया जाता है। बिशु पर अपर शिमला और सिरमौर की प्रसिद्ध लोक क्रीड़ा ठोडा का भी आयोजन किया जाता है।  समय के साथ अब ठोडा खेलने वाले दल भी लुप्त होते जा रहे हैं। मनोरंजन के लिए टीबी, रेडियो, मोबाइल कंप्यूटर आदि ने प्राचीन संस्कृति का नाश कर दिया है। गांवों में ही नई पीढ़ी अब बिशु, मकर संक्रांति आदि के बारे में नहीं जानते हैं।

 अपर शिमला में साल भर में चार संक्रांतियां धूमधाम से मनाई जाती है। बिशु सबसे बड़ी संक्रांति है जो देवताओं से भी जुड़ी हुई है। देवताओं का लोगों के जीवन  में बड़ा महत्व है और हर त्यौहार देवालयों में ही मनाया जाता है। चिखड़ देवालय के अश्विनी बख्शी मानते हैं कि अब पहले जैसा आनंद और उत्साह नहीं रहा।

 अब दिखावे और परंपराएं निभाने के लिए त्यौहार सिर्फ प्रतीक बनकर रह गए हैं। पहले बिशु पर जमकर चोल्टू नृत्य होता था, जिसे देखने के लिए लोग दूर दूर से आते थे। जंगलों में पेड़ों के कटने के कारण बुरांस के पेड़ गायब हो गए हैं।

 कई गांवों के लोग बिशु के लिए फूल और पत्तियां लाने के लिए दूर-दूर  बुरांस ढूंढऩे जाते हैं। देवताओं की पूजा और आगामी फसलों के

 लिए आर्शीवाद लिया जाता है। खेतों की भी पूजा की जाती है और मौसम के लिए भी प्रार्थना करते हैं। इस दौरान घर का एक व्यक्ति जरूर मंदिर जाता है। देवताओं के कमरे की साफ

 सफाई की जाती है। सर्दियों के बाद यह पहला त्यौहार होता है और

 इसके बाद गांवों में मेलों की शुरूआत होती है।


 

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Re: Rhododendron(Buransh) The Famous Flower of Uttarakhand - बुरांश
« Reply #67 on: February 09, 2011, 11:03:39 AM »
गढवाल एवं कुमाऊं अंचलों में बंटे उत्तराखंड में मुख्यत: गढ़वाली एवं कुमाउनी बोलियां बोली जाती हैं। नेपाल एवं तिब्बत की सीमा से लगे हुए क्षेत्र में नेपाली एवं तिब्बती भाषा का पुट देखने को मिलता है जबकि देहरादून के भाबर क्षेत्र में रहने वाले जौंनसार जनजाति के लोग जौंनसारी बोली बोलते हैं। भोटिया, थारू, बुक्सा, सौक, जौनसार इत्यादि यहां की प्रमुख जनजातियां हैं। इनके अपने रीति रिवाज, बोलियां एवं त्यौहार हैं।

लोक गीत किस भी अंचल के हों, उनमें प्राय: जीवन के विविध रूपों का सुन्दर समावेश होता है। इनमें त्यौहार, रूप-रंग, हर्ष-उल्लास, भय, राग-द्वेष, विरह-वेदना, स्वप्, प्रेम, घृणा, बदलता परिवेश आदि सब कुछ उपस्थित रहता है। उत्तराखंड के लोकगीतों में झोड़ा, झुमैलों, चांचरी, खुदेड़, कृषिगीत, उत्सवगीत, ऋतुगीत, देवताओं के आह्वान से संबंधित जागर गीत एवं शादी-ब्याह और अन्य मंगल कार्य के अवसरों पर गाए जाने वाले शगुन गीत शामिल हैं।

 इन सभी प्रकार के गीतों में प्रकृति का सुन्दर चित्रण दृष्टिगोचर होता है। वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही समूची धरा रंग-बिरंगे फूलों का परिधान धारण कर कवियों, गीतकारों और कलाकारों को सृजन के लिए प्रेरित करती है। इस ऋतु में बुरांस, प्योली, कुंज, भिजौली, आडू, मेहल, खुबानी, आलूबुखारा एवं तमाम तरह की जंगली वनस्पतियां सुन्दर पुष्पों से आच्छादित हो जाती हैं।

 प्योली और बुरांस का फूल पर्वतीय अंचल के जनजीवन से जुड़ा हुआ है। चैत्र मास की पहली तिथि को कुमाऊं में मनाए जाने वाले त्यौहार का नाम ही 'फूल संक्रान्ति' है। इस दिन नन्हे-मुन्हे बच्चे बुरांस व प्योली के फूलों से अपने घर की दहलीज (घर के प्रवेश द्वार) की पूजा करते हैं तथा देवताओं को पुष्प अर्पित किये जाते हैं।

jagmohan singh jayara

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Re: Rhododendron(Buransh) The Famous Flower of Uttarakhand - बुरांश
« Reply #68 on: February 14, 2011, 07:58:45 AM »
  "बुरांश"

बौळ्या बणै देन्दु छ,
जब औन्दि छ बयार,
ऋतु बसंत की,
हैंसदु छ हिमालय देखि,
बाँज का बण का बीच,
ललेंगु मनमोहक ह्वैक,
पैदा होन्दु ऊलार,
हेरि हेरिक मन मा,
हे बुरांश,
तेरु प्यारू  रंग रूप.

पहाड़ का मनखी,
याद करदा छन त्वै,
सुखि-दुखि जख भी,
रन्दा छन त्वैसी दूर,
कसक पैदा होन्दि  छ,
सब्यौं  का मन मा,
किलैकि तू,
पहाड़ की पछाण छैं,
पहाड़ कू पराण छैं,
भोलेनाथ तैं प्यारू,
आंछरी भी हेरदि  होलि त्वै,
प्यारा गढ़वाळ अर कुमाऊँ,
हमारा  मुल्क कू,
रंगीलु "बुरांश" छैं.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
दिनांक: १३.२.२०११

Anil Arya / अनिल आर्य

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