Author Topic: Rudranath temple and Trek Uttarakhand- रुद्रनाथ मंदिर की पहाड़ियां की फोटो  (Read 21583 times)

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पंकज सिंह महर

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ऊँ रुद्रेशाय नमोनमः

पंकज सिंह महर

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First Gateway to the Temple



Some 3 kms from Panar...and some 6kms to go...

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हिमालय की विस्तार स्थली का केन्द्र है "गढवाल मंड़ल"। भारतवर्ष का पवित्रतम स्थान। पुराणों के अनुसार एक बार शिव जी घूमते-घूमते यहां पहुंचे और यहां की सुंदरता से प्रभावित हो कर यहीं के हो कर रह गये। उन्हीं के नाम से यहां का नाम "केदार खंड" या "केदारभूमी" कहलाया।

शिवपुराण के अनुसार वर्षों बाद महाभारत युद्ध के बाद स्वजनों की हत्या के पाप से मुक्त हो मोक्ष की प्राप्ति के लिये पांडव शिव जी को खोजते-खोजते यहां भी पहुंच गये। उनसे बचने के लिए शिव जी महिष का रूप धर भूमि में समाने लगे।

परन्तु महाबली भीम ने उन्हें देख कर पहचान लिया और महिष रूपी शिव की पूंछ पकड़ ली तथा सभी पांडवों ने उनकी पूजा-अर्चना कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। शिव जी ने पांडवों को उनके पापों से मुक्त कर दिया। उसी समय से शिव जी का पिछला भाग केदारनाथ में केदारलिंग के रूप में पूजित है।

महिषरूपी शिव जी के अन्य भाग कालांतर में गढवाल में ही रुद्रनाथ, तुंगनाथ, मध्यमहेश्वर तथा कल्पेश्वर में प्रगट हुए और यह पांचों स्थान पंचकेदार के नाम से प्रसिद्ध हुए।

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शीतकाल के लिए बंद हुए  रुद्रनाथ मंदिर के कपाट
चतुर्थ केदारों में एक भगवान रुद्रनाथ मंदिर के कपाट सोमवार को ब्रह्मा मुहूर्त में विधि विधान के साथ शीतकाल के लिए बंद हो गये। पौराणिक परंपरा के अनुसार शीतकाल में अब भगवान रुद्रनाथ की उत्सव डोली की पूजा गोपेश्वर स्थित प्राचीन गोपीनाथ मंदिर में होगी।


समुद्रतल से 10780 फीट की ऊंचाई पर स्थित भगवान रूद्रनाथ को चतुर्थ केदार के रूप में पूजा जाता है, जहां भगवान शिव एक गुफा के अन्दर ध्यान मुद्रा में विराजमान है। इसके अलावा गुफा में गणपति तथा गौरी शंकर की शिला मूर्तियां भी हैं।

 ग्रीष्मकाल में इसी गुफा रूपी मंदिर में श्रद्धालु भगवान रुद्रनाथ जी की पूजा अर्चना करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि रुद्रनाथ तीर्थ में गोत्र हत्या के पाप से मुक्त होने के निमित पिण्डदान तथा तर्पण किया जाता है। इस मंदिर में भगवान रुद्रनाथ विष्णु रूप में विराजमान हैं इसलिये मूर्ति को स्पर्श करने का अधिकार मात्र पुजारी को ही है।


सोमवार को पूरे विधि विधान के साथ मंदिर के पुजारी जर्नादन प्रसाद तिवाड़ी, भगवती प्रसाद भटट ने वर्ष की अंतिम पूजा की तथा शीतकाल के लिये मंदिर के कपाट बंद कर दिये। बाद में गाजे-बाजे के साथ भगवान रुद्रनाथ की उत्सव डोली को लेकर श्रद्धालु मध्य हिमालय के बीच से देर सांय पनार नामक स्थान पहुंचे, जहां उत्सव डोली की लोगों ने पंरपरा के अनुसार पूजा की।

 सोमवार को पनार में रहने के पश्चात कल (आज) भगवान की डोली ग्वाड, सगर, गंगोल गांव से होकर सकलेश्वर मंदिर में पहुंचेगी। बुधवार को भगवान रूद्रनाथ की डोली गोपेश्वर स्थित प्राचीन गोपीनाथ मंदिर में विराजमान होगी। यही शीतकाल के दौरान अब श्रद्वालु भगवान रुद्रनाथ के उत्सव डोली की पूजा अर्चना करेंगे।



Source dainik jagran

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भगवान रुद्रनाथ की उत्सव डोली पहुंची गोपीनाथ मंदिर





 गोपेश्वर  चतुर्थ केदार भगवान रुद्रनाथ की उत्सव डोली बुधवार को विधि विधान व पूजा अर्चना के साथ गोपेश्वर स्थित गोपीनाथ मंदिर में लाई गई।उल्लेखनीय है कि 17 अक्टूबर को चतुर्थ केदार रुद्रनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिये बंद कर दिये गये थे।

बाद में धार्मिक परंपरा के अनुसार भगवान रुद्रनाथ की उत्सव डोली को सगर स्थित सकलेश्वर मंदिर में लाया गया। बुधवार को उत्सव डोली को गाजे-बाजे के साथ गोपेश्वर स्थित गोपीनाथ मंदिर लाया गया।

जहां मौजूद हजारों श्रद्धालुओं ने भगवान की पूजा अर्चना की और पौराणिक काल से आ रही परंपरा के अनुसार भगवान की उत्सव डोली को मंदिर में स्थापित किया गया। अब शीतकाल में श्रद्धालु यहीं पर भगवान रुद्रनाथ की उत्सव डोली की पूजा अर्चना करेंगे।


इस अवसर पर मंदिर के पुजारी जर्नादन तिवाडी, भगवती प्रसाद भटट, पालिकाध्यक्ष प्रेम बल्लभ भटट, श्री बदरीकेदार मंदिर समिति के अध्यक्ष अनुसूया प्रसाद भटट, सुनील भटट, बुद्धिसिंह सतोष रावत, तेजपान कडेरी, असवाल, सतेन्द्र असवाल, सहित सैकडों की तादात में लोग शामिल थे।
   


Source Dainik jagran

 

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