Author Topic: These Photos Show Tough Life the Uttarakhand- ये तस्वीरे दिखाती है कष्टभरा जीवन  (Read 38277 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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कम होगा महिलाओं की पीठ का बोझ

Source Dainik Jagran



उत्तरकाशी। पशुपालन विभाग की देखरेख में अपने गांव के लिए चारागाह का निर्माण करने वाली लाटा की महिलाएं अब जिले के दूसरे गांवों के लिए भी मिसाल बन गई हैं। उनकी मेहनत से सबक सीखते हुए अब प्रशासन ने नरेगा के तहत अन्य गांवों में भी चारागाह विकसित करने का लक्ष्य बनाया है, ताकि महिलाओं की पीठ का बोझ कम किया जाएगा। योजना के तहत पचास गांवों की करीब तीन सौ हेक्टेयर भूमि पर वर्ष भर चारा उपलब्ध कराने वाली वनस्पतिया रोपने की तैयारी भी पूरी की जा चुकी है।

जून 2007 में पशुपालन विभाग की पहल पर लाटा गांव के ग्रामीणों की मेहनत रंग ला रही है। गांव की पांच हेक्टेयर भूमि पर फली फूली चारा विकास की योजना को जिले में नरेगा के जरिये विस्तार दिया जाएगा। इसके लिये कवायद भी शुरू कर दी गई है, जिससे जिले के दूसरे ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं को भी चारे के लिये दुर्गम जगहों पर जाने से निजात मिलेगी, साथ ही चारे की निरंतर उपलब्धता से पशुपालन को भी बढ़ावा मिलेगा।

 नरेगा में योजना के पहले चरण में 14 ग्रामसभाएं चुनी गई हैं। इनमें थलन, बुघाड़ी, भैंत, दिखोली, गेंवला, बंदरकोट, भड़कोट, नैपड़, नागणी, सुनारा, गौराफेड़ी व बिगराड़ी शामिल हैं। इन गांवों में कुल तीस हेक्टेयर भूमि का चयन कर शीघ्र ही चारा विकास कार्यक्रम शुरू किया जाएगा। चयनित भूमि पर नेपियर, गिनिघास, अंजन, काईपी व भीमल आदि की प्रजातियों को रोपण किया जाएगा।

इन वनस्पतियों से वर्ष भर ग्रामीणों को गांव के नजदीक ही पशुओं के लिये चारा उपलब्ध हो सकेगा। चारे के लिये बीज व पौध पशुलोक ऋषिकेश के साथ ही लाटा गांव से उपलब्ध कराए जाएंगे। नरेगा के तहत इन गांवों के बाद जिले के पचास और गांवों में करीब तीन सौ हेक्टेयर भूमि चयनित कर योजना का विस्तार दिया जाएगा। इसके लिये आमतौर पर एक गांव में दो से तीन हेक्टेयर भूमि की जरूरत पड़ेगी।

भूमि में 45 फीसदी से ज्यादा ढलान 35 फीसदी से अधिक पत्थर नहीं होने चाहिये। इस संबंध में जिला पशुपालन अधिकारी डा. अविनाश आनंद के मुताबिक गांवों में चारा संकट ने समस्याएं बढ़ाई हैं। इससे जहां पशुपालन कम हुआ, वहीं खेती को भी नुकसान पहुंचा है। नरेगा में चारा विकास की योजना गांवों को फिर से खुशहाल कर सकती है। ग्रामीण चारे को इस्तेमाल करने के साथ ही इसे बेच भी सकते हैं।

 सीडीओ डा. आर. राजेश कुमार ने बताया कि लाटा गांव में चारा विकास की सफलता को देखते हुए नरेगा के लिये इस योजना को चुना गया। पशुओं के लिये चारा ग्रामीणों की प्रमुख जरूरतों में से एक है। इसके लिये महिलाएं दुर्गम जगहों तक पहुंच जाती हैं। कई बार दुर्घटनाएं भी हो चुकी हैं, लेकिन गांव में ही चारागाह विकसित होने से ग्रामीण इनकी देखभाल खुद ही कर सकेंगे।



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When will this burden will become lesser.

 

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