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मझेरा (भिकियासैण , अल्मोड़ा ) के एक भवन की छाज  में काष्ठ कला
Traditional House Wood Carving art of, Majhera , Bihkhiyasain Almora, Kumaon   
 
कुमाऊँ , के भवन  में ( बाखली ,तिबारी, निमदारी ,, छाज )   कुमाऊं की    ' काष्ठ कला  अंकन , अलंकरण, उत्कीर्णन - 635 

 संकलन - भीष्म कुकरेती
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अल्मोड़ा से अच्छी संख्या में  काष्ठ कलायुक्त भवनों की सूचनायें  मिल रही है।  आज इसी क्रम में मझेरा अल्मोड़ा के एक भवन के छाज में काष्ठ कला , काष्ठ उत्कीर्णन पर चर्चा होगी।
प्रस्तुत भवन का छाज पहले तल में ही है। 
छाज के स्तम्भ /सिंगाड़  युग्म में हैं व मध्य में एक जालीदार नुमा कड़ी है व दोनों ओर उत्कीर्ण युक्त स्तम्भ हैं।  ये स्तम्भ कला में एक जैसे ही हैं। स्तम्भ के आधार में उल्टे कमल दल का चित्र उत्कीर्णित हुआ है व ऊपर लम्ब रूप से कटे बंद गोभी की कला दृष्टिगोचर हो रही हैं।  ऊपर ड्यूल हैं फिर ऊपर उर्घ्वगामी   पद्म   पुष्प  उत्कीर्णित हुए हैं।  इसके ऊपर लौकी नुमा आकृति कटी हैं व फिर ऊपर उलटे कमल दल , ड्यूल व उर्घ्वगामी कमल दल हैं।  इसके बाद कड़ी में लच्छेदार कला उत्कीर्ण हुयी हैं।  सबसे ऊपर स्तम्भ ऊपर के शीर्ष में बदल जाते हैं।  शीर्ष कलयुक्त हैं।
 शीर्ष में खिन भी देव मूर्ति उत्कीर्ण नहीं हुयी है। 
निष्कर्ष नीलता है कि खवन के छाज में प्राकृतिक व ज्यामितीय अलंकरण कला उत्कीर्ण हुयी हैं। 
सूचना व फोटो आभार :   बलवंत सिंह
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2022

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   चौखुटा (नैनीताल )  के एक भवन में काष्ठ कला 
   Traditional House Wood Carving Art in Chaukhuta , Nainital; 
   कुमाऊँ, गढ़वाल, केभवन ( बाखली,तिबारी,निमदारी, जंगलादार मकान,  खोली, )  में कुमाऊं शैली की  काष्ठ कला, अंकन,अलंकरण, उत्कीर्णन  - 635

संकलन - भीष्म कुकरेती

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नैनीताल से बहुत से काष्ठ कला युक्त भवनों की सूचना मिलीं हैं कुछ विशेष भवन हैं जैसे धानाचूली में। 

आज चौखुटा के एक नए प्रकार /शैली के भवन में काष्ठ  कला पर चर्चा होगी।  भवन बिलकुल नई शैली का है जिस पर ब्रिटिश शैली की छाप साफ़ दृष्टिगोचर होती है। 

चौखुटा  का प्रस्तुत भवन दुपुर  व तिखण्ड दीखता है।  भवन के तल तल (ग्राउंड फ्लोर ) मे सपाट काष्ठ कला है।  भवन के प्रथम तल में पारम्परिक शैली का जंगला बंधा है जिस पर ४ ५ स्तम्भ हैं।  बड़े  स्तम्भ सपाट व ज्यामितीय कटान कला युक्त हैं। 

आधार में भी लघु जंगल बंधे हैं जिस पर लघु स्तम्भ हैं जो छोटी कड़ी नुमा हैं। 

भवन की काष्ठ कला में कोई विशेषता नहीं है किन्तु भवन की निर्माण शैली विशष है। 

सूचना व फोटो आभार: नवनीत पाठक

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी।  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2022 

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 लोखंडी (जौनसार , देहरादून ) के एक भवन में काष्ठ कला
गढ़वाल,  कुमाऊँ , के  भवन  ( कोटि बनाल   , तिबारी , बाखली , निमदारी)  में   पारम्परिक गढ़वाली शैली   की काष्ठ कला अलंकरण, उत्कीर्णन -634
Traditional House wood Carving art of , Lokhandi , Jaunsar , Dehradun
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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जौनसार व रवाई क्षेत्र भवन काष्ठ कला हेतु उत्तराखंड में  उच्च स्थान पर है।   शीत जलवायु के कारण इन क्षेत्रों में पूरा भवन काष्ठ का निर्मित  केवल कुछ भाग में मिटटी व पत्थर प्रयोग होता है।  प्रस्तुत  लोखंडी (जौनसार , देहरादून ) का भवन तिपुर  व   दुखंड है।  भवन में कोटि बनाल शैली साफ़ दृष्टिगोचर होता है। 
भवन केदूसरे  तल में सपाट शक्तिशाली स्तम्भ दृष्टिगोचर हो रहे हैं।  तीसरे तल में मिटटी पत्थर की दिवार के स्थान पर काष्ठ दीवार निर्मित हुयी है।  दीवार काष्ठ पट्टियों से निर्मित हुयी हैं।  सभी पट्टियां सपाट व ज्यामितीय कटान से निर्मित हुए हैं।
दोनों भवनों में पट्टियां  व स्तम्भ सपाट व ज्यामितीय कला के उदाहरण हैं।
यद्यपि दोनों भवनों में काष्ठ कला  ज्यामितीय कटान से निर्मित व सपाट है किन्तु समग्र रूप से भवन में काष्ठ कला आकर्षक है।  यही जौनसारी व रवायीं , हर्षिल घाटी के भवनों की विशेषता है। 
सूचना व फोटो आभार : भगत सिंह  राणा
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2022

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धराली ( राजगढ़ , उत्तरकाशी ) के एक भवन में  पारम्पपरिक    गढवाली शैली  की    काष्ठ  कला,  अलकंरण, अंकन उत्कीर्णन
  Traditional House wood Carving Art in ,  Dharali  Uttarkashi   
गढ़वाल,  कुमाऊँ ,  के भवन  (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली  , खोली  , कोटि बनाल )  में पारम्पपरिक    गढवाली शैली  की    काष्ठ  कला,  अलकंरण, अंकन उत्कीर्णन - ६३३

 संकलन - भीष्म कुकरेती     
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 उत्तरकाशी में  सदियों पुराने भवनों में काष्ठ कला विद्यमान हैं।  अधिकतर भवनों में काष्ठ कला अपने पुरात्म व प्राथमिक काल की ही हैं।  और ऐसी काष्ठ कला उत्तराखंड के तिब्बत सीमा पर बहुतायत से मिलते हैं। 
आज धराली (राजगढ़ ब्लॉक, उत्तराखंड  ) के एक भवन में काष्ठ कला पर चर्चा होगी।  धराली का प्रस्तुत भवन दुखंड व दुपुर है। भवन नया लगता है।   प्रथम तल (first floor ) में जंगल बंधा है व जंगले में बड़े स्तम्भ हैं जो सपाट हैं।  भवन के प्रथम तल में जंगले  के आधार में लघु जंगला बंधा है जिसमे दो कड़ियों के मध्य कुछ कुछ XIX  आकर में लघु स्तम्भ बंधे हैं। 
भवन के अध्ययन से निष्कर्ष निकलता है कि  धराली के प्रस्तुत भवन में ज्यामितीय कटान की सपाट कला विद्यमान है। 
सूचना व फोटो आभार :  प्रशांत   (फेसबुक )
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत हेतु . भौगोलिक ,  मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2022   

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   कोटियारी  (घनशाली ) के एक     भवन के जंगले  में पारम्परिक गढवाली शैली की   कला, अलकंरण, उत्कीर्णन, अंकन
Traditional House Wood Carving Art of, Kotiyari , Tehri   
गढ़वाल,   भवनों ) में पारम्परिक गढवाली शैली की  कला, अलकंरण, उत्कीर्णन, अंकन-   632

संकलन - भीष्म कुकरेती 
  टिहरी गढ़वाल में तिबारियों व जंगलों की अच्छी संख्या में सूचना मिली है।  आज इसी क्रम में कोटियारी के एक भवन में जंगले  की सूचना मिली है।  भवन दुपुर  व दुखंड है।  भवन के तल तल व पहले तल में कमरों व मोरियों (खिड़कियों ) के द्वारों , सिंगाडों में सपाट ज्यामितीय कला के दर्शन हो रहे है।  हाँ जंगले  के लघु स्तंभ कलयुक्त हैं।     अपने युवा काल में जंगले  के मिट्टी पत्थर सीमेंट से बने स्तम्भ सही सलामत रहे होंगे किन्तु अब कुछ ही पूरे स्तम्भ बचे हैं। 
जंगले के लघु स्तम्भ हुक्का के नई जैसे हैं जिसमे तल में उल्टा कमल , ड्यूल , पुनः कमल दल व इसी तरह पुनरावृति हुयी है। 
 लघु स्तंभ अपने समय में उत्कृष्ट दीखते रहे होंगे। 

  सूचना व फोटो आभार: सुरेंद्र रावत     
यह आलेख कला संबंधित है , मिलकियत संबंधी नही है I   भौगोलिक स्तिथि और व भागीदारों  के नामों में त्रुटि   संभव है I 
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2022

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खुनैती  ( बिछला बदलपुर पौड़ी गढ़वाल ) में डुकलाण भवन के  जंगले में काष्ठ कला अलंकरण,  उत्कीर्णन , अंकन

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    Tibari, Traditional  House Wood Art in House of, Khanaiti , Bichhala Badalpur, Pauri Garhwal      

पौड़ी गढ़वाल, के  भवनों  (तिबारी,निमदारी,जंगलेदार मकान,,,खोली ,मोरी,कोटिबनाल ) में  गढवाली  शैली   की  काष्ठ कला अलंकरण,  उत्कीर्णन , अंकन  -631 


 संकलन - भीष्म कुकरेती    

-बदलपुर से भी कई भवनों की सूचना मिली है।  इसी क्रम में आज  खुनैती  ( बिछला बदलपुर पौड़ी गढ़वाल ) में डुकलाण भवन के  जंगले में युक्त काष्ठ कला उत्कीर्णन पर चर्चा की जाएगी। डुकलाण  भवन दुपुर व दुखंड है।  भवन के तल तल (ground floor ) में कमरों व  मोरियों (खिड़कियों ) में सपाट प्रकार की काष्ट कला।  प्रथम तल में  काष्ठ छज्जे पर जंगला बंधा है।  जंगले में कम से कम दस स्तम्भ दृष्टिगोचर हो रहे हैं (५ एक ओर ) . सभी स्तम्भ  चौखट व सपाट व ज्यामितीय कटान के निर्मित हैं।  स्तम्भों को ऊपर छूने वाली कड़ी भी स्पॉट ही है चौखट है।  भवन में बाहर कहीं भी मानवीय अलंकरण (देव , पशु पक्षी चिन्ह ) नहीं दृष्टिगोचर होते हैं।  अतः  निष्कर्ष निकलता है कि खुनैती  ( बिछला बदलपुर पौड़ी गढ़वाल ) में डुकलाण भवन के  जंगले में  केवल ज्यामितीय अलंकरण की काष्ठ कला उत्कीर्णन विद्यमान है।  

सूचना व फोटो आभार: मदन डुकलाण 

यह लेख  भवन  कला संबंधित  है . भौगोलिक स्थिति व  मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत: यथास्थिति में अंतर हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2022   
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रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि , शुक्र आदि   जन्य रोग
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद   
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 28 th  अठाईसवाँ  अध्याय   ( विविधशित पीतीय   अध्याय   )   पद   ७ बिटेन १८   तक
  अनुवाद भाग -  २५३
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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यूं मदे रस आदि स्थानुं म कुपित वात  आदि दोष,  जै जै स्थान पर जु जु  रोग उत्तपन्न करदन सि बुले जाल - अभद्र , भोजन म श्रद्धा नि हूण, अरुचि , भारीपन , तंद्रा , शरीर म पीड़ा , जौर , तम , अन्धकार , पाण्डु वर्ण , सूत्रों म अवरोध , नपुंस्कता , शिथिलता , सरैलौ दुर्बलता , जठरग्नि क नास , असमय झुर्रियां , आंख्युं सफेद हूण यी रसजन्य रोग छन।
रक्तजन्य रोग बुल्दां - कुष्ठ , बीसर्प , पिंडकायें , रक्त पित्त , रक्तप्रदर , गुदपाक , शिशिनौ पकण , प्लीहा , गुल्म , बिदृचि नीलिका , झांई , कामला , विप्लव , टिल जन मस्सा , दाद , चर्मदल श्वित्र , पामा , कोठ , रक्तमंडल यी रक्तजन्य रोग छन।
मांस जन्य रोग बुल्दां -अधिमांस , अर्वुद , कील , गलशालुक (गौळ म शोथन बढ्यो मांस  ), गळशुण्डिका , पूतिमांस , अब्जी , गळगंड , गंडमाळा, उपजिवहिका , यी मांसजन्य रोग छन।
मेद जन्य रोग -  प्रमेय क निन्दित  पूर्वरूप (बाळुं जटिलता , अति स्थूल क आयु ह्रास ) जन ८ रोग या स्थूलता जन्य आयु ह्रास मेद जन्य रोग छन। 
हड्डी तौळ दुसर  हड्डी आण , अधिदन्त , दंतमैद , दांत दूखण , हड्डी डाउ , बाळ , रोम व नंग क रंग, दाड़ी  मूछ  रंग  बदलेण , यी अस्थि जन्य रोग छन।
जोड़ों  म डाउ , चककर आण , मूर्छा , आंखूं समिण  अंध्यर हूण , व्रण , छुटी छुटि फुंसी हूण,  जोड़ुं म गांठ  यी सौब मज्जा जन्य रोग छन।
शुक्र दोष से नपुंसकता , संतान रोग , संतान नपुंसक या कम आयु क हूण , गर्भ स्खलन आदि हूंदन। दुषित शुक्र बच्चा व स्त्री दुयुं तै दुःख दीन्द।  १७ -१८। 

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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   -- ३८०
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022


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  गुडिया /गुरिया (उखीमठ) में एक भवन पारम्परिक गढवाली शैली की काष्ठ कला अलंकरण उत्कीर्णन  अंकन
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Traditional House wood Carving Art of Guriya , Ukhimath , Rudraprayag         : 
गढ़वाल के भवन (तिबारी, निमदारी, बाखली,जंगलेदार  मकान, खोलियों ) में पारम्परिक गढवाली शैली की काष्ठ कला अलंकरण उत्कीर्णन  अंकन,-630   

 
 संकलन - भीष्म कुकरेती
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रुद्रप्रायग भी चमोली की भांति भवन काष्ठ कला में विशेष स्थान वाला जनपद है।  आज इसी क्रम में गुरिया /गुड़िया (उखीमठ ) के एक भवन की काष्ठ कला पर चर्चा की जाएगी।
प्रस्तुत  गडिया  /गरिया  का भवन दुपुर व दुखंड है व अर्द्ध  तिपुर   लगता है  (ढैपुर ) ।   भवन के तल तल (ग्राउंड फ्लोर ) में लकड़ी के सभी सपाट कला दिखती है।  पहले तल में जंगला बंधा है। जंगले के १० बड़े स्तम्भ व छोटे जंगलों  के लघु स्तम्भ में सभी में ज्यामितीय कटान कीकला दृष्टिगोचर हो रही है।  बड़े स्तम्भों के मध्य गहरा कटान है जो स्तम्भों को आकर्षक दर्शाने में योग्य हैं। 
गरिया  /गडिया  के पूरे भवन में  ज्यामितीय कटान की काष्ठ कला विद्यमान है। 
सूचना व फोटो आभार: अभिषेक रावत
  * यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी, भौगोलिक स्तिथि संबंधी।  भौगोलिक व मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर  के लिए सूचना दाता व  संकलन  कर्ता उत्तरदायी नही हैं . 
  Copyright @ Bhishma Kukreti, 2022     
  रुद्रप्रयाग , गढवाल   तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों, बाखलीयों   ,खोली, कोटि बनाल )   में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण ,
 नक्काशी, जखोली , रुद्रप्रयाग में भवन काष्ठ कला,   ; उखीमठ , रुद्रप्रयाग  में भवन काष्ठ कला अंकन,  उत्कीर्णन  , खिड़कियों में नक्काशी , रुद्रप्रयाग में दरवाज़ों में उत्कीर्णन  , रुद्रप्रयाग में द्वारों में  उत्कीर्णन  श्रृंखला आगे निरंतर चलती रहेंगी

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अपथ्य व पाठ्य भोजन से रोग कनै  हूंदन ?
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चरक संहितौ सर्व प्रथम  गढ़वळि  अनुवाद 
 खंड - १  सूत्रस्थानम , 28 th  अठाईसवाँ  अध्याय   ( विविधशित पीतीय   अध्याय   )   पद  ५   बिटेन   ६ तक
  अनुवाद भाग -  २५२
गढ़वाळिम  सर्वाधिक पढ़े  जण  वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य  भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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      !!!  म्यार गुरु  श्री व बडाश्री  स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं  समर्पित !!!
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इन बुलद तब अग्निवेश न भगवान आत्रेय कुण  बोलि -हे भगवन संसारम दिखणम आंद कि जु मनिख हितकारी भोजन करदन सि रोगी दिखेंदान त अहितकारी भोजन करण वळ  बि रोगी दिखेंदन। 
भगवान आत्रेयन अग्निवेश कुण  ब्वाल - हे अग्निवेश ! जु हितकारी अन्न खांदन वूं  तै ये से रोग नि हूंद अर केवल हितकारी अन्न ही सब रोगों से बचाई सकदन।  अहित आहार छोड़ि बि रोगों  दुसर प्रकारै प्रकृति हूंद। ऋतू परिवर्तन , प्रज्ञापराध अर परिणाम , शब्द , स्पर्श , रूप , रस , गंध गंध का मिथ्यायोग ,  अतियोग,  आयोग हूण।  यी रोग का  कारण  आहार रसों क सम्यक उपयोग का  उपरान्त बि व्यक्ति म अशुभ लक्षण पैदा कर दींदन।  इलै हितकारी भोजन सेवन  करंदेर  बि  रोगी ह्वे जान्दन। 
इनि  जु अहित भोजन क उप सेवन करदन  वूंक जल्दी दोष चिन्ह नि मिल्दन।  किलैकि सम्पूर्ण अपथ्य रोगकारी नि हूंदन।  सब दोष समान शक्ति वळ बि  नि हूंदन।  सबि शरीर एकसमान रोग तै सहन नि कर सकदन। इलै अपथ्य देश चौंळ पित्तकारी छन किन्तु आनूप   देशक योग से बिंडी अपथ्य कारी ह्वे जांदन।  काल (हेमंत  म बलवान व शरद म निर्बल ) , वीर्य (संस्कार द्वारा उष्ण करण से पथ्य व शीत करण से अपथ्य ), प्रमाण व मात्रा क अतियोग से अपथ्यतम अर कम करण से निर्बल ह्वे जांदन ।  इनि  भौत सा कारणों मिलणन , विरुद्ध चिकित्सा हूण से गंभीर आशयों म , शरीर क भौत अंतर् प्रवेश से , शरीर म चिरकाल से जड़पकड़ से , शंख आदि क प्राणावयों  म   स्थित हूण से , मर्म स्थलों तै पीड़ित करण से , भौत दुःख दीणो कारण , शीघ्र विकार उतपन्न करण से , अपथ्य बलवान बण जांद।  इनि भौत म्वाटो , भौत कृश , जौंक मांस , रक्त , हड्डी , ढीला या कमजोर ह्वे  गे होवन , जैक शरीर विषम हो , जु असात्म्य भोजन सेवी हों , थोड़ा खाण वळ ह्वावो , अलप सत्व वळ रोग सहन नि कर  सकदन।  इलै अपथ्य आहार दोष शरीर की विशेषता से रोग  मृदु , दारुण , शीघ्र हूण वळ , अन्यथा देर से हूण वळ हूंदन।  हे अग्निवेश ! इलै वात , पित्त , कफ विशेष स्थलों म कुपित ह्वेका बनि बनि रोग उत्तपन्न करदन।  ५ -६। 
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी  थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ   --३७८ -३७९ 
सर्वाधिकार@ भीष्म कुकरेती (जसपुर गढ़वाल ) 2022
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जोशीमठ क्षेत्र में हरीश चंदोला भवन में तिबारी की काष्ठ कला अलंकरण, उत्कीर्णन  अंकन

Traditional House Wood Carving Art from  Josh,math, Chamoli   
 गढ़वाल,कुमाऊंकी भवन (तिबारी, निमदारी,जंगलादार मकान, बाखली,खोली) में पारम्परिक गढ़वाली शैली की  काष्ठ कला अलंकरण, उत्कीर्णन  अंकन, - 629
( काष्ठ कला पर केंद्रित ) 
 
 संकलन - भीष्म कुकरेती     
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चमोली गढ़वाल में  काष्ठ कला हेतु सर्वश्रेष्ठ जनपद है।  प्रत्येक गाँव में अनोखे भवन काष्ठ कला दृष्टिगोचर होती हैं।  इसी क्रम में आज जोशीमठ क्षेत्र में हरीश चंदोला भवन की तिबारी के  सिंगाड़ों  ( स्तम्भ ) की काष्ठ कला पर चर्चा होगी।
सूचना अनुसार  चंदोला भवन की तिबारी के तीन सिंगाड़  व  तीन  दीवालगीर के दर्शन होते हैं।  सभी काष्ठ कला दृष्टि से कला भव्य प्रकार की है।
  सिंगाड़ (स्तंभ )  के आधार में अधोगामी पद्म पुष्प दल उत्कीर्ण हुआ है जिसके ऊपर ड्यूल है।  ड्यूल के ऊपर उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल उत्कीर्ण हुआ है।  यहां से सिंगाड़ ऊपर चलता है ऊपर जाकर यही क्रम दुबारा स्थापित हुए हैं। स्तम्भ व पुष्पों के ऊपर भी उत्तीर्ण हुआ है।   यहां से सिंगाड थांत रूप लेता हैं।  यहीं से तोरणम भी उतपन्न हुआ है।  तोरणम में प्राकृतिक कला वस्तु व सूरजमुखी पुष्प का उत्कीर्ण हुआ है। 
प्रत्येक थांत के ऊपर पक्षी रूपी व पुष्प कली मिश्रित व एक तोते के डेवलगीर स्थापित हुए हैं।
सर्वत्र कला भव्य रूप में है। 
चंदोला भवन में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण का उत्कीर्णन हुआ है। 
सूचना व फोटो आभार: शशि भूषण मैठाणी
यह लेख  भवन  कला संबंधित  है न कि मिल्कियत  संबंधी  . मालिकाना   जानकारी  श्रुति से मिलती है अत:  वस्तु स्थिति में  अंतर   हो सकता है जिसके लिए  सूचना  दाता व  संकलन कर्ता  उत्तरदायी  नही हैं .
Copyright @ Bhishma Kukreti, 2022 
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