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Utttarakhand Language & Literature - उत्तराखण्ड की भाषायें एवं साहित्य / Re: चरक संहिता का गढवाली अनुवाद , Garhwali Translation of Charak Samhita
« Last post by Bhishma Kukreti on June 08, 2022, 09:29:20 AM »बनि बनि मसाले, लूण व छारों गुण व लक्छण
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चरक संहितौ सर्व प्रथम गढ़वळि अनुवाद
खंड - १ सूत्रस्थानम , 27th सत्ताइसवां अध्याय ( अन्नपान विधि अध्याय ) पद २९४ बिटेन ३०६ तक
अनुवाद भाग - २४२
गढ़वाळिम सर्वाधिक पढ़े जण वळ एकमात्र लिख्वार-आचार्य भीष्म कुकरेती
s = आधी अ
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!!! म्यार गुरु श्री व बडाश्री स्व बलदेव प्रसाद कुकरेती तैं समर्पित !!!
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सोंठ - थोड़ा स्निग्ध , अग्निदीपक , वीर्यवर्धक , गरम , वातकफनाशी, विपाक म मधुर , हृदय तै हितकारी व रुचिप्रिय हूंद।
हरी पिप्पली -कफकारी , मधुर , गुरु अर स्निग्ध हूंद।
सुखीं पिप्पली - कफ वात नाशी , कटु , गरम व वीर्यवर्धक हूंद।
काळी मर्च सूखी -बिंडी गरम नी , वीर्य तै न बढ़ाण वळ , लघु , रुचिकारी , छेदन करण वळ , कफ आदि तै उखाड़ण वळ , कफनाशी व अग्निदीपक हूंद।
काळी मिर्च हरी अवस्था म स्वादु , गुरु व कफवर्धक हूंद।
हींग -वायु कफ नाशी , विवन्ध नाशी , कटु , गरम , अग्निदीपक , लघु , शूलनाशी अर पाचक हूंद।
सेंधा लूण - रुचिकर , अग्निवर्धक , आँखों कुण हितकारी , अविदाही , त्रिदोषनाशी , मधुर व लूणो म श्रेष्ठ च।
संचल लूण -सूक्ष्म , उष्ण , सुगंधित हूणन रुचिकर , विबंधनाशक , डंकार शोधक , हूंद।
काळो लूण - तीखो , उष्ण , व्ययायी (शरीर म फ़ैलण वळ ) , अग्निदीपक , शूलनाशी , वायु (अधो व् औरघवा द्वी ) अनुलोमन करंदेर हूंद।
उदमिद् लूण -तीखो , कड़ु , छारयुक्त , वमन की रूचि पैदा करण वळ हूंद।
काळो लूणो गुण संचल क जन हूंदन पर गंध नि हूंद । समुद्रो नमक मधुर हूंद।
धोबीम कपड़ा धूण वळ लूण इन मिट्टी से तैयार हूंद जु कड़ु अर टिकट हूंद।
सब लूण रुचिकारक , अन्न पकाण वळ (सीजनिंग हेतु बि ) , संस्री व वातनाशी हूंदन।
जौ छार -हृदय , पाण्डु , ग्रहणी रोग , स्रीहा , ानाः रोग , गळरोग , कफ जन्य खासु , अर अर्श रोग नाशी हूंद।
सौब प्रकारा छार (टंकण , भुज्जी , पापड़ , छार आदि ) तीखा , उष्ण , लघु , रुखो , क्लेदि , अन्न व व्रण पकाऊ , पकयुं व्रण तै फड़ण वळ, जळाण वळ , अग्निवर्धक , कफ तै फड़न वळ अग्नि जन उष्ण गुण वळ हूंदन ।
काळो अर मोटा जीरो रुचिकर , अग्निदीपक ,अर वात कफ दुर्गंध नाशी हूंद।
खान पान म क्या क्या सही च क निर्णय करण कठण हूंद कारण प्रत्येक मनुष्य क रूचि व शरीर विन्यास , स्थान - ऋतू प्रभाव अलग अलग हूंद।
आहारयोगी अध्याय समाप्त। २९४- ३०६।
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*संवैधानिक चेतावनी : चरक संहिता पौढ़ी थैला छाप वैद्य नि बणिन , अधिकृत वैद्य कु परामर्श अवश्य लीण
संदर्भ: कविराज अत्रिदेवजी गुप्त , भार्गव पुस्तकालय बनारस ,पृष्ठ ३६६ - ३६७
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