Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

(कोकिला देवी)कोटगाड़ी मंदिर - (Kokila Devi)Kotgaadi Temple

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Pawan Pathak:
न्याय की देवी है कोकिला
पिथौरागढ़। पांखू (बेड़ीनाग) में स्थित मां कोकिला (कोटगाड़ी) के मंदिर को न्याय के मंदिर के रूप में जाना जाता है। लोग आपसी विवाद, लड़ाई-झगड़े के मामलों में न्यायालय में की बजाय मां के दरबार में ले जाना पसंद करते हैं। मंदिर में स्टांप पेपर और सादे कागज में चिट्ठी लिखकर न्याय की गुहार लगाई जाती है। मंदिर में टंगी असंख्य अर्जियां इस बात की गवाही देती हैं। जंगलों की रक्षा के लिए लोग पांच, 10 वर्ष के लिए जंगल मां कोकिला को चढ़ा देते हैं। बेहद रमणीक स्थान पर स्थित मां कोकिला के दरबार के चाहने वाले देश, दुनियां में बहुत हैं।

http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20150324a_003115011&ileft=-1&itop=586&zoomRatio=290&AN=20150324a_003115011

Pawan Pathak:
35 हेक्टेयर में फैले वन पंचायत के जंगल में हो रहा था अवैध कटान
मां भगवती करेंगी निमाथी जंगल की रक्षा
अमर उजाला ब्यूरो
डीडीहाट (पिथौरागढ़)। वन पंचायत निमाथी के जंगल को मां भगवती को अर्पित कर दिया गया है। जंगल में लगातार हो रहे अवैध कटान 
पर अंकुश लगाने के लिए यह फैसला लिया गया। जंगल भगवती माता को अर्पित होने के बाद ऐसा विश्वास रहता है कि जो कोई जंगल को 
नुकसान पहुंचाने का प्रयास करेगा उसे भगवती दंडित करेगी। क्षेत्र में मां भगवती को अर्पित जंगलों की संख्या चार हो गई है।
निमाथी वन पंचायत के सरपंच पंकज सिंह ने बताया कि 35 हेक्टेअर में फैले वन पंचायत के जंगल को पिछले कुछ समय से भारी 
नुकसान पहुंचाया जा रहा था। गांव के लोगों की बैठक में तय किया गया कि जंगल को सुरक्षा के लिए भगवती को अर्पित किया जाए और 
जंगल की सीमा पर बाकायदा बोर्ड लगा दिया गया है। गांव के लोगों की ओर से एक स्टांप पेपर पांखू के कोटगाड़ी गांव में स्थित भगवती 
मंदिर में चढ़ा दिया गया है। इस क्षेत्र में चार साल पूर्व धौलेत के 74 हेक्टेअर क्षेत्र में फैले जंगल को भी देवी को अर्पित किया गया था। 
सरपंच दीवान सिंह ने बताया कि तब से जंगल में अवैध कटान बंद है और पेड़, पौधे तेजी से पनप रहे हैं। हाटथर्प गांव की वन पंचायत को 
भी भगवती को अर्पित किया गया है। 198 हेक्टेअर में फैले इस जंगल में भी पौधे तेजी से बढ़ रहे हैं। सरपंच नंदन सिंह ने बताया कि 
जंगल में अब अवैध कटान नहीं होता। इस साल मार्च में कैणी के 20 हेक्टेअर में फैले जंगल को भी भगवती को अर्पित किया गया। सरपंच 
गोविंद लाल साह ने बताया कि जंगल में अब अवैध कटान नहीं होता।

Source-http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?
Artname=20150831a_002115006&ileft=59&itop=1100&zoomRatio=194&AN=20150831a_002115006

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
न्याय की देवी है कोकिला
पिथौरागढ़। पांखू (बेड़ीनाग) में स्थित मां कोकिला (कोटगाड़ी) के मंदिर को न्याय के मंदिर के रूप में जाना जाता है। लोग आपसी विवाद, लड़ाई-झगड़े के मामलों में न्यायालय में की बजाय मां के दरबार में ले जाना पसंद करते हैं। मंदिर में स्टांप पेपर और सादे कागज में चिट्ठी लिखकर न्याय की गुहार लगाई जाती है। मंदिर में टंगी असंख्य अर्जियां इस बात की गवाही देती हैं। जंगलों की रक्षा के लिए लोग पांच, 10 वर्ष के लिए जंगल मां कोकिला को चढ़ा देते हैं। बेहद रमणीक स्थान पर स्थित मां कोकिला के दरबार के चाहने वाले देश, दुनियां में बहुत हैं। उत्तराखंड की पावन धरती में भगवान शंकर सहित ३३ कोटि देवताओं के दर्शन होते हैं। आदि जगदगुरु शंकराचार्य ने स्वयं को इसी भूमि पर ही पधारकर धन्य मानते हुए कहा कि इस ब्रह्मांड में उत्तराखंड के तीर्थों जैसी अलौकिकता और दिव्यता कहीं नहीं है। इस क्षेत्र मेंशक्तिपीठों की भरमार है। सभी पावन दिव्य स्थलों में से तत्कालिक फल की सिद्धि देने वाली माता कोकिला देवी मंदिर का अपना दिव्य महात्म्य है।
इन्हें कोटगाड़ी देवी भी कहा जाता है, कहा जाता है कि यहां पर सच्चे मन से निष्ठा पूर्वक की गई पूजा-आराधना का फल तुरंत मिलता है और अभीष्ट कार्य की सिद्धि होती है।
किवदंतियों के अनुसार, जब उत्तराखंड के सभी देवता विधि के विधान के अनुसार खुद को न्याय देने और फल प्रदान करने में अक्षम व असमर्थ मानते हैं और उनकी अधिकार परिधि शिव तत्व में विलीन हो जाती है। तब अनंत निर्मल भाव से परम ब्रह्मांड में स्तुति होती है कोटगाड़ी देवी की। संसार में भटका मानव जब चौतरफा निराशाओं से घिर जाता है और हर ओर से अन्याय का शिकार हो जाता है, तो संकल्प पूर्वक कोटगाड़ी की देवी का जिस स्थान से भी सच्चे मन से स्मरण किया जाता है, वहीं से निराशा के बादल हटने शुरू हो जाते हैं। मान्यता है कि संकल्प पूर्ण होने के बाद देवी माता कोटगाड़ी के दर्शन की महत्वता अनिवार्य है। किसी के प्रति व्यर्थ में ही अनिष्टकारी भावनाओं से मांगी गई मनौती हमेशा उल्टी साबित होती है। इस मंदिर में फरियादों के असं2य पत्र न्याय की गुहार के लिए लगे रहते हैं। दूर-दराज से श्रद्धालुजन डाक द्वारा भी मंदिर के नाम पर पत्र भेज कर मनौतियां मांगते हैं। मनौती पूर्ण होने पर भी माता को पत्र लिखते हैं और समय व मैया के आदेश पर माता के दर्शन के लिए पधारते हैं।

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