कपकोट की सुरम्य पहाड़ी पर स्थित श्री 1008 काशिल देव मंदिर क्षेत्र के लोगों का अपार श्रद्धा का केंद्र है। मंदिर में बैशाख 3 गते को क्षेत्र का सुप्रसिद्ध स्यालदे का मेला लगता है।
दिन में मंदिर परिसर में पूजा अर्चना की जाती है तथा रात्रि में स्यालडुंगर नामक स्थान पर चाचरी लगती है जिसमे दूर दूर से लोग हिस्सा लेने आते है ।
मेले में दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुजन अपनी मनौती पूरी होने पर मंदिर में घंटियां, शंख और पूजा के काम आने वाली अन्य वस्तुएं अर्पित करते हैं।
पिंडारी मार्ग से करीब एक किमी की दूरी पर स्थित कपकोट की सुरम्य पहाड़ी में श्री 1008 काशिल देव का भव्य मंदिर है। मंदिर के पास ही भगवती माता तथा बाण देवता के मंदिर हैं।
लोगो का कहना है कि काशिल देव लोगों की खेती तथा बागवानी को ओलावृष्टि तथा गांव को अनिष्ट से बचाते हैं। काशिल देव को करीब 612 साल पहले राजा रत कपकोटी अपने साथ लाए थे।
वह उनके आराध्य देवता थे। राजा कोई भी काम बगैर काशिल देवता की इच्छा के नहीं करते थे । कपकोट की शरहद पहले जरगाड़ गधेरे से फुलाचौंर तक थी।
इसके तहत कपकोट, गैनाड़, भंडारीगांव, गैरखेत, उत्तरौड़ा, फुलवारी ग्राम पंचायत आते हैं। इन गांवों के लोग स्यालदे के मौके पर मंदिर में नए अनाज का प्रसाद अर्पित करते हैं।
मान्यता है की पहले काशिल देव आवाज लगाकर लोगों को विभिन्न पर्वो के अलावा अमावस्या तथा पूर्णिमा की जानकारी देते थे।
मंदिर परिसर से हिमालय के विहंगम दृश्य के दर्शन के साथ कपकोट, ऐठान, भयूं, फरसाली, बमसेरा, चीराबगड़ आदि गांवों के सीढ़ीदार खेत, शिखर पर्वत के अलावा पवित्र सरयू नदी के दर्शन होते हैं।
मंदिर के समीप ही इंटर कॉलेज भी स्थित है जहा पठन पाठन का दैवीय वातावरण सा बनता है । इंटर के छात्र व छात्राए साल में एक बार मंदिर में पूजा अर्चना एवं भंडारे का आयोजन भी करते है ।
प्रस्तुत है इस मंदिर और मेले की कुछ झलकियाँ