Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

Ashtavakra Temple Srinagar Garhwal-अष्टावक्र मंदिर, उतंग चोटी श्रीनगर गढ़वाल

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
राजा भागीरथ की कथा - मुनि अष्टवक्र से जुडी


राजा दिलीप निःसंतान थे। उनकी दो रानियां थी। वंश ही न खत्‍म हो जाए इस भय से दोनों रानियों ने ऋषि और्व के यहां शरण ले ली। ऋषि के आदेश से दोनों रानियों ने आपस में संयोग किया जिसके परिणामस्‍वरूप एक रानी गर्भवती हुई।

 प्रसव के बाद एक मांसपिण्‍ड का जन्म हुआ। इस मांसपिण्‍ड का कोई निश्चित आकार नहीं था। रानी ने ऋषि और्व को सारी बात बताई। ऋषि ने आदेश दिया कि मांसपिण्‍ड को राजपथ पर रख दिया जाए। ऐसा ही किया गया।

अष्टवक्र मुनि स्‍नान करके अपने आश्रम लौट रहे थे। राजपथ पर उन्‍होंने मांसपिण्‍ड को फड़कते देखा। उन्‍हें लगा कि यह मांसपिण्‍ड उन्‍हें चिढ़ा रहा है। उन्‍होंने शाप दिया, “यदि तुम्‍हारा आचारण, स्‍वाभाव सिद्ध हो, तो तुम सर्वांग सुन्‍दर होओ और यदि मेरा उपहास कर रहे हो तो मृत्‍यु को प्राप्त हो।”

ऋषि का वचन सुनते ही मांसपिण्‍ड सर्वांग सुन्‍दर युवक में बदल गया। वह युवक चूंकि दोनों रानियों के संयोग से जन्‍म लिया था इसलिए उसका नाम हुआ भागीरथ।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
कथा है कि महामुनि अष्टावक्र जब उत्तराखंड आये तो उन्हें बन्हिपर्वत की इस छोटी ने विशेष आकृष्ट किया ! नदी घाटी और तुषारावृत श्रंगो  को देखकर वे आन्दिंत हुए इसी बन्हिपर्वत की एक गुफा में बैठकर शिव की तपस्या में लीं हो गये! उनकी यह आराधना जगत के कल्याण के लिए थी! अपने प्रति तो वह महा बैरागी थे! उनके ताप से पवित्र हुयी यह भूमि तपोभूमि कहलाई ! अष्टावक्र की कठोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए! शिव ने वरदान मांगने को कहा तो मुनि अष्टावक्र ने कहा यहद आप प्रसन्न हो तो मई आपको ही मागना अर्थात आपकी स्थिति इस पर्वत पर हो और आपका सान्निद्यय मुझे प्राप्त हो ! भगवान् ने कहा तथास्तु ! भक्त और भगवान एकरार हो गये! भक्त का नाम भगवान् से जुड़ गया और इस स्थान पर शिव उपासना शुरू हो गयी! इस स्थान का नाम पड़ा 'अष्टावक्र महादेव' ! अथार्त वह महादेव तो अष्टावक्र के आराध्य है! 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

पूजा पद्धति

अष्टावक्र मंदिर में दस नाम सन्यासियों में से गिरी, पूरी संप्रदाय के लोगो ही पूजा करते है! पूजा नियमित नहीं होती है क्वाल सोमवार के दिन गंगाजल से शिवलिंग और जलाभिषेक एव पूजन करते है ! सावन के सोमवारों में निकटवर्ती गावो के लोग पूजा करने आते है ! सघनवनों के मध्य उतंग शिखर पर महादेव व् भक्त (अष्टावक्र) दोनों विराजमान है ! निसंदेह श्री डामकेश्वर, रत्नेश्वर, दादणी और चमराडा प्रमुख है!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
अष्टावक्र महादेव अष्टावक्र महादेव खोला        गांव के ऊपर एक पहाड़ी पर श्रीनगर से तीन किलोमीटर पैदल यात्रा एवं आठ        किलोमीटर की सड़क यात्रा की दूरी पर है। माना जाता है कि अष्टावक्र मुनि ने यहां भगवान शिव की आराधना की थी। प्रसन्न        होकर भगवान शिव, मुनि के सामने प्रकट हुए तथा वरदान के अनुसार वहां रहने का        निश्चय किया। स्वयं मंदिर देखने में साधारण ही है। यह एक 15 फीट ऊंचा ढांचा        है जहां गर्भ गृह में एक स्वयंभू शिवलिंग के ऊपर आठ पांवों पर टिका एक कलश        है। जब मंदिर का पुनरूद्धार हो रहा था तब शिवलिंग की जड़ पता नहीं चलने के        कारण खुदाई रोक दी गई। लोगों का ऐसा भी विश्वास है कि शिवलिंग की लंबाई बढ़ रही है। मंदिर में गणेश एवं नंदी की प्रतिमाएं भी हैं। मंदिर एक सुंदर स्थान पर अवस्थित है जहां एक ओर अलकनंदा की घाटी का मनोरम दृश्य है तथा दूसरी ओर देवदार पेड़ों से भरे पौड़ी की पहाड़ियां हैं।

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