Author Topic: Ashtavakra Temple Srinagar Garhwal-अष्टावक्र मंदिर, उतंग चोटी श्रीनगर गढ़वाल  (Read 7244 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto. 

श्रीनगर गढ़वाल के पुष्प तीर्थ कमलेश्वर महादेव की दक्षिण में वहि पर्वत की उतंग चोटी पर श्री अष्टवक्र महादेव मदिर अवस्थित है! पौड़ी जनपद के विकासखंड खिर्सू की पट्टी कटूलस्यु में १०८० मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर केदारखंड के अध्याय १८९ में पूर्ण वर्णित है ! व्रहिधारा के ऊपर व्रहिपर्वत के मध्य में श्री अष्टवक्र मुनि कलियुंग में सिद्दीदायक है! इस क्षेत्र में जो मनुष्य पैदल जाता है, उसने मेरु पर्वत पर समेत प्रथ्वी की पददक्षिणा कर ली ( केदारखंड अध्याय १८९/२०-२१-२२) अष्टवक्र मंदिर के लिए श्री नगर से पैदल मार्ग ३ किलोमीटर का है! वर्तमान में श्रीनगर के खोला गाव तक वाहनों की आवाजाही है !  अष्टवक्र स्थान के चारो और फैले गाव, खोला, सुमाडी, चडीगाव, धरिगाव, डांग, येठाना, बछेली, अंधार, धिकालगाव, बलोडी आदि प्रमुख है ! चोटी पर स्थित इस मंदिर के आसपास समतल है  भूमि है! कहा जाता है इस समतल भूमि पर निकटवर्ती ऐरासूगड का गडपति अपना भवन बनाना चाहता था किन्तु शिव ने नहीं बनने दिया! आज भी इस तोक का नाम भूमि बन्दोंबस्त के कागजो में 'राजा बंगला' अंकित है और पूरे बन्हिपर्वत क्षेरा को एरासू नाम से ही संबोधित किया जाता है ! (साभार - केदारखंड किताब.. -लेखिका हेमा उनियाल)  इस टोपिक में हम इस मंदिर के बार में विस्तृत जानकारी दंगे!


एम् एस मेहता


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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आध्यात्म
श्री अष्टवक्र का नाम अध्यात्मिक जगत में बड़े सम्मान के लिया जाता है! उनके ज्ञान से अभिभूत होकर राजा जनक जैसे महाज्ञानी ने उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु माना था! महाभारत और पुराण आदि आर्ष ग्रंथो में मुनि अष्टावक्र के महान व्यक्तित्व और ज्ञान की भूरी भूरी प्रशंशा है! भगवान् श्री कृष्ण ने स्वयं अष्टवक्र को ज्ञानियों को शिरोमणि कहा है ! मुनि अष्टावक्र को अमर कृति 'अष्टवक्र गीता' को विद्वानों के श्रीमदभगवत गीता से भी उच्चे कोटि का आध्यात्मिक ग्रन्थ माना है ! अष्टवक्र गीता के व्याख्याकार संस्कृत के विद्वान श्री नंदलाल दशोरा अपने गहन विश्लेषण के बाद इस निष्कर्ष पर पहुचे की अष्टवक्र गीता की तुलना किसी अन्य ग्रंथो से नहीं की जा सकती है !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पौराणिक कहानी

कहोड़ मुनि के पुत्र अष्टवक्र, पिता द्वारा शाप दिया जाने कारण आठ अंगो से टेड़े मेडे थे इसीलिए उनका नाम अष्टवक्र पड़ा! एक बार राजा जनक की सभा में तत्व ज्ञान पर शास्त्रार्थ चल रहा था! १२ वर्षीय अष्टवक्र अपने कुरूप और टेड़े मेडे शरीर को लेखर वहां पहुचे तो उनकी आकृति एवंम चाल ढाल देखकर सभा में उपस्थित सभासद हस पड़े! अष्टवक्र भी उन सभासदों को देखकर खूब हस पड़े! अष्टवक्र की हसी देख कर राजा जनक ने पूछा ये विद्वान क्यों हँसे, यह तो समझ गया लेकिन आप क्यों हसे यह नहीं समझा ! इस पर अष्टवक्र बोले राजन! मै इसलिए हँसा की यह कैसी विडंबना है की इन चर्मकारो लप सभा में आज तत्त्व ज्ञान पर क्या निर्णय दंगे ! दरअसल अष्टवक्र अल्पायु से ही आत्म ज्ञानी थे !  उनका ज्ञान पुस्तकीय नहीं था ! आत्मविश्वाशी एवंम प्रतिभाशाली अल्पायु बालक के मुश से चर्मकार की संज्ञा से सभी अवाक रह गए! राजा जनक अष्टवक्र के वचनों को सुनकर प्रभावित होते है और उन्हें अपना गुरु माना ! राजा जनक ने १२ वर्षीय बालक से अष्टवक्र से अपनी जिग्यासाओ का समाधान करवाया ! यही शंकर समाधान 'जनक अष्टवक्र संवाद' के रूप में 'अष्टवक्र गीता है !


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Ashtavakra Mahadev in South (Legend and story of Rishi Ashtavakra's penance) at a height at Shring Parvat. Bhairav Ji in the West in Kanda village and finally Maniknath Mahadev as the Northern Kshetrapal in North.

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श्री अष्टवक्र आज से कितने वर्ष पूर्व पैदा हुए यह सही सही निश्चित नहीं है ! अनुमानित है की जनक के दरवार में पर्दापण करने, ज्ञानोपदेश देने से उनका जन्म त्रेता युग में माना जा सकता है ! उलेखनीय है की त्रेता युग में अवतारी पुरुष भगवान् राम स्वयं श्री नगर आये थे उन्होंने ब्रह्मण हत्या (रावण वध) के पाप से मुक्फ्त होने के लिए श्रीनगर के श्री कमलेश्वर में एक सह्त्र कमल पुण्य शिव भगवन को अर्पित किया था !

इससे प्रतीत होता है त्रेता युग में श्री नगर गढ़वाल और कमलेश्वर महादेव अस्तितव में थे!

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राजा भागीरथ की कथा - मुनि अष्टवक्र से जुडी


राजा दिलीप निःसंतान थे। उनकी दो रानियां थी। वंश ही न खत्‍म हो जाए इस भय से दोनों रानियों ने ऋषि और्व के यहां शरण ले ली। ऋषि के आदेश से दोनों रानियों ने आपस में संयोग किया जिसके परिणामस्‍वरूप एक रानी गर्भवती हुई।

 प्रसव के बाद एक मांसपिण्‍ड का जन्म हुआ। इस मांसपिण्‍ड का कोई निश्चित आकार नहीं था। रानी ने ऋषि और्व को सारी बात बताई। ऋषि ने आदेश दिया कि मांसपिण्‍ड को राजपथ पर रख दिया जाए। ऐसा ही किया गया।

अष्टवक्र मुनि स्‍नान करके अपने आश्रम लौट रहे थे। राजपथ पर उन्‍होंने मांसपिण्‍ड को फड़कते देखा। उन्‍हें लगा कि यह मांसपिण्‍ड उन्‍हें चिढ़ा रहा है। उन्‍होंने शाप दिया, “यदि तुम्‍हारा आचारण, स्‍वाभाव सिद्ध हो, तो तुम सर्वांग सुन्‍दर होओ और यदि मेरा उपहास कर रहे हो तो मृत्‍यु को प्राप्त हो।”

ऋषि का वचन सुनते ही मांसपिण्‍ड सर्वांग सुन्‍दर युवक में बदल गया। वह युवक चूंकि दोनों रानियों के संयोग से जन्‍म लिया था इसलिए उसका नाम हुआ भागीरथ।


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कथा है कि महामुनि अष्टावक्र जब उत्तराखंड आये तो उन्हें बन्हिपर्वत की इस छोटी ने विशेष आकृष्ट किया ! नदी घाटी और तुषारावृत श्रंगो  को देखकर वे आन्दिंत हुए इसी बन्हिपर्वत की एक गुफा में बैठकर शिव की तपस्या में लीं हो गये! उनकी यह आराधना जगत के कल्याण के लिए थी! अपने प्रति तो वह महा बैरागी थे! उनके ताप से पवित्र हुयी यह भूमि तपोभूमि कहलाई ! अष्टावक्र की कठोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए! शिव ने वरदान मांगने को कहा तो मुनि अष्टावक्र ने कहा यहद आप प्रसन्न हो तो मई आपको ही मागना अर्थात आपकी स्थिति इस पर्वत पर हो और आपका सान्निद्यय मुझे प्राप्त हो ! भगवान् ने कहा तथास्तु ! भक्त और भगवान एकरार हो गये! भक्त का नाम भगवान् से जुड़ गया और इस स्थान पर शिव उपासना शुरू हो गयी! इस स्थान का नाम पड़ा 'अष्टावक्र महादेव' ! अथार्त वह महादेव तो अष्टावक्र के आराध्य है! 

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पूजा पद्धति

अष्टावक्र मंदिर में दस नाम सन्यासियों में से गिरी, पूरी संप्रदाय के लोगो ही पूजा करते है! पूजा नियमित नहीं होती है क्वाल सोमवार के दिन गंगाजल से शिवलिंग और जलाभिषेक एव पूजन करते है ! सावन के सोमवारों में निकटवर्ती गावो के लोग पूजा करने आते है ! सघनवनों के मध्य उतंग शिखर पर महादेव व् भक्त (अष्टावक्र) दोनों विराजमान है ! निसंदेह श्री डामकेश्वर, रत्नेश्वर, दादणी और चमराडा प्रमुख है!

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अष्टावक्र महादेव अष्टावक्र महादेव खोला        गांव के ऊपर एक पहाड़ी पर श्रीनगर से तीन किलोमीटर पैदल यात्रा एवं आठ        किलोमीटर की सड़क यात्रा की दूरी पर है। माना जाता है कि अष्टावक्र मुनि ने यहां भगवान शिव की आराधना की थी। प्रसन्न        होकर भगवान शिव, मुनि के सामने प्रकट हुए तथा वरदान के अनुसार वहां रहने का        निश्चय किया। स्वयं मंदिर देखने में साधारण ही है। यह एक 15 फीट ऊंचा ढांचा        है जहां गर्भ गृह में एक स्वयंभू शिवलिंग के ऊपर आठ पांवों पर टिका एक कलश        है। जब मंदिर का पुनरूद्धार हो रहा था तब शिवलिंग की जड़ पता नहीं चलने के        कारण खुदाई रोक दी गई। लोगों का ऐसा भी विश्वास है कि शिवलिंग की लंबाई बढ़ रही है। मंदिर में गणेश एवं नंदी की प्रतिमाएं भी हैं। मंदिर एक सुंदर स्थान पर अवस्थित है जहां एक ओर अलकनंदा की घाटी का मनोरम दृश्य है तथा दूसरी ओर देवदार पेड़ों से भरे पौड़ी की पहाड़ियां हैं।

 

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