भगवान विष्णु का दरबार: बद्रीनाथ
चारों धामों में सर्वश्रेष्ट हिन्दु धर्म का सबसे पावन तीर्थ, हर श्रद्धालु की मंजिल नर और नारायण पर्वत श्रंखलाओं से घिरा बद्रीनाथ, अलकनंदा नदी के बाऐँ तट पर नील कठं श्रृंखला की पृष्ट भूमि पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में यह स्थल बदरियाँ (जंगली बेरों) से भरा रहने के कारण इसको बद्री बन भी कहा जाता था।
3,133 मी. की उँचाई पर स्तिथ बद्रीनाथ मंदिर भगवान विष्णु को अर्पित है। 15 मी. की उँचे इस मंदिर का निर्माण 8वीं सदी के बद्धिजीवी संत आदिगुरू शंकाराचार्य द्वारा किया गया था। यह मंदिर बर्फीले तुफानों के कारण कई बार क्षति ग्रस्थ हुआ और पुनः निर्मित किया गया है। सजीव सिंहद्वार इस प्राचीन मंदिर को एक नवीन छवि प्रदान करता है। मंदिर तीन भागों में विभाजित है, गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभामण्डप। मंदिर परिसर में 15 मूर्तियां है, इनमें सब से प्रमुख है भगवान विष्णु की एक मीटर ऊँची काले पत्थर की प्रतिमा जिसमें भगवान विष्णु ध्यान मग्न मुद्रा में सुशोभित है। मुख्य मंदिर में भगवान बद्रीनारायण की काले पाषाण की शीर्ष भाग मूर्ति है। दाहीने ओर कुबेर लक्ष्मी और नारायण की मूर्तियाँ है। आदिगुरू शंकाराचार्य द्वारा यंहा एक मठ की भी स्थापना की गई थी।
केदारखण्ड स्थित श्री बद्रीनाथ के सनातन धर्म के सर्वश्रेष्ठ आराघ्य देव श्री बद्रीनाथ के पांच स्वरूपों की पूजा अर्चना होती है। नारायण के पाचों रूपों की पांच बद्रीयाँ निम्न प्रकार से है। वीशाल बद्री के नाम से बद्रीनाथ, पंच बद्रीयों में से एक है। बद्रीनाथ का श्रद्धेय मंदिर पौराणिक गाथाऔं, कथनों और घटनाऔं का अभिन्न अंग है। इसकी पवित्रता धर्मशास्त्रों में स्पष्ट शब्दों में अंकित है। स्वर्ग, धरती और पाताल में तीर्थ स्थल है लेकिन बद्रीनाथ जैसा न कोई है न कोई होगा। कहा जाता है कि जब गंगा देवी मानव जाति के दुःखों को हरने के लिए पृथ्वी पर अवतरित हुई तो पृथ्वी उनका प्रबल वेग सहन न कर सकी। अतः गंगा की धारा बारह जल मार्गों में विभक्त हुई। उसमें से एक है अलकनंदा का उद्गम। यही स्थल भगवान विष्णु के निवास स्थान के गौरव से शोभित होकर बद्रीनाथ कहलाया। आदिगुरू शंकाराचार्य की व्यवस्था के अनुसार बद्रीनाथ मन्दिर का मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से होता है। अप्रैल-मई से अक्टूवर-नवम्बर तक मंदिर दर्शनों के लिये खुला रहता है। बद्रीनाथ ऋषिकेश से 300 कि.मी., कोटद्वार से 327 कि.मी. तथा हरिद्वार, देहरादून, कुमाँऊ और गढ़वाल के सभी पर्यटन स्थलों के सुविघाजनक मार्गों से जुड़ा है। चरण पादुका, तप्तकुण्ड, ब्रह्मकपाल, नीलकुण्ड और शेषनाथ यहां अन्य दर्शनीय स्थल हैं।