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Nanda Bhagwati Temple Pothing (Bageshwar) माँ नन्दा भगवती मन्दिर पोथिंग-बागेश्वर

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विनोद सिंह गढ़िया:


Bhagwati Mata Mandir Pothing (Kapkote) Bageshwar- Uttarakhand

विनोद सिंह गढ़िया:
त्यौहार या फिर किसी खास मौके पर जब आप घरों में पूड़ियां बनाते हैं तो उसका साइज हथेली के बराबर भी नहीं होता, पर पोथिंग गांव के भगवती मंदिर में हर साल 350 से 400 ग्राम वजनी पूड़ियां बनाई जाती हैं और वह भी हजारों के हिसाब से। मान्यता है कि मां भगवती के प्रसाद के रूप में मिलने वाली बड़े साइज की पूड़ी खाने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इसीलिए नंदाष्टमी के दिन हर वर्ष हजारों भक्त भगवती के दरबार में पूड़ी का प्रसाद खाने पहुंचते हैं। भक्तों को प्रसाद वितरण से पूर्व इन पूड़ियों का मां को भोग लगाया जाता है। कपकोट तहसील मुख्यालय से करीब छह किमी दूर है पोथिंग गांव। मंगलवार को यहां आस्था का सैलाब उमड़ा। अल्मोड़ा, बेड़ीनाग, मुनस्यारी के अलावा बागेश्वर और बैजनाथ से सुबह ही भक्त मंदिर पहुंचने लगे थे। हर साल भादो में मां की विशेष पूजा होती है। मान्यता है कि सदियों पूर्व मां नंदा भगवती ने हिमालय जाते वक्त पोथिंग में विश्राम किया था। हालांकि इतिहास में इस तरह का जिक्र नहीं है, मगर लोक मान्यता के अनुसार बांज के घने जंगलों के बीच ग्रामीणों को एक सुंदर शिला मिली। जिसकी वैदिक मंत्रोच्चार के बीच प्राण प्रतिष्ठा कराई गई। सैकड़ों वर्षों से मंदिर में चली आ रही परंपरा को आज भी लोग निभाते आ रहे हैं। 1993-94 में जनसहयोग से इस स्थान पर भव्य मंदिर बनाया गया। मंदिर परिसर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत जुड़ रहा है। यहां बनने वाली पूड़ी का बड़ा ही खास महत्व माना जाता है। नंदाष्टमी के दिन आसपास के गांवों के लोग भंडारे का इंतजाम करते हैं। यदि गांव का कोई व्यक्ति पूड़ी का प्रसाद ग्रहण करने से छूट गया तो उसके घर जाकर पूड़ी पहुंचाई जाती है। पूड़ी को तलने के लिए बड़ी कढ़ाई का इस्तेमाल होता है और एक बार में चार या पांच पूड़ियां तली जाती हैं।




#Amar Ujala
पोथिंग /POTHING में माँ भगवती को लगा 450 ग्राम वज़नी पूड़ियों का भोग.

वीडियो - https://youtu.be/I8Nsu6JZwpI

विनोद सिंह गढ़िया:
[justify]बागेश्वर के पोथिंग गांव में हरेला पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। गांव के भगवती मंदिर में मेले का आयोजन होता है। जिसे सातों-आठों के नाम से जाना जाता है। इस मेले में स्थानीय लोक संस्कृति तथा आपसी सौहाद्र्र की झलक देखने को मिलती है। भगवती मंदिर के पुजारी शंकर दत्त जोशी ने बताया कि यहां के मेले में कदली या केले के पेड़ का बड़ा महत्व है। यह दो गांवों के आत्मीय मिलन का भी पर्व है। उन्होंने बताया कि हरेला पर्व के एक दिन पहले श्रद्घालु ढोल-नगाड़ों के साथ दस किमी दूर उत्तरौड़ा गांव जाते हैं। रात में वहां के मंदिर में देव अवतरण के साथ पूजा होती है। सुबह स्नान के बाद गांव से केले का पेड़ जड़ सहित उखाड़कर ले जाते हैं। उत्तरौड़ा के ग्रामीण केले के वृक्ष को ससुराल जाती बेटी की तरह विदा करते हैं। विदाई का यह नजारा भावुक होता है। श्रद्घालु यहां से पैदल वृक्ष को पोथिंग गांव ले जाते हैं। वहां भगवती मंदिर में सुबह से श्रद्घालुओं का जमावड़ा लगा रहता है। कदली वृक्ष आते ही लोग झूमने लगते हैं। मंदिर परिसर में देव अवतरण के उसे रोपा जाता है। विधि विधान के साथ दूध से सींचकर केले के पेड़ की पूजा की जाती है। जिसके बाद मेले का समापन होता है। सातों-आठों मेले में रोपे गए कदली वृक्ष की एक माह तक दूध से सींचकर पूजा की जाती है। एक माह बाद भाद्रपद में नंदा-सुनंदा की मूर्ति बनाने में इस वृक्ष का उपयोग किया जाता है।





बागेश्वर में शनिवार को हरेला पर्व पर पोथिंग गाँव में कदली वृक्ष रोपा गया. कदली वृक्ष दस किलोमीटर दूर उतरौडा गाँव से ढ़ोल-नगाड़ों के साथ सुबह लाया गया था.
*हिन्दुस्तान

विनोद सिंह गढ़िया:
माँ नंदा भगवती मंदिर पोथिंग (बागेश्वर) में ‘आठूँ महोत्सव 2016’ 



Bhagwati Mata Mandir - Pothing Kapkote ' Aathhun Kautik 2016'



आज भाद्रपद प्रतिपदा है।  आज से उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में भाद्रपद की नवरात्रों में हिमालय पुत्री माँ नंदा की विशेष पूजा की जाती है। चाहे अल्मोड़ा स्थित नंदा देवी मंदिर में होने वाली पूजा हो या नैनीताल की, पूरा पहाड़ इस नवरात्र में अपनी आराध्य देवी माँ नंदा भगवती की पूजा अर्चना में व्यस्त रहता है। इन्हीं में  बागेश्वर जनपद स्थित पोथिंग ग्राम के माँ नंदा भगवती मंदिर में आज विधिवत पूजा प्रारम्भ हो चुकी है। यह पूजा पूरे 8 दिन तक चलती है।  प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक ग्राम में  स्थित माँ की तिबारी में रातभर जागरण होता है।  रात के विभिन्न प्रहरों में  माता की विशेष आरती होती हैं।  लोग पारंपरिक झोड़ा-चांचरी गाकर अपना मनोरंजन करते हैं। यहाँ पर गढ़वाल और कुमाऊं की संस्कृति का भी संगम देखने को मिलता है।  माता के जागर गाने के लिए गढ़वाल से जगरियों का दल आमंत्रित किया जाता है। सप्तमी के दिन हरेला पर्व पर कपकोट के उतरौड़ा से लाये गए कदली वृक्ष को काटकर मुख्य मंदिर में माँ के भंडारे के साथ ले जाया जाता है। ढोल-नगाड़ों, माता के निशानों, लोगों के कंधों पर बैठे देव डांगरों और सैकड़ों भक्तों की लाइन, एक दर्शनीय पल होता है। इस रात्रि को दूर-दूर से भक्त और मेलार्थी पहुँचते हैं।  इस रात्रि की चांचरी बड़ी ही जोशीली और अपने आप में देखने लायक होती है।  दर्जनों हुडकों और चांचरी गाते लोगों से पूरी रात गुंजायमान रहती है। रात्रि 9-10 बजे से प्रारम्भ हुई चांचरी सुबह के 4 - 5 बजे तक चलती है, उसके बाद मेलार्थी अपना स्नान इत्यादि करके नंदा अष्टमी पर होने वाली पूजा के लिए मुख्य मंदिर की ओर चल पड़ते हैं। यहाँ के मंदिर में 400 से 500 ग्राम वज़नी पूड़ियों का भोग बनाने की प्रथा है, जो हजारों की संख्या में बनाई जाती हैं और इसी को प्रसाद स्वरूप भक्तों की प्रदान की जाती है। इसी प्रसाद वितरण के साथ 8 दिन तक चलने वाले इस 'आठूं' पूजा का समापन होता है। इस पूजा आयोजन पोथिंग ग्राम के वाशिन्दों द्वारा आयोजित की जाती है।  इस पूजा का आयोजन सर्वप्रथम गढ़िया परिवार के पूर्वज श्री भीम बलाव सिंह गढ़िया, हरमल सिंह गढ़िया, कल्याण सिंह एवं जैमन सिंह गढ़िया के परिवार द्वारा सैकड़ों वर्ष किया गया।  दानू और कन्याल  परिवार के लोग मंदिर के धामी हैं। पूर्वजों द्वारा नियुक्त अलग-अलग परिवार के लोग आज भी निःस्वार्थ भाव से माँ की सेवा कर रहे हैं।
माँ भगवती के मंदिर तक पहुंचने के लिए आपके जनपद मुख्यालय बागेश्वर से कपकोट और वहां से पोथिंग गांव  तक आना होता है। जनपद मुख्यालय से मंदिर की दूरी लगभग 28 किलोमीटर के करीब है।  आने-जाने के लिए वाहन आसानी से उपलब्ध रहते हैं। इस बार आप भी जरूर आईये - देखिये यहाँ की संस्कृति और रीति -रिवाज को। यहीं है असली उत्तराखंड, देवों की भूमि उत्तराखंड। 
आप इस लिंक  में  मंदिर से सम्बंधित जानकारी और तस्वीरें देख सकते हैं - http://goo.gl/fZ9rDg

धन्यवाद
विनोद सिंह गढ़िया
बागेश्वर ( उत्तराखंड )

विनोद सिंह गढ़िया:


भगवती मंदिर पोथिंग (कपकोट) में होने वाली पूजा में कदली वृक्ष काटते हुए.

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