Author Topic: Chandrabadni Temple tehri Uttarakhand,चन्द्रबदनी मंदिर टिहरी उत्तराखंड  (Read 44680 times)


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The Chandrabadani Temple is dedicated to the Goddess of power. According to the legends, Lord Shiva while carrying torso of his consort Sati, accidentally dropped it here and her weapons got scattered all around the place. Thus, even today huge number of iron trishuls (tridents) and some old statues can be seen lying around the revered temple of Chandrabadani.[/color]Apart from the temple, this place offers breathtaking views of snow capped Himalayan peaks like Kedarnath, Badrinath and so on.






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Hindolakhal ,market way on chandrabadni


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हिण्डोलाखाल- ऊंचाई 1472 मीटर। गाँव कम क़स्बा ज्यादा लगता है। इसी सड़क पर और आगे जाएँ तो करीब आठ किलोमीटर पर एक और गाँव पड़ता है- जामणीखाल (ऊंचाई 1530 मीटर)। जामणीखाल से यह सड़क आगे जखणीधार और टिहरी चली जाती है लेकिन एक और सड़क निकलती है जो चन्द्रबदनी जाती है। यहाँ से चन्द्रबदनी आठ किलोमीटर है।

इसमें से शुरूआती सात किलोमीटर तो मोटर मार्ग है और बाकी एक किलोमीटर है पैदल मार्ग। हम तो जामणीखाल से ही पैदल निकल पड़े थे। एक बाबाजी ने जामणीखाल से ही इशारा करके बता दिया था कि वो जो सबसे ऊंची चोटी दिख रही है, उसी पर मंदिर है। तुम तो जवान बालक हो, घंटे भर में ही पहुँच जाओगे।


.पहाड़ पर जंगल में चलते हुए सबसे ज्यादा डर होता है- रास्ता भटकने का। लेकिन अगर लक्ष्य चोटी हो और वो दिख भी रही हो तो कोई दिक्कत नहीं होती। इसीलिए हम बार-बार सड़क को छोड़कर कोई 'शोर्ट' रास्ता ढूंढते और थोडी देर चढ़ने के बाद फिर वही सड़क मिल जाती। अभी कुछ ही दिन पहले देवप्रयाग क्षेत्र में नरभक्षी 'बाघ' (पहाड़ पर तेंदुए को भी बाघ ही कहते हैं) का आतंक था। प्रशासन से अनुमति पाकर ग्रामीणों ने पांच बाघों को मार भी दिया था। इतना जानने के बाद भी हम इस अनजाने पहाडी जंगल में 'शोर्ट' रास्ते से चलते जा रहे थे।

एक बार तो हम कंटीली झाडियों में इतनी बुरी तरह फंस गए थे कि वहां से निकलने के लिए हमें सांप की तरह रेंगकर झाडियों के नीचे से निकलना पड़ा था।...आगे एक तिराहे पर बोर्ड लगा था- झल्ड। यानी तीसरा रास्ता नीचे झल्ड गाँव में जाता है। एक गाँव और मिला - नैखरी (1831 मीटर)। यहाँ से एक कंक्रीट की बनी 'पगडण्डी' ऊपर जाती है। एक विकट चढाई चढ़ने के बाद हम पहुंचे उस जगह पर जहाँ से आगे गाडियां नहीं जा सकतीं। यानी मंदिर से एक किलोमीटर पहले।



 

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