गंगोत्री का नाम लेते ही किसी भी भारतीय के मन में एकांत, शांति, रहस्य, रोमांच व श्रद्धा के भाव एक साथ उमड़ने लगते हैं। मन विह्वल हो जाता है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य है ही ऐसा कि सभी को अपनी ओर बरबस खींचता है। वस्तुतः गंगोत्री वह पावन स्थल है, जहां गंगा ने पृथ्वी को पहली बार स्पर्श किया। धार्मिक मान्यता के अनुसार गंगा स्वर्ग की बेटी हैं और महाराजा भागीरथ के पुरखे सगरपुत्रों का उद्धार करने के लिए धरती पर अवतरित हुईं। गंगा की धारा के तीव्र वेग से कहीं पृथ्वी फट न जाए, इसलिए भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में समेट लिया और फिर भागीरथ की प्रार्थना पर शिव ने अपनी एक लट खोल दी और गंगा की धारा पृथ्वी पर बह निकली। भागीरथ से जुड़े इसी प्रसंग के कारण गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार इसी स्थान पर पांडवों ने महाभारत के युद्ध में विजय के लिए देव-यज्ञ किया था।
दरअसल गंगा का मूल उद्गम स्थल 4220 मीटर ऊंचाई पर स्थित गोमुख ग्लेशियर है, जो गंगोत्री से 18 किलोमीटर दूर है। यह स्थान बहुत दुर्गम है और वहां बहुत कम लोग ही पहुंच पाते हैं। माना जाता है जो गोमुख पहुंच कर भागीरथी का दर्शन करते हैं, वे सचमुच बड़भागी होते हैं। गंगोत्री से गोमुख तक आने-जाने में तीन दिन का समय लगता है। गोमुख में इतनी ठंड होती है कि यदि भागीरथी के जल में आप अपना हाथ डाल दें तो वह सुन्न हो जाएगा।
यदि धूप निकल आई है तो एक खतरा यह भी है कि बड़े-बड़े हिमखंड पिघल कर गिरने लगते हैं और आपकी जान जोखिम में पड़ सकती है, इसलिए दर्शन करके यहां से तुरंत वापस लौटने में ही भलाई है। यहां का वातावरण और परिस्थितियां कितनी ही विपरीत हों, पर यहां का अलौकिक दृश्य और आध्यात्मिक अनुभूति श्रद्धालु को किसी तरह की थकान का अनुभव नहीं होने देती। जो श्रद्धालु गोमुख नहीं जा पाते, वे गंगोत्री में ही गंगा की पूजा-अर्चना करते हैं।
गंगोत्री में मां गंगा का मंदिर भागीरथी नदी के दाहिने तट पर स्थित है। समुद्रतल से 3042 मीटर की ऊंचाई पर सफेद संगमरमर के 20 फीट ऊंचे इस वर्तमान मंदिर का निर्माण अठारहवीं सदी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने कराया था। मंदिर में आदिशंकराचार्य द्वारा प्रतिष्ठित गंगा जी की प्राचीन स्वर्ण मूर्ति है। इसके अलावा यहां राजा भागीरथ, यमुना, सरस्वती व शंकराचार्य की मूर्तियां भी हैं। मंदिर के पास ही भागीरथ शिला है, इसी शिला पर राजा भागीरथ ने तप किया था। यहीं भागीरथी नदी में जलमग्र शिवलिंग भी है, जिसका दर्शन जाड़े के दिनों में केवल तभी होता है, जब नदी का जल साफ हो जाता है।
हर वर्ष मई से अक्तूबर के बीच यहां हजारों श्रद्धालु मां गंगा की पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं। नवंबर के बाद यह पूरा इलाका बर्फ से ढक जाता है, उन दिनों मां गंगा की प्रतिमा को यहां के पुजारी मुखबा गांव के पास मार्कंडेय क्षेत्र में ले जाते हैं, अप्रैल तक मां गंगा की वहीं पूजा अर्चना होती हैं। गंगोत्री पहुंचने के लिए ऋषिकेश से बसें आसानी से मिल जाती हैं। लगभग ढाई सौ किलोमीटर के इस सफर में उत्तरकाशी, गंगाणी, भैरों घाटी, हरसिल, धरासू, नचिकेता ताल, डोडी ताल, केदार ताल आदि स्थल भी दर्शनीय हैं।