Author Topic: Chardham In Uttarakhand - देवभूमि के चारधाम और अन्य मंदिरों,पहाडों की झांकियां  (Read 141277 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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<blockquote> Badrinath Aarti.



पवन मंद सुगंध शीतल हेम मंदिर शोभितम |
 निकट गंगा बहत निर्मल श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
 शेष सुमिरन करत निशदिन धरत ध्यान महेश्वरम |
 शक्ति गौरी गणेश शारद नारद मुनि उच्चारणम |
 जोग ध्यान अपार लीला श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
 इंद्र चंद्र कुबेर धुनि कर धूप दीप प्रकाशितम |
 सिद्ध मुनिजन करत जै जै बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
 यक्ष किन्नर करत कौतुक ज्ञान गंधर्व प्रकाशितम |
 श्री लक्ष्मी कमला चंवरडोल श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
 कैलाश में एक देव निंरजन शैल शिखर महेश्वरम |
 राजयुधिष्ठिर करतस्तुति श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम |
 श्री बद्री जी के पंच रत्न पढ्त पाप विनाशनम |
 कोटि तीर्थ भवेत पुण्य प्राप्यते फलदायकम |
 
</blockquote>

<blockquote> जय जय श्री बद्रीनाथ, जयति योग ध्यानी || टेक ||
 
 निर्गुण सगुण स्वरूप, मेधवर्ण अति अनूप |
 सेवत चरण स्वरूप, ज्ञानी विज्ञानी | जय...
 
 झलकत है शीश छत्र, छवि अनूप अति विचित्र |
 बरनत पावन चरित्र, स्कुचत बरबानी | जय...
 
 तिलक भाल अति विशाल, गल में मणि मुक्त-माल |
 प्रनत पल अति दयाल, सेवक सुखदानी | जय....
 
 कानन कुण्डल ललाम, मूरति सुखमा की धाम |
 सुमिरत हों सिद्धि काम, कहत गुण बखानी | जय...
 
 गावत गुण शंभु शेष, इन्द्र चन्द्र अरु दिनेश |
 विनवत श्यामा हमेश, जोरी जुगल पानी | जय...
 
</blockquote>

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Kedarnath Arti

जय केदार उदार शंकर, मन भयंकर दु:ख हरम |
गौरी गणपति स्कंद नंदी, श्री केदार नमाम्यहम |
शैल सुंदर अति हिमालय, शुभ्र मंदिर सुंदरम |
निकट मंदाकिनी सरस्वती, जय केदार नमाम्यहम |
उदक कुंण्ड है अधम पावन, रेतस कुंड मनोहरम |
हंस कुंण्ड समीप सुंदर, जय केदार नमाम्यहम |
अन्नपूर्णा सह अपर्णा, काल भैरव शोभितम |
पंच पांडव द्रोपदी सह, जय केदार नमाम्यहम |
शिव दिगम्बर भस्म धारी, अर्द्ध चंद्र विभूषितम |
शीश गंगा कण्ड फणिपति, जय केदार नमाम्यहम |
कर त्रिशूल विशाल डमरु, ज्ञान गान विशारदम |
मदमहेश्वर तुंग ईश्वर, रुद्र कल्प महेश्वरम |
पंच धन्य विशाल आलय, जय केदार नमाम्यहम |
नाथ पावन हे विशालम, पुण्यपप्रद हर दर्शनम |
जय केदार उदार शंकर पाप ताप नमाम्यहम |

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सिद्धपीठ मनणीमाई की जात आज से



   गुप्तकाशी: सिद्वपीठ मां भगवती राकेश्वरी मंदिर रांसी से मनणीमाई की भव्य जात 19 जुलाई से शुरु होगी। इसके लिए आयोजक समिति ने तैयारियां पूरी कर ली है।


मनणीमाई की यह जात रांसी से 32 किमी की दूरी पर उत्तर दिशा में मनणी बुग्याल तक होगी, इसमें तीन दिन जाने व तीन दिन आने में लगते हैं। रांसी के भट्ट परिवार के पुजारियों ने मां मनणी जात के लिए शुभलग्नानुसार निश्चित दिन निकाला जाता है। डोली चौथे दिन मनणीमाई मंदिर मनणी पहुंचकर वहां भव्य पूजा-अर्चना के बाद देवी की मूर्ति को ब्रह्म कमलों तथा अन्य पुष्पों से ढका जाएगा।

इसके बाद डोली वापस रांसी के लिए प्रस्थान करेगी। इसके साथ ही श्रावण मास की अमावस्या को यहां जड़ी-बृटियां प्रकाशमान होती दिखाई देती हैं। संयोजक युवक मंगल दल रांसी के राजेन्द्र भट्ट, पुजारी रविन्द्र भट्ट एवं केसरी प्रसाद भट्ट ने बताया कि मनणी जात यात्रा के लिए तैयारियां पूरी कर ली गई है।



Sabhar dainik jagran

   


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मंदिर में विराजीं मां मनणा माई
 
 दीपक बेंजवाल
 
 अमर उजाला , अगस्त्यमुनि।
 
 सावन माह में अगस्त्यमुनि घाटी के 32 से अधिक बुग्यालाें से होकर गुजरने वाली मनणी जात स्थानीय रीति रिवाजाें के साथ संपन्न हो गई। रविवार देर शाम को विधि विधान के साथ मां मनणा की डोली एवं अन्य देवी-देवताआें के निशानाें को मूल मंदिर में स्थापित किया गया। अब अगले साल तक मां मनणा माई मंदिर में रहते हुए भक्ताें को आशीर्वाद देंगी। इससे पूर्व उत्सव डोली व जात्रियाें (यात्रा में चलने वाले श्रद्धालु) के रांसी गांव पहुंचने पर श्रद्धालुआें ने पुष्प-अक्षत के साथ जोरदार स्वागत किया।
 सावन माह में मां मनणा माई, राकेश्वरी मंदिर रांसी से कैलाश को प्रस्थान करती हैं। मनणा बुग्याल पहुंचकर मां की उत्सव डोली वापस राकेश्वरी मंदिर पहुंचती है। रविवार देर शाम को मां की उत्सव डोली मनणा बुग्याल का भ्रमण कर मंदिर प्रांगण पहुंची। जहां रांसी के ग्रामीणाें के साथ ही स्थानीय भट्ट पुजारियाें द्वारा देवी की पूजा कर स्वागत किया गया।
 इससे पूर्व शनिवार शाम सन्यारा बुग्याल पहुंचने पर स्थानीय मौर (भैंस पालकाें) समुदाय के लोगाें ने मां की परंपरागत पूजा की और देवी को भेंट अर्पित की। मौर समुदाय देवी को बुग्यालाें में अपना रक्षक देवता मानते हैं। मान्यता है कि मनणा माई के आशीर्वाद से ही ये पशुपालक निर्भय होकर अपने मवेशियाें को जंगलाें में चारापती चरने के लिए छोड़ देते हैं। राकेश्वरी मंदिर रांसी पहुंचने पर मां की उत्सव डोली ने मंदिर की परिक्रमा कर लोगाें को आशीर्वाद दिया। इसके बाद पौराणिक रीति-रिवाजाें के साथ मां की डोली व अन्य देवताआें के निशानाें को मंदिर में स्थापित किया गया।


 

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