Author Topic: Dev Shilaye in Uttarakhand- उत्तराखंड में प्रसिद्ध देवी देवताओ के शिलाए  (Read 12355 times)

Barthwal

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बहुत सुंदर जानकारी .. देवभूमि इसी लिये कहा जाता है.. आस्था का निवास प्रभु का अहसास सदा बना रहे

Devbhoomi,Uttarakhand

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विनोद सिंह गढ़िया

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माँ भगवती मन्दिर पोथिंग (कपकोट) बागेश्वर में रखी ये दो शिलाएं; जिन्हें यहाँ के स्थानीय लोग 'च्यव' कहते हैं। मन्दिर में पूजा के दौरान आये भक्तगण इस पत्थर के गोलों को उठाने का प्रयास करते हैं और उठाते भी हैं। कहते हैं कि जो भक्त माँ के दरबार में आकर सच्चे मन से माँ से प्रार्थना करके उठाने की कोशिश करता है वह इन गोलों को आसानी के साथ उठा लेता है।

More information - http://www.merapahadforum.com/religious-places-of-uttarakhand/bhagwati-mata-temple-pothing-%28bageshwar%29/




एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahasu Temple, Uttarakhand.
 

 
The most unusual aspect of the temple is the two spherical rocks about one foot in diameter. The fun part is to lift these rocks on your shoulder and head and then throwing to ground. It is believed that only pious-hearted person can only lift up these rocks.
The Hanging of trophies on the temple wall is the another unique aspect of this temple. The matches are played between team of local gods and on winning the trophy is awarded to god which is hanged on the interior walls of temple.
In the temple premises one can notice numerous sheep roaming here and there. It is believed that whatever one wishes in this temple, Mahasu Devta fulfills the wish, provided that on the fulfillment of the wish one has to bring a certain number of sheep to Mahasu Devta Temple. After prayers the sheep are set free to roam in temple premises.

पंकज सिंह महर

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मां भगवती मन्दिर, जमतड़, पिथौरागढ़ में देव शिला

विनोद सिंह गढ़िया

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दूध बहता था भीम की शिला से!
« Reply #19 on: March 16, 2012, 02:44:09 AM »
दूध बहता था भीम की शिला से!

डीडीहाट में हाटथर्प गांव के गोल का थल मैदान में स्थित विशाल पत्थर के साथ ऐतिहासिक मान्यताएं जुड़ी हैं। इस पत्थर को लोग भीम की शिला के नाम से जानते हैं। आज भी हर कार्तिक पूर्णिमा को इस पत्थर की पूजा के लिए लोग जाते हैं।
लोगों में इस पत्थर को लेकर यह कहावत प्रचलित है कि जब पांडव अज्ञातवास पर निकले थे, तब भीम ने जौलजीबी में महाकाली नदी पर पुल बनाने के लिए बड़े-बड़े पत्थर पहुंचाने की कोशिश की थी। वह हाटथर्प गांव से भी रात के समय इस पत्थर को उठाकर ले जाने की तैयारी में थे लेकिन जब तक वह पत्थर को ले जाने लगे तब तक सूर्योदय हो गया और वह पत्थर को इसी स्थान पर छोड़ गए।



बताते हैं कि 17वीं सदी तक इस पत्थर से दूध निकला करता था। तब एक बार एक साधु ने इस दूध के खीर बनाकर खा दी। उसी समय से पत्थर से दूध का रिसाव बंद हो गया। हाटथर्प के पूर्व प्रधान धन सिंह कफलिया का कहना है कि इस पत्थर को लोग सदियों से पूजते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि यह पत्थर अद्भुत शक्ति का प्रतीक है। यदि कोई इस पत्थर की पूजा करता है तो उसे जीवन में किसी प्रकार का भय नहीं सताता।

स्रोत- अमर उजाला

 

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