Author Topic: Dev Shilaye in Uttarakhand- उत्तराखंड में प्रसिद्ध देवी देवताओ के शिलाए  (Read 12014 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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न मंदिर, न ही मूर्ति, शिला में आस्था

इंसान की आस्था जहां टिक जाए, वहीं भगवान वास करने लगते हैं। खैरवा गांव के पास टौंस नदी के बीचोंबीच स्थित शिला को सराड़ी देवी का वास मानकर लोग पीढ़ी दर पीढ़ी पूजते आ रहे हैं।

कालसी ब्लॉक के खैरवा गांव में टौंस नदी के बीच एक प्राकृतिक शिला स्थित है, जिसकी पूजा क्षेत्र के लोगों साथ ही हिमाचल प्रदेश के श्रद्धालु भी करते हैं। बुजुर्गो का दावा है कि चाहे जितनी भीषण बाढ़ आए जाए, लेकिन यह शिला कभी नहीं डूबती है। पुजारी ध्यान सिंह बताते हैं कि मां सराड़ी की पूजा सुख शांति, मानव और पशु सुरक्षा व टौंस से होने वाले नुकसान से बचने के लिए की जाती है। मां की पूजा का तरीका भी बहुत सरल है। किसान जब फसलें काटते हैं तो उस समय मां को अनाज चढ़ाया जाता है। हर माह की संक्रांति को पुजारी घी का भोग लगाने के साथ ही गुड व आटे का प्रसाद चढ़ाते हैं। खैरवा निवासी मातबर सिंह, सुपाराम राणा, केदार सिंह, बलबीर सिंह बताते हैं कि 24 जुलाई 1924 को टौंस नदी ने क्षेत्र में जमकर तबाही मचाई थी, लेकिन खैरवा गांव के किसी व्यक्ति को नुकसान नहीं हुआ था। यहां न घंटियां बजती हैं और न कोई चढ़ावा चढ़ाया जाता है। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के कांठी मशवा गांव के लोग सराड़ी देवी को कुलदेवी मानते हैं। हर वर्ष ढोल बाजों के साथ जातरा लेकर हजारों लोग पैदल ही खैरवा आते हैं और रातभर भजन कीर्तन करते हैं।


सराड़ा वीर का पत्थर

टिमरा गांव के करीब जमाड़ नामक स्थल पर टौंस नदी के मध्य एक बड़ा मूर्तिकार पत्थर है, जिसे लोग सराड़ा वीर के नाम से पूजते हैं। लोगों को दावा है सराड़ा वीर मां सराड़ी का भाई माना है। दोनों का ही न कोई मंदिर है और न मूर्तियां, लेकिन पत्थर में ही लोगों की अटूट आस्था है।


 

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