Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

Devbhoomi - उत्तराखंड देवीभूमि, तपो भूमि के स्थान जहाँ की ऋषि मुनियों ने तपस्या

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

TAPOVAN
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भगवान शिव एवं उनकी पत्नी पार्वती को समर्पित इन जलाशयों के निकट एक गौरी शंकर मंदिर है। माना जाता है कि भगवान शिव को पतिरूप में पाने के लिये इसी जगह पार्वती ने 6,0000 वर्षों तक तप किया था। उनके संकल्प की परीक्षा लेने भगवान शिव ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया। उसने पार्वती को बताया कि उसका तप निरर्थक है, क्योंकि भगवान शिव 88,000 वर्षों से तप कर रहे हैं और वह उतना तप नहीं कर सकती। उसने यह भी बताया कि भगवान इन्द्र या विष्णु की तरह देने को भगवान शिव के पास कुछ भी नहीं है। पार्वती ने परेशानी एवं क्रोध में तत्काल चले जाने को कहा। तब भगवान शिव असली रूप में आये और पार्वती से कहा कि उसकी तपस्या सफल हुई है और वह उनसे विवाह करेंगे। इसीलिये यह कहा जाता है कि जो कोई भी किसी इच्छा से इस मंदिर में पूजा करेंगे तो पार्वती की तरह उसकी इच्छा भी पूरी होगी।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

केदार खंड में मुख्यमठ की तीर्थयात्रा को महत्वपूर्ण माना गया है। इससे सटा है मार्कण्डेयपुरी जहां मार्कण्डेय मुनि के तप किया तथा उन्हें भगवान विष्णु द्वारा सृष्टि के विनाश का दर्शन कराया गया। किंबदन्ती अनुसार इसी प्रकार से मातंग ऋषि ने वर्षों तक बिना कुछ खाये-पीये यहां तप किया।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
नारद मुनि यहां पहुंचे और संगम पर स्थित एक शिला पर सौ वर्ष तक भगवान शिव की तपस्या की।
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रुद्रप्रयाग। उत्तराखंड के सांस्कृतिक व धार्मिक जीवन में पंच प्रयागों का विशेष महत्व है। इन्हीं में से एक है रुद्रप्रयाग। अलकनंदा व मंदाकिनी नदियों का संगम होने के कारण तो यह पवित्र माना ही जाता है, नारद मुनि की तपस्थली होने से अध्यात्म के क्षेत्र में भी इसका विशेष स्थान है। मान्यता है कि द्वापरयुग में रुद्रप्रयाग में ही नारद मुनि ने भगवान महादेव की तपस्या की थी, जिसके बाद शिव ने उन्हें यहां दर्शन दिया और संगीत का ज्ञान भी दिया।



रुद्रप्रयाग से नारद मुनि के जुड़े होने से इसकी पवित्रता और बढ़ जाती है। धर्मग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि द्वापरयुग में नारद मुनि संगीत का ज्ञान प्राप्त करने के लिए विष्णु भगवान के पास गए, लेकिन उन्होंने नारद को भगवान शिव की तपस्या करने को कहा। इसके लिए भगवान ने नारद को अलकनंदा व मंदाकिनी के संगम, यानी रुद्रप्रयाग जाने को कहा। इसके बाद नारद मुनि यहां पहुंचे और संगम पर स्थित एक शिला पर सौ वर्ष तक भगवान शिव की तपस्या की। तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया तथा संगीत के ज्ञान का आशीर्वाद दिया। जिस शिला पर नारदमुनि ने तपस्या की थी, वह आज भी संगम पर स्थित है। प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में भक्त इस शिला के दर्शन करने आते हैं। संगम के प्रति स्थानीय लोगों में भी बड़ी आस्था है। प्रतिदिन शाम को यहां विशेष आरती का आयोजन किया जाता है, जिसमें स्थानीय लोगों समेत देशी-विदेशी पर्यटक भी भाग लेते हैं। इसके अलावा यहां चामुंडा देवी व रुद्रनाथ भगवान का मंदिर भी दर्शनीय है। बताया जाता है कि रुद्रनाथ मंदिर यहां द्वापरयुग से स्थित है। इस मंदिर के नाम पर ही रुद्रप्रयाग का नाम भी पड़ा है। रुद्रनाथ मंदिर के महंत धर्मानंद का कहना है कि रुद्रप्रयाग का पूरा क्षेत्र शिवभूमि माना जाता है। मंदिर में स्थित स्वयंभू लिंग के अलावा क्षेत्र में करोड़ों शिवलिंग स्थापित हैं।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_5932490.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

PANDUKESHWAR, GOPESHWAR GARWAL
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पांडुकेश्वर गांव हिन्दुओं के चार धामों में से एक श्री बदरीनाथ और जोशीमठ के बीच में स्थित है। मान्यता है कि हस्तिनापुर की गद्दी राजा परीक्षित को सौंपने के बाद पांडवों ने यहां तपस्या की थी, लिहाजा इस गांव का नाम पांडुकेश्वर रख दिया गया।

Devbhoomi,Uttarakhand:
चन्द्रबाणी मंदिर मह्रिषी गौतम का निवास

देहरादून-दिल्ली मार्ग पर देहरादून से 7 कि.मी. दूर यह मंदिर चन्द्रबाणी (गौतम कुंड) के लिए प्रसिद्ध है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस स्थान पर महर्षि गौतम अपनी पत्नी और पुत्री अंजनी के साथ निवास करते थे. इस कारण मंदिर में इनकी पूजा की जाती है।

 ऐसा कहा जाता है कि स्वर्ग-पुत्री गंगा इसी स्थान पर अवतरित हुई, जो अब गौतम कुंड के नाम से प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष श्रद्धालु इस पवित्र कुंड में डुबकी लगाते हैं। मुख्य सड़क से 2 कि.मी. दूर, शिवालिक पहाड़ियों के मध्य में यह एक सुंदर पर्यटन स्थल है।

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