Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

Devbhoomi - उत्तराखंड देवीभूमि, तपो भूमि के स्थान जहाँ की ऋषि मुनियों ने तपस्या

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
चक्रतीर्थ । पांडवों को अपने 13 साल के वनवास के दौरान दर-दर भटकना पड़ा। पांडव हर हाल में कौरवों से अपने अपमान का बदला लेना चाहते थे।

इसके लिए जरूरत थी शक्ति जुटाने की। फिर क्या था अर्जुन ने शिवजी की घोर तपस्या की और हासिल किया पाशुपास्त्र। वनवास काटते हुए पांडवों के चार साल इधर-उधर भटकते हुए निकल गए। पांचवा साल अर्जुन के लिए बड़ा ही अहम साबित हुआ। वो अपने भाइयों से अलग होकर उत्तराखंड की बर्फीली वादियों में शिवजी की तपस्या करने चले गए।


मकसद था शिव से पाशुपास्त्र हासिल करना। बद्रीनाथ से आगे स्वर्गारोहिणी के रास्ते में चक्रतीर्थ नाम की जगह पड़ती है।

कहते हैं वहां पर धनुर्धारी अर्जुन ने शिवजी से पाशुपास्त्र पाने के लिए तपस्या की थी। लेकिन अर्जुन को अपनी धनुर्विद्या पर काफी अहंकार था। सो शिवजी ने अर्जुन की परीक्षा लेने की ठानी।


अपने एक गण को शूकर यानी जंगली सूअर का रूप धारण कर अर्जुन की तपस्या भंग करने का आदेश दिया। तपस्या भंग होने पर अर्जुन ने गुस्से में गांडिव उठाया और सूअर पर तीर छोड़ दिया।

अर्जुन सूअर के पास पहुंचे तो वहां सामने खड़ा था एक भील। मारा गया सूअर किसका शिकार है - ये फैसला करने के लिए भील और अर्जुन में घनघोर युद्ध हुआ।

लड़ते-लड़ते अर्जुन बेहोश हो गए। होश आया तो सामने भील को मुस्कुराते हुए पाया। अर्जुन को लगा ये कोई साधारण इंसान नहीं हो सकता।

शिवजी ने अपने असली रूप में अर्जुन को दर्शन दिए और बताया कि अर्जुन के अहंकार के नाश के लिए ही उन्होंने ये लीला रची। अर्जुन की तपस्या सफल हुई और उन्हें पाशुपास्त्र मिल गया। इसके बाद अर्जुन अपने भाइयों से आ मिले।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

PANADO NE KI THE KEDAR NAATH ME TAPSYA
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एक दंत कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपने स्वजनों की हत्या के पाप से मुक्ति के लिये भगवान शिव की खोज में केदारखंड में आये थे. देवाधिदेव शंकर जी पाण्डवों से नहीं मिलने के उद्देश्य से अंतध्र्यान हो गये. काफ़ी खोजबीन के बाद जब पांडवों को शिवजी नहीं मिले तो वे केदारनाथ धाम में शिव की तपस्या करने लगे. पांडवों की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी विकराल भैंसे के रूप  में प्रकट हो गये. भैंसे की कालीपीठ वाले उभरे शिलाखंड को ही श्री केदार अथवा शिव के रूप में पूजा की जाती है. इसी के दर्शनों के लिये लाखों श्रद्धालु देश- विदेश से यहां आते हैं. केदारनाथ के अलावा शिवजी के अन्य चार जगह अंग प्रकट हुये जहां उनकी पूजा की जाती है. तुंगनाथ में बाहु, भुजा,रूद्रनाथ में मुखाकृति, मदमहेश्वर में नाभि तथा कल्पेश्वर में जटा,बाल की पूजा की जाती है. इन सभी को पंच केदार के नाम से जाना जाता है. केदारनाथ धाम तक पहुंचने के लिये गौरीकुंड तक सड़क मार्ग है.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

RISHIKESH - LORD RAMA DID PENANCE HERE TO KILL RAWAN
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"Hṛṣīkeśa" is a name of Vishnu that means 'lord of the senses'.[1][2] Rishikesh is a holy city for Hindus located in the foothills of the Himalaya in northern India. The place gets its name after Lord Vishnu who appeared to 'Raibhya Rishi' [3], as a result of his tapasya (austerities), as Lord Rishikesh [4]. In Skanda Purana, this area is known as 'Kubjamrak' as Lord Vishnu appeared, under a mango tree [2].

Historically, Rishikesh, has been a part of the legendary 'Kedarkhand' (the present day Garhwal), the abode of Shiva [5]. Legends state that Lord Rama did penance here for killing Ravana, the demon king of Lanka; and Lakshmana, his younger brother, crossed the river Ganga, at a point, where the present 'Lakshman Jhula' (लक्ष्मण झूला) bridge stands today, using a jute rope bridge. The 'Kedar Khand' of Skanda Purana, also mentions the existence of Indrakund at this very point. The jute-rope bridge was replaced by iron-rope suspension bridge in 1889, and after it was washed away in the 1924 floods, it was replaced by a stronger present bridge. Even today, the western bank of the bridge has a Lakshmana temple, and across it lies a temple dedicated to Lord Rama; also present near by is a temple of his other brother, Bharata, which also finds mention in the 'Kedar Khand'

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

RIKSHIKESH KA NAAM RISHIKESH KYO PADA
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As per mythology of Rishikesh, Sage Raibhya Rishi sat on the bank of Ganga and performed severe penance. Finally, he was rewarded for his penance and God appreared in front of him in the fork of Lord Rishikesh. Since then this place came to be known as Rishikesh.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

रानीबाग  जिया रानी ने एक गुफा में तपस्या की थी (Near Haldwani)
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रानीबाग में कव्यूरी राजा धामदेव और ब्रह्मदेव की माता जियारानी का बाग था । कहते हैं कि यहाँ जिया रानी ने एक गुफा में तपस्या की थी । रात्रि में जिया रानी का जागर लगता है । कव्यूरपट्टी के गाँव से वंशानुगत जगरियें औजी, बाजगी, अग्नि और ढोलदमुह के साथ कव्यूरी राजाओं की वंशावलि तथा रानीबाग के युद्ध में जिया रानी के अद्भूत शौर्य की गाथा गाते हैं । जागरों में वर्णन मिलता है कि कव्यूरी सम्राट प्रीतमदेव ने समरकंद के सम्राट तैमूरलंग की विश्वविजयी सेना को शिवालिक की पहाड़ी में सन् १३९८ में परास्त कर जो विजयोत्सव मनाया उसकी छाया तथा अनगूंज चित्रश्वर रानीबाग के इस मेले में मिलती है । जिया रानी इस वीर की पत्नी थीं ।

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