वकील न तारीख, फैसला एक रुपये में
एक मशहूर फिल्मी संवाद है-तारीख पर तारीख..। धीमी न्यायिक प्रक्रिया पर चुभती हुई टिप्पणी करने वाले इस संवाद पर सिनेमा हालों में खूब तालियां बजीं। आम भावना है कि अदालतों में न्याय मांगने वाले की चप्पलें घिस जाती हैं। लेकिन राह दिखाता है देहरादून का जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर, जहां मात्र एक रुपये में इंसाफ मिलता है। इस अदालत में न तो वकील होता है और न तारीखें लगती हैं। एक रुपये फीस और एक पेशी में पीडि़त को न्याय मिल जाता है। यह कोई सरकारी व्यवस्था नहीं, बल्कि यहां के लोगों को विरासत में मिली परंपरा है, जिसे खुमड़ी कहते हैं। इन लोक अदालतों में दीवानी हो या फौजदारी सभी मुकदमों की त्वरित सुनाई होती है और फैसला भी तुरंत होता है। यही वजह है कि क्षेत्र की राजस्व पुलिस चौकियों में नाममात्र के मुकदमे दर्ज हैं। अधिकतर विवाद खुमड़ी में ही सुलझा लिये जाते हैं। खुमड़ी ब्रिटिश काल से लागू है। यहां प्रत्येक गांव की प्रशासनिक व्यवस्था को चलाने के लिए उस गांव के एक तेज-तर्रार और प्रबुद्ध व्यक्ति को मुखिया चुना जाता है, जिसे स्याणा कहते हैं। कई गांवों को मिलाकर अलग-अलग समूह बनाए गए हैं, जिन्हें खत कहा जाता है। प्रत्येक खत में भी एक-एक स्याणा नियुक्त किया जाता है, जिसे सदर स्याणा कहते हैं। सदर स्याणा का ओहदा गांव के स्याणा से बड़ा होता है। कोई भी विवाद होने पर पीडि़त व्यक्ति गांव स्याणा के पास एक रुपया नालस (फरियाद शुल्क) जमा करके शिकायत दर्ज कराता है। स्याणा के आदेश पर गांव की खुली बैठक (खुमड़ी) होती है। बैठक में स्याणा के अलावा चार अन्य प्रबुद्ध व्यक्ति (पंच) वादी और प्रतिवादी दोनों पक्षों की दलीलें सुनते हैं। अंत में स्याणा फैसला सुनाता है। वादी या प्रतिवादी में किसी को फैसला मान्य न हो तो वह सदर स्याणा की अदालत में न्याय की गुहार लगा सकता है। सदर स्याणा भी एक रुपया नालस लेकर पूरे खत की खुमड़ी बुलाता है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद सदर स्याणा का फैसला अंतिम होता है, जिसे मानने के लिए दोनों पक्ष बाध्य होते हैं। कोई भी सदर स्याणा के फैसले का उल्लंघन करता है तो उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है। बिरपा गांव के स्याणा अर्जुन सिंह का कहना है कि मौजूदा न्याय व्यवस्था के बजाय खुमड़ी अच्छी है, जिसमें फैसले शीघ्र हुआ करते हैं। फनार खत के स्याणा दीवान सिंह कहते हैं कि वर्तमान न्याय व्यवस्था पैसे से प्रभावित है, जिसमें निर्धन को न्याय मुश्किल से मिलता है।