Author Topic: Do you know this Religious Facts About Uttarakhand- उत्तराखंड के धार्मिक तथ्य  (Read 27952 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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विनशन - सरस्वती नदी जहाँ से अंतर्धान हो गयी थी उसे विनशन प्रदेश कहते है! यह जगह माना गाव के आगे और व्यास गुफा (चमोली जिला) के नीच सरस्वती अलकनंदा में समां गय गयी थी!

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नारद मुनि ने प्रसाद मांगा तो भगवान शिव ने उन्हें महती वीणा प्रदान किया जो तीनों लोकों में भ्रमण करते नारद की पहचान है।

रूद्रेश्वर महादेव मंदिर:

 कहा जाता है कि आज जहां रूद्रेश्वर मंदिर है, वहां नारद मुनि ने संगीत का ज्ञान प्राप्त करने के लिये भगवान शिव की पूजा की थी। उन्होंने 100 देव वर्षो तक तप किया। उनकी प्रार्थना सफल हुई तथा भगवान शिव अपनी पत्नी एवं गणों के साथ प्रकट हुए। उन्होंने सामवेद के रूप में नारद को संगीत का संपूर्ण ज्ञान दिया। माना जाता है कि संगीत की अन्य विधाओं के साथ उस समय 36 राग-रागिनियों का जन्म हुआ। जब नारद मुनि ने प्रसाद मांगा तो भगवान शिव ने उन्हें महती वीणा प्रदान किया जो तीनों लोकों में भ्रमण करते नारद की पहचान है। नारद मुनि ने भगवान शिव से एक वचन भी प्राप्त किया कि वे सपरिवार रूद्रेश्वर में रहें। भगवान शिव ने इसका पालन किया और जब से ही वे यहां वास करते हैं।


source : http://staging.ua.nic.in/chardham/hindi/kedarnath_myths.asp

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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GUPTKASHI PANDAV'S FOLLOWED SHIV
« Reply #22 on: October 19, 2009, 04:21:21 PM »
गुप्तकाशी:

यह महाभारत के संग्राम के बाद का समय है। पांडव भाई विजयी तो हुए लेकिन भ्रातृहत्या की वेदना से त्रस्त थे। वे अपने भाइयों की हत्या करने के अभिशाप से मुक्ति पाने के लिए मुनि व्यास के पास जाते हैं। मुनि व्यास उन्हें भगवान शिव से मिलने की सलाह देते हैं क्योंकि वही उन्हें क्षमा कर सकते थे – केदारेश्वर के बिना मोक्ष एवं मुक्ति असंभव है। और इसलिए पांडव महादेव की खोज में निकल पड़ते हैं। उनको क्षमा करने की भावुक भगवान शिव की कोई मंशा नहीं थी, लेकिन वह चूंकि उनको 'मना' भी नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्हें दूर भाग जाने और उन्हें दर्शन नहीं देने का उपाय सबसे बढिया लगा।

लेकिन उन्हें खोजना पांडवों के लिए अनिवार्य था, और इस प्रकार पीछा करने की महान गाथा का जन्म हुआ। शिवजी आगे भाग रहे थे और पांडव उनका पीछा कर रहे थे – यहाँ, वहाँ और हर जगह। फिर शिवजी काशी (वाराणसी) पहुंचे और पांडव उनके पीछे-पीछे वहाँ भी पहुंचे कि तभी भगवान हवा में लोप हो गए और गुप्तकाशी या “गोपनीय काशी” में पुन: प्रकट हुए। इस प्रकार गढ़वाल हिमालय में इस कस्बे को इसका नाम मिला; और शिवजी ने कुछ समय तक यहाँ गुप्त रूप से और प्रसन्नतापूर्वक एकाकीपन में निवास किया। लेकिन यह कुछ ही समय की बात थी और पांडव यहाँ तक भी पहुं


http://staging.ua.nic.in/chardham/hindi/kedarnath_myths.asp

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गोविंदघाट से 2 किलोमीटर
ऋषिकेश से 231 किलोमीटर

HANUMAN CHATTI - THIS IS THE PLACE WHERE HANUMAN JI TESTED BHIM
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पांडुकेश्वर से लगभग 11 किलोमीटर दूर हनुमान चट्टी है, जहां धृतगंगा अलकनंदा में (या विष्णु गंगा में क्योंकि बद्रीनाथ और विष्णुप्रयाग के बीच यही इसका वास्तविक नाम है) मिलती है। यहॉं हनुमान का एक मंदिर है। किंवदंती यह है कि पांडवों को अपने निर्वासन के दौरान गंधमादान पर्वत जाते समय एक दुबला-पतला दिखाई देने वाला वानर मिला जो रास्ते पर अपनी पूंछ फैलाकर बैठा हुआ था।

महाबली भीम ने वानर को उसकी पूंछ हटाने का आदेश दिया। वानर ने ऐसा करने में अपनी असमर्थता जाहिर की, कहा कि वह वृद्ध एवं निर्बल है और खुद भीम को उसकी पूंछ हिलाकर हटा देनी चाहिए। लेकिन जब भीम ने उस वानर की पूंछ को हटाने का प्रयास किया तो वह ऐसा नहीं कर पाया, अपने भरसक प्रयासों के बावजूद। फिर वह उसे आभास हुआ कि यह कोई साधारण वानर नहीं है अपितु स्वयं हनुमान हैं जिन्होंने अपना असली रूप दिखाया और अंतर्ध्यान हो गए। तब से यह जगह हनुमान चट्टी कहलाती है।

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गरुड़ गंगा

लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर गरुड़ गंगा है, अलकनंदा की एक उपनदी। उसके तट पर गरुड़जी का एक छोटा एवं प्राचीन मंदिर है। यह माना जाता है कि गरुड़ ने भगवान विष्णु का वाहन बनने की इच्छा के साथ यहां तप किया था। एक दूसरी किंवदंती का कहना है कि भगवान बद्री अपने बद्रीवन जाते समय अपनी चौकी गलती से यहॉं भूल गए थे। गरुड़ ने यहीं रहने और अपने पसंदीदा आहार – सर्पों का भोजन का विनिश्चय किया। यह एक स्थानीय मान्यता है कि इस नदी के कंकड़ सांप के विष के लिए विषहर का कार्य करते हैं और सांप-बिच्छुओं को दूर भगाने के लिए उन्हें इकट्ठा करके घर में रखा जाता है।

6 किलोमीटर आगे पातालगंगा मौजूद है जहां 1970 की बेलाकुछी बाढ़ में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गंगोत्री धाम का प्रसाद
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गंगोत्री के निकटस्थ पहाड़ के चट्टान के अन्दर गर्म पानी का एक कुंड है ! इसे सूर्य कुंड के नाम से जाना जाता है ! जिसका ताप मान १०० डिग्री सेंटीग्रेड में रहता है ! इसमें आलू चावल पोटली में रखे तो वह पाक जाता है! यही यहाँ का प्रसाद है!

गंगोत्री का प्रसाद इस जल के पका हुवा चावल को माना जाता है ! 

Devbhoomi,Uttarakhand

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जोशीमठ

कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने चार मठों (धार्मिक क्रम-व्यवस्था) की स्थापना की जो आज भी महत्वपूर्ण हैं। ये दक्षिण में कर्नाटक में श्रृंगेरी; पश्चिम में गुजरात में द्वारका, पूर्व में उडीसा में पूरी, तथा उत्तर में उत्तराखंड में ज्योतिर्मठ (जोशीमठ) है। इन मठों के प्रधान अपने अधिकार-क्षेत्र को उनसे जोड़ कर देखते हैं।

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रुद्रप्रयाग: यहीं मिला था नारद को संगीत ज्ञान

द्रप्रयाग से नारद मुनि के जुड़े होने से इसकी पवित्रता और बढ़ जाती है। धर्मग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि द्वापरयुग में नारद मुनि संगीत का ज्ञान प्राप्त करने के लिए विष्णु भगवान के पास गए, लेकिन उन्होंने नारद को भगवान शिव की तपस्या करने को कहा। इसके लिए भगवान ने नारद को अलकनंदा व मंदाकिनी के संगम, यानी रुद्रप्रयाग जाने को कहा।

 इसके बाद नारद मुनि यहां पहुंचे और संगम पर स्थित एक शिला पर सौ वर्ष तक भगवान शिव की तपस्या की। तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया तथा संगीत के ज्ञान का आशीर्वाद दिया।

 जिस शिला पर नारदमुनि ने तपस्या की थी, वह आज भी संगम पर स्थित है। प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में भक्त इस शिला के दर्शन करने आते हैं। संगम के प्रति स्थानीय लोगों में भी बड़ी आस्था है। प्रतिदिन शाम को यहां विशेष आरती का आयोजन किया जाता है, जिसमें स्थानीय लोगों समेत देशी-विदेशी पर्यटक भी भाग लेते हैं।

 इसके अलावा यहां चामुंडा देवी व रुद्रनाथ भगवान का मंदिर भी दर्शनीय है। बताया जाता है कि रुद्रनाथ मंदिर यहां द्वापरयुग से स्थित है। इस मंदिर के नाम पर ही रुद्रप्रयाग का नाम भी पड़ा है। रुद्रनाथ मंदिर के महंत धर्मानंद का कहना है कि रुद्रप्रयाग का पूरा क्षेत्र शिवभूमि माना जाता है। मंदिर में स्थित स्वयंभू लिंग के अलावा क्षेत्र में करोड़ों शिवलिंग स्थापित हैं।

खीमसिंह रावत

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1. वेदान्त ज्ञानमठ, श्रृंगेरी (दक्षिण भारत)।
2. गोवर्धन मठ, जगन्नाथपुरी (पूर्वी भारत)
3. शारदा (कालिका) मठ, द्वारका (पश्चिम भारत)
4. ज्योतिर्पीठ, बद्रिकाश्रम (उत्तर भारत)

जोशीमठ

कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने चार मठों (धार्मिक क्रम-व्यवस्था) की स्थापना की जो आज भी महत्वपूर्ण हैं। ये दक्षिण में कर्नाटक में श्रृंगेरी; पश्चिम में गुजरात में द्वारका, पूर्व में उडीसा में पूरी, तथा उत्तर में उत्तराखंड में ज्योतिर्मठ (जोशीमठ) है। इन मठों के प्रधान अपने अधिकार-क्षेत्र को उनसे जोड़ कर देखते हैं।


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सूर्यकुंड: यहीं करती है गंगा   शिव को जलाभिषेक
                उत्तरकाशी। गंगा भागीरथी के प्रवाह पथ में अनेक पौराणिक व धार्मिक   महत्व वाले स्थान हैं। गंगोत्री धाम में स्थित सूर्यकुंड ऐसा ही स्थान है   जो अपनी खूबसूरती के साथ ही महत्ता के कारण लोगों को अपनी ओर खींच लेता है।   माना जाता है कि यहां पर गंगा भगवान शिव को पहला जलाभिषेक करती है और इसके   बाद का जल रामेश्वरम् में नहीं चढ़ाया जाता है।
 गंगोत्री धाम में सूर्यकुंड तीर्थयात्रियों व पर्यटकों के लिये खास   आकर्षण है। इस स्थान पर गंगा भागीरथी की जलधाराएं पूरे वेग के साथ नीचे   कुंड में गिरती हैं, जहां एक शिवलिंग स्थित है। शीतकाल में पानी कम होने पर   इस शिवलिंग को साफ देखा जा सकता है। इसे ही गंगा का शिव को पहला जलाभिषेक   माना जाता है। इससे पहले का जल ही रामेश्वरम् धाम में चढ़ाया जाता है।   सूर्यकुंड से पहले गंगा अपने बालरूप में दिखाई देती है। इसके बाद गंगा की   लहरें विकराल रूप ले लेती हैं। मानो शिव को पहला जलाभिषेक करने के बाद वह   तरुणी की तरह उन्मुक्त और स्वच्छंद होकर बह रही हो। पं उमा रमण सेमवाल ने   बताया कि गंगोत्री में सूर्यकुंड का वर्णन पौराणिक ग्रंथों में भी मिलता   है। शिव के पहले जलाभिषेक के कारण यह स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता   है। सूर्यकुंड में भागीरथी के दूसरे किनारे से भूस्खलन का खतरा बना हुआ है।   हालांकि इस जगह पर गंगोत्री नगर पंचायत की ओर से सुरक्षा कार्य करा जा रहे   हैं, लेकिन इसे पुख्ता नहीं माना जा रहा है। हालात को देखते हुए यहां का   मजबूत वायरक्रेट की जानी चाहिये। गंगोत्री मंदिर समिति के अध्यक्ष संजीव   सेमवाल ने बताया कि सूर्यकुंड की सुरक्षा की जानी चाहिये। इसके लिये   प्रशासन से मांग की जाएगी।


Source : Dainik Jagran

   

 

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