रुद्रप्रयाग: यहीं मिला था नारद को संगीत ज्ञान
द्रप्रयाग से नारद मुनि के जुड़े होने से इसकी पवित्रता और बढ़ जाती है। धर्मग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि द्वापरयुग में नारद मुनि संगीत का ज्ञान प्राप्त करने के लिए विष्णु भगवान के पास गए, लेकिन उन्होंने नारद को भगवान शिव की तपस्या करने को कहा। इसके लिए भगवान ने नारद को अलकनंदा व मंदाकिनी के संगम, यानी रुद्रप्रयाग जाने को कहा।
इसके बाद नारद मुनि यहां पहुंचे और संगम पर स्थित एक शिला पर सौ वर्ष तक भगवान शिव की तपस्या की। तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया तथा संगीत के ज्ञान का आशीर्वाद दिया।
जिस शिला पर नारदमुनि ने तपस्या की थी, वह आज भी संगम पर स्थित है। प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में भक्त इस शिला के दर्शन करने आते हैं। संगम के प्रति स्थानीय लोगों में भी बड़ी आस्था है। प्रतिदिन शाम को यहां विशेष आरती का आयोजन किया जाता है, जिसमें स्थानीय लोगों समेत देशी-विदेशी पर्यटक भी भाग लेते हैं।
इसके अलावा यहां चामुंडा देवी व रुद्रनाथ भगवान का मंदिर भी दर्शनीय है। बताया जाता है कि रुद्रनाथ मंदिर यहां द्वापरयुग से स्थित है। इस मंदिर के नाम पर ही रुद्रप्रयाग का नाम भी पड़ा है। रुद्रनाथ मंदिर के महंत धर्मानंद का कहना है कि रुद्रप्रयाग का पूरा क्षेत्र शिवभूमि माना जाता है। मंदिर में स्थित स्वयंभू लिंग के अलावा क्षेत्र में करोड़ों शिवलिंग स्थापित हैं।