Author Topic: Do you know this Religious Facts About Uttarakhand- उत्तराखंड के धार्मिक तथ्य  (Read 27932 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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          श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थली  रही सेम मुखेमलम्बगांव (टिहरी)। घने   जंगलों के बीच समुद्रतल से करीब नौ हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित सेममुखेम   में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर हर साल मेला आयोजित होता है। पुराणों   के मुताबिक यह स्थल श्रीकृष्ण की क्रीड़ास्थली भी रहा है।
 जिला मुख्यालय टिहरी से 175 किलोमीटर दूरी पर स्थित यह स्थल धार्मिक   एवं आध्यात्मिक शान्ति का अनूठा केन्द्र है। किंवदंती है कि द्वापर युग में   कृष्ण जन्म के बाद भागवत गीता के 18 वें अध्याय में इस तीर्थ का उल्लेख   किया गया है कि यमुना नदी पर एक कालिया नाग वास करता था, जिससे यमुना नदी   का जल दूषित होने के साथ-साथ यमुनावासियों के लिए यमुना के दर्शन बड़े   दुर्लभ हो गए थे। तब भगवान ने यमुना वासियों के दुख दर्द को समझते हुए अपने   ग्वाल बाल साथियों के साथ यमुना तट पर गेंद खेलने का बहाना बनाया तथा गेंद   को जानबूझकर यमुना नदी में फेंक दिया। गेंद लाने के बहाने श्रीकृष्ण ने   यमुना में छलांग लगाकर उस कालिया नाग के सिर पर जा बैठे। श्रीकृष्ण ने   कालिया नाग को यमुना छोड़ने को कहा, तो उसने कहा कि वह उन्हें कोई दूसरा   स्थान बता दें, जहां पर वह रह सके, क्योंकि उसने कोई अन्य स्थान नहीं देखा   है। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण कालिया नाग को लेकर सेम मुखेम में पहुंचे,   जहां पर उन दिनों अहंकारी शासक गंगू रमोला का शासन था। जनता गंगू रमोला के   उत्पीड़न से काफी परेशान थी। भगवान श्रीकृष्ण ने गंगू रमोला के आतंक से   लोगों को भी मुक्ति दिलाई थी। माना जाता है कि तभी से जन्माष्टमी के अवसर   पर सेममुखेम में हर वर्ष मेला आयोजित होता है। इस मेले में दीन गांव,   घंडियाल, सेमवाल गांव, मुखमाल, खंबाखाल, कंडियाल गांव के ग्रामीणों के   अलावा दूर-दूर के लोग भी पहुंचते हैं।


Source : Dainik Jagran

   


मेहता जी बहहुत बहुत धन्यवाद आपका इस महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए, ये बात सायद तेहरी के निवाशियों को भी नहीं मालू होगी ! ये देवभूमि महान हैं यहाँ महाभारत से लेकर रानायन कृष्ण भगवान्, सभी देवी देवताओं का वास है ये देवभूमि !

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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-विष्णु भगवान ने राजा बलि को दिए थे वामन रूप में दर्शन
-त्रियुगीनारायण में वर्षो से आयोजित होता है वामन द्वादशी मेला

केदारघाटी के अंतर्गत भगवान विष्णु की स्थली त्रियुगीनारायण में वर्षो से आयोजित होता आ रहा वामन द्वादशी मेला क्षेत्रीय लोगों की आस्था से जुड़ा है। यह मेला सम्राट बलि को विष्णु भगवान द्वारा पाताल लोक का राजा बनाए जाने के अवसर पर होता है। साथ ही मेले में नि:संतान दंपतियों को भी पुत्र प्राप्ति की आलौकिक शक्ति प्रदान होती है। देवभूमि उत्तराखंड में आयोजित होते आ रहे विभिन्न पौराणिक मेलों में वामन द्वादशी धार्मिक एवं पर्यटन मेला का अपना अलग महत्व है। मान्यता है कि जब महाबलि सम्राट बलि पृथ्वी लोक में मजबूत शासक के रूप में स्थापित हो गए तो उन्होंने तीनों लोक का राजा बनने के लिए यज्ञ शुरू कर दिया। इसके लिए उन्हें 100 यज्ञ करने थे, जब वह 99 यज्ञ पूरे कर चुके थे, तब सभी देवगण भगवान विष्णु के पास आए तथा स्थिति की गंभीरता से अवगत कराया। विष्णु ने वामन रूप में अवतरित होकर बलि को दर्शन दिए तथा भिक्षा में तीन पग जमीन मांगी। इसमें पहले पग में देव लोक, दूसरे पग में पृथ्वी नाप ली। जब तीसरे पग के लिए बलि के पास जगह नहीं बची तब बलि ने अपना सिर आगे कर दिया और उस पर पग रखने को कहा। भगवान विष्णु का पांव बलि के सिर पर पड़ते ही वह सीधे पाताल लोक पहुंच गए तथा यहां का राजा बन गया। इसी दिन से त्रियुगीनारायण में वामन द्वादशी मेले का आयोजन होता आ रहा है।


dramanainital

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dheerey dheerey uttarakhand kaa numero uno potal jaankaariyon kaa encyclopedia banataa jaa rahaa hai.dhanyawaad mehta saab.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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संतान प्राप्ति की चाह खींच लाती है यहां
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Sri Nagar Garwal


निसंतान दंपतियों द्वारा संतान की कामना को लेकर बैकुंठ चतुर्दशी पर्व पर कमलेश्वर महादेव मठ मंदिर में की जाने वाली खड़ा दीपक पूजन kee pratha hai

शास्त्रों में उल्लेख के अनुसार सतयुग से यह प्रथा चली आ रही है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने जामवंती के कहने पर यहां पर खड़ा दीया पूजन किया था।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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बद्री नाथ से 5 किलो मीटर की दूरी पर माणा गाव इंडो मंगोलियन जाति के लोगो का भारत तिब्बत सीमा पर स्थित मात्र अंतिम गाव है! इस गाव के निकट व्यास गुफा है जहाँ पर ऋषि व्यास ने महाकाव्य लिखा!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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मुख - रुद्रनाथ, जटा-सिर - कल्पेश्वर,
पेट का भाग - मध्यमेश्वर
हाथ - तुंगनाथ में पूजे जाते हैं।
मध्यमहेश्वर अन्य चार केदारों के मध्य स्थित है। मध्यमहेश्वर व तुंगनाथ दक्षिण में और कल्पेश्वर पूर्व में स्थित है। ये तीनों केदार एक समद्विबाहु त्रिभुज के शीर्षों पर स्थित हैं।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पौड़ी गढ़वाल, जागरण कार्यालय: कोट विकासखंड का मनसार मेला संस्कृति व धर्म का अनूठा समावेश है। यह मेला हर साल मंगसीर माह की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। देवल मंदिर से ढोल दमाऊ, भंकोर आदि वाद्य यंत्रों के साथ देव यात्रा निकलती है।
मान्यता है कि सीता माता ने एक समय यहां निवास किया। यह मेला उनकी याद में मनाया जाता है। मंडल मुख्यालय से 20 किमी दूरी पर ब्लाक कोट के पलसाड़ी गांव में पिछले 50 वर्ष से अधिक समय से मां सीता का मनसार मेला आयोजित किया जाता है। पहले मेले में कम लोग आया करते थे, लेकिन आज मेले में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। मान्यता है कि मेले में दो बार आने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। मेले हर वर्ष मंगसीर मास की द्वादशी को आयोजित होता है।
मां सीता का फलसाड़ी में मायका, देवल में ससुराल और कोटसाड़ा में ननिहाल माना जाता है। मां सीता के नाम से ही ब्लाक कोट की सितोन्स्यूं पट्टी का नामकरण किया गया। जिस दिन मेले का आयोजन होता है उस दिन फलसाड़ी गांव के किसी व्यक्ति के सपने सीता माता दर्शन देती है और उन्हें अपने स्वरूप के बारे में बताती है।
दूसरे दिन जिस खेत में मां सीता का पत्थर निकलता है उस दिन खेत की दीवार पर पीपल का पेड़ उगता है और उसके पत्तों पर ओंस की बूंदे रहती हैं। इसके बाद देवल गांव से निशान ढोल दमाऊं के साथ निकलते है और देवल मंदिर से मां सीता के जयजय कारा होता है। फलसाड़ी गांव में निशांन पहुंचने के बाद के खेत में खुदाई होती है। जहंा मां सीता का एक पत्थर निकलता है। जिसके दर्शन का लोग बेसर्बी से इंतजार करते हैं। दर्शन करने के बाद श्रद्धालु बबलू का रेशे छिनते हैं और इसे प्रसाद के रूप में स्वीकार करते हैं। देवल गांव के अतुल उप्रेती बताते हैं कि मेला पचास वर्ष से अधिक समय से मनाया जाता है। मान्यता है कि सीता फलसाड़ी गांव के खेतों में समा गई थी और राम के समाने के समय पर उनके बाल पकड़े थे। इसीलिए मां सीता के दर्शन के बाद बबलू का रेशा खींचा जाता है। पंडित वीरेन्द्र प्रसाद पांडेय बताते हैं देवल गांव में सीता माता ससुराल होने के के कारण यहां से निशान जाते हैं।
 
 
(Source - Dainik Jagran

Anil Arya / अनिल आर्य

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गोपीनाथ जी की जै 
Centuries old (about 12th century) Trident (Trishul) about 5 ft., in the   Gopinath Temple courtyard at Gopeshwar.  It is believed that it is made   of about 8 different metals, and any kind of wheather has no effect on   it till date. Even the forceful wind is unable to uproot it. As per   locals, the trident was fixed at this place when Lord Shiva threw it at   Kamdeva to kill hi
    photo                                              Gopinath


नवीन जोशी

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Great information specially in this topic Mehta ji, really great work...

Devbhoomi,Uttarakhand

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बड़कोट: पौराणिक परंपरा के अनुसार देवलांग का आयोजन करने वाले लोग व्रत रखकर ढ़ोल नगाड़ों व पूजा अर्चना के साथ जंगल से देवदार का चोटीयुक्त पेड़ लाकर इस पेड़ पर छिल्के बांधते हैं।

पेड़ की पूजा अर्चना के साथ ही सुबह होने से पूर्व मंदिर प्रांगण में बनाल पट्टी के साठी और पान्साई थोक देवलांग को खड़ा किया जाता है। इसके बाद इस पर लगे छिलकों पर आग लगाई जाती है।

 
यह नजारा देखते ही बनता है। पेड़ के चारों तरफ मंदिर प्रांगण में भारी संख्या में लोग हाथ में जलते ओल्ला (छिलके की मशालें) लेकर पारंपरिक नृत्य करते हैं।

मान्यता है कि देवलांग से देवताओं को जलते हुए पेड़, दीप और ओल्लाओं से प्रसन्न किया जाता है। वहीं, इस ज्योति को अज्ञान के अंधेरा दूर करने वाले उजाले के रूप में भी देखा जाता है।

बड़कोट: रवांई घाटी पौराणिक परंपराओं के साथ ही यहां बारह महीनों में बारह त्योहार भी बड़ी आस्था और भाईचारे से मनाए जाते हैं। आधुनिकता की दौड़ में समय के साथ-साथ रवांई क्षेत्र की कुछ पुरानी परंपरायें भी परिवर्तित हुई हैं,

जिसके चलते वृहद रूप से ख्याति प्राप्त कुछ मेले भी लुप्त हुए हैं। प्रो. आर.एस. असवाल का कहना है कि पौराणिक त्योहारों के चलते रवांई क्षेत्र आज भी अपनी अलग पहचान बनाए हुए है।
 
Source Dainik jagran

 

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