Author Topic: Dunagiri Temple at Dwarahat-Uttarakhand माँ दूनागिरी मन्दिर-द्वाराहाट-उत्तराखण्ड  (Read 24906 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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उत्तराखण्ड यानि देवभूमि के द्वाराहाट में स्थित माँ दूनागिरी का भव्य मन्दिर अपार आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। यहाँ माँ दूनागिरी वैष्णवी रूप में पूजी जाती है। इस धाम में वर्षभर श्रद्धालुओं का आवागमन रहता है। मंदिर में अखंड ज्योति का जलते रहना इसकी एक विशेषता है। माता का वैष्णवी रूप होने से यहां किसी प्रकार की बलि नहीं चढ़ाई जाती। मंदिर में अर्पित किया गया नारियल भी परिसर में नहीं फोड़ा जाता है। लोगों को विश्वास है कि माँ वैष्णवी संतान प्राप्ति हेतु मंदिर में अखंड दीपक जलाकर तपस्या करने वाली महिला को पुत्र रत्न प्रदान करती हैं। मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालु मंदिर में सोने और चांदी के छत्र, घंटियां, शंख चढ़ाते हैं।
 
 आइये दर्शन करें माता वैष्णवी के।


 
 विनोद सिंह गढ़िया
 


दिल्ली से दूनागिरी की दूरी लगभग 400 कि०मी० है और नैनीताल से 100 कि०मी०। नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है।

Route :
Delhi > Ghaziabad > Hapur > Gazrola > Muradabad >Rampur > Ruderpur > Haldwani > Kathgodam > Bhimtaal > Bhawali > Ranikhet > Dwarahat > Dunagiri

विनोद सिंह गढ़िया

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द्वाराहाट बाजार से करीब 14 किमी दूर मंगलीखान बस स्टेशन से करीब 500 सीढ़ियां चढ़कर पहुंचते हैं दूनागिरि माता के भव्य मंदिर में। यह मंदिर बांझ, देवदार, अकेसिया और सुरई समेत विभिन्न प्रजाति के पेड़ों के झुरमुटों के मध्य स्थित है, जिससे यहां आकर मन को काफी शांति मिलती है। एक कथा के अनुसार त्रेतायुग में लंका में लक्ष्मण को शक्ति लगने पर सुषैण वैद्य ने हनुमान जी को संजीवनी बूटी लेने को द्रोणांचल पर्वत पर भेजा। हनुमान जी इस पर्वत को लेकर जा रहे थे तो पहाड़ी से दो शिलाएं गिर गई। इनका ब्रह्मचरी नाम पड़ गया। 1238 ईसवी में कत्यूर वंशीय राजा सुधारदेव ने मंदिर का लघु निर्माण कर मूर्ति स्थापित की। हिमालय गजिटेरियन के लेखक ईटी एडकिंशन के अनुसार मंदिर होने का प्रमाण सन् 1181 शिलालेख में मिलता है। इस पर्वत पर पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य द्वारा तपस्या करने पर इसका नाम द्रोणागिरि भी है।



विनोद सिंह गढ़िया

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प्रवेश द्वार- दूनागिरी मन्दिर द्वाराहाट

विनोद सिंह गढ़िया

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भण्डारी परिवार दूनागिरी माता के परम भक्त हैं। अल्मोड़ा की बाल मिठाई के ख्याति प्राप्त विक्रेता खीम सिंह मोहन सिंह रौतेला ने मन्दिर में वर्ष  1995-96 में श्रद्धालुओं के लिए भोजन की सुविधा को भण्डारा शुरू किया जो तब से अनवरत चला आ रहा है। माता दूनागिरी के आदेशानुसार श्री खीम सिंह रौतेला ने मन्दिर का नव-निर्माण करवाया।

विनोद सिंह गढ़िया

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अद्वितीय है दो शिला विग्रहों की पूजा

मध्य हिमालयी क्षेत्र में स्थित आदिशक्ति मां दूनागिरि (द्रोणागिरि) मंदिर की दो शिला विग्रहों की संयुक्त पूजा अद्वितीय है। पुराणों, उपनिषदों व इतिहासविदों ने दूनागिरि की पहचान माया-महेश्वर या प्रकृति-पुरुष व दुर्गा कालिका के रूप में की है। द्वाराहाट में स्थापित इस मंदिर में वैसे तो पूरे वर्ष भक्तों की कतार लगी रहती है, मगर नवरात्र में यहां मां दुर्गा के भक्त दूर-दराज से बड़ी संख्या में आशीर्वाद लेने आते हैं। कत्यूरी शासक सुधारदेव ने सन् 1318 ई में यहां मंदिर निर्माण कर दुर्गा मूर्ति भी स्थापित की। इतना ही नहीं मंदिर में शिव व पार्वती की मूर्तियां विराजमान हैं। इसी पर्वत पर स्थित भगवान गणोश के नाम से एक चोटी का नाम गणोशधार पूर्व से ही प्रचलित है। बताते हैं कि लंकायुद्ध के दौरान लक्ष्मण का द्रोणांचल पर्वत की संजीवनी बूटी से उपचार तथा मायावी राक्षस कालनेमि व हनुमान युद्ध का प्रसंग इसके त्रेतायुगी इतिहास को बताता है। वहीं द्वापर युगी पांडवों का अज्ञातवास भी दूनागिरी क्षेत्र के पांडवखोली, विराटनगर (गनाई) व मत्स्य प्रदेश (मासी) में बीता। देवी पुराण के अनुसार अज्ञात वास के दौरान पांडवों ने युद्ध में विजय तथा द्रोपदी ने सतीत्व की रक्षा के लिए दूनागिरि की दुर्गा रूप में पूजा की। स्कंदपुराण के मानसखंड के द्रोणाद्रिमहात्म्य में दूनागिरि को महामाया, हरिप्रिया, दुर्गा के अन्य विशेषणों के अतिरिक्त वह्न्मिति के रूप में प्रदर्शित किया गया है। नवरात्र में दूनागिरि में मेले का आयोजन किया जाता है। इसमें सप्तमी की कालरात्रि को जागरण कर श्रद्धालु काली की पूजा करते हैं।

साभार : दैनिक जागरण


satinder

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