Author Topic: Ek Hathiya Deval, Pithoragarh Uttarakhand-एक हथिया देवाल पिथौरागढ़  (Read 4173 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

We are posting here unique information about Ek Hathiya Deval which is situated in Pithoragrah District of Uttarakhand.

This is the only temple in this area where no worship is performed.

एक हथिया देवाल एक अभिशप्त देवालय का नाम है। यह सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) के कस्बे थल से लगभग छः किलोमीटर दूर ग्राम सभा बल्तिर में स्थित है।

इस देवालय के विषय में किंवदंती है कि इस ग्राम में एक मूर्तिकार रहता था, जो पत्थरों को काट-काट कर मूर्तियाँ बनाया करता था। एक बार किसी दुर्घटना में उसका एक हाथ खराब हो गया। अब वह मूर्तिकार एक हाथ के सहारे ही मूर्तियाँ बनाना चाहता था, परन्तु गाँव के कुछ लोगों ने उसे यह उलाहना देना शुरू कर दिया कि अब एक हाथ के सहारे वह क्या कर सकेगा? लगभग सारे गाँव से एक जैसी उलाहना सुन-सुनकर मूर्तिकार खिन्न हो गया। उसने प्रण कर लिया कि वह अब उस गाँव में नहीं रहेगा और वहाँ से कहीं और चला जायेगा। यह प्रण करने के बाद वह एक रात अपनी छेनी, हथौड़ी और अन्य औजारों को लोकर गाँव के दक्षिणी छोर की ओर निकल पड़ा। गाँव का दक्षिणी छोर प्रायः ग्रामवासियों के लिये शौच आदि के उपयोग में आता था। वहाँ पर एक विशाल चट्टान थी।
अगले दिन प्रातःकाल जब गाँववासी शौच आदि के लिए उस दिशा में गये तो पाया कि किसी ने रात भर में चट्टान को काटकर एक देवालय का रूप दे दिया है। कौतूहल से सबकी आँखें फटी रह गयीं। सारे गाँववासी वहाँ पर एकत्रित हुये, परन्तु वह कारीगर नहीं आया जिसका एक हाथ कटा था। सभी गाँववालों ने गाँव में जाकर उसे ढूँढा और आपस में एक-दूसरे से उसके बारे में पूछा, परन्त्तु मूर्तिकार के बारे में कुछ भी पता न चल सका। वह एक हाथ का कारीगर गाँव छोड़कर जा चुका था।
जब स्थानीय पंडितों ने उस देवालय के अंदर उकेरे गए भगवान शंकर के लिंग और मूर्ति को देखा तो यह पता चला कि रात्रि में शीघ्रता से बनाये जाने के कारण शिवलिंग का अरघा विपरीत दिशा में बनाया गया है, जिसकी पूजा फलदायक नहीं होगी बल्कि दोषपूर्ण मूर्ति का पूजन अनिष्टकारक भी हो सकता है। इसी के चलते रातों रात स्थापित हुये उस मंदिर में विराजमान शिवलिंग की पूजा नहीं की जाती। पास ही बने जल सरोवर में, जिन्हे स्थानीय भाषा में 'नौला' कहा जाता है, मुंडन आदि संस्कार के समय बच्चों को स्नान कराया जाता है। (http://bharatdiscovery.org)



M S Mehta


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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ऐसा भी मंदिर जहां नहीं होती पूजा - Uttarakhandi

जाका, पिथौरागढ़ : स्थापत्य कला के लिए मशहूर जिले के एक हथिया मंदिर में पूजा नहीं होती है। भगवान शिव के इस मंदिर में लिंग का मुंह दक्षिण दिशा की तरफ होने के कारण पूजा वर्जित है।

जिला मुख्यालय से लगभग 55 किमी दूर थल के निकट बलतिर गांव के मध्य में भोलिया की छींड़ नामक जल प्रपात के पास यह मंदिर स्थित है। उत्तर भारत के अकेले राककट टैंपल को चट्टान में खूबसूरती के साथ गढ़ कर तैयार किया गया है। कहा जाता है कि एक ही रात को एक मिस्त्री ने एक ही हाथ से इसका निर्माण किया, जिस कारण इसे एक हथिया देवाल के नाम से जाना जाता है।

पौराणिक काल में यह क्षेत्र माल तीर्थ नाम से जाना जाता था। स्कंद पुराण में भी इस क्षेत्र का उल्लेख है। तत्कालीन कत्यूरी राजा ने सोचा था कि कलात्मक मंदिरों का निर्माण कहीं और नहीं होना चाहिए। इसे देखते हुए मंदिर का निर्माण करने वाले शिल्पी का हाथ राजा ने कटवा दिया था। बाद में शिल्पी ने एक ही हाथ से मंदिर का निर्माण किया। इस घटना को अपशकुन मानते हुए जनता ने यहां पर स्नान करना छोड़ दिया। एक ही रात को बने इस मंदिर और लिंग का मुंह दक्षिण दिशा दिशा की ओर होने से पूजा भी वर्जित रही। हिन्दू धर्म में दक्षिणमुखी मंदिरों में पूजा का विधान नहीं है।

स्थापत्य कला के इस बेजोड़ नमूने को शिल्पी ने इस प्रकार गढ़ा है जो पश्चिम और दक्षिण की तरफ खुला हुआ है। पूर्व और उत्तर दिशा से शिला में गड़न की गई है। मंदिर की तलछंद में गर्भगृह और मंडप का विधान रखा गया है। चट्टान के भीतरी भाग को काट कर मूल देवता के रूप में शिवलिंग गढ़ा गया है। मंडप के सामने जल प्रणाली बनाई गई है। वास्तुकला विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें नागर और लेटिन शैली का उपयोग किया गया है। अद्भुत स्थापत्य कला के चलते यह मंदिर पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जिसे देखने देशी और विदेशी पर्यटक यहां तक पहुंचते हैं। (source dainik jagran)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 एक हथिया देवाल[1]

 
 न बना सके वह
 उस ऊॅचाई का अन्य कोई स्थापत्य
 कटवा डाला
 दायाँ हाथ उसका
 लेकिन
 नहीं छूटा
 उसका छेनी-हथौड़ा
 एक नये शिल्प में
 बना डाला उसने
 पहले से भी
 अद्भुत और बेमिसाल यह देवाल
 एक ही पत्थर से ।
 काट -काट कर कठोर काँठे को
 उकेर दी
 मुँह -बोलती हुई मूर्तियाँ
 मेन को थाम लेने वाले बेल-बूटे
 और  एक सुदंर गर्भगृह
 उठती  चिनगारियों
 और अनंत टंकारों के साथ
 जो रही होंगी जितनी बाहर
 उससे अधिक भीतर ।
 कटवा दिया हो भले
 राजा ने
 उसका हाथ
 मगर नहीं काट सका
 उसके दृढ़ इरादों
 और पहाड़ से धैर्य को
 नदी से आवेग को
 कला के प्रति समर्पण को
 मन में धधक रही
 प्रतिरोध की आग को
 गवाही देता है जिसकी
 देवाल  में गढ़ा एक-एक शिल्प
 आज भी ।
   
  शब्दार्थ:
 उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर जो एक हाथ से कठोर चट्टान को काट-काट कर बनाया गया है ।. http://www.kavitakosh.org


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Ek Hathiya Deval.
          Ek Hatya Deval Thal, Dist. Pithoragarh              Ek Hatya Deval Thal, Dist. Pithoragarh            Ek Hatya Deval Thal, Dist. Pithoragarh            Ek Hatya Deval Thal, Dist. Pithoragarh           Ek Hatya Deval Thal, Dist. Pithoragarh           Ek Hatya Deval Thal, Dist. Pithoragarh

 

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