उत्तराखंड के अनदेखे पर्यटक स्थलः-[टनकपुर ब्रह्मदेव मंदिर]......(यात्रा वृतांत)
उत्तराखंड राज्य के बहुप्रचारित पर्यटन स्थलों मे जमा होने वाली भीड़ ने अब उन स्थलों को इतना भीड भरा और प्रदूषण से युक्त बना दिया है कि इस बार गरमी की में अवकाश मिलने पर पर्वतों की शान्ति की असली आनंद पाने के लिये कुछ अनदेखे पर्यटक स्थलो की ओर जाने की इच्छा हुयी।
इस इच्छा के कारण पहला वैचारिक संघर्ष तो घर पर ही प्रारंभ हुआ जब मैने पत्नी और बच्चों को इसके बारे में बताया । उन सबका एक स्वर में यह मानना था कि प्रचारित पर्यटक स्थलों पर खान पान और ठहरने आदि की जो सुविधाये मुहैया हो सकती हैं वे ऐसे अनजाने अनखोजे स्थानों में नहीं हो सकतीं। बहरहाल बड़ी मान मनौवल के बाद मेरी पत्नी और पुत्र तथा पुत्री मेरे प्रस्ताव से इस सीमा तक सहमत हो सके कि कुछ नये स्थानो पर जाने में यदि उन्हे रोमांच नही आया तो फिर यात्रा मार्ग बीच में ही परिवर्तित कर पुराने प्रचारित पर्वतीय स्थलों की ओर मुड लिया जायेगा।
उत्तराखंड की आरंभिक पहाड़ियों की तलहटी में बसा कस्बा टनकपुर
अपनी यात्रा का प्रारंभ किया उत्तर प्रदेश से सबसे नजदीक स्थित उत्तराखंड के तीर्थस्थान माँ पुण्यागिरी देवी के दर्शनों से। यह तीर्थ स्थान जनपद पीलीभीत से लगभग चालीस किलोमीटर दूर स्थित उत्तराखंड के कस्बे टनकपुर में समुद्रतन से लगभग आठ सौ पचास मीटर (लगभग तीन हजार फिट) की उँचाई पर स्थित है । पृथक उत्तराखंड राज्य बनने के बाद इस तीर्थ स्थान के नाम से एक पृथक प्रशासनिक इकाई तहसील का निर्माण किया गया है।
माँ पुर्णागिरी देवी का मंदिर इस कस्बे से लगभग बीस किलोमीटर अर्द्ध पहाडी मार्ग चलने के बाद लगभग चार किलोमीटर पैदल ट्रैकिंग की दुरी पर स्थित है। प्रशासनिक व्यवस्था के तहत दिन रात यात्रियों के आने जाने हेतु छोटे वाहन चलते रहने की अनुमति रहती है परन्तु टनकपुर पहुँचने पर ज्ञात हुआ कि पर्वतीय मार्ग अवरूद्ध होने के कारण वाहनों की आवा जाही बंद है सो अपने वाहन से जाना संभव नहीं है। इस सूचना के बाद पहला पड़ाव टनकपुर कस्बे में डाला गया और स्थानीय भृमण योग्य स्थानों की जानकारी की गयी तो ज्ञात हुआ कि कस्बे से होकर गुजरने वाली काली नदी के तट पर (मैदानी इलाकों में आने पर इसका प्रचलित नाम शारदा नदी है) प्रतिदिन सांयःकालीन आरती का आयोजन होता है। इसके अतिरिक्त नदी के दूसरी ओर नेपाल देश का प्रसिद्ध ब्रह्मा विष्णु का मंदिर ब्रह्मदेव मंदिर कंचनपुर में स्थित है । ब्रह्मदेव मंदिर कंचनपुर जाने के लिये नदी पर बने बैराज से होकर रास्ता जाता है जिस पर सीमा सुरक्षा बल के जवान तैनात रहते हैं।
नेपाल का कस्बा ब्रह्मदेव जनपद कंचनपुर
दोपहर के बाद बैराज के उस पार नेपाल जाकर प्रसिद्ध ब्रह्मा विष्णु का मंदिर देखने का कार्यक्रम तय हुआ। यहाँ तैनात सीमा सुरक्षा बल के जवानो का रवैया दर्शनार्थियो के प्रति अत्यंत सहृदय है। बैराज पार कर लगभग एक किलोमीटर का मार्ग काली नदी के किनारे बने बंधे पर तय करना पडता है उसके बाद नेपाल का एक छोटा सा कस्बा ब्रह्मदेव स्थित है जो नेपाल देश के कंचनपुर जिले का हिस्सा है। इस कस्बे में सौंदर्य प्रसाधन, चीन से आयातित कपड़े, अन्य विदेशी सामान तथा प्रसिद्ध फुटवियर कंपनियों का नेपाल को निर्यातित सामान अपेक्षाकृत काफी कम दामो पर उपलब्ध रहता है।
ब्रह्मदेव कस्बे में स्थित ब्रह्मा विष्णु के मंदिर का प्रांगण
ब्रह्मा विष्णु का मंदिर ब्रह्मदेव मंदिर के प्रांगण में छोटे छोटे दो तीन मंदिर स्थित हैं तथा एक बहुत प्राचीन बरगद का पेड है जिसके नीचे सिद्ध महात्मा की समाधि का स्थल है । नेपाल और भारत से जाने वाले भक्तगणों की मनोकामना को सिद्ध करने के लिये इस पर पीले वस़्त्र का टुकडा बाँधकर मनौती माँगने की परंपरा है। यह पूरा परिसर ऐसे पीले वस्त्रों से पटा पड़ा है। वृक्ष की डाल, मंदिर की रेलिंग आदि से बंधे ये पीले वस्त्र इस परिसर को बसंत पंचमी सरीखी अनोखी छटा प्रदान करते हैं।
ब्रह्मदेव मंदिर में सिद्ध महात्मा की समाधि पर आर्शिवाद लेते हुये
इस स्थान पर दर्शन करने और स्थानीय बाजार से खरीददारी करते करते कब सांयः हो गयी यह पता ही न चला ।
ब्रह्मदेव मंदिर के प्रांगण स्थित सिद्ध महात्मा की समाधि का स्थल
सांयः सूर्यास्त की बेला में लौटने पर बैराज से टनकपुर कस्बे तक का सफर काली नदी के किनारे बने बैराज पर तय करना बहुत मोहक लगा। बैराज के कारण निर्मित जलाशय में पड़ने वाली अस्त होते सूर्य की छटा ने मन मोह लिया।
काली नदी के किनारे बने जलाशय में अस्त होते सूर्य की छटा
टनकपुर कस्बे में पहुंचने पर स्थानीय घाट पर काली नदी की आरती देखने हेतु गये । वहाँ पानी में अठखेलियाँ करते स्थानीय बच्चो ने मन मोह लिया । यहाँ पानी मे किसी अप्रिय घटना से निबटने के लिये उत्तराखंड जल पुलिस अपनी राफ्ट और लाइफ सेविंग जैकेटों के साथ पूरी तरह मुस्तैद दिखी।
टनकपुर कस्बे में स्थानीय घाट पर काली नदी की आरती
आरती के बाद टी0वी0 न्यूज के साथ रात्रि का भोजन करते हुये अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त में माँ पुण्यागिरी का दर्शन करने का संकल्प लेकर हम सभी सो गये।
नोटः-यात्रा वृतांत की पिछली पोस्ट तथा वर्तमान में लगाये सभी छायाचित्रों के छायाकर है मेरे सुपुत्र चि0 साकार शुक्ला
लेखक परिचयः-अशोक कुमार शुक्ला
‘‘तपस्या’’ 2-614 सेक्टर ‘‘एच’’ जानकीपुरम्,
लखनऊ,उ.प्र.
उ0प्र0 राजस्व (प्रशासनिक) सेवा के अघिकारी के रूप में कार्यरत।