Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां
Famous Shiv Temples In Uttarakhand - उत्तराखंड मे महादेव के प्रसिद्ध मन्दिर
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Kilkileshwar Mahadev-- (Srinagar Garwal)
Kilkileshwar Mahadev-- Another Shiva temple located in the banks of river Alaknanda, Kilkileshwar Mahadev was established by Shankaracharya the legendary Hindu Guru.
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Kapileshwar Mahadev (Pithoragarh) : In the Soar Valley right above the villages of Takaura and Takari overlooking Pithoragarh town, is situated the cave temple dedicated to Mahadeva. The legend goes that the great sage kapil meditated here. The passage through the cave is very long and branches out to several indeterminate destinations and has hence been closed. The temple is situated some ten meters deep inside the cave. There is another cave temple of this kind also dedicated to Mahadev at a place called Rai which is about half a Km to the north-east on Dharchula-Pithoragarh road.
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
कठिन यात्रा है रुद्रनाथ की Jul 26, 11:56 pm
समुद्रतल से 2290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर भव्य प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है, जबकि संपूर्ण शरीर की पूजा नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ में की जाती है। रुद्रनाथ मंदिर के सामने से दिखाई देती नंदा देवी और त्रिशूल की हिमाच्छादित चोटियां यहां का आकर्षण बढाती हैं। इस स्थान की यात्रा के लिए सबसे पहले गोपेश्वर पहुंचना होता है जो कि चमोली जिले का मुख्यालय है। गोपेश्वर एक आकर्षक हिल स्टेशन है जहां पर ऐतिहासिक गोपीनाथ मंदिर है। इस मंदिर का ऐतिहासिक लौह त्रिशूल भी आकर्षण का केंद्र है। गोपेश्वर पहुंचने वाले यात्री गोपीनाथ मंदिर और लौह त्रिशूल के दर्शन करना नहीं भूलते। गोपेश्वर से करीब पांच किलोमीटर दूर है सगर गांव। बस द्वारा रुद्रनाथ यात्रा का यही अंतिम पडाव है। इसके बाद जिस दुरूह चढाई से यात्रियों और सैलानियों का सामना होता है वो अकल्पनीय है। सगर गांव से करीब चार किलोमीटर चढने के बाद यात्री पहुंचता है पुंग बुग्याल। यह लंबा चौडा घास का मैदान है जिसके ठीक सामने पहाडों की ऊंची चोटियों को देखने पर सर पर रखी टोपी गिर जाती है। गर्मियों में अपने पशुओं के साथ आस-पास के गांव के लोग यहां डेरा डालते हैं, जिन्हें पालसी कहा जाता है। अपनी थकान मिटाने के लिए थोडी देर यात्री यहां विश्राम करते हैं। ये पालसी थके हारे यात्रियों को चाय आदि उपलब्ध कराते हैं। आगे की कठिन चढाई में जगह-जगह मिलने वाली चाय की यही चुस्की अमृत का काम करती है। पुंग बुग्याल में कुछ देर आराम करने के बाद कलचात बुग्याल और फिर चक्रघनी की आठ किलोमीटर की खडी चढाई ही असली परीक्षा होती है। चक्रघनी जैसे कि नाम से प्रतीत होता है कि चक्र के सामान गोल। इस दुरूह चढाई को चढते-चढते यात्रियों का दम निकलने लगता है। चढते हुए मार्ग पर बांज, बुरांश, खर्सू, मोरु, फायनिट और थुनार के दुर्लभ वृक्षों की घनी छाया यात्रियों को राहत देती रहती है। रास्ते में कहीं कहीं पर मिलने वाले मीठे पानी की जलधाराएं यात्रियों के गले को तर करती हैं। इस घुमावदार चढाई के बाद थका-हारा यात्री ल्वीटी बुग्याल पहुंचता है जो समुद्र तल से करीब 3000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ल्वीटी बुग्याल से गापेश्वर और सगर का दृश्य तो देखने लायक है ही, साथ ही रात में दिखाई देती दूर पौडी नगर की टिमटिमाती लाइटों का आकर्षण भी कमतर नहीं। ल्वीटी बुग्याल में सगर और आसपास के गांव के लोग अपनी भेड-बकरियों के साथ छह महीने तक डेरा डालते हैं। अगर पूरी चढाई एक दिन में चढना कठिन लगे तो यहां इन पालसियों के साथ एक रात गुजारी जा सकती है। यहां की चट्टानों पर उगी घास और उस पर चरती बकरियों का दृश्य पर्यटकों को अलग ही दुनिया का अहसास कराता है। यहां पर कई दुर्लभ जडी-बूटियां भी मिलती हैं। ल्वीटी बुग्याल के बाद करीब तीन किलोमीटर की चढाई के बाद आता है पनार बुग्याल। दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित पनार रुद्रनाथ यात्रा मार्ग का मध्य द्वार है जहां से रुद्रनाथ की दूरी करीब ग्यारह किलोमीटर रह जाती है। यह ऐसा स्थान है जहां पर वृक्ष रेखा समाप्त हो जाती है और मखमली घास के मैदान यकायक सारे दृश्य को परिवर्तित कर देते हैं। अलग-अलग किस्म की घास और फूलों से लकदक घाटियों के नजारे यात्रियों को मोहपाश में बांधते चले जाते हैं। जैसे-जैसे यात्री ऊपर चढता रहता है प्रकृति का उतना ही खिला रूप उसे देखने को मिलता है। इतनी ऊंचाई पर इस सौंदर्य को देखकर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाता है। पनार में डुमुक और कठगोट गांव के लोग अपने पशुओं के साथ डेरा डाले रहते हैं। यहां पर ये लोग यात्रियों को चाय आदि उपलब्ध कराते हैं। पनार से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों का जो विस्मयकारी दृश्य दिखाई देता है वो दूसरी जगह से शायद ही दिखाई दे। नंदादेवी, कामेट, त्रिशूली, नंदाघुंटी आदि शिखरों का यहां बडा नजदीकी नजारा होता है। पनार के आगे पित्रधार नामक स्थान है पित्रधार में शिव, पार्वती और नारायण मंदिर हैं। यहां पर यात्री अपने पितरों के नाम के पत्थर रखते हैं। यहां पर वन देवी के मंदिर भी हैं जहां पर यात्री श्रृंगार सामग्री के रूप में चूडी, बिंदी और चुनरी चढाते हैं। रुद्रनाथ की चढाई पित्रधार में खत्म हो जाती है और यहां से हल्की उतराई शुरू हो जाती है। रास्ते में तरह-तरह के फूलों की खुशबू यात्री को मदहोश करती रहती है। यह भी फूलों की घाटी सा आभास देती है। पनार से पित्रधार होते हुए करीब दस-ग्यारह किलोमीटर के सफर के बाद यात्री पहुंचता है पंचकेदारों में चौथे केदार रुद्रनाथ में। यहां विशाल प्राकृतिक गुफा में बने मंदिर में शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति है। यहां शिवजी गर्दन टेढे किए हुए हैं। माना जाता है कि शिवजी की यह दुर्लभ मूर्ति स्वयंभू है यानी अपने आप प्रकट हुई है। इसकी गहराई का भी पता नहीं है। मंदिर के पास वैतरणी कुंड में शक्ति के रूप में पूजी जाने वाली शेषशायी विष्णु जी की मूर्ति भी है। मंदिर के एक ओर पांच पांडव, कुंती, द्रौपदी के साथ ही छोटे-छोटे मंदिर मौजूद हैं। मंदिर में प्रवेश करने से पहले नारद कुंड है जिसमें यात्री स्नान करके अपनी थकान मिटाता है और उसी के बाद मंदिर के दर्शन करने पहुंचता है। रुद्रनाथ का समूचा परिवेश इतना अलौकिक है कि यहां के सौदर्य को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। शायद ही ऐसी कोई जगह हो जहां हरियाली न हो, फूल न खिले हों। रास्ते में हिमालयी मोर, मोनाल से लेकर थार, थुनार और मृग जैसे जंगली जानवरों के दर्शन तो होते ही हैं, बिना पूंछ वाले शाकाहारी चूहे भी आपको रास्ते में फुदकते मिल जाएंगे। भोज पत्र के वृक्षों के अलावा ब्रह्मकमल भी यहां की ऊंचाइयों में बहुतायत में मिलते हैं। यूं तो मंदिर समिति के पुजारी यात्रियों की हर संभव मदद की कोशिश करते हैं। लेकिन यहां खाने-पीने और रहने की व्यवस्था स्वयं करनी पडती है। जैसे कि रात में रुकने के लिए टेंट हो और खाने के लिए डिब्बाबंद भोजन या अन्य चीजें। रुद्रनाथ के कपाट परंपरा के अनुसार खुलते-बंद होते हैं। शीतकाल में छह माह के लिए रुद्रनाथ की गद्दी गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में लाई जाती है जहां पर शीतकाल के दौरान रुद्रनाथ की पूजा होती है। आप जिस हद तक प्रकृति की खूबसूरती का अंदाजा लगा सकते है, यकीन मानिए यह जगह उससे ज्यादा खूबसूरत है।
रविशंकर जुगरान
रुद्रनाथ यात्रा: अन्य जानकारियां
कैसे पहुंचे
देश के किसी कोने से आपको पहले ऋषिकेश पहुंचना होगा। ऋषिकेश से ठीक पहले तीर्थनगरी हरिद्वार दिल्ली, हावडा से बडी रेल लाइन से जुडी है। देहरादून के निकट जौली ग्रांट में हवाईअड्डा भी है जहां दिल्ली से सीधी उडानें हैं। हरिद्वार या ऋषिकेश से आपको चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर का रुख करना होगा जो ऋषिकेश से करीब 212 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऋषिकेश से गोपेश्वर पहुंचने के लिए आपको बस या टैक्सी आसानी से उपलब्ध हो जाती है। एक रात गोपेश्वर में रुकने के बाद अगले दिन आप अपनी यात्रा शुरू कर सकते हैं।
कहां ठहरें
गोपेश्वर में टूरिस्ट रेस्ट हाउस, पीडब्ल्यूडी बंगले के अलावा छोटे होटल और लॉज आसानी से मिल जाते हैं। गोपेश्वर से करीब पांच किलोमीटर ऊपर सगर नामक स्थान तक आप बस की सवारी कर सकते हैं। इसके बाद रुद्रनाथ पहुंचने के लिए यात्रियों को करीब 22 किलोमीटर की खडी चढाई चढनी होती है। यही चढाई श्रद्धालुओं की असली परीक्षा और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए चुनौती होती है। रास्ता पूरा जंगल का है लिहाजा यात्रियों को अपने साथ पूरा इंतजाम करके चलना होता है। यानी खाने-पीने की चीज से लेकर गर्म कपडे हरदम साथ हों। बारिश व हवा से बचाव के लिए बरसाती पास होनी चाहिए क्योंकि मौसम के मिजाज का यहां कुछ पता नहीं चलता। पैदल रास्ते में तो पालसी मिल जाते हैं लेकिन रुद्रनाथ में रुकना हो तो इंतजाम के बारे में सोचकर चलें।
कब जाएं
यूं तो मई के महीने में जब रुद्रनाथ के कपाट खुलते हैं तभी से यहां से यात्रा शुरू हो जाती लेकिन अगस्त सितंबर के महीने में यहां खिले फूलों से लकदक घाटियां लोगों का मन मोह लेती हैं। ये महीने ट्रेकिंग के शौकीन के लिए सबसे उपयुक्त हैं। गोपेश्वर में आपको स्थानीय गाइड और पोर्टर आसानी से मिल जाते हैं। पोर्टर आप न भी लेना चाहें लेकिन यदि पहली बार जा रहे हैं तो गाइड जरूर साथ रखें क्योंकि यात्रा मार्ग पर यात्रियों के मार्गदर्शन के लिए कोई साइन बोर्ड या चिह्न नहीं हैं। पहाडी रास्तों में भटकने का डर रहता है। एक बार आप भटक जाएं तो सही रास्ते पर आना बिना मदद के मुश्किल हो जाता है।
http://in.jagran.yahoo.com/news/travel/general/16_36_325/
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Kalpeshwar
Kalpeshwar is situated at Kalpeshwar in the beautiful Urgam Valley. Nestled at an altitude of 2,134 m, the temple is dedicated to Lord Shiva. This is one of the Pancha or Five Kedar shrines. Kalpeshwar can be reached by a 10 km trek from Rudranath to Helong. According to a popular legend, the Pandavas sought the blessings of Lord Shiva to atone their sins after the battle of Kurukshetra. Lord Shiva eluded them repeatedly and hid himself at Guptakashi. When Pandavas spotted him at Gupatakashi, Shiva tried fleeing and took the form of a bull at Kedarnath. On being followed by the Pandava brothers, he dived into the ground and disappeared; only his hump could be seen. Bhim, the second Pandava brother, jumped on this hump and tried to catch hold of the bull by his hump. It is believed that just as bull's hump appeared in Kedarnath, his belly appeared in Madmaheshwar Temple, his limbs at Tungnath Temple, his head and hair at Kalpeshwar, and his face at Rudranath Temple. All these five temples are together known as Panchakedar and a pilgrimage of all these five shrines is considered holy by the Hindus. At Kalpeshwar, Shiva is worshipped in the form of matted hair.
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Tungnath temple
Tungnath temple is the highest shrine in the world, located as it is at an altitude of 3,680 meters. The temple is situated on the inner Himalayan range, just below Chandrashila Peak in Rudraprayag District of Uttaranchal. The presiding deity here is Lord Shiva. A 2.5-feet-tall idol of Adi Shankaracharya can be seen near the shivling. The Tungnath temple is one of the Panchakedar temples of Garhwal.
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