Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

Famous Shiv Temples In Uttarakhand - उत्तराखंड मे महादेव के प्रसिद्ध मन्दिर

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Mahi Singh Mehta

     
    जागेश्वर से ही शुरू हुआ शिव लिंग का पूजन - सावन में ‌भगवान शिव यहां पूरी करते हैं मनोकामना

    उत्तराखंड के जिले में स्थित प्रसिद्ध जागेश्वर धाम उत्तर भारत में प्रमुख शिव मंदिरों में एक है।

    जागेश्वर से ही शुरू हुआ शिव लिंग का पूजन
    पौराणिक मान्यता है कि यहां शिव जागृत रूप में विद्यमान हैं और सबसे पहले शिव लिंग का पूजन जागेश्वर से ही शुरू हुआ।

    सावन माह में यहां जलाभिषेक, पार्थिव पूजन, रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय पूजन का खास महत्व माना जाता है। उत्तराखंड समेत देश के अन्य भागों से काफी संख्या में श्रद्धालु जागेश्वर धाम पहुंचते हैं।

    अल्मोड़ा से 38 किमी दूर पिथौरागढ़ मार्ग में आरतोला के निकट जागेश्वर धाम देवदार के घने जंगल के बीच स्थित है। जागेश्वर धाम को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।

    जागेश्वर धाम परिसर में 124 मंदिरों का समूह है। इन मंदिरों का निर्माण सातवीं से चौदहवीं शताब्दी के मध्य हुआ है। यहां जागनाथ, महामृत्युंजय, पुष्टिमाता, नवदुर्गा, बद्रीनाथ, केदारनाथ, नीलकंठ, कुबेर भगवान आदि के मंदिर हैं।

    कूर्म पुराण, लिंग पुराण, स्कंद पुराण, शिव पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों में जागेश्वर के महत्व को बताया गया है। यहां स्थित महामृत्युंजय मंदिर में विशेष रूप से रोग, शोक, भय, अकालमृत्यु, काल सर्प दोष निवारण के लिए अनुष्ठान किए जाते हैं।

    सभी मनोकामना होती हैं पूरी
    संतान प्राप्ति के लिए महिलाएं सावन चतुर्दशी की रात्रि में महामृत्युंजय मंदिर में हाथ में दीपक लेकर तपस्या करती हैं तो उनकी मनोकामना पूरी होती है।

    जागेश्वर में सावन माह में पार्थिव पूजन का विशेष महत्व है। श्रद्धालु मनोकामना के लिए मिट्टी, चावल के आटे, मक्खन, गोबर आदि के शिवलिंग बनाकर पूजा अर्चना करते हैं। (source amar ujala)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:



Tungnath

Pawan Pathak:
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं/
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकाल कालं कृपालं/
गुणागार संसारपारं नतोहं॥
शंकराचार्य ने खोजी पाताल भुवनेश्वर गुफा!
बालरूप में प्रकट हुए थे भगवान शंकर!
थल/पिथौरागढ़। स्कंद पुराण के मानसखंड में थल के शिव मंदिर को बालतीर्थ नाम दिया गया है। सतयुग में कैलास यात्रा के समय थल की रामगंगा में बानरराज बाली ने 20 वर्ष तक तपस्या की थी। भगवान शंकर बालक रूप में प्रकट होकर बाली द्वारा बनाए गए शिवलिंग में समा गए। मानसखंड के 108वें अध्याय में (ऊपर दिया गया श्लोक) में कहा गया है कि क्रांति (कोकिला), बहुला (बलतिर) और रामगंगा ये तीनों पवित्र नदियां हैं। इनके संगम में स्नान तथा प्रेतशिला का पूजन करने से दिव्यदेह की प्राप्ति होती है।


भगवान राम ने स्थापित किया था रामेश्वर मंदिर!
पिथौरागढ़। मानसरोवर झील से निकली सरयू और महर्षि परशुराम द्वारा खोजित रामगंगा (पूर्वी) के संगम में पनार नामक स्थान पर स्थित शिव मंदिर को भगवान श्रीराम ने स्वर्गारोहण से पहले अपने हाथों से स्थापित किया था। पौराणिक ग्रंथ स्कंदपुराण के मानसखंड में रामेश्वर का वर्णन करते हुए कहा गया है कि काशी विश्वनाथ के पूजन से 10 गुना, वैद्यनाथ और सेतुबंध रामेश्वर की अपेक्षा 100 गुना अधिक फल रामेश्वर पूजन से मिलता है।
अर्थात : जो निराकार हैं ओंकार रूप आदिकारण हैं, तुरीय हैं, वाणी, बुद्धि और इंद्रियों के पथ से परे हैं, कैलासनाथ हैं, विकराल और महाकाल के भी काल, कृपाल, गुणों के आगार और संसार से तारने वाले हैं, उन भगवान को मैं नमस्कार करता हूं।।
पिथौरागढ़। पाताल भुवनेश्वर की गुफा 8वीं सदी में जगत गुरु शंकराचार्य जी महाराज ने खोजी थी। गुफा को देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा बनाए जाने का वर्णन है। स्कंदपुराण के 501वें अध्याय में वल्कल (पेड़) की छाल से बने वस्त्र धारण करने वाले महापुरुष द्वारा गुफा को खोजने और इसके बाद ही मानवों के गुफा में प्रवेश करने की भविष्यवाणी की गई है। करीब 300 मीटर लंबी यह गुफा पाताल लोक को जाती हुई प्रतीत होती है। गुफा में काल भैरव की जीभ समेत तमाम सजीव आकृतियां बनी हैं।

Pawan Pathak:

--- Quote from: Pawan Pathak on February 26, 2015, 12:02:03 PM ---निराकारमोंकारमूलं तुरीयं/
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकाल कालं कृपालं/
गुणागार संसारपारं नतोहं॥
शंकराचार्य ने खोजी पाताल भुवनेश्वर गुफा!
बालरूप में प्रकट हुए थे भगवान शंकर!
थल/पिथौरागढ़। स्कंद पुराण के मानसखंड में थल के शिव मंदिर को बालतीर्थ नाम दिया गया है। सतयुग में कैलास यात्रा के समय थल की रामगंगा में बानरराज बाली ने 20 वर्ष तक तपस्या की थी। भगवान शंकर बालक रूप में प्रकट होकर बाली द्वारा बनाए गए शिवलिंग में समा गए। मानसखंड के 108वें अध्याय में (ऊपर दिया गया श्लोक) में कहा गया है कि क्रांति (कोकिला), बहुला (बलतिर) और रामगंगा ये तीनों पवित्र नदियां हैं। इनके संगम में स्नान तथा प्रेतशिला का पूजन करने से दिव्यदेह की प्राप्ति होती है।


भगवान राम ने स्थापित किया था रामेश्वर मंदिर!
पिथौरागढ़। मानसरोवर झील से निकली सरयू और महर्षि परशुराम द्वारा खोजित रामगंगा (पूर्वी) के संगम में पनार नामक स्थान पर स्थित शिव मंदिर को भगवान श्रीराम ने स्वर्गारोहण से पहले अपने हाथों से स्थापित किया था। पौराणिक ग्रंथ स्कंदपुराण के मानसखंड में रामेश्वर का वर्णन करते हुए कहा गया है कि काशी विश्वनाथ के पूजन से 10 गुना, वैद्यनाथ और सेतुबंध रामेश्वर की अपेक्षा 100 गुना अधिक फल रामेश्वर पूजन से मिलता है।
अर्थात : जो निराकार हैं ओंकार रूप आदिकारण हैं, तुरीय हैं, वाणी, बुद्धि और इंद्रियों के पथ से परे हैं, कैलासनाथ हैं, विकराल और महाकाल के भी काल, कृपाल, गुणों के आगार और संसार से तारने वाले हैं, उन भगवान को मैं नमस्कार करता हूं।।
पिथौरागढ़। पाताल भुवनेश्वर की गुफा 8वीं सदी में जगत गुरु शंकराचार्य जी महाराज ने खोजी थी। गुफा को देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा बनाए जाने का वर्णन है। स्कंदपुराण के 501वें अध्याय में वल्कल (पेड़) की छाल से बने वस्त्र धारण करने वाले महापुरुष द्वारा गुफा को खोजने और इसके बाद ही मानवों के गुफा में प्रवेश करने की भविष्यवाणी की गई है। करीब 300 मीटर लंबी यह गुफा पाताल लोक को जाती हुई प्रतीत होती है। गुफा में काल भैरव की जीभ समेत तमाम सजीव आकृतियां बनी हैं।

--- End quote ---

http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20150217a_003115002&ileft=-5&itop=75&zoomRatio=130&AN=20150217a_003115002

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
कल्पेश्वर मंदिर चौपटा
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कल्पेश्वर महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों मे से एक है जो उत्तराखंड के असीम प्राकृतिक सौंदर्य को अपने मे समाए हिमालय की पर्वत शृंखलाओं के मध्य में स्थित है. कल्पेश्वर सनातन हिन्दू संस्कृति के शाश्वत संदेश के प्रतीक रूप मे स्थित है यह केदारनाथ के प्रमुख चार पीठों समेत पंच केदार के नाम से प्रसिद्ध हैं.

कल्पेश्वर मंदिर काफी ऊंचाई पर स्थित है यह मुख्य मंदिर अनादिनाथ कल्पेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्द है. इस मंदिर के समीप एक कलेवर कुंड है, इस कुंड का पानी सदैव स्वच्छ रहता है और यात्री लोग यहां से जल ग्रहण करते हैं.

तथा इस पवित्र जल को पी कर अनेक व्याधियों से मुक्ति पाते हैं यहां साधु लोग भगवान शिव को अर्घ्य देने के लिए इस पवित्र जल का उपयोग करते हैं तथा पूर्व प्रण के अनुसार तपस्या भी करते हैं. तीर्थ यात्री पहाड़ पर स्थित इस मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं कल्पेश्वर का रास्ता एक गुफा से होकर जाता है. मंदिर तक पहुंचने के लिए गुफा के अंदर लगभग एक किलोमीटर तक का रास्ता तय करना पड़ता है जहां पहुँचकर तीर्थयात्री भगवान शिव की जटाओं की पूजा करते हैं.

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