Author Topic: Famous Shiv Temples In Uttarakhand - उत्तराखंड मे महादेव के प्रसिद्ध मन्दिर  (Read 95334 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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वभूमि में मौजूद ऐसा शिव मंदिर जहां पूजा करने से मिलता है 'श्राप'
देवभूमि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के थल में छह किमी दूर स्थित है बल्तिर गांव में एक हथिया देवाल नाम का भगवान शिव का मंदिर स्थित है। यहां दूर-दूर से लोग आते हैं, लेकिन यहां पूजन नहीं किया जाता। यहां लोग मंदिर की अनूठी स्थापत्य कला को निहारते हैं। इस मंदिर की खास बात यह है कि लोग यहां भगवान शिव के दर्शन करने तो आते हैं, लेकिन यहां भगवान पूजा नहीं की जाती। इस मंदिर का नाम एक हथिया देवाल इसलिए पड़ा है क्योंकि यह एक हाथ से बना हुआ है। यह मंदिर बेहद पुराना है और ग्रंथों, अभिलेखों में भी इस मंदिर का वर्णन मिलता है। पुराने समय में यहां राजा कत्यूरी का शासन था। उस दौर के शासकों को स्थापत्य कला से बहुत लगाव था। लोगों का मानना है कि कुशल कारीगर ने मंदिर का निर्माण किया। खास बात यह थी कि कारीगर ने एक हाथ से मंदिर बनाना शुरू किया और पूरी रात में मंदिर तैयार कर दिया। जब स्थानीय पंडितों ने उस देवालय के अंदर उकेरी गए भगवान शंकर के लिंग और मूर्ति को देखा तो यह पता चला कि रात्रि में शीघ्रता से बनाए जाने के कारण शिवलिंग का अरघा उल्टी दिशा में बनाया दिया गया है जिसकी पूजा अनिष्टकारक हो सकती है। बस इसी के चलते मंदिर में विराजमान शिवलिंग की पूजा नहीं की जाती। मंदिर की स्थापत्य कला नागर और लैटिन शैली की है। चट्टान को तराश कर बनाया गया यह पूर्ण मंदिर है। चट्टान को काट कर ही शिवलिंग बनाया गया है। मंदिर का साधारण प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा की तरफ है। (source amar ujala)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड में मौजूद पंच केदारों में से एक तुंगनाथ मंदिर को दुनिया के सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर होने का गौरव प्राप्त है।
यह मंदिर तुंगनाथ माउंटेन रेंज में समुद्र स्तर से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण अर्जुन ने किया था। तुंगनाथ का शाब्दिक अर्थ 'पीक के भगवान' है। इस मंदिर में भगवन शिव के हाथ कि पूजा की जाती है, जो कि वास्तुकला के उत्तर भारतीय शैली का प्रतिनिधित्व करती है। मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर नंदी बैल की पत्थर कि मूर्ति है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव का आरोह है। काला भैरव और व्यास के रूप में लोकप्रिय हिंदू संतों की मूर्तियों भी पांडवों की छवियों के साथ मंदिर में निहित हैं। इसके अलावा, विभिन्न देवी देवताओं के छोटे छोटे मंदिरों को इस मंदिर के आसपास देखा जा सकता है। भारी बर्फबारी की वजह से यह मंदिर नवंबर और मार्च के बीच में बंद रहता है। तुंगनाथ मन्दिर उत्तराखंड के गढ़वाल के चमोली ज़िले में स्थित है। यह मन्दिर भगभान शिव को समर्पित है और तुंगनाथ पर्वत पर अवस्थित है। हिमालय की ख़ूबसूरत प्राकृतिक सुन्दरता के बीच बना यह मन्दिर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। मुख्य रूप से चारधाम की यात्रा के लिए आने वाले यात्रियों के लिए यह मन्दिर बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस मन्दिर से जुडी एक मान्यता यह प्रसिद्ध है कि यहां पर शिव के ह्रदय और उनकी भुजाओं की पूजा होती है। इस मन्दिर की पूजा का दायित्व यहां के एक स्थानीय व्यक्ति को है। समुद्रतल से इस मन्दिर की ऊंचाई काफ़ी अधिक है, यही कारण है कि इस मन्दिर के सामने पहाडों पर सदा बर्फ जमी रहती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान राम ने जब रावण का वध किया, तब स्वयं को ब्रह्माहत्या के शाप से मुक्त करने के लिये उन्होंने यहां शिव की तपस्या की। तभी से इस स्थान का नाम 'चंद्रशिला' भी प्रसिद्ध हो गया।

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उत्तराखंड में मिली 'पाताल' तक जाने वाली गुफा, अंदर शिवलिंग का भंडार

तीन दिन पहले खोजी गई गुफा के भीतर ग्रामीण कौतूहलवश सात किमी अंदर तक जा चुके हैं लेकिन इसके बाद भी ये गुफा खत्म नहीं हुई। ग्रामीणों ने इसके और लंबी होने की संभावना जताई है। गुफा मिलने की सूचना पुरातत्व विभाग को भी दे दी गई है।

http://www.amarujala.com/photo-gallery/dehradun/seven-kilometer-deep-cave-found-in-tiuni-dehradun?pageId=3


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इस प्राचीन मंदिर में देवताओं के साथ होती है दानव की भी पूजा
उत्तराखंड के पौड़ी में स्थित थलीसैण ब्लॉक के एक गांव पैठाणी का धार्मिक महत्व देश के धार्मिक स्थानों से अनोखा माना जाता है, क्योंकि यहां देवता के साथ दानव की भी पूजा की जाती है।लोग कहते हैं कि पैठाणी के मंदिर में सदियों से दानव की पूजा होती आ रही है। पूरे भारत वर्ष में यहां राहू का एकमात्र प्राचीनतम मंदिर स्थापित है। यह मंदिर पूर्वी और पश्चिमी नयार नदियों के संगम पर स्थापित है। यह मंदिर उत्तराखंड के कोटद्वार से लगभग 150 किलोमीटर दूर थलीसैण ब्लॉक के पैठाणी गांव में स्थित है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के दौरान राहू ने देवताओं का रूप धरकर छल से अमृतपान किया था तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शनचक्र से राहू का सिर धड़ से अलग कर दिया, ताकि वह अमर न हो जाए। कहते हैं, राहू का कटा सिर इसी स्थान पर गिरा था। कहते हैं कि जहां पर राहू का कटा हुआ सिर गिरा था वहां पर एक मंदिर का निर्माण किया गया और भगवान शिव के साथ राहू की प्रतिमा की स्थापना की गई और इस प्रकार देवताओं के साथ यहां दानव की भी पूजा होने लगी। वर्तमान में यह राहू मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। धड़ विहीन की राहू की मूर्ति वाला यह मंदिर देखने से ही काफी प्राचीन प्रतीत होता है। इसकी प्राचीन शिल्पकला अनोखी और आकर्षक है। पश्चिममुखी इस प्राचीन मंदिर के बारे में यहां के लोगों का मानना है कि राहू की दशा की शान्ति और भगवान शिव की आराधना के लिए यह मंदिर पूरी दुनिया में सबसे उपयुक्त स्थान है। Source Amar ujala

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भगवान श‌िव के इस मंद‌िर में पहुंचते ही उल्टी बहने लगती है गंगा, कोई नहीं जान पाया रहस्य

एक कहावत है 'उल्टी गंगा बहना'। लेक‌िन यहां यह कहावत एक दम सच हो जाती है। भारत में एक ऐसा मंद‌िर है जहां पर पहुंचते ही गंगा की धारा उल्टी बहने लगती है। कोई भी आज तक इसका रहस्य नहीं जान पाया है। यह मंद‌िर उत्तराखंड में रुड़की के सुल्तानपुर क्षेत्र के पंचेवली गांव स्थित पौराणिक पंचलेश्वर महादेव शिव मंदिर है। जानकारी के मुताब‌िक, पंचलेश्वर महादेव मंदिर काफी प्राचीन है और इसका महाभारत काल में पांडवों से भी संबंध रहा है।आमतौर पर गंगा उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है, जबकि यहां गंगा पूरब से पश्चिम की ओर बहती है। यह स्थान दिव्य है। पौराणिक काल में पांडवों के वंशज यहां मन का पाप धोने के लिए आए थे और इसी स्थान पर गाय के गोबर से बने उपले से खुद को दग्ध कर मुक्ति प्राप्त की थी। इसके अलावा इस स्थान पर अज्ञातवास के दौरान पांच पांडव के आकर ठहरने की भी मान्यता है। कहा जाता है कि यहां पहुंचने वाले लोगों की मन की मुरादें पूरी हो जाती हैं। मंदिर के पुजारी भभूति गिरी ने बताया कि इस पौराणिक स्थान पर हर साल महाशिवरात्रि और गंगा दशहरे पर मेले का आयोजन होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु आकर मत्था टेकते हैं और गंगा में स्नान कर पुण्य कमाते हैं। जानकारों का कहना है कि इसके पीछे भौगोलिक कारण हैं। लेक‌िन करीब आधा किलोमीटर तक पूरब से पश्चिम की तरफ बहने के बाद खुद ही उत्तर से दक्षिण की ओर बहने लगती है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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भारत के इस मंद‌िर में श‌िवल‌िंग पर जलाभ‌िषेक करते हुए द‌िखाई देती है पूरी 'दुन‌िया'

वैसे तो भगवान श‌िव के मंद‌िर कई जगह हैं। लेक‌िन भारत में एक जगह ऐसी है जहां करोड़ों साल पुराना शिवलिंग है। माना जाता है क‌ि इस शिवलिंग में पूरा 'संसार' दिखाई देता है। उत्तराखंड के देहरादून स्थित लाखामंडल में बने इस शिवलिंग का जब भक्त जलाभिषेक करते हैं तो उन्हें सृष्टि का स्वरूप दिखता है। यहां के लोगों का मानना है कि इस शिवलिंग पर अपनी तस्वीर देखने मात्र से सारे पाप कट जाते हैं। प्रकृति की वादियों में बसा यह गांव लाखामंडल देहरादून से 128 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यमुना नदी की तट पर है। दिल को लुभाने वाली यह जगह गुफाओं और भगवान शिव के मंदिर के प्राचीन अवशेषों से घिरा हुआ है। माना जाता है कि इस मंदिर में प्रार्थना करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिल जाती है। यहां पर खुदाई करते वक्त विभिन्न आकार के और विभिन्न ऐतिहासिक काल के शिवलिंग मिले हैं। लाखामंडल महाभारत काल की याद दिलाता है। कहा जाता है कि महाभारत के समय में पांडवों ने अपने वनवास का कुछ समय यहां बिताया था। पाडंवों ने यहां छिपने के लिए लाख का महल 'लाक्षागृह' बनाया था।

यहां से ‌बचकर भागने के लिए पांडवों ने सुरंग बनाई थी। कहा जाता है कि यह सुरंग हस्तिनापुर तक पहुंचती है। इसे सुरक्षा कारणों को देखते हुए अब बंद करवा दिया गया है। यहां शिव की लाखों मूर्तियां मिलती हैं। दो फुट की खुदाई करने से ही यहां हजारों साल पुरानी कीमती मूर्तियां निकल आती हैं। इसी कारण इस स्‍थान को आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की निगरानी में रखा गया है। इसी कारण लाखा मंडल में नए निर्माण पर रोक लगाया गया है। परिस्थितियों के मुताबिक कभी भी इस जगह को खाली करवाया जा सकता है। यहां कुछ दूर पर लाक्षागृह गुफा है। जहां शेषनाग के फन के नीचे प्राकृतिक शिवलिंग के ऊपर टपकता पानी यहां की खासियत है।

देहरादून से 125 किमी दूर यमुना किनारे ‌मौजूद लाखामंडल में हल्की खुदाई करने पर कदम-कदम पर शिव लिंग निकलते हैं। देहरादून से 125 किमी दूर यमुना किनारे ‌मौजूद लाखामंडल में हल्की खुदाई करने पर कदम-कदम पर शिव लिंग निकलते हैं।
(अमर उजाला इन तथ्यों की तस्दीक नहीं करता है। यह केवल मान्यताओं के आधार पर पेश क‌िए गए हैं।)


Bhishma Kukreti

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कमलेश्वर महादेव मंदिर
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सरोज शर्मा- जनप्रिय गढ़वाली लेख,


देवभूमि गढ़वाल क अति प्राचीनतम शिवालयो मा एक महत्वपूर्ण शिवालय कमलेश्वर महादेव मंदिर च,ऐ मंदिर क पार्श्व भाग म गणेश और शंकराचार्य कि मूर्ति छन, मुख्य मंदिर क एक और कमरा म सरस्वती, गंगा और अन्नपूर्णा कि धातू कि मूर्ति छन। नन्दी कि
 एक बड़ी कलात्मक पितल कि मूर्ति मुख्य मंदिर से संलग्न एक कमरा म स्थित च, मंदिर म हि मदमहेश्वर महादेव क पित्तल कु एक मुखौटा भि च।प्रसिद्ध च कि कमलेश्वर महादेव मंदिर कि रचना मूलरूप से शंकराचार्य न करै। और जीर्णोद्धार उद्योग पति बिड़ला जी न करै।
स्कन्दपुराण क केदारखण्ड क अनुसार त्रेतायुग मा भगवान राम न जब रावण क बध कैरिक ब्रह्म हत्या क पाप से कलंकित हूंई त गुरू वशिष्ठ जी की आज्ञानुसार वू भगवान शिव कि उपासना खुण देवभूमि क ऐ स्थान म अंई ,और सहस्त्र कमलों द्वारा भगवान शिव कि उपासना कैर इलै ऐ स्थान कु नौं कमलेश्वर महादेव प्वाड़।
कमलेश्वर म मुख्य रूप से तीन उत्सव हुंदिन 1 -अचला सप्तमी 2 -शिवरात्री 3- बैकुंठ चतुर्दशी
बैकुंठ चतुर्दशी क दिन यख विषेश उत्सव हूंद ऐ समय संतान प्राप्ति क इच्छुक स्त्रियां प्रज्वलित दीपक हाथ मा लेकि खड़ी रै कि भगवान शिव कि स्तुति करदिन, प्रातः काल दीपक अलकनंदा मा प्रभावित कनक बाद शिव पूजन करदिन। वन त तिन्या अवसरों मा श्रधालुओ कि भीड़ रैंद, पर बैकुंठ चतुर्दशी क अवसर म भौत भीड़ हूंद म्याला क रूप ले लींद,चार दिन तक चलण वल ऐ पर्व क अब धार्मिक सांस्कृतिक विकास मेला क रूप देकि प्रशासन की ओर से आयोजित किए जांद।
ऐ दफा पूजा क आयोजन दिनांक 10 नवंबर-2019 (रविवार) म किऐ ग्या, जैमा जगा -जगा से दंपति ऐकि सम्मलित पूजन करदिन। पूजन कराण कु रजिस्ट्रेशन भि हूंद।


Bhishma Kukreti

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ताड़केश्वर महादेव
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सरोज शर्मा- जन प्रिय लेख
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गढ़वाल क प्राचीन शिव मंदिरों मा ताड़केश्वर महादेव कु अति महत्व च। पौड़ी जनपद का जहरीखाल विकास खंड क अंतर्गत लैंसडौन डेरयाखाल-रिखणीखाल मार्ग पर स्थित चखुलाखाल नौ क गौं से लगभग 4 किलोमीटर दूर, समुद्र तल से लगभग 6000 फीट कि ऊंचै पर भौत ही रमणीक शांत और पवित्र स्थान च।
गगनचुम्बी देवदार क वृक्षो से आच्छादित 5 किलोमीटर फैलयां जंगल क बीच म ताड़केश्वर धाम आध्यात्मिक चेतना, धर्म परायणता वा सहिष्णुता क उत्कृष्ट आस्था केन्द्र च।
ग्वाड़झिण्डी और ग्वारजलोटा पर्वत श्रंखलाओ की सुन्दरता दय्खदा ही बणद। महाकवि कालीदास न भि अपण रचना रघुवंश खंड काव्य का दुसर चरण म ताड़केश्वर धाम कु मनमोहक वर्णन कैर।
हिन्दू धर्म ग्रन्थ रामायण म ताड़केश्वर धाम क वर्णन एक दिव्य और पवित्र आश्रम क रूप मा कैर।
ब्वलेजांद कि ताड़कासुर क वध करण क बाद भगवान शिव न यख विश्राम कैर सूर्य कि किरण कि तपन से बचाण कु पार्वती न देवदार का सात वृक्ष लगैन। आज भि ई वृक्ष मंदिर क अहाता म छन।
स्कन्दपुराण क केदारखण्ड म विष गंगा और मधुगंगा नौ क द्वी नदियों क उल्लेख मिलद, यूं नदियों क उद्गम स्थल ताड़केश्वर धाम हि च।श्रद्धालु शिव भक्त और स्थानीय भक्त गण यख हर साल दर्शनार्थ अंदिन।
सन 1946 मा माहेश्वरी दास बाबा द्वारा स्थापित "माहेश्वरी दास मेडिटेशन आश्रम "व 1955 म स्थापित स्वामीराम साधना मंदिर भि परिसर क नजदीक हि च जख प्रतिवर्ष सैकड़ो कि संख्या मा श्रद्धालु ध्यान, योग साधना पूजा-पाठ, अनुष्ठान व कर्म काण्ड क अध्ययन खुण अंदिन।


Bhishma Kukreti

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किंकालेश्वर महादेव-कंडोलिया पौड़ी
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सरोज शर्मा- जनप्रिय लेख

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सम्पूर्ण उत्तराखंड देवभूमि क नाम से विख्यात च। ऋषि मुनियो की या पुण्य भूमि आज भि देव द्यपतो क नाम पर प्रतिष्ठित मंदिरो थैं अपणि गोद मा आश्रय देकि भारतीय संस्कृति थैं पोषित कनी च। पुरण जमना से ही भक्त गण अपण निष्ठा और भावना से अपण ईष्ट देव कि उपासना करदा छन।यख क जन-मानस शाक्त और शैव धर्म थैं मनणवल राई।ई कारण च कि ऐ तपोभूमि मा सर्वत्र शक्ति पीठ शिवालय विधमान छन।
उत्तराखंड क यूं मुक्ती धामों मा किंकालेश्वर महादेव कि महत्ता अद्वितीय च।
सिध्द पीठ किंकालेश्वर मंदिर गढ़वाल मुख्यालय पौड़ी म लगभग 2200 मीटर क ऊंचै मा घंणा देवदार, बांज, बुरांस, सुरै आदि क वृक्षो से सुशोभित च।
पौड़ी से कार, टैक्सी से लगभग 2.5 किलोमीटर क सफर तय कैरिक पौछदा छन। यख क हिमालय कि लम्बी पर्वत श्रंखलाओ कि हिमाच्छादित चोटी जैमा चौखम्बा, त्रिशूल, हाथी पर्वत, नंदा देवी, त्रिजुगी नारायण, श्री बद्री केदार क्षेत्र प्रमुख छन। जु कि स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हुंदिन।
ऐ पवित्र स्थल क विषय म स्कन्दपुराण का केदार खण्ड मा लिख्यूं च कि ई स्थान कीनाश पर्वत पर स्थित च यख यमराज न भगवान शिव कि घोर तपस्या कैर तदुपरांत शिवजी न वर द्या कि कलयुग म मि गुप्त रूप से प्रकट हूंल और म्यांर नौ किंकालेश्वर, मुक्तेश्वर आदि ह्वाल।
मि कलयुग म भक्तो थैं मुक्ति प्रदान करलू। वर्तमान म कंकालेश्वर क अपभ्रंश किंकालेश्वर या क्यूंकालेश्वर च।
मंदिर क महंत चैतन्यान्नद जी न मठ थैं नै रूप द्या। जै क अंतर्गत पर्यटको थैं ठैरणा कि उचित व्यवस्था च। मंदिर कि सुन्दरता यख आणवल पर्यटको खुण आश्चर्य से कम नी, पैल मंदिर से अतिरिक्त रैणा कि व्यवस्था मंदिर परिसर से हटिक 200 गज ऊंची पहाड़ी म छै, जैक भग्नावेश आज भि छन। मंदिर क नजदीक धूनि भवन क अतिरिक्त क्वी भि अतिरिक्त भवन नि छाई, ई भवन लगभग 205 वर्ष पुरण बतयै जांद, हरि शर्मा मुनी जी ऐ क्षेत्र का प्रकांड विद्वान मा गिणै जांद छा, ऊंकि विद्वता क कारण किंग जार्ज पंचम क समय ऊंथैं महामहोपाध्याय कि उपाधि से विभूषित किऐ ग्या।
ब्वलेजांद कि वै समय मा क्वी वैदिक व्यवस्था,शिक्षण संस्थान नि छा, वैदिक शिक्षा कि आवश्यकता क अनुभव कैर क षडांग वेद शिक्षा प्रदान कनकि महंत हरि शर्मा मुनि जी न गंगा दशहरा बृहस्पतिवार 9 जून 1870 म गुरूकुल पद्धति अनुरूप संस्कृत विद्यालय की स्थापना कैर,
महंत श्री धर्मान्नद शर्मा मुनि जी क योगदान से ऐथैं 1928 मा क्वींस कालेज (वर्तमान म संपूर्णान्नद संस्कृत विधालय) वाराणसी से संबद्ध करवै, आज भि ई संस्था निशुल्क शिक्षा, भोजन, और आवास कि सुविधा छात्रों थैं दींद। मंदिर जाणक द्वी मार्ग छन, पैल कंडोलिया-रांसी-किंकालेश्वर मार्ग जु कि हल्का वाहनो खुण ठीक च, दूसर पैदल मार्ग जु एजेन्सी से आरंभ ह्वै कि मंदिर तक जांद, ऐकि लम्बाई द्वी किलोमीटर च। यख जन्माष्टमी और शिव रात्री मा श्रधालुओ कि भीड़ लगीं रैंद। श्रावण मास म भि भक्त जन शिवलिंग म दूध और जल चढाण कु अंदिन। ई पौराणिक स्थल धार्मिक पर्यटन कि दृष्टि से महत्वपूर्ण च।


Bhishma Kukreti

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किलकिलेश्वर महादेव चौरास श्रीनगर
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सरोज शर्मा- जन प्रिय लेख

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गढ़वाल क पांच मह्त्वपूर्ण शिव सिद्ध पीठों म किलकिलेश्वर,क्यूंकालेश्वर, बिनदेश्वर, एकेश्वर, ताड़केश्वर, क प्रमुख स्थान च।
श्रीनगर क ठीक समणि अलकनंदा क तट पर विशाल चट्टान पर स्थित यु मंदिर युगों बटिक अलकनंदा क गर्जन तर्जन सुनणू च।
श्रीनगर स्थित कमलेश्वर मंदिर क तरह ही किलकिलेश्वर मठ की प्राचीनता और पौराणिक मान्यता च ।
केदारखण्ड पुराण से वर्णन क अनुसार महाभारत काल म पाशुपात अस्त्र की प्राप्ति खुण इंद्रकील पर्वत पर अर्जुन न तपस्या कैर छै।
अर्जुन क पराक्रम कि परीक्षा लीणकु भगवान शिव न किरात (भील) क रूप ल्या, और अर्जुन से युद्ध कैर। युद्ध क समय किरात रूपी गणों क किलकिलाण क स्वर चारों ओर गुजंण लगी, ऐ से ही ऐ स्थान क नाम किलकिलेश्वर प्रसिद्ध ह्वाई
एक भगीरथी नौ क किरात छा वैकि प्रमुख सहायक भिलंगना (भील गंगा)और अलकनंदा क मध्य क्षेत्र म भील राज्य छाई, और संभवत उत्तराखंड आगमन पर अर्जुन क संघर्ष सुअर क शिकार करद दा भीलोंसे ह्वा ह्वाल। वर्तमान मंदिर विशाल मंदिर च गर्भ गृह का तीन और प्रवेश द्वार छन, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर। किलेकि पश्चिम दिशा क प्रवेशद्वार क शीर्ष मे शिलालेख लगयूं च इलै ऐ थैं हि प्रवेश द्वार ब्वलेजांद ।मंदिर म भैरवलिंग स्थापित च मुख्य मंदिर क अंदर आठ इंच ऊंचू शिवलिंग क चारोंतरफ लकड़ी का आठ खंबो म काष्ठ कला कु एक भौत सुंदर मंदिर बण्यू च। मंदिर क भितर गणेश कि ढाई फिट ऊंन्ची चतुर्भुजी मूर्ति भौत सुंदर च, मंदिर परिसर मा हि पूर्व दिशा कि ओर मुख कियूं पूंछ अगल भाग उठयूं बड़ सिंह लगभग एक हजार वर्ष प्राचीनता क स्मारक च।


 

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