Author Topic: Famous Shiv Temples In Uttarakhand - उत्तराखंड मे महादेव के प्रसिद्ध मन्दिर  (Read 95371 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shivalay in Lohaghat


Photo by Sudhir Chaturvedi

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parkasheshwar Temple

20 kms. From the Mussoorie on Dehradun road. A famous Temple of Lord Shiva is an ideal spot on the road to Dehradun. It is located in the middle of a Hill Valley.

पंकज सिंह महर

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हजारों लोगों की भीड़ महादेव की जय-जयकार करते हुए विशाल मंदिर की ओर प्रस्थान कर रही है। लोग श्री बिनसर महादेव के दर्शन को बेचैन हो रहे हैं। हालांकि मंदिर के द्वार सर्दी, गरमी और बरसात तीनों मौसमों में खुले रहते हैं, लेकिन उस दिन लोगों की भीड़ का अंदाजा लगाना बड़ा मुश्किल था। कुछ लोग हाथों में पूजा की थाल लिए हुए प्रतीक्षा कर रहे थे, कुछ नंगे पांव तेजी से कदम बढ़ाते हुए मंदिर की ओर जा रहे थे, तो कुछ लोग महादेव की भक्ति भावना में लीन होकर नाच रहे थे।
      फिर अचानक मंदिर का मेन गेट खुला और शिवलिंग से परदा हटाया गया। अब तक अपने महादेव के दर्शन के लिए खड़ी भक्तजनों की भीड़ अधीर होने लगी थी। वे महिलाएं जो कि काफी समय से हाथ में जल लेकर खड़ी थीं, धीरे-धीरे जल चढ़ाने लगीं। सभी महिलाएं रंगीन पिछौड़ा ओढ़े हुए थीं। यह दृश्य देखने लायक था।
कुछ समय बाद लंबी दाढ़ी-मूछों और गेरुए रंग के वस्त्र धारण किये हुए एक महात्मा शिवलिंग के चक्कर लेने लगे। उनके पीछे-पीछे सारे भक्त महादेव की जय-जयकार करते हुए फेरे ले रहे थे।
आज श्रीमद्‌ भागवत की कथा का भण्डारा था। इसलिए अन्य दिनों की अपेक्षा भीड़ अधिक थी। लाखों श्रद्धालु बिनसर महादेव की पूजा-अर्चना कर अपने मंगलमय भविष्य की कामना कर रहे थे। महादेव के भण्डारे के प्रसाद के लिए अमीर-गरीब आपस में बिना भेद-भाव किये जमीन पर बैठे थे।
यह भक्तिपूर्ण दृश्य श्री बिनसर महादेव के मंदिर का है। श्री बिनसर महादेव का मंदिर अल्मोड़ा जिले की पर्यटन नगरी रानीखेत से केवल 14 किमी दूर स्थित है। यह घने जंगलों में बाज बुरांस, चीड़ तथा देवदार के पेड़ों से घिरा हुआ एक सुगम्य स्थल है। मंदिर सफेद पत्थरों से बनाया गया है।
यहां के शांत वातावरण, प्राकृतिक सौंदर्य और शिव की महिमा को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है। यह शिव मंदिर कभी एक छोटे से शिवालय के नाम से जाना जाता था लेकिन आज वही शिवालय विशाल शिव मंदिर बन चुका है। इसके पीछे एक प्रचलित कथा यह है कि यह शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था। एक बार मनिहार नाम के कम बुद्धि वाले एक ग्वाले ने अपनी कुल्हाड़ी से उस पर वार कर दिया। ऐसा उसने इसलिए किया क्योंकि उसकी एक गाय रोज संध्या काल में उस पत्थर पर आती थी। वहां गाय के थनों से अपने आप दूध की धाराएं निकलकर उस पत्थर पर गिर जाती थीं। एक दिन जब मनिहार ने यह दृश्य देखा तो इसी पत्थर को गाय के दूध न देने का दोषी मान कर अपनी कुल्हाड़ी से प्रहार किया। पत्थर का टुकड़ा अलग हो गया और अचानक क्षतिग्रस्त हिस्से से रक्त की धारा बहने लगी। इस घटना को लगभग 500 साल हो चुके हैं, लेकिन इस विशाल शिवलिंग में प्रहार के कारण एक जगह से भंग होने का निशान आज भी है।
श्री बिनसर महादेव के विशाल शिव मंदिर में महादेव स्वर्गाश्रम, गीता भवन, दत्तात्रेय मंदिर, काल भैरव मंदिर, पूजा गृह, यज्ञशाला, धर्मशालाएं, व्यास मंच, महारा की धूनी आदि सम्मिलित हैं। मंदिरों में सुन्दर मूर्तियां प्रतिष्ठापित की गयी हैं। गीता भवन के ऊपर संपूर्ण कलाओं से युक्त भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए दर्शाये गए हैं। संपूर्ण रथ के साथ घोड़ों की सुन्दर कलाकृतियां, अत्यंत कुशलता से बनायी गई हैं। गीता भवन के अन्दर श्रीमद्‌ भागवत गीता के सभी अट्‌ठारह अध्याय मूल श्लोक, अर्थ, प्रसंग व चित्रों के साथ अंकित किए गए हैं। कुछ भूमिगत कक्ष भी एकांत साधकों के लिए र्निमित हैं। ब्रह्‌मलीन महंत शरणगिरि की स्मृति में आज भी एक गुरुकुल विालय चल रहा है।
बिनसर महादेव अब श्री बिनसर महादेव स्वर्गाश्रम के नाम से उत्तर भारत का प्रसिद्ध आस्था स्थल बन चुका है। वर्ष भर चलने वाले र्धमिक आयोजनों में यहां लाखों श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। बिनसर महादेव शिव के चमत्कार से ही झाडि़यों में छिपा यह शिवलिंग आज विशाल मंदिर का रूप ले चुका है। बिनसर एक रमणीय स्थल भी है। यहां कई फिल्मों और धारावाहिकों की शूटिंग भी हुई है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Pinakeshwar Mahadev.

Pinakeshwar, at an altitude of 9050 feet, is about 20 km from Kausani. A temple dedicated to Lord Shiva is the main attraction here. Pinakeshwar also provides a panoramic view of the valleys around.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Shri Koteshwar Mahadev Temple in Rudarprayag

Situated at an altitude of 1,428 m, Shri Koteshwar Mahadev temple has a great following among childless couples. Lord Shiva is worshipped here in the form of a Shivling. According to a legend, a village woman had inadvertently hit a Shivling while digging. Divine voices were then heard, directing people to construct a Shiva temple there. Thus, Koteshwar Mahadev temple was built. It is believed that childless couples who chant the Mahamrityunjaya Mantra with full faith and devotion here will have their wishes granted. Another popular belief is that during Navratri, Goddess Durga roves around, seated upon her vehicle, lion.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड के गढ़वाल में भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में प्रसिद्ध केदरानाथ धाम के अलावा चार अन्य मंदिर कल्पेश्वर, रुद्रनाथ, तुंगनाथ और मदमहेश्वर भी हैं, जिनमें महादेव के विभिन्न अंगों की पूजा की जाती है। इन मंदिरों को सम्मिलित रूप से ‘पंचकेदार’ के नाम से जाना जाता है।
उत्तराखंड के गढ़वाल में भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में प्रसिद्ध केदरानाथ धाम के अलावा चार अन्य मंदिर कल्पेश्वर रुद्रनाथ तुंगनाथ और मदमहेश्वर भी हैं जिनमें महादेव के विभिन्न अंगों की पूजा की जाती है। इन मंदिरों को सम्मिलित रूप से पंचकेदार

कल्पेश्वर में भगवान शिव की जटा, रुद्रनाथ में मुख, तुंगनाथ में भुजा और मदमहेश्वर में नाभि की पूजा का विधान है। कहा जाता है कि दुर्वासा ऋषि ने कल्पवृक्ष के नीचे घोर तपस्या की थी। तभी से यह स्थान कल्पेश्वर या कल्पनाथ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। श्रद्धालु 2134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कल्पेश्वर मंदिर तक 10 किलोमीटर की पैदल यात्रा करने के बाद उसके गर्भगृह में भगवान शिव की जटा जैसी प्रतीत होने वाली चट्टान पर पहुंचते हैं। गर्भगृह तक पहुंचने का रास्ता एक प्राकृतिक गुफा से होकर गुजरता है।
कल्पेश्वर में भगवान शिव की जटा रुद्रनाथ में मुख तुंगनाथ में भुजा और मदमहेश्वर में नाभि की पूजा का विधान है। कहा जाता है कि दुर्वासा ऋषि ने कल्पवृक्ष के नीचे घोर तपस्या की थी। तभी से यह स्थान कल्पेश्वर या कल्पनाथ के नाम से प्रसिद्ध हो गया। श्रद्धालु 2134 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कल्पेश्वर मंदिर तक 10

रुद्रनाथ मंदिर समुद्र तल से 2,286 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक गुफा में स्थित है, जिसमें भगवान शिव की मुखाकृति की पूजा-अर्चना की जाती है। श्रद्धालुओं को एक किलोमीटर की दूरी से ही भगवान रुद्रनाथ के दर्शन हो जाते हैं। रुद्रनाथ के लिए एक रास्ता उर्गम गांव से होकर द्रमुक गांव से गुजरता है लेकिन यह मार्ग कुछ कठिन होने के कारण श्रद्धालुओं को वहां तक पहुंचने में दो दिन लग जाते हैं। इसलिए तीर्थयात्री दूसरे मार्ग से रुद्रनाथ जाना पसंद करते हैं जो गोपेश्वर के समीप सगर गांव से गुजरता है।
रुद्रनाथ मंदिर समुद्र तल से 2,286 किलोमीटर की ऊंचाई पर एक गुफा में स्थित है जिसमें भगवान शिव की मुखाकृति की पूजा-

रद्रनाथ मंदिर की चारों दिशाओं में सूर्यकुंड, चंद्रकुंड, ताराकुंड और मानसकुंड नामक चार कुंड हैं। मंदिर से पर्वत श्रृंखलाओं के बीच नंदा देवी, त्रिशूल, नंदा घुंटी और दूसरी चोटियां दिखाई देती हैं जिनसे यह स्थान किसी देवलोक जैसा प्रतीत होता है। मंदिर के प्रांगण की सीढ़ियों के पास एक छोटा जलस्रोत है, जिसे नारद कुंड के नाम से जाना जाता है।
रद्रनाथ मंदिर की चारों दिशाओं में सूर्यकुंड चंद्रकुंड ताराकुंड और मानसकुंड नामक चार कुंड हैं। मंदिर से पर्वत श्रृंखलाओं के बीच नंदा देवी त्रिशूल नंदा घुंटी और दूसरी चोटियां दिखाई देती हैं जिनसे यह स्थान किसी देवलोक जैसा प्रतीत होता है। मंदिर के प्रांगण की सीढ़ियों के पास एक छोटा जलस्रोत है

धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर इसी स्थान पर उसका आत्मा वैतरणी पार करता है। इसके बाद ही वह आत्मा दूसरे जीवन में प्रवेश करता है। इसीलिए श्रद्धालु अपने पूर्वजों के क्रिया, कर्म, तर्पण तथा उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए रुद्रनाथ मंदिर में जाते हैं।
धार्मिक और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर इसी स्थान पर उसका आत्मा वैतरणी पार करता है। इसके बाद ही वह आत्मा दूसरे जीवन में प्रवेश करता है। इसीलिए श्रद्धालु अपने पूर्वजों के क्रिया कर्म

पंचकेदार में तुंगनाथ मंदिर सबसे अधिक समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जहां भगवान शिव की भुजा रूप में पूजा-अर्चना की जाती है। चंद्रशिला चोटी के नीचे काले पत्थरों से निर्मित यह मंदिर हिमालय के रमणीक स्थलों में सबसे अनुपम है।
पंचकेदार में तुंगनाथ मंदिर सबसे अधिक समुद्र तल से 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है जहां भगवान शिव की भुजा रूप में पूजा-

चौखम्बा शिखर की तलहटी में 3,289 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मदमहेश्वर मंदिर में भगवान् शिव की पूजा-अर्चना नाभि लिंगम के रूप में की जाती है। उत्तर भारतीय वास्तुकला शैली में निर्मित इस मंदिर के आसपास प्राकृतिक सुषमा दर्शनीय है। पौराणिक कथा के अनुसार नैसर्गिक सुंदरता के कारण ही शिव.पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि (सुहागरात) यहीं मनाई थी।
चौखम्बा शिखर की तलहटी में 3,289 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मदमहेश्वर मंदिर में भगवान् शिव की पूजा-अर्चना नाभि लिंगम के रूप में की जाती है। उत्तर भारतीय वास्तुकला शैली में निर्मित इस मंदिर के आसपास प्राकृतिक सुषमा दर्शनीय है। पौराणिक कथा के अनुसार नैसर्गिक सुंदरता के कारण ही शिव.पार्वती ने मधुचंद्र रात्रि (सुहागरात)

प्रचलित धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां का जल इतना पवित्र है कि इसकी कुछ बूंदें ही ‘मोक्ष प्राप्ति’ के लिए पर्याप्त मानी जाती हैं। मंदिर से केदारनाथ और नीलकंठ की पर्वत श्रेणियां दिखाई देती हैं।
प्रचलित धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां का जल इतना पवित्र है कि इसकी कुछ बूंदें ही मोक्ष प्राप्ति

मदमहेश्वर जाने के लिए एक रास्ता गोंडार से खड़ी चढ़ाई का है और दूसरा रास्ता मनसूना (ऊखीमठ के पास) से भी गुजरता है।
मदमहेश्वर जाने के लिए एक रास्ता गोंडार से खड़ी चढ़ाई का है और दूसरा रास्ता मनसूना (ऊखीमठ के पास)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Parkasheshwar Temple

A famous temple dedicated to Lord Shiva, is just 20 kms from Mussoorie on Dehradun Road. It is an ideal picnic spot as situated on the Mussoorie-Dehradun Road and located in the Modest of Hill Valley. During Shivratri the temple is visited by numerous devotees from the nearby areas

renu rawat

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aapne yahan NEEL KANTH MAHA DEV KE BAARE MAI NAHI LIKHA.

NEELKANTH MAHADEV  mandirRISHIKESH MAI HAI..

renu rawat

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   Neelkanth Mahadev is quaint spot abounds in religious fervour, mythological significance and picturesque surroundings. According to legends this place has derived its name from Lord Shiva. It is believed that it was here that Lord Shiva consumed the venom, which came out during the "Samundra Manthan". Due to this his throat become blue in color which in Hindi means 'NEELKANTH' hence this place is famous as Neelkanth Mahadev. Here centuries old temples reserve in their fold the celestial aura and the legendary ambience you are looking for. At 926 Mts. amidst three valleys (Vishnukoot, Brahmakoot and Manikoot) and on the confluence of Madhmati and Pankaja rivers awaits Neelkanth Mahadev. Neelkanth Mahadev is 12 Kms. from Swargashram.


Devbhoomi,Uttarakhand

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नीलकंठ महादेव मंदिर नैलचामी टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड

 

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