Author Topic: Famous Shiv Temples In Uttarakhand - उत्तराखंड मे महादेव के प्रसिद्ध मन्दिर  (Read 95888 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
नीलकंठ महादेव मंदिर नैलचामी टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड



Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
नीलकंठ महादेव मंदिर, शिवपुरी,नैलचामी टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
भगवान कमलेश्वर महादेव

देवभूमि उ8ाराखंड में विमान विश्ववि2यात चार धाम के अलावा सैकड़ों मठ, मंदिर और श1ितपीठ यूं तो श्रद्धालुओं की तमाम मनोकामनाएं पूणर््ा करने वाले हैं लेकिन यहां दो देवस्थल ऐसे भी हैं जहां नि:संतान दंपतियों की संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है। ये दो देवस्थान हैं चमोली जनपद स्थित सती मां अनुसुइया मंदिर और पौड़ी जनपद में श्रीनगर स्थित भगवान कमलेश्वर महादेव का मंदिर।

प्रतिवर्ष कार्तिक शु1ल चतुर्दशी त्रिपुरोत्सव पूर्णिमा को कमलेश्वर मंदिर में दीप अनुष्ठान करने वाले दंपतियों की गोद को कमलेश्वर महादेव पुत्र रत्न से भरते हैं।

ऐसे पड़ा कमलेश्वर नाम पुरुषो8ाम भगवान राम रावण वध के बाद ब्रह्मï हत्या के पाप से मु1त होने के लिए गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से उ8ाराखंड की यात्रा पर आए। मानसरोवर से एक सहस्त्र कमल पुष्प लाकर श्रीराम शिव सहस्त्रनाम से शिल्हेश्वर शिव को एक-एक कर पुष्प चढ़ाने लगे। राम की परीक्षा के लिए भगवान शिव ने एक कमल पुष्प छिपा लिया। 999 पुष्प चढ़ाने के बाद एक पुष्प कम देखकर भगवान राम धर्म संकट में पड़ गए कि एक हजार कमल पुष्प चढ़ाने का उनका संकल्प कैसे पूरा हो? श्री राम ने सोचा कि मेरा भी तो एक नाम कमलनयन है, 1यों न मैं अपनी एक आंख शिव को अर्पितकर अपना संकल्प पूरा कर लूं। यह सोच जैसे ही श्री राम अपनी आंख निकालने को उत हुए। राम भ1ित से प्रसन्न शिव ने छुपाए कमल को उनके हाथ में रख दिया। तभी से शिल्हेश्वर शिव पुत्र वरदायनी कमलेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो गए। कमलेश्वर का बैकुंठ चतुर्दशी मेलाबैकुंठ चतुर्दशी मेला पूरे उ8ाराखंड का प्रसिद्ध मेला है। यह मेला प्रतिवर्ष कार्तिक शु1ल चतुर्दशी त्रिपुरोत्सव पूर्णिमा को लगता है। चतुर्दशी की रात्रि को कमलेश्वर मंदिर में होने वालेे दीप अनुष्ठान और पूजा-अर्चना ही नि:संतान दंपतियों की गोद भरने वाला अनुष्ठान होता है। संतान की कामना पूजाचतुर्दशी और पूर्णिमा को पवित्र भाव से निराहार व्रत रखकर दीप पूजा का संकल्प लेते हुए प्रदोषकाल सें सूर्योदय तक मंदिर परिसर में खड़े रहकर शिव का जप करते हुए हाथों में चावल केऊपर 360 वर्तिका यु1त प्रज्जवलित घी का दीपक रखते हैं। नि:संतान पत्नी मु2य रूप से इस प्रक्रिया को पूरा करती है। पत्नी के थकने पर उसका पति उसकी सहायता करता है। पूर्णिमा की सुबह घृत दीपों को कमलेश्वर महादेव को समर्पित किया जाता है। इसके बाद मंदिर के पास बह रही पवित्र अलकनंदा में स्नान कर दंपति मंदिर के महंत से प्रसाद लेकर अपने घरों को प्रस्थान करते हैं। संतान की मनोकामना पूर्ण होने पर दंपति तीन या पांच साल में बच्चे को लेकर मंदिर में पहुंचते हैं और बच्चे के हाथ से महादेव की पूजा संपन्न कराते हैं। इस वर्ष यहां 11 नवंबर को संतान की कामना के लिए नि:संतान दंपति यहां दीप अनुष्ठान करेंगे। इसके लिए यहां मंदिर केमहंत के पास नि:संतान दंपतियों को एक- दो माह पहले पंजीकरण करना पड़ता है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Daksh mahadev

Daksheswara Mahadev is a Hindu temple located in the town of Kankhal, Uttarakhand, India. The present temple was built by Queen Dhankaur in 1810 AD and rebuilt in 1962.




The mythological story about this place is that King Daksha Prajapati, the father of Sati, Lord Shiva 's first wife, performed yagya at this place. Daksha Prajapati did not invite Lord Shiva, and Sati felt insulted. Therefore she burnt herself in the yagya kund. Shiva burned with anger, sent the terrible demi-god Vīrabhadra, Bhadrakali and also his ganas [1]. On the direction of Shiva, Virabhadra appeared with Shiva's ganas in the midst of Daksha's assembly like a storm wind and waged a fierce war on the gods and mortals present culminating in the beheading of Daksha, and later being bestow the head of a goat. Next to the temple is the 'Daksha Ghat' on the Ganga, and close by is the Nileshwar Mahadev Temple. Much of the details of the famous Ashvamedha Yagna (Horse Sacrifice) of Daksha are available in the Vayu Purana


http://en.wikipedia.org/wiki/Daksh_mahadev

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
कल्पेश्वर

यह वह स्थान है जहां भगवान शिव के केश प्रकट हुए थे. यह स्थान अप्सरा उर्वशी और क्रोधी ऋषि दुर्वासा, जिन्होंने वरदान देने वाले कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या की थी, के लिए प्रसिद्ध है. यहां साधु अर्घ्य देने के लिए पूर्व प्रण के अनुसार तपस्या करने आते हैं. तीर्थ यात्री 2134 मीटर की ऊंचाई पर, एक पहाड़ पर स्थित मंदिर में पूजा करते हैं, जिसका रास्ता एक प्राकृतिक गुफा से होकर जाता है. तीर्थयात्री मंदिर में चट्टान में स्थित, भगवान शिव की जटाओं की पूजा करते हैं. मंदिर तक पहुंचने के लिए गुफा के अंदर एक किमी चलना पड़ता है.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
Kandoliya Shiva temple
----------------------

Kandoliya Shiva temple - also known as Kandolia Devta Mandir - is located in the dense oak and pine forests of Kandolia Hill, two kilometers from Pauri. Asia's highest Stadium at Ransi is nearby.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
बूढ़ाकेदार: 

नई टिहरी। उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। बदरी, केदार, गंगोत्री और यमुनोत्री चार धामों के यहां स्थित होने से यह देश भर के करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र भी है, लेकिन राज्य में ऐतिहासिक, पौराणिक मंदिरों की परंपरा इन्हीं चार धामों पर खत्म नहीं होती, बल्कि यहां कई ऐसे मंदिर स्थित हैं, जिनका धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इन्हीं में से एक है टिहरी जनपद स्थित बूढ़ाकेदार। मान्यता के मुताबिक यही वह स्थान है, जहां कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद पांडवों को गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। हर वर्ष यहां हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन अधिक प्रसिद्ध न मिलने से यह उपेक्षित सा है। अब स्थानीय लोगों ने बूढ़ाकेदार को पांचवां धाम घोषित करने की मांग शुरू कर दी है।

केदारखंड में वर्णित मान्यता के आधार पर गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति लिए पांडव शिव दर्शन के लिए उत्तराखंड आए थे। इस स्थान पर शिव ने उन्हें बूढ़े व्यक्ति के रूप में दर्शन दिए और उन्हें गोत्र हत्या से मुक्ति दी। तभी से यह स्थान नाम बूढ़ाकेदार नाम से प्रसिद्ध हुआ। भारी संख्या में यात्रियों के आवागमन से चार धाम यात्रा वाले जनपदों के विकास पर सरकार की खास नजर रहती है। इसी के चलते टिहरी जनपद में भी विभिन्न क्षेत्रों की जनता अपने देवी-देवता और नदियों के संगम, उद्गम स्थल को पांचवें धाम की मान्यता दिलवाने क लिए वक्त-वक्त पर आवाज उठाते रहे हैं, लेकिन उनकी यह मांग पूरी होती नजर नहीं आ रही है। जनपद में कई पौराणिक तीर्थ स्थल हैं इनकी महत्ता वेदों व पुराणा में भी वर्णित है। जनपद के पौराणिक धाम बूढ़ाकेदार की बात करें, तो पूर्व में यह चार धाम यात्रा का प्रमुख पड़ाव था। उस समय देश व विदेश के श्रद्धालु व पर्यटक यहीं से होकर चार धाम यात्रा पूरी करते थे। मान्यता है कि चारों धाम के साथ यदि बूढ़ाकेदार के दर्शन नहीं किए, तो यात्रा अधूरी मानी जाती है, लेकिन चारों धाम के लिए सड़क सुविधा उपलब्ध होने के बाद यह स्थान यात्रा मार्ग से अलग-थलग पड़ गया। अब चार धाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालु भी कम संख्या में इस ओर रुख करते हैं। इसके चलते मंदिर क्षेत्र का पर्याप्त विकास भी नहीं हो सका है। यही वजह है कि लोग इसे पांचवें धाम की मान्यता दिलाने के लिए आवाज उठाते आ रहे हैं। यहां उल्लेखनीय है कि मंदिर के समीप ही गंगा की सहायक भिलंगना नदी का उद्गम खतलिंग ग्लेशियर है, जो अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। मखमली बुग्यालों में पसरी प्रकृति की सुंदरता पर्यटकों का मन मोह लेती है। यह साहसिक पर्यटक के लिहाज से भी बहु़त उपयोगी स्थान है। बूढ़ा केदार को पांचवें धाम के रूप में मान्यता दिलाने के लिए उत्तराखंड के गांधी कहे जाने वाले स्व. इंद्रमणी बडोनी ने वर्ष 1985 सितंबर माह में खतलिंग महायात्रा का शुभारंभ किया था, जो तब से अनवरत चली आ रही है।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
                                              अलकनंदा के किनारे कोटेश्वर महादेव का अद्‌भुत मंदिर
                                             =============================


उत्तराखण्ड भूमि को देव भूमि कहा जाता है। पौराणिक काल से पूरे उत्तराखण्ड हिमालय में देवताओं का वास है। यहां पग-पग पर विराजमान धार्मिक स्थल इस बात की पुष्टि स्वयं करते हैं। यहां आने से ही मन को जो अपूर्व शांति मिलती है उसकी कल्पना करना आसान नहीं है।

 उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग से तीन किलोमीटर दूरी पर स्थित कोटेश्वर महादेव भी उन धार्मिक स्थलों में से हैं जहां आने से तन व मन की शांति तो मिलती ही है यहां विराजमान भोलेनाथ अपने भक्तों की मुराद भी पूरी करते हैं।




कोटेश्वर महादेव रुद्रप्रयाग से तीन किलोमीटर उत्तर की ओर अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित है। यहां अलकनन्दा के तट पर एक गुफा में स्थित सैकड़ों शिव लिंगों का कोटेश्वर महादेव मंदिर अपने आप में अद्‌भुत व अद्वितीय है।

 कहा जाता है कि जब भगवान शिव केदारनाथ जा रहे थे तो यहां अल्पकाल के लिए रुके थे। यहां पर भगवान शिव ने पूजा, ध्यान किया था तब से ही भगवान शिव की कोटेश्वर महादेव के नाम से यहां पूजा की जाती है।

रुद्रप्रयाग से जब आगे बद्रीनाथ रोड़ पर बढ़ते हैं तो तीन किलोमीटर आगे जाकर नीचे अलकनन्दा नदी के तट पर कोटेश्वर महादेव का मंदिर दिखाई देता है। मुख्य मंदिर नदी के तट पर स्थित गुफा में है।

 यहां नदी के तट पर धर्मशालायें तथा अनेकों मंदिरों का निर्माण बाद में किया गया है। बाबा भोलेनाथ के गुफानुमा मंदिर के समीप अलकनन्दा काफी तेज गति से बहती है। बरसात में जब अलकनन्दा में पानी लबालब होता है तो कभीकभार नदी का पानी मंदिर को छूकर निकलता है।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
अलकनन्दा नदी कोटेश्वर महादेव मंदिर के पास एक विशाल भंवर के रूप में बहती है। भंवर इतना विशाल और भयंकर है कि लगता है कि नदी यहां पर उलटी बह रही है। काफी विशाल भंवर का पानी मंदिर की सीढ़ियों को छूता हुआ निकलता है। यहां पर सैकड़ों शिवलिंग, नन्दी तथा अनेक देवी देवताओं की मूर्तियां बरबस ही आकृष्ट करती हैं। यहां पर हमेशा शिवलिंगों पर पानी गिरता रहता है।

 जब अलकनन्दा नदी कोटेश्वर महादेव में प्रवेश करती है तो सामने दो पहाड़ों के संकरे गलियारे से आगे बढ़ती है तथा अचानक कोटेश्वर महादेव के मंदिर के सामने विशाल भंवर के रूप में कभी वापस आती दिखती है। भंवर में वापस आती अलकनन्दा मानो बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने के लिए मुड़ रही हो।

कोटेश्वर महादेव मंदिर में बेल पत्र तथा बेल की पत्तियां, फूल, धूप, अगर बत्ती तेल आदि प्रसाद रूप में चढ़ाया जाता है। अलकनन्दा नदी में साबुन लगाकर नहीं नहाना चाहिए।

 लेखक विगत अगस्त माह में अपने दोस्तों के साथ कोटेश्वर महादेव गया था अनजाने में अलकनन्दा नदी के किनारे मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर साबुन से नहाने लगा जैसे ही सिर पर साबुन लगाया अचानक अलकनन्दा नदी का जल एकाएक चार सीढ़ियों को पार करता हुआ पास में ही रखी साबुन की बट्‌टी को भी बहा ले गया। अगर उस समय कोई सीढ़ियों पर नीचे की ओर होता तो निश्चित रूप से नदी की तेज धारा में बह जाता।

 साबुन बहते ही पुन: अलकनन्दा नदी का बहाव सामान्य हो गया और जब तक हम लोग वहां रहे एक बार भी अलकनन्दा का जल उस तरह विकराल नहीं हुआ। बाद में किसी ने बताया तो पता चला कि यहां पर साबुन लगाकर नहीं नहाना चाहिए।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
कोटेश्वर महादेव का महात्म्य अपने भक्तों को यहां खींचकर लाता है। यों तो यहां वर्ष भर भक्तों की भीड़ रहती है लेकिन सावन मास में यहां दिन रात भक्तों का तांता लगा रहता है। कहा जाता है कि जिन दम्पतियों की कोई सन्तान नहीं होती है अगर वे सावन माह में कोटेश्वर महादेव में आकर मंदिर में महामृत्युंजय मंत्र का जाप व ध्यान विधान पूर्वक करते हैं तो बाबा भोलेनाथ उनकी मुराद पूरी करते हैं।

कोटेश्वर महादेव में महाशिव रात्रि के अवसर पर विशाल मेला लगता है। इस मेले में देश विदेश से अनेकों लोग यहां आते हैं। शिवरात्रि के दिन यहां आने वाले लोग अपनी फरियाद लेकर आते हैं। कई लोग रुद्रप्रयाग से ही पैदल चलकर यहां आते हैं।

कहते हैं कि यहां आने वाले भक्त यदि सच्ची श्रद्धा से आयें तो उनकी मनोकामना जरूर पूरी होती है। यहां पर मुख्य मंदिर के समक्ष सावन माह में रात-रात भर श्रद्धालु भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए जप तथा ध्यान करते हैं।

कोटेश्वर महादेव तट पर आकर मन को अपार शांति मिलती है। यहां से आकर वापस जाने का मन नहीं होता है। मंदिर के प्रांगण में अनेक साधु महात्मा तथा साध्वियां यहां निवास करते हैं। सब भगवान शिव की आराधना, ध्यान तथा हमेशा जगत कल्याण में लगे रहते हैं। यहां अलकनन्दा नदी के तट पर विराजमान कोटेश्वर महादेव की छटा को यहां का हरियाली से भरा हुआ प्राकृतिक परिवेश और आकृष्ट बना देता है।

 प्राकृतिक सौर्न्दय तथा नदी का किनारा मन को जगत की भागमभाग तथा दिनरात की कवायद से शान्त रहने की प्रेरणा देता है। यहां आकर मन अपने आप शान्त हो जाता है।

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22