Author Topic: Folk Gods Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के स्थानीय देवी-देवता  (Read 97716 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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यमकेश्वर महादेव 
 
हरिद्वार से लगभग 80 किलोमीटर पूर्व की ओर जनपद पौड़ी गढवाल के शतरूद्रा नदी के तट पर यह मन्दिर अवस्थित है। यमराज द्वारा स्थापित भगवान महामृत्युन्जय यमकेश्वर महादेव का एक छोटा सा मंन्दिर है, जिसमें सावन के महीने में एक घडा व बेलपत्र भक्ति भाव से चढाने पर भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है

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नीलकंठ 

स्वर्गाश्रम से ग्यारह किलोमीटर की दूरी पर मणिकूट पर्वत (5940 फीट) पर स्थित शिव मन्दिर है। नीलकंठ मन्दिर के समीप ही भुवनेश्वरी माता जिसे पार्वती के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है, का मंदिर है। कहा जाता है कि इसी सिाापन पर पार्वती ने विष के प्रभाव से क्षीण हुए शिवजी के स्वास्थ्य लाभ की कामना हेतु तपस्या की थी।s

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ताडकेश्वर धाम 

यह धाम समुद्रतल से छः हजार फीट की ऊँचाई पर पौड़ी गढवाल जिले की तहसील लैंसडॉन की बदलपुर पट्टी में स्थित है। यह पाँच किलोमीटर की परिधि के सघन गगनचुम्बी देवदार वन से आच्छादित है। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि इस स्थान के अतिरिक्त इस पूरे क्षेत्र में कहीं भी देवदार के दर्शन नहीं होते है। यह पूरा स्थान ताडकेश्वर धाम का मंन्दिर है। यहॉ स्थित कुंड की विशेषता यह है कि छोटा दिखने के उपरान्त भी इसका पानी कभी सूखता नहीं।

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ज्वाल्पा देवी 
 
 
श्री ज्वाल्पाधाम, ज्वाल्पादेवी का अति प्राचीन सिद्धपीठ हैं। यह पौड़ी मुख्यालय से 33 किलोमीटर दक्षिण में पतित पावनी नबालका नदी के दक्षिणी तट पर कोटद्वार पौड़ी मोटर मार्ग पर स्थित है। केदारखंड के अनुसार सतयुग में इस धाम पर दैत्यराज पुलोम की कन्या शची ने देवराज इन्द्र को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी पार्वती की तपस्या की, इस पर प्रसन्न होकर महादेवी पार्वती ने दीप्यमान दीप्तज्वालेश्वरी के रूप में दर्शन देकर उसकी मनोकामना पूर्ण होने का उसे वरदान दिया। महादेवी पार्वती का जो प्रकाशमय रूप प्रकट हुआ था, उसे स्कन्दपुराण में दीप्तज्वालेश्वरी कहा गया है। जनवाणी में यही ज्वाल्पादेवी के नाम से विख्यात हुआ। तभी से मातेश्वरी के प्रकाशमय रूप की स्मृति में मन्दिर में निरन्तर अखण्डनीय प्रज्वलित रखा जाता है।

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राजराजेश्वरी 
 
 
अलकनन्दा के दाये तट पर राजराजेश्वरी देवी का प्राचीन विशाल मंदिर है। मन्दिर में मुख्य मूर्ति मॉ भगवती की एक फुट ऊँची चॉदी की है। शयनासन पर विराजमान शंकर की नाभि पर चतुर्भुज राजराजेवरी पद्मासन की मुद्रा में आसी है। यहॉ नवरात्र तथा चैत्र मास में विशेष पूजन होते हैं। यह मन्दिर शक्ति परम्परा का है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अखिलतारणी (champawat)

        यह उपशक्ति पीठ है घने हरे देवदार बनी के बीच में भव्‍य प्राचीन मन्दिर व धर्मशला बनी है मान्‍यता के अनुसार यहॉं पांडवों ने घटोत्‍कच के सिर को प्राप्‍त करने के लिए मां भगवती की प्रार्थना की थी यहां श्रावण मास के संक्रान्ति को मेला लगता है यह चम्‍पावत से पैदल मार्ग 8 मिल की दूरी पर स्थित है

माँ द्रोणागिरि  (दूनागिरि)
माता दूनागिरि को द्वाराहाट, गनाई, मासी तथा समस्त गेवाड़ पट्टी क्षेत्र में माना जाता है.  इनका मन्दिर द्वाराहाट से १०-१२ (मोटर मार्ग) किलोमीटर दूर है.

कहा जाता है कि जब हनुमान जी द्रोण पर्वत को ले जा रहे थे तो उसका कुछ  हिस्सा टूट कर यहाँ गिर गया था जिससे यह पर्वत बना.  इस पर्वत की चोटी पर माता का सुन्दर मन्दिर है..
एक अन्य मान्यता के अनुसार यह जम्मू की माता वैष्णों देवी का ही रूप है...





नंगारझण देवता,
ये देवता भी  गाय,भैंस आदि के देवता हैं... जब किसी की गाय, भैंस ब्याती है तो इन देवता की पूजा करते हैं.

Dinesh Bijalwan

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कुछ लोग विनसर शिव को भी नाग देव विरनेश्वर नाग मानते है. ओकले  ने नागो कि जिक्र किया है- अमीनाग /फ्णी नाग/ सिसर नाग/ तत्की नाग/ वासुकी नाग  - कार्कोट भी नाग वन्शीय थे जिन्होने क्श्मीर पर राज्य किया / इसका महान राजा ललितादित्य मुक्तपीड था

Dinesh Bijalwan

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घन्टाकर्ण (घ्न्ड्याल)  की पूजा लगभग पूरे उत्त्राखन्ड मे होती है, घन्टाकर्ण  को यक्छ माना जाता है , वह कुबेर के सेनापतियो मे से है,  उन्होने  अल्कापुरी  तथा कैलाश पर रावण के आक्र्मण के समय उससे युद्द किया / वह शिव भक्त है, हरिवन्श पुराण की कथा के अनुसार वै शिव कि आग्या से ब्र्ह्म हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए विश्णु की उपासना मे लीन हो गया / घन्टाकर्ण  मणीभद्र  का एक मन्दिर बद्रीनाथ के पास माणा गाव मे है ,  टीह्ररी की क्वीली पट्टी मै लग्भग दो हजार मीटर उन्ची चोटी पर भी उनका एक मन्दिर है.

 

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