मल्लिकार्जुन महादेव, लोड़ी, देवलथल।
पिथौरागढ़ जनपद से २० कि०मी० दूर देवलथल नामक कस्बा है। इसकी सबसे ऊंची चोटी, लोड़ी में शिव विराजते हैं जो इस पूरे क्षेत्र के आराध्य हैं, लोड़ी मल्लिकार्जुन महादेव को बाराबीसी, आठबीसी पट्टी के लोग अपना इष्ट मानते हैं। यहां शिव जी को मल्लिकार्जुन रुप में पूजा जाता है, बांज के घोर जंगल से ढके पूरे पहाड़ को ही भगवान शिव का क्षेत्र माना जाता है, इस पूरे पर्वत को पवित्र माना जाता है। यहां पर बांज के वृक्षों के बीच में एक स्वयं भू शिव लिंग विराजमान है, जिस पर एक गहरा निशान है, कहा जाता है कि इस स्थान पर एक ग्वाले की गाय अपने आप ही दूध गिराकर चली जाती थी, एक दिन उस ग्वाले ने अपनी गाय को ऎसा करते देखा तो गुस्से में उसने अपनी दरांती इस लिंग पर चला दी, तो वहां से खून निकलने लगा, बाद में क्षमा-याचना के बाद स्थानीय लोगों द्वारा इसकी पूजा की जाने लगी। इस मंदिर में फूल की बजाय इस पर्वत पर उगने वाली घास और जड़ी-बूटी को ही चढ़ाया जाता है और उसे ही प्रसाद रुप में स्वीकार किया जाता है। यहां पर शिव चतुर्दशी (मार्गशीर्ष माह की) को एक विशाल मेला प्रतिवर्ष लगता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शिरकत करते हैं, इस मेले में भाग लेने वाले श्रद्धालु को एक सप्ताह पहले से मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज, उडद की दाल आदि अशुद्ध वस्तुओं का परहेज करना होता है। यहां पर कुछ भक्तजन त्रयोदशी की रात को ही चले जाते हैं और रात भर शिव चरणॊं में भजन-कीर्तन करते हैं। यहां से हिमालय की उन्नत चोटियों का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है, यहा से धार्चूला, चीन की दीवार(कहा जाता है) अल्मोड़ा, बागेश्वर, बेरीनाग आदि कई जगहों के दीदार होते हैं।