Author Topic: Folk Gods Of Uttarakhand - उत्तराखण्ड के स्थानीय देवी-देवता  (Read 97720 times)

Dinesh Bijalwan

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स्थानिय गाथा के अनुसार वे खाती (अर्जुन) और सुबोधा ( सुभ्द्रा)के बेटे थे / (महाभारत के अनुसार तो केवल अभिमन्यु ही उन्के बेटे थे)/ वह दिल्ली मे निवास कर्ते थे और मध्यकाल के शाश्को द्वारा  मन्दिरो को तोड्ने के कारण वह दिल्ली छोड्कर गढ मुक्तेश्वर , हरीद्वर , रिशीकेश होते हुए  कुज्णी से  क्वीली पहुचे

Dinesh Bijalwan

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रिशीकेश से उन्हे एक सज्वाण  अपने कन्धे पर बिठा कर उन्के वर्तमान मन्दिर तक ले गये थे / पहाड की चोटी पर पहुच कर घन्ड्याल  ने सज्वाण को उन्हे वही छोड्कर जाने  और तीन दिन बाद आने को कहा / तीन दिन बाद जब सज्वाण वहा गया तो उसे वहा सिर्फ़  एक लिन्ग मिला / घन्ड्याल ने उस्से कहा कि मै यही बस गया हु /  जख सेरो तख तेरो सुन सुन रे सज्वाण- तुम व्हेला मैति मेरा , पुज्यारा बिज्ल्वान -  और तब से क्वीली मे घन्ड्याल की पूजा होति आ रही है /

Rajen

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इस जानकारी के लिये आपका ’थैंक्यू" है, सर।

पंकज सिंह महर

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मल्लिकार्जुन महादेव, लोड़ी, देवलथल।

पिथौरागढ़ जनपद से २० कि०मी० दूर देवलथल नामक कस्बा है। इसकी सबसे ऊंची चोटी, लोड़ी में शिव विराजते हैं जो इस पूरे क्षेत्र के आराध्य हैं,  लोड़ी मल्लिकार्जुन महादेव को बाराबीसी, आठबीसी पट्टी के लोग अपना इष्ट मानते हैं। यहां शिव जी को मल्लिकार्जुन रुप में पूजा जाता है, बांज के घोर जंगल से ढके पूरे पहाड़ को ही भगवान शिव का क्षेत्र माना जाता है, इस पूरे पर्वत को पवित्र माना जाता है। यहां पर बांज के वृक्षों के बीच में एक स्वयं भू शिव लिंग विराजमान है, जिस पर एक गहरा निशान है, कहा जाता है कि इस स्थान पर एक ग्वाले की गाय अपने आप ही दूध गिराकर चली जाती थी, एक दिन उस ग्वाले ने अपनी गाय को ऎसा करते देखा तो गुस्से में उसने अपनी दरांती इस लिंग पर चला दी, तो वहां से खून निकलने लगा, बाद में क्षमा-याचना के बाद स्थानीय लोगों द्वारा इसकी पूजा की जाने लगी। इस मंदिर में फूल की बजाय इस पर्वत पर उगने वाली घास और जड़ी-बूटी को ही चढ़ाया जाता है और उसे ही प्रसाद रुप में स्वीकार किया जाता है। यहां पर शिव चतुर्दशी (मार्गशीर्ष माह की) को एक विशाल मेला प्रतिवर्ष लगता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शिरकत करते हैं, इस मेले में भाग लेने वाले श्रद्धालु को एक सप्ताह पहले से मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज, उडद की दाल आदि अशुद्ध वस्तुओं का परहेज करना होता है। यहां पर कुछ भक्तजन त्रयोदशी की रात को ही चले जाते हैं और रात भर शिव चरणॊं में भजन-कीर्तन करते हैं। यहां से हिमालय की उन्नत चोटियों का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है, यहा से धार्चूला, चीन की दीवार(कहा जाता है) अल्मोड़ा, बागेश्वर, बेरीनाग आदि कई जगहों के दीदार होते हैं।

पंकज सिंह महर

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महाषु देवता (जौनसार)

पुरानी कहावतों के अनुसार यहां के राक्षस आम जनता को बहुत परेशान किया करते थे। यहां पर पण्डित हूनाभट्ट नाम के एक पुजारी रहते थे, जिनके सात पुत्र थे। राक्षसों ने एक-एक करके उनके छह पुत्रों को मार दिया। जब पुजारी का एक ही पुत्र बचा, तब उन्होंने हिमालय के जंगलो में जाकर भगवान शिव की अराधना की। उनकी अराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने महाषु देवता के रूप में आ कर राक्षसों को मारने का वचन दिया। ऐसी मान्यता है कि महाषु देवता के तीन भाई थे और उन सभी के लिए उत्तराखंड राज्य में एक-एक मन्दिर बना हुआ है। यह मन्दिर 16 वीं शताब्दी में श्री महाषु देवता मन्दिर समिति खत लखवाड़ ने बनवाया था ।   

Dinesh Bijalwan

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घन्टाकर्ण पशुचारको के देवता माने जाते है / टिहरी मे उन्हे सात्त्विक देवता माना जाता है /  उन्हे जागरो मे विश्णु की आत्मा वाला कहा जाता है / वह अपने कानो मे घन्टियो को कुन्ड्लो की तरह धारण करते है/  ताकि वह अपने द्वारा जपे जाने वाले  भग्वान शिव के नाम के अलावा और कुछ न सुने /

Dinesh Bijalwan

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वह पर्चाधारी देवता है / जब कभी फस्ल के मौसम मे बारीश नही होती तो सज्वाण लोग जात्रा लेकर घन्ड्याल जाते है  / जात्रा देते ही  प्रमाण के रूप मे बारीश हो जाती है /

पंकज सिंह महर

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कठपतरिया देवता

ये पथ प्रदर्शक देवता होते हैं, पिथौरागढ़ में चार-पांच जगह और अल्मोड़ा में चितई मन्दिर से पहले इनका मन्दिर है, इनके मंदिर में पत्थर का टुकडा, लकड़ी का टुकडा या पत्ते चढ़ते हैं, उस मार्ग से जाने वाला हर व्यक्ति पत्थर का टुकडा, लकड़ी का टुकडा या पत्ता उन्हें अर्पित करता है। ऎसा करने पर माना जाता है कि वे आगे का रास्ता दिखायेंगे और हम सही-सलामत घर या अपने गंतव्य तक पहुंच पायेंगे।
      इसका कारण यह भी रहा होगा कि पहले उत्तराखण्ड में काफी बर्फ पड़ती थी तो रास्ता नहीं दिख पाता था तो इस तरह से भगवान की स्थापना की गई इनके मन्दिर अक्सर चोटियों पर होते हैं, जिससे पैदल चलने वाला आदमी इस मन्दिर तक पहुंच जाता था और उस मन्दिर में पहुंचकर उसे आगे का गांव दिखाई पड़ जाता होगा।


साकल्यः स्थापिता देवि, याग्यवल्केन पूजिताः।
काष्ठ पाषाण भक्षन्ति, पथि रक्षा करोतु मे॥


इस मंत्र का उच्चारण करते हुए प्रत्येक यात्री इन मंदिरों में एक-एक पत्थर का टुकड़ा चढाता है और यह मनोकामना रखता है कि मेरी आगे की यात्रा शुभ हो और मुझे सही रास्ता दिखाना।

Dinesh Bijalwan

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घन्टाकर्ण जी के बारे मे क्वीली बमण गाव मे एक रोचक कथा कही जाती है/ जब घन्टाकर्ण जी को बुढा सज्वाण ठाकुर अपने कन्धो पर बैठा कर रिसीकेश से चला/  तो  उसे अपने कन्धो पर वजन ही मह्सूस नही हुआ और उस्के पैरो मे असीम शक्ति आ गयी / वह जल्दी ही अपने साथियो से काफी आगे निकल गया / और  रात होने तक ढाइगला नामक स्थान पर पहुच गया / घन्टाकर्ण जी ने सज्वाण ठाकुर से कहा कि आज यही रूक जाते है / सज्वाण ने आस पास बस्ती की खोज की पर उसे दूर दूर  तक कुछ नही दिखायी दिया पर तभी उसे पशुओ के गले की घन्टियो की आवाज सुनाइ दी / वह घन्टाकर्ण जी को लेकर उसी ओर गया / वहा उसे एक छान दिखायी  दी/ सज्वाण ने  छान के स्वामी को आवाज लगायी /  छान का स्वामी शिबू चमोली आवाज सुन कर बाहर आया / सज्वाण ने कहा कि वै ढाकरी है और उस्के साथ के बुजुर्ग चलने मे असमर्थ है  अत वह उन्हे आज रात भर रूक्ने  की जगह  देदे / चमोली को यह अन्चाहे  मेहमान  बहुत अखरे / उसने कहा कि वो अपरिचितो को अपनी छान मे नही ठहराता है / इस पर उन्होने  उससे कहा कि  वै बहुत भूखे है, उस्की बडी किरपा होगी कि उन्हे   भोजन  करा दे / चमोली बोला - मान ना मान मै तेरा मेहमान , खाना तो क्या  दूध भी नही दुन्गा, और दूध ही क्या मै तो तुम्हे पानी तक भी नही दुन्गा / इस पर सज्वाण ने कहा चलो हमे थोडा विश्राम ही करने दो अब तक चमोली पूरा चिढ चुका था  उस्ने उन दोनो को छान से खदेड बाहर किया /   दोनो निराश होकर वहा से चल दिये / घन्टाकर्ण  क्वीलि मे पथर के लिन्ग  मे परिवर्तित हो गये / इधर  चमोली की एक भैन्स  रोज गायब हो जाती थी / जब वह रात को आती तो दूध नही देती थी और दूध की जगह खून निकल्ता था/  चमोली ने परेशान होकर भैन्स की  निगरानी करनी शुरू कर दी / अगले दिन जब भैन्स चली तो वह उसके पीछे  पैनी कुल्हाडी लेकर चल पडा / वह रास्ते मै  कुल्हाडी को बार बार धार देता जाता था ताकि जो दूध का चोर है उस्के  एक हि वार मे टुक्डे कर सके/  भैस चल्ती चलती  पहाड के चोटी  पर पहुची और उसने  लिन्ग  को अपने दूध से सीचना  आरम्भ कर दिया /  चमोली अपने गुस्से पर काबू न रख सका उस्ने कुल्हाडी की एक चोट भैन्स को मारी और दूसरी लिन्ग पर / लिन्ग  पर का एक छोटा  टुक्डा उड कर कह्ते है अखोडी पात्ल गया /  पूजा कर्ने आये सज्वाणो ने   चमोली  को घन्टाकर्ण जी की चमत्कारो  के बारे मे बताया कि किस प्रकार  उन्हे कन्धे पर लाने वाला अधेड  सजवाण फिर से जवान हो गया /   चमोली को  छान  पर हुइ घटना याद आ गयी / व्ह छ्मा याच्ना कर्ता हुआ लौटा /   कह्ते है तभी से घन्टाकर्ण चमोलियो  की जात्रा स्वीकार नही करते / इसलिए चमोली घन्टाकर्ण जी की  जात्रा नही देते /

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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घन्टाकर्ण जी के बारे मे क्वीली बमण गाव मे एक रोचक कथा कही जाती है/ जब घन्टाकर्ण जी को बुढा सज्वाण ठाकुर अपने कन्धो पर बैठा कर रिसीकेश से चला/  तो  उसे अपने कन्धो पर वजन ही मह्सूस नही हुआ और उस्के पैरो मे असीम शक्ति आ गयी / वह जल्दी ही अपने साथियो से काफी आगे निकल गया / और  रात होने तक ढाइगला नामक स्थान पर पहुच गया / घन्टाकर्ण जी ने सज्वाण ठाकुर से कहा कि आज यही रूक जाते है / सज्वाण ने आस पास बस्ती की खोज की पर उसे दूर दूर  तक कुछ नही दिखायी दिया पर तभी उसे पशुओ के गले की घन्टियो की आवाज सुनाइ दी / वह घन्टाकर्ण जी

Thanx Dinesh Ji,

Expecting some more such information from you as you have vast experience and knowledge about UK on all the fronts.

thax. once again.

 

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