अनेक प्रतियोगियौं को हरा कर बहादुर (काल्पनिक नाम), जो की वर्तमान में वहाँ का सेनापति भी था, मैदान के बीच में खड़ा था. अब गंगनाथ की बारी उससे भिड़ने की थी. बहादुर सिर्फ़ नाम का ही बहादुर नही था, वह बिगत कई वर्षौं से बड़े-२ सूरमाओं को हरा कर लगातार सेनापति बना हुआ था. देखने में वह गंगनाथ से अधिक बलिष्ट और ऊंचे कद काठी का था. उसे देख कर भाना को एक बार लगा की कहीं यह गंगनाथ को पछाड़ न दे. वह दोनों हाथ जोड़ कर माँ महाकाली को स्मरण कर गंगनाथ के बिजय की प्रार्थना कर रही थी. घंटे की आवाज होते ही गंगनाथ मैदान में उतर गया. दोनों बीरों में कुश्ती आरम्भ हुई. दर्शक इस मल्लयुद्ध को साँस रोके देख रहे थे. दोनों ही योधा एक दूसरे पर भारी पढ़ रहे थे. कभी बहादुर ऊपर तो कभी गंगनाथ कभी बहादुर का दाव चलता तो कभी गंगनाथ का. समय बीतता ही जा रहा था किंतु परिणाम कोई नही आ रहा था. सुबह से संध्या हो गयी मल्लयुद्ध था कि ख़त्म होने का नाम ही नही ले रहा था. दर्शकों को समझ नही आ रहा था कि वो बिजय की कामना करें तो किसकी. एक ओर उनका बीर सेनापति था तो दूसरी ओर गंगनाथ जिसकी बीरता के बारे में वो अब तक सब सुन चुके थे. अचानक गंगनाथ ने बहादुर तो उठाया और हवा में उछाल दिया. बहादुर धडाम से जमीन पर गिरा और दर्द से कराहने लगा. गंगनाथ को इस प्रतियोगिता में बिजयी घोषित कर दिया गया. चूंकि रात हो चुकी थी और दोनों योद्धा बहुत थक चुके थे, राजा ने घोषणा के कि तलवारबाजी और शेर से युद्ध के प्रतियोगिता दूसरे दिन होगी.