राजेन दा को इस उत्कृष्ट कार्य हेतु +१ कर्मा सहित धन्यवाद, गंगनाथ जी के जीवन वृतान्त से हमें परिचित कराने के लिये।
इनकी जागर के समय जगरिया इनको गांगू कहकर बुलाता है, एक बानगी यहां पर गंगनाथ जी के डोटी छोड़ते समय का वर्णन है
एऽऽऽऽऽ राजौ- क रौताण छिये......!
एऽऽऽऽऽ डोटी गढ़ो क राज कुंवर जो छिये,
अहाऽऽऽऽऽ घटै की क्वेलारी, घटै की क्वेलारी।
आबा लागी गौछौ गांगू, डोटी की हुलारी॥
डोटी की हुलारी, म्यारा नाथा रे......मांडता फकीर।
रमता रंगीला जोगी, मांडता फकीर,
ओहोऽऽऽऽ मांडता फकीर......।
यहां पर गंगनाथ जी की दीक्षा का वर्णन किया जा रहा है-
ए.......तै बखत का बीच में, हरिद्वार में बार बर्षक कुम्भ जो लागि रौ।
ए...... गांगू.....! हरिद्वार जै बेर गुरु की सेवा टहल जो करि दिनु कूंछे......!
अहा.... तै बखत का बीच में, कनखल में गुरु गोरखीनाथ जो भै रईं......!
ए...... गुरु कें सिरां ढोक जो दिना, पयां लोट जो लिना.....!
ए...... तै बखत में गुरु की आरती जो करण फैगो, म्यरा ठाकुर बाबा.....!
अहा.... गुरु धें कुना, गुरु......, म्यारा कान फाडि़ दियो, मून-मूनि दियो,
भगैलि चादर दि दियौ, मैं कें विद्या भार दी दियो,
मैं कें गुरुमुखी ज बणा दियो।
ओ... दो तारी को तार-ओ दो तारी को तार,
गुरु मैंकें दियो कूंछो, विद्या को भार,
बिद्या को भार जोगी, मांगता फकीर,
रमता रंगीला जोगी,मांगता फकीर।