Author Topic: Gangnath: God Of Justice - न्याय का देवता "गंग नाथ"  (Read 29464 times)

Rajen

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Re: न्याय का देवता "गंग नाथ"
« Reply #20 on: July 30, 2008, 04:11:35 PM »
माफ़ कीजिये मित्रो, कुछ कारण आज इतना ही.  कोशिस करूँगा की इसको शीघ्र पूरा कर सकूँ.
धन्यवाद

Dinesh Bijalwan

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Re: न्याय का देवता "गंग नाथ"
« Reply #21 on: July 30, 2008, 05:44:32 PM »
daju aapme katha vachkon ke pure gun hain.  Kya sma baandha hai. vaise aap ki kahani ka climax ise fourm per different thread me aa chuka hai  daaju  aur mujhe pata hai ki aage kya hua tha.  ha ha ha

Risky Pathak

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Re: न्याय का देवता "गंग नाथ"
« Reply #22 on: August 01, 2008, 11:30:18 AM »
गंगनाथ के जागरी में १ औरत अतार्ती है, उसे "भन बामणी" कहते है| पहले मुझे नही पता था की उसे  "भन बामणी" क्यों कहते है| पर अब ये कथा पढ़कर समझ आ गया

Bhan= kyunki uska naam bhanu tha
Baameni= Kyunki wo Brahmin(Joshi) thi

पंकज सिंह महर

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Re: न्याय का देवता "गंग नाथ"
« Reply #23 on: August 01, 2008, 01:42:00 PM »
राजेन दा को इस उत्कृष्ट कार्य हेतु +१ कर्मा सहित धन्यवाद, गंगनाथ जी के जीवन वृतान्त से हमें परिचित कराने के लिये।

इनकी जागर के समय जगरिया इनको गांगू कहकर बुलाता है, एक बानगी यहां पर गंगनाथ जी के डोटी छोड़ते समय का वर्णन है


एऽऽऽऽऽ राजौ- क रौताण छिये......!
एऽऽऽऽऽ डोटी गढ़ो क राज कुंवर जो छिये,
अहाऽऽऽऽऽ घटै की क्वेलारी, घटै की क्वेलारी।
आबा लागी गौछौ गांगू, डोटी की हुलारी॥
डोटी की हुलारी, म्यारा नाथा रे......मांडता फकीर।
रमता रंगीला जोगी, मांडता फकीर,
ओहोऽऽऽऽ मांडता फकीर......।


यहां पर गंगनाथ जी की दीक्षा का वर्णन किया जा रहा है-

ए.......तै बखत का बीच में, हरिद्वार में बार बर्षक कुम्भ जो लागि रौ।
ए...... गांगू.....! हरिद्वार जै बेर गुरु की सेवा टहल जो करि दिनु कूंछे......!
अहा.... तै बखत का बीच में, कनखल में गुरु गोरखीनाथ जो भै रईं......!
ए...... गुरु कें सिरां ढोक जो दिना, पयां लोट जो लिना.....!
ए...... तै बखत में गुरु की आरती जो करण फैगो, म्यरा ठाकुर बाबा.....!
अहा.... गुरु धें कुना, गुरु......, म्यारा कान फाडि़ दियो, मून-मूनि दियो,
         भगैलि चादर दि दियौ, मैं कें विद्या भार दी दियो,
         मैं कें गुरुमुखी ज बणा दियो।
 ओ... दो तारी को तार-ओ दो तारी को तार,
        गुरु मैंकें दियो कूंछो, विद्या को भार,
        बिद्या को भार जोगी, मांगता फकीर,
        रमता रंगीला जोगी,मांगता फकीर।

Rajen

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Re: न्याय का देवता "गंग नाथ"
« Reply #24 on: August 04, 2008, 12:16:05 PM »
तब बहादुर और शेर में जोरदार भिडंत हुई.  बहादुर बड़ी बीरता से शेर से लोहा ले रहा था.  वह शेर का हर वार बेकार कर रहा था.  शेर कई दिनौं का भूखा था.  अपना वार बेकार जाते देख शेर बहुत बौखला गया और एक छलांग शेर ने ऐसी लगाई की बहादुर उसकी बिजली जैसी फुर्ती से स्वयम को बचने से चूक गया और शेर के चंगुल में फंस गया.  शेर ने बहादुर को फाड़ डाला और उसका रक्त पीने लगा.  दर्शक हाय-२ कर उठे.  शेर का रौद्र रूप देख कर भाना डर गयी और गंगनाथ से शेर से न भिड़ने की गुजारिस करने लगी क्यूंकि अब गंगनाथ की बारी शेर से लड़ने की थी.  वह जोर जोर से चिल्ला कर कह रही थी गंगनाथ तुम शेर के पिंजरे में मत जाना.  भाना की बात सुन कर दर्शकों में कानाफूसी शुरू हो गयी और जोशी जी के चेहरे पर ग्लानि का भाव स्पष्ट दिखाई दे रहा था.  वो भाना और गंगनाथ के सम्बन्ध को इस तरह खुल जाने के परिणाम से बहुत अपमानित महसूस कर रहे थे.  फ़िर भी जोशी जी ने कहा महाराज प्रतियोगिता की परम्परा के अनुसार बिना शेर को हराए कोई भी ब्यक्ति राज्य का सेनापति नही बन सकता अतः गंगनाथ को आगे बढ़ने की आज्ञा दीजिये.  जोशी जी मन ही मन यह चाहते थे कि  शेर ने बहादुर  का जो हाल किया वही हाल गंगनाथ का भी कर दे तो वो कलंकित होने से बच जायेंगे.
गंगनाथ ने अपने इष्ट और गुरु का स्मरण किया और शेर के पिंजरे की और बढ़ने लगा.  गंगनाथ ने शेर के पिंजरे में घुस कर उसकी और घूर कर देखा.  शेर भूखा था और अपने भोजन की ओर गंगनाथ को बढ़ते देख खूंखार हो उठा.  शेर को बहादुर ने घायल भी कर दिया था सो घायल और भूखा शेर कितना खतरनाक हो सकता है इसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है.  शेर भयंकर गर्जना के साथ बिजली की फुर्ती से गंगनाथ की ओर लपका जिससे गंगनाथ ने ख़ुद को बहुत ही चुस्ती से बचा लिया.  शेर और भी खूंखार हो उठा.  वह बार बार गंगनाथ पर आक्रमण करता और गंगनाथ हर बार उसका वार न केवल बचा जाता बल्कि शेर को अपनी लात से घायल भी करता जाता. अगले ही पल गंगनाथ ने शेर के आक्रमण करने से पहले ही वार कर दिया उसने एक जोरदार लात शेर के शिर पर मारी जिससे शेर का सर घूम गया.  मौका देख कर गंगनाथ ने शेर को दबोच लिया अपने टांगों के बीच शेर के दोनों पंजों को दबा कर उसने शेर के मुह को अपने हाथौं से फाड़ दिया.  शेर निस्तेज हो कर जमीन पर गिर गया.  फ़िर गंगनाथ की एक ही लात ने उसे ठंडा कर दिया.  सभी लोग हर्ष से चिल्ला उठे.  राजा ने गंगनाथ को अपने राज्य का सेनापति घोषित कर दिया.  लोग गंगनाथ के बीरता की बात करते नही थक रहे थे.  कोई उसे महान योधा कह रहा था तो कोई अवतारी.  भाना भी बहुत खुश थी उसने मन ही मन मां काली को प्रणाम किया.

Rajen

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Re: न्याय का देवता "गंग नाथ"
« Reply #25 on: August 04, 2008, 12:24:17 PM »
हिमांशु  भुला, गंगनाथ जागरी में गंगनाथ स्त्री पर ही अवतरित होते हैं.  इसका भी एक कारण है जो आगे आपको पता चलेगा.  "भन बामणी" वाली आपकी बात बहुत ही तर्क संगत है.


गंगनाथ के जागरी में १ औरत अतार्ती है, उसे "भन बामणी" कहते है| पहले मुझे नही पता था की उसे  "भन बामणी" क्यों कहते है| पर अब ये कथा पढ़कर समझ आ गया

Bhan= kyunki uska naam bhanu tha
Baameni= Kyunki wo Brahmin(Joshi) thi


Rajen

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Re: न्याय का देवता "गंग नाथ"
« Reply #26 on: August 04, 2008, 12:28:05 PM »
पंकज जी, जगरिया के बोल जो आपने लिखे हैं बहुत ही सुंदर हैं. धन्यवाद. और कुछ बोल लिख दीजिये.  गंगनाथ को जोगी क्यों कहते हैं यह भी वर्णन आएगा. 

दिनेश मन्द्रवाल

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Re: न्याय का देवता "गंग नाथ"
« Reply #27 on: August 04, 2008, 12:41:40 PM »
राजेन जी, धन्यवाद इस लोक गाथा से हमें परिचित कराने के लिये, मैंने सुना है कि  भाना के पिता ने इनकी हत्या कर दी थी, इससे भी परिचित कराने का कष्ट करें।

सादर,
दिनेश

Rajen

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Re: न्याय का देवता "गंग नाथ"
« Reply #28 on: August 04, 2008, 12:49:26 PM »

जी बिल्कुल ऐसा ही है.

राजेन जी, धन्यवाद इस लोक गाथा से हमें परिचित कराने के लिये, मैंने सुना है कि  भाना के पिता ने इनकी हत्या कर दी थी, इससे भी परिचित कराने का कष्ट करें।

सादर,
दिनेश


Rajen

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Re: न्याय का देवता "गंग नाथ"
« Reply #29 on: August 04, 2008, 01:28:28 PM »
गंगनाथ बीर योद्धा होने के साथ ही एक कोमल ह्रदय का स्वामी भी था. जब  महाराज ने गंगनाथ को सम्मानित करने और उसे अपना सेनापति घोषित करने के लिए मंच पर बुलाया तो गंगनाथ की आखों में आँसू थे. वह बहादुर की मौत से  बहुत दुखी था. उसने महाराज से कहा कि महाराज यदि आपने शेर से लड़ने के लिए मुझे पहले मौका दिया होता तो एक बीर सेनापति की ऐसी मौत नही होती. महाराज ने कहा कि गंगनाथ बीर पुरूष अपनी बहादुरी दिखा कर ही मरते हैं उनकी मौत पर दुःख नही करना चाहिए.  अब सभा बिसर्जित होती है और तुम अपने सेनापति के आवास पर जाकर बिश्राम करो.

घर पहुच कर जोशी जी ने भाना को बहुत समझाया कि गंगनाथ के साथ उसका ऐसा मेल-जोल उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं. उन्होंने भाना को पहले प्यार से और फ़िर कड़े शब्दों में समझा दिया कि गंगनाथ से उसका ब्याह कदापि नहीं हो सकता क्यौकी वह ब्रह्मण नहीं है.  उन्होंने भाना से कहा कि यद्यपि गंगनाथ के उनपर बहुत अहसान हैं और यद्यपि अब वह इस राज्य का सेनापति है फ़िर भी गैर ब्रह्मण से वो अपनी पुत्री का विवाह नही कर सकते.  भाना ने पहले बहुत अनुवय बिनय की फ़िर साफ़ साफ़ शब्दों में जोशी जी को बता दिया कि कुछ भी हो अब वह गंगनाथ के बिना नही जी सकती.  गंगनाथ और मेरा साथ आज का नही है यह तो परमात्मा ने बहुत पहले ही निर्धारित कर दिया था.  मुझे गंगनाथ से कोई अलग नही कर सकता.  यह कह कर वह रोती हुई अपने कमरे में चली गयी और लेट गयी.

भाना की बात सुनकर जोशी जी बहुत चिंतित हो गए.  उन्हें लगा कि अब वे शायद अपने धर्मं की रक्षा नही कर पाएंगे.  वह शोच में पढ़ गए.  इधर भाना ने खाना पीना छोड़ दिया और लगातार रोती रहती.  भाना की ऐसी दशा जोशी जी से देखी नही गयी.  तब उन्होंने शोचा कि अब तर्क से बात नही बनेगी अतः राजनीति से काम लेना चाहिए.  वे भाना के कक्ष में गए और प्यार से उसके सर पर हाथ फेर कर बोले बेटी तेरा दुःख मुझ से देखा नही जाता.  ऐसे धर्म का मैं क्या करूँगा जिससे मैं अपनी एक मात्र पुत्री को प्रसन्न नही देख सकूं.  मैं तेरा विवाह गंगनाथ से कर दूंगा लेकिन मुझे कुछ समय चाहिए.  हमारे बिरादरी के कुछ लोग यहाँ पहुचने वाले हैं मैं चाहता हूँ कि वे लोग भी इस खुशी में शामिल हों. लेकिन इस बीच तुम गंगनाथ से नही मिलोगी क्यौकी इससे जगहंसाई होती है.  गंगनाथ को इस बारे में मैं बता दूंगा.  भाना प्रसन्न हो गयी.


 

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