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Gangnath: God Of Justice - न्याय का देवता "गंग नाथ"

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Rajen:
कुछ लोगों का कहना था की गंगनाथ डोटी से इसलिए नही निकले की नई रानी उनको मरवाना चाहती थी बल्कि इसके पीछे भी एक कहानी है.

कहते हैं की एक बार सपने में एक ख़ूबसूरत युवती गंगनाथ के सपने में आई और कहा की गंगनाथ मेरा जन्म तुम्हारे लिए हुआ है.  मैं अपने बारे में सिर्फ़ इतना बता सकती हूँ की मेरा नाम भाना है और मैं फलां की पुत्री हूँ.  मेरा और मेरे पिता का कोई निश्चित ठिकाना नही है हम लोग अपना घर बार छोड़ कर किसी अंजान स्थान की ओर जा रहे हैं.  अब यदि तुम मुझे अपनाना चाहते हो और अपने मां के सच्चे सपूत हो तो मुझे ढूँढ कर अपना बनाओ अन्यथा मैं समझूँगी की तुम झूठे हो. 

कहते हैं की गंगनाथ और भाना दोनों अवतारी थे अर्थात दोनों में कुछ दैवीय अंश था.  गंगनाथ ने भाना को ढूँढने का निश्चय किया.  लेकिन राज्य का उत्तराधिकारी होने के नाते वह सहजता से राज्य से बाहर नहीं जा सकता था.  सो गंगनाथ ने एक रात जोगी का भेष धारण किया और निकल पड़े डोटी से भाना की खोज में. 
बीच की कुछ घटनाएँ पिछली कहानी से मेल खाती हैं.
डोटी से निकल कर गंगनाथ उत्तराखंड के कई स्थानों से होते हुए हरिद्वार पहुंचे और वहां पर उन्होंने कुशा घाट पर स्नान किया और अपनी माता का तर्पण किया.  वहां से वो अपने गुरु के आश्रम पहुंचे और गुरु को प्रणाम कर उनसे दीक्षा ली और आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा शुरू की.  वहां से गंगनाथ ऊंची नैनीताल - नीची भीमताल होते हुए, चम्पावत के रस्ते उस जगह पहुच गए जहाँ भाना अपने पिता के साथ रह रही थी.  गंगनाथ जहाँ भी जाते अपनी एक बिशेष छाप छोड़ जाते.  लोग उन्हें अवतारी पुरूष मानते.  उन्हें कई स्थानों पर बिषम परिस्थियौं का भी सामना करना पड़ा.  जब जब गंगनाथ संकट में पड़ते तो जगरिया के बोल "हूँ नै होशियार जोगी,  रू नै डोटी में" मुखरित होते अर्थात अरे जोगी तू इतने संकट में घिर गया है यदि तू होशियार होता तो डोटी में चैन से रहता. 
गंगनाथ को देखते ही भाना उससे लिपट गयी.  इस दृश्य को देख कर भाना के पिता को बहुत क्रोध आया किंतु अपने पद की गरिमा का ख्याल कर चुप रहे और मन ही मन गंगनाथ को दंड देने की युक्ति सोचने लगे.  सो उक्त युक्ति से ही उन्होंने गंगनाथ का बध करवाया. 

Rajen:

कहते हैं की अपनी हत्या के बाद गंगनाथ की आत्मा सबसे पहले भाना के अन्दर आयी थी इसीलिये गंगनाथ के जागर में गंगनाथ का डंगरिया भी महिला ही होती हैं जिसे "भान बामुनी" कहा जाता है. 


--- Quote from: Himanshu Pathak on August 01, 2008, 11:30:18 AM ---गंगनाथ के जागरी में १ औरत अतार्ती है, उसे "भन बामणी" कहते है| पहले मुझे नही पता था की उसे  "भन बामणी" क्यों कहते है| पर अब ये कथा पढ़कर समझ आ गया

Bhan= kyunki uska naam bhanu tha
Baameni= Kyunki wo Brahmin(Joshi) thi


--- End quote ---

Rajen:
मेरी ओर से इतना ही.  धन्यवाद.

जय गंगनाथ

Rajen:
आपने तो मालामाल कर दिया.  धन्यवाद. ;D


--- Quote from: Anubhav / अनुभव उपाध्याय on August 04, 2008, 03:54:50 PM ---Jai Ho Gangnath ji ki

+10 Karma aapko is katha ke liye.

--- End quote ---

पंकज सिंह महर:

--- Quote from: Rajen on August 05, 2008, 02:55:29 PM ---कुछ लोगों का कहना था की गंगनाथ डोटी से इसलिए नही निकले की नई रानी उनको मरवाना चाहती थी बल्कि इसके पीछे भी एक कहानी है.

कहते हैं की एक बार सपने में एक ख़ूबसूरत युवती गंगनाथ के सपने में आई और कहा की गंगनाथ मेरा जन्म तुम्हारे लिए हुआ है.  मैं अपने बारे में सिर्फ़ इतना बता सकती हूँ की मेरा नाम भाना है और मैं फलां की पुत्री हूँ.  मेरा और मेरे पिता का कोई निश्चित ठिकाना नही है हम लोग अपना घर बार छोड़ कर किसी अंजान स्थान की ओर जा रहे हैं.  अब यदि तुम मुझे अपनाना चाहते हो और अपने मां के सच्चे सपूत हो तो मुझे ढूँढ कर अपना बनाओ अन्यथा मैं समझूँगी की तुम झूठे हो. 

कहते हैं की गंगनाथ और भाना दोनों अवतारी थे अर्थात दोनों में कुछ दैवीय अंश था.  गंगनाथ ने भाना को ढूँढने का निश्चय किया.  लेकिन राज्य का उत्तराधिकारी होने के नाते वह सहजता से राज्य से बाहर नहीं जा सकता था.  सो गंगनाथ ने एक रात जोगी का भेष धारण किया और निकल पड़े डोटी से भाना की खोज में. 
बीच की कुछ घटनाएँ पिछली कहानी से मेल खाती हैं.
डोटी से निकल कर गंगनाथ उत्तराखंड के कई स्थानों से होते हुए हरिद्वार पहुंचे और वहां पर उन्होंने कुशा घाट पर स्नान किया और अपनी माता का तर्पण किया.  वहां से वो अपने गुरु के आश्रम पहुंचे और गुरु को प्रणाम कर उनसे दीक्षा ली और आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा शुरू की.  वहां से गंगनाथ ऊंची नैनीताल - नीची भीमताल होते हुए, चम्पावत के रस्ते उस जगह पहुच गए जहाँ भाना अपने पिता के साथ रह रही थी.  गंगनाथ जहाँ भी जाते अपनी एक बिशेष छाप छोड़ जाते.  लोग उन्हें अवतारी पुरूष मानते.  उन्हें कई स्थानों पर बिषम परिस्थियौं का भी सामना करना पड़ा.  जब जब गंगनाथ संकट में पड़ते तो जगरिया के बोल "हूँ नै होशियार जोगी,  रू नै डोटी में" मुखरित होते अर्थात अरे जोगी तू इतने संकट में घिर गया है यदि तू होशियार होता तो डोटी में चैन से रहता. 
गंगनाथ को देखते ही भाना उससे लिपट गयी.  इस दृश्य को देख कर भाना के पिता को बहुत क्रोध आया किंतु अपने पद की गरिमा का ख्याल कर चुप रहे और मन ही मन गंगनाथ को दंड देने की युक्ति सोचने लगे.  सो उक्त युक्ति से ही उन्होंने गंगनाथ का बध करवाया. 

--- End quote ---

जागर में भी इसका वर्णन होता है, क्योंकि उनके हरिद्वार जाकर गुरु से दीक्षा लेने का वर्णन भी हर जागर में होता है और वह अतरते हुये अपने गुरु की आरती भी करते हैं, यह जागर का एक आवश्यक पार्ट है।

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