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Gangnath: God Of Justice - न्याय का देवता "गंग नाथ"

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Rajen:
        महाराज चंद अपनी पत्नी के साथ दुखी मुद्रा में बैठे थे.  उनका एक मात्र पुत्र एक अजीब सी बीमारी से ग्रस्त था.  ठीक उसी समय ताराचन्द्र (?) जोशी, जो कि सौराष्ट्र से पलायन कर यहाँ पहुचे थे, उनसे मिलाने पहुंचे. महाराज ने सिष्टाचार के नाते जोशी जी की आवभगत की किंतु चिंता की रेखा उनके मस्तक पर स्पष्ट दिखाई दे रही थी जो जोशी जी से छुपी नही रही.  जोशी जी ने महाराज से उनकी चिंता का कारण पूछा तो महाराज ने बताया कि राजकुमार किसी भयंकर मानसिक बीमारी से ग्रस्त है. दूर-२ से कई नामी बैद्य- हकीमों को बुला कर दिखा दिया किंतु कोई लाभ नहीं हुआ. अब तो एक मात्र भगवान का ही सहारा है.  महाराज ने फ़िर जोशी जी से उनके बारे में जानना चाहा तो जोशी जी ने बताया कि वे एक सनातनी ब्राह्मण हैं और औरंगजेब से अपने धर्म की रक्षा करने के लिए सौराष्ट्र से कुर्मांचल की इस पवित्र देवभूमि में आए हैं.   उन्होंने पुराणों में इस स्थान के आध्यात्मिक महत्व के बारे में पढ़ा है सो अपनी पुत्री के साथ यहाँ चले आए हैं.  जोशी जी ने बताया कि उन्होंने बेद पुराणों का अध्ययन किया है, ज्योतिष, तंत्र-मन्त्र के साथ-२ आयुर्वेद का भी उन्हें ज्ञान है.  तब राजा चंद ने कहा कि पंडित जी मेरे पुत्र को ठीक कर दीजिये मैं आपका यह उपकार कभी नहीं भूलूंगा.  जोशी जी जे राजकुमार को देखा और महाराज से कहा कि ये बीमार नहीं हैं जिसे आप मानसिक बीमारी कह रहे हैं वो जादू का असर है जो कि किसी ने राजकुमार पर किया है.  मैं एक अनुष्ठान करूँगा और काली माँ की कृपा से राजकुमार बिल्कुल ठीक हो जायेंगे.  फ़िर जोशी ने अपना अनुष्ठान शुरू कर दिया.  रात होते-२ कमरे का वातावरण बहुत भयावाह हो गया. राजकुमार के कमरे से अजीब-२ सी आवाजें आने लगी.  पंडित जी ने जब अनुष्ठान के अंत में हवन कुण्ड में सामग्री डाली तो राजकुमार बेहोश हो कर जमीन पर गिर गए होश आने पर राजकुमार बिल्कुल शांत थे और ऐसा लग रहा था जैसे किसी गहरी नीद से उठे हों.  राजकुमार के ठीक होने की ख़बर पुरे राज्य में फ़ैल गयी जिससे जोशी की प्रतिष्ठा काफी बढ़ गयी.  राजा ने उन्हें अपना प्रधान मंत्री बना लिया और हर काम जोशी जी से बिचार बिमर्श कर के ही करते थे.   

Rajen:
एक दिन राजा ने जोशी जी से पूछा की आप तो बड़ी दूर सौराष्ट्र से आए हैं.  मार्ग में आपको बड़ी दिक्कतें आयी होंगी.  तो जोशी जी बोले महाराज जैसे आपके पुत्र की मदद के लिए भगवान ने मुझे यहाँ भेजा वैसे ही मेरी सहायता के लिए भी भगवान ने एक देवदूत को भेजा जिसने जंगल के मार्ग में मेरी और मेरी पुत्री की भालू, शेर, चीते  और लुटेरों से रक्षा की.  वह बीर नवयुवक अप्रतिम ब्यक्तित्व का धनी है.  उसने भालू, शेर और चीते को अकेले ही मार डाला और चार-पाँच लुटेरों को अकेले ही खदेड़ दिया.  मैं उसका ऋणी हूँ क्यौकी उसने हमारी जान कई बार बचाई और हमें यहाँ तक पहुँचाया. यदि वह नवयुवक नही होता तो शायद में और मेरी पुत्री अब तक जीवित ही नही होते.  तब राजा ने उस नवयुवक से मिलाने की इच्छा जाहिर की और उसी समय जोशी जी के साथ चल दिए और जोशी जी के निवास स्थान पर पहुँच गए. जोशी जी ने महाराज को मेहमानों के कक्ष में बिठाया और भाना  को बुलाने उसके कक्ष में चले गए.  भानु के कक्ष में जोशी जी ने जो द्रश्य देखा उससे वो अवाक रह गए.  वहाँ भाना गंगनाथ की गोद में अपना सर रख कर सो रही थी. जोशी जी ने अपनी भावनाओं पर शीघ्र ही काबू कर लिया और गंगनाथ को बुला कर महाराज से उसका परिचय कराया.  महाराज ने गंगनाथ की पीठ थपथपाई और कहा बीर नवयुवक जोशी जी ने तुम्हारी बहादुरी की बहुत सी बातें मुझे बताई इसीलिए मैं स्वयं तुमसे मिलाने यहाँ चला आया.  गंगनाथ ने बड़ी बिनम्रता से कहा महाराज ये तो गुरुजनों और जोशी जी का आशीर्वाद था जो मैं ये सब कर पाया.     

Rajen:
महाराज ने गंगनाथ से कहा की दो दिन के बाद हम अपने प्रदेश के बीर नवयुवकों की एक प्रतियोगिता कराने जा रहे हैं जिसमें कुश्ती, तलवारबाजी और अंत में शेर से युद्ध होता है.  जो युवक इस प्रतियोगिता को जीत लेता है उसे हम अपना सेनापति बनाते हैं मैं चाहता हूँ की तुम भी उस प्रतियोगिता में भाग लो.  इससे पहले की गंगनाथ कोई उत्तर दे पाता, जोशी जी बोल उठे गंगनाथ इस प्रतियोगिता में अवश्य भाग लेगा महाराज.

भाना  और गंगनाथ के बीच पनप रहे रिश्ते की परिणिति के बारे में शोच कर जोशी जी बहुत दुखी हो उठे.  किसी गैर ब्राह्मण से वे अपनी पुत्री का विवाह करें, यह उनकी नजरों में घोर पाप से कम नही था.  जोशी जी मन ही मन इस बिषय पर सोचते रहे.  जिस धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने अपना घर-बार, रिश्तेदार सब कुछ छोड़ दिया था और यहाँ इस अनजान जगह पर आकर बसे थे उसी धर्म की रक्षा वे नही कर पाये तो उनका जीवन बेकार हो गया. यह बिचार उन्हें बिचलित किए जा रहा था.  गंगनाथ ने उनके प्राणों की रक्षा कर उन पर एहसान अवश्य किया था किंतु इस एहसान के बदले वे अपना  धर्म  भ्रष्ट कर दें यह उन्हें उचित नही लगा.  जोशी जी रात भर सो नही सके. 
उधर भाना कों जब यह पता चला की कल गंगनाथ एक ऐसी प्रतियोगिता में भाग लेने जा रहा है जिसमें उसकी जान भी जा सकती है तो वह रात कों ही गंगनाथ के पास चली गयी और उससे उस प्रतियोगिता में भाग न लेने के लिए मनाने  लगी.  गंगनाथ ने कहा सुनो भानु तुम बिल्कुल मत डरो देखना मैं ये प्रतियोगिता अवश्य जीत लूँगा. लेकिन भाना नही मानी और वह रोने लगी की अगर तुम्हें कुछ हुआ तो मैं भी जिन्दा नही रहूंगी.  तब गंगनाथ ने कहा   सुनो भानु एक बार प्रतियोगिता में भाग लेने की घोषणा हो जाने के बाद यदि मैं पीछे हट जाऊं तो बड़ी बदनामी होगी लोग मुझे कायर कहेंगे जो तुंम्हें भी अच्छा नही लगेगा.  गंगनाथ के आत्मबिश्वास कों देख कर भाना ने जिद की की वो पहले अपने बारे में सब कुछ बताये.  तब गंगनाथ ने कहा:

शेष भाग फ़िर....   

betaal:
I am dying to read the full story.......please please..

Anubhav / अनुभव उपाध्याय:
Rajen ji ab aur na tadpao please story complete karo.

Betal ji kripya apna intro dijiye Introduction board main :)


--- Quote from: betaal on July 28, 2008, 04:36:42 PM ---I am dying to read the full story.......please please..

--- End quote ---

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