Author Topic: Garjiya Devi and Sati Ansuiya Devi temple Uttarakhand,देवी मंदिर उत्तराखंड  (Read 34609 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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रामनगर से १० कि०मी० की दूरी पर ढिकाला मार्ग पर गर्जिया नामक स्थान पर  देवी गिरिजा माता के नाम से प्रसिद्ध हैं। देवी गिरिजा जो गिरिराज हिमालय  की पुत्री तथा संसार के पालनहार भगवान शंकर की अर्द्धागिनी हैं, कोसी (कौशिकी)  नदी के मध्य एक टीले पर यह मंदिर स्थित है।

वर्ष १९४० तक इस मन्दिर के  विषय में कम ही लोगों को ज्ञात था, वर्तमान में गिरिजा माता की कृपा से  अनुकम्पित भक्तों की संख्या लाखों में पहुंच गई है। इस मन्दिर का  व्यवस्थित तरीके से निर्माण १९७० में किया गया।

 जिसमें मन्दिर के वर्तमान  पुजारी पं० पूर्णचंद्र पाण्डे का महत्वपूर्ण प्रयास रहा है। इस मंदिर के  विषय में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिये इसकी ऐतिहासिक और  धार्मिक पृष्ठभूमि को भी जानना आवश्यक है।


http://www.merapahad.com/garjiya-devi-temple-uttarakhand/





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भगवान शिव की अर्धांगिनि मां पार्वती का एक नाम गिरिजा भी है, गिरिराज  हिमालय की पुत्री होने के कारण उन्हें इस नाम से भी बुलाया जाता है। इस  मन्दिर में मां गिरिजा देवी के सतोगुणी  रुप में विद्यमान है। जो सच्ची श्रद्धा से ही प्रसन्न हो जाती हैं, यहां  पर जटा नारियल, लाल वस्त्र, सिन्दूर, धूप, दीप आदि चढ़ा कर वन्दना की जाती  है। मनोकामना पूर्ण होने पर श्रद्धालु घण्टी या छत्र चढ़ाते हैं।  नव  विवाहित स्त्रियां यहां पर आकर अटल सुहाग की कामना करती हैं। निःसंतान  दंपत्ति संतान प्राप्ति के लिये माता में चरणों में झोली फैलाते हैं।


वर्तमान में इस मंदिर में गर्जिया माता की ४.५ फिट ऊंची मूर्ति स्थापित  है, इसके साथ ही सरस्वती, गणेश जी तथा बटुक भैरव की संगमरमर की मूर्तियां  मुख्य मूर्ति के साथ स्थापित हैं।

इसी परिसर में एक लक्ष्मी नारायण मंदिर भी स्थापित है, इस मंदिर में स्थापित मूर्ति यहीं पर हुई खुदाई के दौरान मिली थी।
कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान के पावन पर्व पर माता गिरिजा देवी के  दर्शनों एवं पतित पावनी कौशिकी (कोसी) नदी में स्नानार्थ भक्तों की भारी  संख्या में भीड़ उमड़ती है। इसके अतिरिक्त गंगा दशहरा, नव दुर्गा,  शिवरात्रि, उत्तरायणी, बसंत पंचमी में भी काफी संख्या में दर्शनार्थी आते  हैं।


पूजा के विधान के अन्तर्गत माता गिरिजा की पूजा करने के उपरान्त बाबा  भैरव ( जो माता के मूल में संस्थित है) को चावल और मास (उड़द) की दाल चढ़ाकर  पूजा-अर्चना करना आवश्यक माना जाता है, कहा जाता है कि भैरव की पूजा के  बाद ही मां गिरिजा देवी की पूजा का सम्पूर्ण फ्ल प्राप्त होता है।

http://himalayauk.org/2010/01/21/%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%9C%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%82-%E0%A4%AD%E0%A4%97%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%B0-%E0%A4%95/



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