Author Topic: Ghanta Karn Kumbh Held 12 Yrs in Tehri घंटाकर्ण कुंभ टिहरी जनपद की लोस्तु पंट्टी  (Read 7890 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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घंटाकर्ण देवता की महाजात छह से
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बारह वर्षो बाद आयोजित की जाने वाली घंटाकर्ण देवता की महाजात 6 से आयोजित की जाएगी। इस दिन श्रद्धालु दीपदान करेंगे।

विकासखंड के बारह मौजा ढुंडसिर क्षेत्र में धार पयांकोटी में विराजमान घटाकर्ण देवता की बारह वर्ष में होने वाली महा कुंभीय जात का आयोजन क्षेत्र के लोगों की ओर से 6 जनवरी से शुरू किया जा रहा है। इसके लिए स्थानीय लोगों ने एक मन्दिर समिति बनाई है। इसी सिलसिले में व्यवस्थाओं को लेकर संरक्षक मंडल व विशेष मेला समिति बनायी गयी है।

समिति के भगत सिंह राणा ने जानकारी दी कि चार जनवरी को देवता व उसके गण हरिद्वार गंगा स्नान के लिए रवाना होकर पांच जनवरी को वापस आएंगे। 6 जनवरी को गांव के चौरा से सभी गांवों के सैकड़ों लोग देवता के साथ देव स्थान पर पहुंचेंगे इसी दिन से यह नौ दिवसीय महायज्ञ शुरू होगा।


Dainik Jagran

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पांडुकेश्वर : स्थानीय लोगों के आराध्य देव क्षेत्रपाल घंटाकर्ण दो वर्ष बाद पांडुकेश्वर स्थित अपने मूल मंदिर में भगवान कैलाश के साथ विराजमान हो गए हैं। वेद मंत्रोच्चार के साथ उन्हें अपने मूल मंदिर में यथास्थान विराजमान किया गया। दो वर्षो से क्षेत्रपाल घंटाकर्ण के पौराणिक मंदिर का जीर्णोद्वार कार्य चल रहा था जिससे उन्हें गांव के ही एक छोटे से मंदिर में रखा गया था।

बदरीनाथ मंदिर के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल के साथ सात अन्य ब्राह्मणों ने विधिवत रूप से सभी पूजा संपन्न कराने के बाद घंटाकर्ण की मूर्ति को घंटाकर्ण मंदिर में विराजित किया। कार्यक्रम में पांडुकेश्वर, भ्यूंडार व लामबगड़ ग्राम सभाओं के कुबेर व नंदा माता के पश्वा ने श्रद्धालुओं को आशीर्वाद दिया। बदरीनाथ मंदिर की शैली में 50 लाख रुपये से भी अधिक धनराशि की लागत से पांडुकेश्वर में घंटाकर्ण मंदिर के जीर्णोद्वार का कार्य पिछले दो वर्ष से चल रहा था। 11 जनवरी से इस मंदिर में घंटाकर्ण की मूर्ति स्थापना को लेकर कार्यक्रम शुरू हुआ था जिसमें स्थानीय ढोल दमाऊं और अन्य पारंपरिक वाद्य यंत्रों द्वारा घंटाकर्ण व कैलाश के नए अवतारी पश्वा को भी अवतरित करने की प्रक्रिया चल रही थी। 14 जनवरी को उत्तरायणी त्योहार के दौरान महाविद्या पाठ की पूजा पूर्ण होने के साथ ही पूर्णाहुति दी जाएगी।

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घंटाकर्ण अज्ञातवास से  लौटे मंदिर में विरामान

बदरीनाथ: सात माह तक अज्ञात स्थान पर रही घंटाकर्ण की मूर्ति को देश के अंतिम गांव माणा स्थित घंटाकर्ण मंदिर में स्थापित कर दिया गया है। मूर्ति स्थापना के बाद गांव के बारीदारों ने पूजा की। अब बदरीनाथ के कपाट बंद होने तक घंटाकर्ण अपने मूल मंदिर में भक्तों को दर्शन देंगे।
 गौरतलब है कि जब श्री बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होते हैं, उसी दौरान माणा गांव के ईष्ट देवता घंटाकर्ण के भी कपाट बंद कर दिए जाते हैं। कपाट बंद करने के बाद घंटाकर्ण के पश्वा भगवान घंटाकर्ण की मूर्ति अज्ञात स्थान पर छिपा देते हैं। पश्वा के अलावा ग्रामीणों तक को इस मूर्ति के बारे में जानकारी नहीं दी जाती है। यह परंपरा आदि काल से चली आ रही है। ग्रामीणों का मानना है कि कपाट बंदी के दौरान मूर्ति से कोई छेड़खानी न करे। इस लिहाज से इस मूर्ति को अज्ञात स्थान पर छिपाया जाता है।
 नवंबर में जब भगवान बदरी विशाल के कपाट बंद होते हैं। उससे ठीक दो दिन पहले घंटाकर्ण के कपाट बंद कर मूर्ति छिपा दी जाती है। सात माह तक अज्ञातवास पर रहने के बाद जब श्री बदरीनाथ के कपाट खुलने हैं उसके बाद शुभ मुहूर्त पर मूर्ति निकालकर मंदिर में विराजित की जाती है। इस वर्ष शुक्रवार को शुभ मुहूर्त के अनुसार अज्ञात स्थान से भगवान घंटाकर्ण की मूर्ति निकालकर मूल मंदिर में स्थापित की गई।
इस वर्ष के गांव के चार बारीदारों ने ग्रामीणों को घंटाकर्ण का प्रसाद भी बांटा गया। घंटाकर्ण के पश्वा गंगा सिंह बिष्ट बताते हैं कि मूर्ति स्थापना के दौरान ग्रामीणों को विशेष प्रसाद वितरित किया जाता है। http://www.jagran.com/uttarakhand/chamoli-10478130.html

 

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