Author Topic: Ghanta Karn Kumbh Held 12 Yrs in Tehri घंटाकर्ण कुंभ टिहरी जनपद की लोस्तु पंट्टी  (Read 7891 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

We are sharing this exclusive information about "Ghanta Karna Kumbh" which held once in 12 Yrs in Tehri District of Uttarakhand.

Know more about "Ghanta Karn Kumbh" -

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टिहरी जनपद की लोस्तु पंट्टी में हर बारह वर्ष पर घंटाकर्ण महाराज के पूर्ण कुंभ का आयोजन किया जाता है!

सतयुग में घंटाकर्ण का जन्म राक्षस के रूप में हुआ। उनके दोनों कानों पर बड़े-बड़े घंटे बंधे थे। शिवभक्त घंटाकर्ण बद्रीनाथ स्थित शिव के स्थल पर रहकर पूजा-अर्चना करता था। एक बार शिवजी की अनुपस्थिति में भगवान विष्णु वहां पहुंचे और शिव के स्थल में रहने की अनुमति मांगी। घंटाकर्ण ने विष्णु को वहां रुकने की अनुमति नहीं दी। इस पर विष्णु क्रोधित हो गए और घंटाकर्ण से उनका युद्ध होने लगा। बहुत देर तक युद्ध करने के बाद जब विष्णु कमजोर पड़ने लगे तो उन्होंने सुदर्शन चक्र से घंटाकर्ण की गर्दन काट दी। शिवजी जब वापस वहां पर पहुंचे तो उन्हें पूरा वाकया पता चला। तभी उन्होंने घंटाकर्ण को भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करने का वरदान दिया। कहा जाता है कि घंटाकर्ण ने अगले जन्म में वीर अभिमन्यु के रूप में जन्म लिया। आज भी लोस्तु पंट्टी में आयोजित होने वाले कुंभ में अभिमन्यु का पश्वा (देव अवतार) 'मेरी माता सुभद्रा रेली, पिता अर्जुन को जाया, सुभद्रा को पठायो' अर्थात मेरी माता सुभद्रा और पिता अर्जुन होंगे बोलते हुए भक्तों को आर्शीवाद प्रदान करते हैं।

महाकुंभ की तर्ज पर इसका आयोजन भी प्रत्येक 12 वर्ष में किया जाता है। इसका निर्धारण पौष शुक्ल पूर्णिमा की रात्रि से किया जाता है। स्थानीय भाषा में इसे स्यूरत की रात कहा जाता है। ग्यारह जनवरी 2011 को देवगड़ी गांव से घंटाकर्ण महाराज की शोभायात्रा के साथ इसका आगाज होगा। शाम को घंडियाल धार पहुंचकर देवता की पूजा-अर्चना की जाएगी। अगले नौ दिन और रात तक आठों पहर देवता के जागर गाए जाएंगे। 21 जनवरी को यज्ञ में पूर्णाहुति के बाद देवता वापस देवगड़ी लौटेंगे। इस वर्ष पहली बार कुंभ में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाएगा।

Regards,

M s Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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GHANTA KARN
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Ghanta Karn, a devout bhakt of Shiva who hung huge bells over his ears so that he would not have to hear the name of any other god, including Vishnu. After severe penance, when Shiva offered him a boon, he asked for salvation. Shiva, knowing of Ghanta Karn’s partiality and wanting him to accept Vishnu’s divinity as well, told him that only Vishnu could grant him salvation. Saddened, because he did not expect Vishnu to give him anything after his stated antagonism, Ghanta Karn nevertheless immersed himself completely in Vishnu’s worship. The lord, who is known to love his devotees, blessed Ghanta Karn and offered him a place at his temple in Badrinath, making him the lokpal (guardian deity) of the region.


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखण्ड की लोक पारम्परिक एवं पौराणिक, आध्यात्मिक लोक सांस्कृतिक विरासत भारतवर्ष में ही नहीं, अपितु पूरे विश्व में अपना अलग स्थान रखती है। पवित्र मानी जाने वाली गंगा-यमुना के उद्गम स्थल तथा मनीषियों एवं )षियों की तपस्थली, वेद पुराणों के रचना केन्द्र देवभूमि के नाम से ख्याति प्राप्त इस क्षेत्र को विशेष महत्व दिया गया है। धर्म और दर्शन के साथ-साथ यहां साहित्य कला व संस्कृति से जुड़े हर पहलुओं ने भी सहस्त्रों वर्षों से भारतीय संस्कृति को परिस्कृत किया है।

श्रीनगर गढ़वाल से 40 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। इसके पूर्व में रुदू डाण्डा पर्वत श्रृंखला, पश्चिमोत्तर में पाण्डव खाल, उत्तर में राजवंगा नामक उच्च पर्वत शिखर तथा दक्षिण में चोनी खाल श्रेणी है। यह क्षेत्र प्राकृतिक सौन्दर्य तथा बांज, बुरास, मौरु, खर्सू, काफल, किनगोड, हिंसर, आंवला, चीड़, भीमल, खड़िक आदि वनस्पतियों से युक्त तथा छोटे-छोटे गाड़-गधेरों से सुशोभित मनोहर दृश्यों का भण्डार है। पट्टी लोस्तु के 25 गांव एवं 18 जातियों का यह ईष्ट देवता है। कीर्तिनगर के लोस्तु बडियारगढ़ घंडियाल देवता
की ऐतिहासिक महाजात 12 वर्ष के बाद इस वर्ष 11 जनवरी 2011 से प्रारंभ होगी। इस दिन सभी पश्वा नेजा निशानों का श्रृगंार कर देवगढ़ी से घंडियालधार के लिए शोभा यात्रा में शामिल होंगे। इससे पूर्व विधिविधान के साथ वेद मंत्र पढे़ जाएंगे। यह महाजात
11 जनवरी से 20 जनवरी 2011 तक चलेगी।

पुराणों में घंटाकर्ण को यक्ष देव भी कहा गया है। हरिवंश पुराण में कहा गया है कि घंटाकर्ण कान में घंटी बांधकर शिव की अराधना करते थे, ताकि शिव ओमकार के शिवाय उन्हें कुछ ना सुनाई दे। मान्यता है कि तपस्या पूर्ण होने पर भगवान शिव घंटाकर्ण से बोले कि तुम विष्णु भगवान की पूजा करो, वही तुम्हें मुक्ति दंेगे। इसके बाद विष्णु भगवान ने घंटाकर्ण को आदिबद्री की उपाधि देकर बदरीनाथ में स्थान दिया। उन्होंने कहा कि कलयुग में तुम्हंे हर स्थान पर पूजा जाएगा। उत्तराखण्ड में घंटाकर्ण, घंडियाल देवता को अलग-अलग स्थानों पर पूजा जाता है। वही लोस्तु बडियारगढ़ में खत्री घंडियाल ,क्षत्रिय घंटाकर्ण के नाम से पूजा जाता है। यह देवता सोलहवीं शताब्दी से पहले आ गए थे। खत्री घंडियाल देवता, राठी, क्षेत्रपाल, विनसर, हीत, नागराजा, देवीमहाकाली को विधि विधान से पूजा जाता है। लाखों श्र(ालु इस महाजात में भाग लेते हैं। जनपद टिहरी गढ़वाल के कीर्तिनगर विकासखण्ड के लोस्तु बडियारगढ़ में घ्ंाटाकर्ण आदिबदरी की भव्य ऐतिहासिक महाजात देवताओं के स्थानों की पूजा का प्रमाण है। वीर अभिमन्यु को घंटाकर्ण देवता के रूप में पूजा जाता है। घंटाकर्ण देवता की ऐतिहासिक महाजात 12वर्ष में होती है। देव भूमि में कई स्थानों पर इस देवता के मन्दिर हैं। जहां समय-समय पर देव पूजा आयोजन किया जाता है। ढोल वादकों एवं ज्योतिषियों के मुताबिक, जब
दिल्ली पर गैर हिन्दुओं का साम्राज्य स्थापित हो रहा था, तभी देवताओं ने दिल्ली छोड़कर उत्तराखण्ड के हिमालय में अपना स्थान चुना था। तपस्थली शिव भूमि होने के कारण यहां जगह-जगह देवताओं ने अपने मठ बनाए।

(From Regional Reporter)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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धरती पर देवता और स्वर्ग में मन
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लोस्तु(कीर्तिनगर)

स्वस्तिन इंद्रो वृदसर्वाहा, स्वस्तिन.. मंदिर में स्वस्तिनवाचन मंत्र की गूंज, बाहर परिसर में ढोल दमाऊं की गर्जना, घंटों के स्वर, भंकोरों की दिव्य ध्वनियां, शंखनाद व चारों ओर घंटाकर्ण के जयकारे। इस बीच देवता अवतरण और श्रद्धालुओं को अक्षत का आशीर्वाद देना। ऐसा है इन दिनों घंटाकर्ण (घंडियाल)देवता की महाजात का दिव्य वातावरण। सैकड़ों किमी से लोग यहां पहुंचकर मन्नत मांग रहे हैं। कोई मनोरथ पूरा होने पर घंटे और छत्र भेंट चढ़ा रहा है तो कोई वांछित फल मिलने पर यहां दोबारा आने का संकल्प ले रहा है। घंटाकर्ण देवता के प्रति भक्तों की प्रगाढ़ आस्था का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पांच दिनों में ही यहां करीब ढ़ाई सौ घंटे, दो सौ छत्र और करीब चार लाख रुपये की नगदी भेंट स्वरूप एकत्र हो चुकी है। लोस्तु पट्टी के प्रसिद्ध घंडियालधार मंदिर में बीती 11 जनवरी से शुरू हुई महाकुंभीय महाजात का शनिवार को पांचवां दिन था। तीस गांवों के करीब बारह सौ परिवारों औश्र अठारह जातियों के इस संयुक्त आयोजन में चिकित्सा, यातायात व मनोरंजन की समुचित व्यवस्था है। सैकड़ों साल पहले स्थापित इस सिद्धपीठ में औश्र नौ रात्रि तक लगातार महायज्ञ चल रहा है। चारों प्रहर पूजन होता है और देवता अवतरित होते हैं। इनमें घंटाकर्ण के अतिरिक्त कैलापीर, देवी, नागराजा, हूणिया, कालिंका, हनुमान आदि हैं। कई परेशानियों से पीड़ित लोग दूर-दूर से आकर देवता से समस्याएं बताते हैं देवता समस्या का कारण औश्र उपाय बताता है। घंटाकर्ण, कैलापीर और देवी मिलकर तंत्र शक्तियों का शमन करते हैं। इस महामेले में इन गांवों के अतिरिक्त चंडीगढ़, दिल्ली, मुम्बई आदि शहरों के श्रद्धालु भाग ले रहे हैं।

बारिश भी नहीं डिगा पाई कदम

लोस्तु(कीर्तिनगर): कल से लगातार हो रही बारिश और हल्की बर्फबारी से भले ही क्षेत्र में तापमान में गिरावट आई हो लेकिन भक्तों की आस्था बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हो पाई है। भारी बारिश व ठंड के बावजूद भी टोला, ग्वाड़, रिंगोली, खोंगचा आदि गांवों से लोग मेले में पहुंच रहे हैं। भेंट चढ़ाने के लिए लोगों को घंटों तक लंबी लाइन में लगना पड़ रहा है।

Dainik jagran


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घंटाकर्ण महाजात आयोजन की तैयारी पर की चर्चा
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घंटाकर्ण देवता की जनवरी 2012 मे होने वाली महाजात को लेकर आयोजन समिति की बैठक में तैयारियों को लेकर रूपरेखा पर चर्चा की गई। बैठक में घंटाकर्ण मंदिर स्थल को मां चन्द्रबदनी की तर्ज पर जोड़ने व विकसित करने के लिए सामूहिक प्रयास पर जोर दिया गया।

मंगलवार को विकासखंड के ढुंगसिर पट्टी के पयांकोटी में आयोजन समिति की बैठक में बताया गया कि श्री घंटाकर्ण की पूर्ण कुंभीय महाजात जनवरी 2012 में होनी निश्चित हुई है। बैठक में महाजात की तिथि घोषित करने की जिम्मेदारी देवता के पुजारियों को सौंपी गई। जल्द ही महाजात की तिथि तय की जाएगी। बैठक की अध्यक्षता करते हुए भूप सिंह पंवार ने बताया कि आयोजन समिति की आगामी बैठक में तैयारियों को लेकर उप समितियों का गठन किया जाएगा। बैठक में मुख्य अतिथि पूर्व मंत्री मंत्री प्रसाद नैथानी ने कहा कि इस स्थल को पर्यटन व धार्मिक रूप में विकसित करने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे। बैठक में डीके नेगी, विजय सिंघवान, कलमू कोहली, विमला देवी, तारालाल, संजीव चौहान, मोहनलाल, चन्द्रभानु तिवाड़ी, अमर सिंह, उम्मेद पंवार, उत्तम सिंह राणा, मेहरबान सिंह पंवार, हिम्मत सिंह सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित थे।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7355342.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड में कई स्थानों पर श्री घंटाकर्ण प्रतिठित है! लोस्तु बदियागढ़ में इन्हें वीर अभिमुन्य के रूप में पूजा जाता है ! जिनका रूप लोक नायक लोक कल्याणकारी देवता का है! स्थानीय सर पर इन्हें खैत्री (क्षत्रिय) कहते है! घड़ियाल माना जाता है !

बूडा इन्द्र का नाती, खाती का कुवर
सुभद्रा को लाडलो, महाभारती राजा
सैनी महादूर का राजा, पांडवी औलाद, खत्री घड़ियाल . 

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घंटाकर्ण देवता की महाजात को लेकर तैयारियों शुरू
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जनवरी से बारह मौजा ढुण्डसिर में होने वाली घंटाकर्ण देवता की 12 वर्षीय महा कुम्भीय जात को भव्य रूप देने को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं।

बुधवार को प्रखंड के ढुण्डसिर क्षेत्र में महा कुंभीय जात को लेकर प्राथमिक विद्यालय धारी में राजस्व मंत्री दिवाकर भट्ट व मन्दिर समिति के बीच व्यवस्थाओं को लेकर बैठक हुई। इस दौरान राजस्व मंत्री श्री भट्ट ने एसडीएम रामजी शरण शर्मा को मेले में सभी विभागों के स्टाल लगाने के निर्देश दिए। मेले की व्यवस्थाओं को लेकर उन्होंने लोगों व मंदिर समिति के सदस्यों को हर संभव सहायता के लिए आश्वास्त किया।

 इस दौरान उन्होंने लोगों की समस्याएं भी सुनीं। इस दौरान उन्होंने राइंका धारीढुण्डसिर में निर्माण निगम की ओर से किये जा रहे विद्यालय भवन निर्माण की जांच करवाने को कहा।


उन्होंने वहा मौजूद पीएमजीएसवाई के सहायक अभियन्ता को सड़क की दुर्दशा पर फटकार लगाते हुए उन्हें सात दिनों के अन्दर सड़क की स्थिति व काश्स्तकारों के प्रतिकर के भुगतान सहित क्षतिपूर्ति से उन्हें अवगत करवाने को कहा।


Dainik Jagran

 

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