Author Topic: Give Temple Details - यहाँ दीजिये अपने क्षेत्र के छोटे-२ मंदिरों का विवरण  (Read 27707 times)

MANOJ BANGARI RAWAT

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मटेलेश्वर महादेव मटेला मल्ला
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Lalit Pundir

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[justify]श्री बिन्सर देवता का संशिप्त इतिहास ।

देव भूमि उत्तराखंड के टेहरी गढ़वाल जनपद में विकाश खण्ड कीर्तिनगर की ग्राम पंचायत चिलेडी । समुद्रतल से 4000 फिट की ऊंचाई पर तथा कीर्तिनगर मोटर मार्ग से लागभग 35 की.मी.की दुरी पर स्थित है। यह गाँव घौर गोंऊ के नाम से भी जाना जाता है। यहा पर भी गढ़ संस्किरती सभ्यता एव परम्पराओ के अनुरूप अपने कुल देवताओं एव ग्राम देवताओं (भूमियाँ) की पूजा निर्धारित समय अनुसार होती रहती है।
चिलेडी गाँव के मध्य में स्थित भंडार में नागराजा बिन्सर हीत घड़ियाल खत्री घडियाल छेत्र्पाल तथा मषाण देवता के निशान (पत्तीक चिन) रहेते है। सन 1892 से पूर्व में इसमें राजा के कारिंदे रहेते थे जब पटवारी ब्यवस्था टेहरी नरेश के द्वारा की गई तब से यह पंचायती भंडार बनाया गया है गाँव के उतर पूर्व में श्री बिन्सर देवता नागराजा देवता घनडीयाल देवता पूर्व में हीत देवता दक्षीण में कलिनका माता पश्चिम में क्षेत्रपाल उत्तर पश्चिम में मषाण देवता के मन्दिर स्थापित है । जिनकी समय समय पर पूजा अर्चना की जाती है।
बिन्सर देवता की स्थापना :- वृषभ राशि में जन्मे पीत वस्त्र धारी बिन्सर देवता की स्थापना चिलेडी गाँव में 18 वीं शदी मानी जाती है जनश्रुति के अनुसार बिन्सर देवता ग्राम रौठया भरदार से धियानी (बहु)के साथ दैजा (दहेज) आये कुछ का मत है कि बिन्सर देवता बालक के रूप में ग्राम चिलेडी के पुंडीर वंश में एक वृद्ध व्यक्ति के स्वपन में आये थे की मै सैनी चिलेड़ी में रहना चाहता हूँ यहाँ मेरा मन्दुला (मन्दिर का छोटा स्वरूप) स्थापित करो उस वृद्ध व्यक्ति ने अपने स्वपन की बात गाँव वालो को बताई गाँव वालो ने वृद्ध की बात पर देवता के प्रति अपनी श्रद्धा एव आस्था व्यक्त करते हुए व्यक्ति विशेष पर अवतरित होने की प्राथना की जिसके फलस्वरुप बिन्सर देवता श्री कुमदु पुण्डीर के व्यक्ति पर ही अवतरित हुए थे गाव वासियों ने गाँव के किनारे उत्तर पूर्व में बिन्सर का मंदुला बनाया और असी चिलेड़ी (80 परिवारों का चिलेड़ी ) द्वारा श्री बिन्सर देवता को अपने ईस्ट देवता के रूप में पूजने लगे आज 80 परिवारों का चिलेड़ी जनसंख्या की वृद्धि से आज चार चार ग्राम पंचायत चिलेड़ी पाव सिरवाडी तथा ग्राम पंचायत मंजुली में तब्दील हो गया है लेकिन देवताओ की जात आज भी अस्सी चिलीडी से प्रचलित है।
नये निशानों का निर्माण:- जनश्रृति के अनुसार देवताओ के पुरानें निशान (प्रतीक चिन्न ) 19 सदी के प्रथम दशक में गोरख्यानी ( गोरखा आक्रमण) के समय चोरी हो गये थे सनं 18 ई में टिहरी राज्य की स्थापना के बाद नये निशान बनाने की योजना बनाई गई 19 वीं शादी क चौथे दशक में ग्राम चिलेड़ी के उत्तर पशिच्म में चामासारी नामे स्थान पर चामा पेड़ के निचे पवित्र स्थान पर एक बड़े पत्थर की शिला पर ग्राम चिलेड़ी के श्री छ्पोदिया लोहार द्वारा निधानो का निर्माण किया गया।
श्री बिन्सर देवता के निशान के साथ हीत घंडियाल खत्री घंडीयाल नागराजा क्षेत्रपाल मषाण देवता तथा दो अंग रक्षक के निषाण बनाये गये थे निषाण लोहे के बने होने पर भी चाँदी की तरह से चमकते रहते है थान पर खुले आकाश के नीचे धुप-वर्षा लगने पर भी जनक नाम की कोई वस्तु दिखाई नही देती है । निशाण बनाने के एक साल बाद अस्सी चिलेडी के पांचो द्वारा तीन दिन का यज्ञ (प्राण प्रतिष्ठा) ततकालीन पंडित श्री पारखी जोशी ग्राम मुश्मोला द्वारा किया गया यज्ञ में सभी ग्राम वाशियों ने बड-चढ़ कर भाग लिया मकर सक्रांति के दिन सभी देवताओं के निशाणो को सजाया धजाया गया था
पूजा अर्चना के बाद देवता अवतरित हुए थे देवताओं ने भक्तो को रैत मैत की चौलू दाणी माथा भाग (आशीवाद) दिया और देवताओ को गाजा-बाजा के साथ चामासारी से विंसर के थान तक प्रत्येक कदम पर हवन करके देवता के निशाणो को बिन्सर के थान पर पहुचाया गया थन पर पूजा अर्चना के बाद देवता अवतरित हुए उसी समय पांचो का (सामूहिक) धागुला (चाँदी का कड़ा) श्री कुलालु पुंडीर विन्सर देवता के पश्वा पर लगाया गया था। तब ही से हर देवता की जात में उसके पश्वो पर पंचायती धागुला स्थापित किया गया था देवताओं द्वारा भक्तो को आशीर्वाद के बाद विन्सर देवता के साथ सभी देवताओं के निशाण थान पर थरपे गये ।विन्सर के मन्दिर के पीछे खेत की दिवार पर पत्थर के आले (निशान रखने वाले पत्थर के सांचे ) आज भी मैजूद है सन 1892 तक देव्ताओक भंडार यही पर था इसी लिए विंसर देवता के मंदिर को मथ्य भंडार के नाम से भी जाना जाता है।
टिहरी राज्य की स्थापना से पहेले चिलेडी क्षेत्र में देवी देवताओं की सामूहिक जात नही होती थी यहाँ लोग अपने कुल देवी देवता की पूजा हर पुर्न्य पर्व बैशाखी श्रावण दीपावली विजयादशमी मकर शक्रान्ति ,पंचमी अनेक ऐसे पर्व पर धुप दीप पिठाई चडाकर पूजते थे अपने इष्ठ देवता पर श्रदा एव विश्वाश का ही प्रतीक है की अधिकतर परिवारों में किसी न किसी एक सदस्य के हाथ पर धागुला (चंडी का कड़ा ) आज भी पहना होता है यह हमारी देव संस्किर्ति के पार्टिक है
विन्सर देवता की जात :- विन्सर देवता की जात तिसाला (हर तिसरे वर्ष ) मकर सन्करान्ती के पर्व पर होती है देवताओ को गन्गा स्नान / गन्गा जल लाकर थर्प (थान) पर स्नान कराया जाता है गन्गा जल लाने के लिये पन्यारी नियुक्त किया जत है जो अलकन्नदा गन्गा से मकर सक्रान्ती कि सुबह गन्गा जल लाकर पहुन्चाता है देवताओ को गन्गा जल से स्नान के बाद निशानो को सजाया जाता है यहा पर चारो ग्राम पन्चायत चिलेडी पाव सिरवाडी कि तथा ग्राम पन्चायत मन्जुली से अलग अलग गान्व कई महिला पुरुश एव बच्चे डोल दमाऊ भ्न्करो के साथ सज धज कर मुख्य भ्ण्डार (थान) पर पहुन्चते है थान पर हवन पुजा के पश्चात देवता अवर्तरीत होते है ओर भक्तो को आश्रिवाद देकर देवता ढोल दमाउ भन्करो शन्ख ओर श्र्धालुओ की जै जै कार के साथ चिलेडी गान्व के मध्या से होते हुये बिन्सर देवता के थान पर पहुन्चते है
यहाँ देवताओं के स्वागत में महिला मंगल दल के द्वारा आरती की जाती है (आरती की प्रथा सन २००३ से सुरु हुआ इससे पूर्व नही थी श्री विन्सर देवता जात का कार्य कर्म शांति प्रधान करने वाला होता है यहाँ पर श्रद्धालुओ का आगमन दिनरात हर समय लगा रहेता है भक्तो द्वारा देवता को भेंटस्वरूप छत्र घांड वस्त्र (साडा ) पगड़ी चावल पिठाई घी आदि चढाई जाती है पहेले यहाँ पर बकरे की बलि भी दी जाती थी लेकिन सन १९८३ से बलि प्रथा बंद कर दी गयी है विन्सर देवता द्वारा आश्रिवाद स्वरूप भक्तो और धियानियो की सुख समिर्दी हेतु देवता इन शब्दों (वाक ) उच्चारण करते है
"घँणा जत्रेइयो धियानियो कैदमी भक्तो
आशा लीक आंया आश्रिवाद दी जोलु
रेत-मैत कुलोभी छोऊ मी अन्न धन कु लोभी नि छो
सूरज झल्यारु रे मेरु, मेघ पंदियारू
दिशा धियनियो के रयों निर्मेती कुमैती
निरधारि कु आधारी बेटी कु अडेतु ब्वारियो बैदालु
ओतों पुत्र दियोलू क्वारो वर दियोलू
अपणी रेत मैत तै जसा दी जोलु
संकट काटलु विपदा हरलू केदारी माथंम दियालू हरद्वारी भोग
तुमारी जात्रा सफल फ्ल्लो
स्युरता के पश्चात पुन्नाहुती यज्ञ के साथ जात संपन होती है
विन्सर देवता की केदारनाथ यात्रा :- श्री विन्सर देवता ३१ मई सन १८८१ से ११ जून सन १८८१ तक की १२ दिन की पैदल तीर्थ यात्रा पर केदारनाथ गया था यह यात्रा चिलेडी, पाव, मंजुली,ढौड़ॉ सोंदा जाखाल सूरया परयाग भिरि फाता सोनपरयग गोरिकुनड़ ‍‌‌‍ गरूरचटी आदि स्थानों से होते हुए केदारनाथ पहुंची थी वापसी में त्रयुगी नारायण माधुच्त्ठी पंवाली कांठा भणडारियो ‌‍‍‍‌की रे चिरवीटा ताल रिगोली भवाड़ीखालथाला घदियाल्धार होते हुए चिलेडी थान वापस आई इस यात्रा की वापसी में विन्सर देवता के पस्वा श्री सोनू पुंडीर की मिर्त्यु ८ जून १८८१ को मघु चट्टी और पवाली के बिच की चड़ाई पर हुई थी तब से चिलेडी की यह तीर्थ यात्रा पिछले १३५ सालो में स्तगित है
विन्सर देवता की प्रयाग रुद्रप्रयाग यात्रा :- हमारे पूर्वजो ने परिसिथती के अनुकूल केदारनाथ तीर्थ यात्रा की जगह हर १२ वर्ष में प्रयाग (रुद्रप्रयाग ) की चार दिन की पैदल तीर्थ यात्रा सुरु की यह यात्रा सन १८९३ में तत्कालीन विन्सर देवता के पस्वा श्री भजनु बागड़ी के समय में सुरु हुई थी यह यात्रा चिलेडी (थान ) घडियाल धार थाला पाव मंजुली फतुदुखाल डँगया तिमली कफना तुसिगड़ रोठ्या जवाड़ी होते हुए प्रयाग (रुद्रप्रयाग )मंदाकनी और अलकनंदा के समीप अलकनंदा के दये तट पर माई की मडी पर पहुंचती है यहाँ पर देवताओ के पूजन स्नान के बाद वापस रौठया कफना सोरखाल घणकुलीखाल भयुन्ता पल्गाड़ घणजी बढगाड सिरवाडी रठेड ग्वाड होते हुए वापस चिलेडी (थान ) पहुंचती है
विन्सर देवता का गंगा स्नान :- मकर सक्रांति पर हर साल तीसरे वर्ष समय अनुसार देवताओ को गंगा स्नान के लिए सुपाणा ग्राम के नजदीक अलकनंदा नदी के दायें तट देव घाट पर मकर सक्रांति की पूर्व संध्या पर ले जाया जाता है मकर सक्रांति की भोर में परव पर देवतओ के द्वारा स्नान किया जाता है तत पश्चात सभी पश्वा व श्रद्धालु स्नान करते है हवन व गोदान के उपरांत ही थान के लिए देवता सभी श्रधालुओ के साथ प्रस्थान करते है
विन्सर देवता के प्रमाणिक चमत्कार :- श्री विन्सर देवता के चमत्कारों के कई प्रणाम सुनने को मिलते है उसमे एक चमत्कारिक प्रणाम कुछ दशक पहेले का है की एक बार विन्सर देवता की जात के समय धागुला (चाँदी का कड़ा )में कुछ चादी पंचो द्वारा और देकर श्री सौकार लोहार (सुनार अब स्व ) को बनाने के लिए दी गयी थी सुनार ने धागुला और चांदी को कोथ्यालू (चांदी पिगलाने वाला बर्तन ) पर डाला कोथ्यालू टुटा हुआ था तथा चांदी पिघलते समय कुछ चाँदी अंगेठी में गिर गई चांदी को रैचा (धागुले ला साँचा )में डाल कर धागुला तैयार किया गया अगले दिन धागुले को पाश्वा के हाथ पर लगाया जाना था किन्तु उसी रात ग्राम ग्वाड के थ्री फते सिह पुंडीर पुत्र श्री शिशु पुंडीर (तत्कालीन देवी के पुजारी )के स्वप्न में श्री विन्सर देवता आये की मेरे धागुले की ९ तोला चांदी सुनार की अगेठी में रह गई यह बात उन्होंने विन्सर देवता के पुजारी श्री घनश्याम सिह पुंडीर चिलेडी को बताई थी यही बात सुनार को बताने पर जब अंगेठी में ढूंडा गया तो चाँदी मिलिमिली ही पर वह ठीक ९ तोला ही थी इस आश्चर्यजनक दैविक चमत्कार का लोग आज भी यदा-कदा वर्णन करते रहेते है
बिन्सर देवता के पश्वा का कार्यकाल
नाम ग्राम कार्यलाल
१.श्री कुमुद पुंडीर चिलेडी ------ सन १८२९
२.श्री कुलालु पुंडीर पाव सन १८३० सन १८४९
३.श्री सोनू पुंडीर पाव सन १८५० सन १८८१
४.श्री भजनु बागड़ी पाव सन १८८२ सन १९००
५.श्री बलभद्र पुंडीर पाव सन १९०१ सन १९२६
६. श्री बक्सी बागड़ी पाव सन १९२७ सन १९५३
७. श्री इन्द्र पुंडीर सिरवाडी सन १९५४ सन १९८७
८. श्री कुंदन पुंडीर मंजुली सन १९८८ सन २०१२
९. श्री युद्धवीर पुंडीर पाव सन १९१३ आज तक
सौजन्य से श्री जंगवीर सिंह रावत (सूबेदार मेजर से.नि.)
ग्राम :- ग्वाड पट्टी:- बडियार गढ़ टेहरी गढ़वाल उत्तराखंड


 

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