Author Topic: Gorikund,Famus Kund in Uttarakhand- गौरीकुंड,एक ऐतिहासिक पर्यटन स्थल  (Read 20833 times)

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ऐतिहासिक  दृष्टि  से  गौरीकुंड  प्राचीन  काल  से  विद्यमान  है।  लेकिन  एच.जी. वाल्टन  ने  ब्रिटिश  गढ़वाल  अ  गजटियर  में  लिखा  है  कि  गौरीकुंड  मंदाकिनी  के  तट  पर  एक  चट्टी  थी।

 आगे  उन्होंने  लिखा  है  कि  यहां  गर्म  पानी  का  सोते  और  एक  कुंड  स्थित  है  और  केदारनाथ  के  यात्रियों  को  धाम  तक  जाने  से  पहले  यहां  हजामत  बनवानी  पड़ती  है।




गौरीकुंड  में, केदारनाथ  से 13 किलोमीटर  नीचे, मंदाकिनी  के दाहिने  तट पर, गर्म पानी  के दो  सोते हैं  (53°C और 23°C)।  एक दूसरा  गर्म सोता  ठीक बद्रीनाथ  मंदिर  के नीचे  है जिसका  तापमान  490C है।


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गौरीकुंड का परिचय



गौरीकुंड   में वासुकी गंगा (वासुकी ताल से, ऊपर केदारनाथ से) मंदाकिनी में मिलती है, यह कस्बा केदारनाथ के लिए मोटरवाहन शीर्ष है। यहीं से केदारनाथ के लिए पैदल रास्ता प्रारंभ होता है। यातायात को देखते हुए यहां वाहनों को खड़ा नहीं होने दिया जाता है। यात्रियों के उतर जाने के बाद अगर वाहनों को वहीं रुकने की जरूरत है तो उनके लिए लगभग एक किलोमीटर वापस जाना और नामित पार्किंग स्थलों पर प्रतीक्षा करना अनिवार्य है।

मंदाकिनी नदी यहां से गुजरती है और उसकी गरज प्रारंभ में लगभग डरा ही देती है। आप रास्ते के लिए खाद्य सामान, ऊनी वस्त्र, फिल्म, मेवे और पूजा सामग्री खरीद सकते हैं। यहां तपताकुंड नामक गर्म पानी का सोता है

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जहां आप केदारनाथ से लौटते समय डुबकी लगा सकते हैं या अपने पांवों को डुबो सकते हैं। प्रत्येक रात्रि में इसके पानी को मंदाकिनी में बहा दिया जाता है और अगले दिन की भीड़ के लिए पूरी तरह से साफ किया जाता है।

मौसम के दौरान, गौरीकुंड की पतली गली जीवन एवं कारोबार की हलचल से भरपूर होती है। 2006 में तीर्थ यात्रियों की संख्या पिछले सभी कीर्तिमानों को पार कर गई थी, और जून समाप्त होने से पहले ही 4 लाख के आंकड़े को पार कर चुकी थी।



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फिर भी लगभग यही प्रतीत होता है कि यहॉं हमेशा तीर्थ यात्रियों से अधिक सेवा प्रदाता मौजूद रहते हैं – होटल और लॉज (कुल मिलाकर लगभग 50 जो मंदिर समिति के गेस्ट हाउस, लोक निर्माण विभाग के निरीक्षण बंगले और काली कमली धर्मशाला के अतिरिक्त हैं),

रेस्तरां, ढाबे और चाय की दुकानें, डाक घर और एस.टी.डी. सेवाएं, दवाओं एवं ऑक्सीजन बोतलों के साथ कैमिस्ट, साधु और भिखारी, लगभग आधा दर्जन वीडियो पार्लर, खच्चर वाले, डंडी या कांधी (पालकी) वाले और कुली, कुली और अधिक कुली। पालकी वालों और कुलियों के बारे में एक उत्कृष्ट सच्चाई यह है कि उनमें से लगभग 80 प्रतिशत नेपाल से आते हैं जो सालों से मौसमी रोजगार एवं जीवनवृत्ति के लिए नियमित रूप से यहॉं आ रहे हैं।

 सिर्फ इतना ही नहीं, यहाँ नेपाल से आए ऐसे अनेक लोग हैं जो इस अनन्य रूप से नेपाली मौसमी महोत्सव में सेवा प्रदान करने के लिए दुकानों को नियमित रूप से किराये पर ले रहे हैं।



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लेकिन काम की तलाश में आने वाले व्यक्तियों का यह मौसमी अंतर्प्रवाह (स्थानीय और नेपाल से) अपने साथ विकट पर्यावरणीय एवं सामाजिक चुनौतियाँ भी लाता है।

 इन लोगों के लिए रिहाइश एवं शौचालय के अत्यंत सीमित विकल्प उपलब्ध हैं जो गौरीकुंड की वहन क्षमता को चरम पराकाष्ठाओं तक खींच देता है।

आज की स्थिति मे अनुसार, केदारनाथ की यात्रा सैकड़ो-हजारों लोगों को नितांत जरूरी रोजी-रोटी उपलब्ध कराती है जिनमें खच्चर वाले और डंडी-कांधी वाले और कुलियों से लेकर अनेक अन्य सेवा प्रदाता शामिल हैं जो एक साल में अधिक से अधिक छह महीने लेकिन व्यावहारिक तौर पर मात्र तीन महीने तक चलने वाले इस मौसमी यातायात पर अत्यधिक निर्भर हैं।



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यहां  गौरा  माई मंदिर गौरीकुंड



यहां  गौरा  माई  – गौरी  को  समर्पित  – का  सुंदर  एवं  प्राचीन  मंदिर  देखने  योग्य  है।  यहां  अत्यधिक  समर्पण  भाव  के  साथ  संध्याकालीन  आरती  की  जाती  है।  परमपावन  मंदिरगर्भ  में  शिव  और  पार्वती  की  धात्विक  प्रतिमाएं  विराजमान  हैं।  यहां  एक  पार्वतीशिला  भी  विद्यमान  है  जिसके  बारे  में  माना  जाता  है  कि  पार्वती  ने  यहां  बैठकर  ध्यान  लगाया  था।

 गौरीकुंड, ठंडे  पानी  का  एक  ढका  हुआ  स्रोत  जिसके  बारे  में  कहा  जाता  है  कि  उसका  पानी  दिन  में  कई  बार  रंग  बदलता  है, वह  स्थान  है  जहां  आप  गोदान  एवं  पिंडदान  करके  अपने  पूर्वजों  को  प्रसन्न  कर  सकते  हैं।

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उपयुक्त  यही  है  कि  तीर्थ  यात्री  अपने  वाहन  से  उतर  जाएं  और  गौरीकुंड  में  केदारनाथ  तक  दुष्कार  पैदल  यात्रा  करें, क्योंकि  गौरी  (पार्वती  का  दूसरा  नाम) ने  भगवान  शिव  को  प्राप्त  करने  के  लिए  ध्यान  लगाया  था, तप  और  तपस्या  की  थी।

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गौरी  की  इच्छा  पूरी  करते  हुए  शिव  ने  उससे  विवाह  किया।  यह  विवाह  त्रिजुगीनारायण  (सोनप्रयाग  से  भ्रमण) में  संपन्न  हुआ  था, और  गौरीकुंड  वह  जगह  हैं  जहां  वे  विवाह  के  बाद  पहली  बार  वापस  आए  थे  और  काफी  समय  तक  ठहरे  थे।

  स्थानीय  पुजारी  उमा  (पार्वती  का  एक  दूसरा  नाम) – महेश्वर  शिला  दिखाता  है, और  चट्टानों  पर  चिह्न  दिखाता  है  जो  गणेश  का  निरूपण  करते  हैं।  गौरीकुंड  पार्वती  के  घर  का  इलाका  है।  पार्वती  का  जन्म  यहीं  हुआ  था  और  यहीं  उसे  तारुण्य  मिला  था।

 यहां  स्थित  पानी  के  दो  कुंडों  में  जिनसे  गर्म  और  ठंडा  पानी  निकलता  है, अपना  पहला  तारुण्य  स्थान  किया  था।  आज  भी  यहां  गर्म  पानी  के  कुंड  में  तीर्थ  यात्री  अपनी  थकान  उतारते  हैं।  गणेश  शायद  इसी  स्थान  पर  पैदा  हुए  थे।  आज  तीर्थ  यात्री  विधिवत  पार्वती  मंदिर  में  जाते  हैं।

 

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