Author Topic: Haridwar: Where Lord Vishnu Resides - जहाँ बसते हैं हरि: हरिद्वार  (Read 28931 times)

पंकज सिंह महर

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शिव पुराण, स्कंध पुराण, पद्म पुराण और महाभारत में वर्णित हरिद्वार ब्रह्मा, विष्णु और महेश से संबंधित है। वायु पुराण के अनुसार पृथ्वी के सभी तीर्थ माया यानि हरिद्वार में बसते हैं। इसी कारण हरिद्वार पौराणिक काल से ही संत महात्माओं की तपस्थली, कर्मस्थली और परमेश्वर तक पहुंचने का प्रवेश द्वार रहा है। गंगा के धरती पर आगमन से पहले भी हरिद्वार ब्रह्मा जी का तीर्थ रहा है, ऎसी मान्यता है कि जिस स्थान पर आज हर की पैड़ी है, वहां पहले कभी ब्रह्म कुंड था, जिस कारण हर की पैड़ी के मध्य वाले भाग को आज भी "ब्रह्म कुण्ड" कहा जाता है।

पंकज सिंह महर

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दक्षेश्वर महादेव, कनखल

पंकज सिंह महर

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शिवजी की विशाल मूर्ति हरिद्वार में भीमगौड़ा बैराज के पास लगाई गई है।

पंकज सिंह महर

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मुख्य गंगा मन्दिर


सन्दीप काला

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HARIDWAR / हरिद्वार, As it's name suggests , it's meaning is "Gateway to God" (hari ka dwar with 'hari' meaning god and 'dwar' meaning

gate).Haridwar is regarded as one of the seven holiest places to Hindus, as the devas are said to have left their footprints there.It

is also known as Mayapuri, Kapila, Gangadwar.It is also a point of entry to Dev Bhoomi which means "Land of Gods" and  Char

Dham (Four main centers of pilgrimage in Uttarakhand) Viz. Badrinath, Kedarnath, Gangotri and Yamunotri.

सन्दीप काला

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SOME PLACES TO VISIT:

HAR-KI-PAURI
MANSA DEVI TEMPLE
CHANDI DEVI TEMPLE
MAYA DEVI TEMPLE
DAKSHA MAHADEV TEMPLE
PAVAN DHAM
BHARAT MATA MANDIR
SHANTI-NIKETAN
BHIMGODA TANK
SATI KUND
ANANDAMAYI MA ASHRAM
DOODHADHARI BARFANI TEMPLE
PARAD SHIVLING
SAPT RISHI ASHRAM & SAPT SAROVAR
JAIRAM ASHRAM

नारायण तेरा ही आधार है, भजो राधे गोबिन्दा.


पंकज सिंह महर

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जागरण news 24-07-2009

हरिद्वार का पौराणिक नाम गंगाद्वार है। साथ ही सप्तसरोवर से कनखल तक के स्थान को गंगाद्वार माना जाता है। इतना ही नहीं, कनखल से कुशावर्त घाट तक का इलाका पुण्यक्षेत्र में है। इस क्षेत्र में गंगा स्नान से मनुष्य को वहीं पुण्य मिलता है, जो हरकी पैड़ी पर स्नान से मिलता है। जी हां, यह बात किसी एक संत या फिर किसी एक पीठ ने नहीं की है। तमाम लोगों से बातचीत के बाद यह निष्कर्ष निकाला है हरिद्वार जांच आयोग ने। 15 जुलाई 1996 को सोमवती अमावस्या के मौके पर हरिद्वार में हुए हादसे की जांच के लिए न्यायमूर्ति राधे कृष्ण अग्रवाल की अध्यक्षता में हरिद्वार जांच आयोग नाम से एक जुडिशियल कमीशन का गठन किया गया था। आयोग ने 13 साल की कवायद के बाद अपनी रिपोर्ट सरकार को दी है। आज इस विधानसभा के पटल पर रखा गया। रिपोर्ट में आयोग ने भविष्य में ऐसे किसी हादसे की पुनरावृत्ति रोकने को तमाम सुझाव दिए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा प्रचारित किया जाता है कि हरकी पैड़ी पर गंगा स्नान करने से ही पुण्य मिलता है। इस वजह से यहां भारी भीड़ उमड़ती है और एक ही स्थान पर श्रद्धालुओं का भारी दबाव रहता है। इस पर नियंत्रण की जरूरत है। इसके लिए अब यह प्रचारित करने की जरूरत है कि सप्त सरोवर और कनखल के बीच ऐसा कोई भी स्थान नहीं है, जहां गंगा स्नान करने से हरकी पैड़ी की अपेक्षा कम पुण्य मिलता है। रिपोर्ट में इस तथ्य के बारे में द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद, भूमा निकेतन और जयराम आश्रम का जिक्र भी किया है। रिपोर्ट में कहा है कि गंगा कनखल पुण्य क्षेत्र यानि कनखल में गंगा और अधिक पुण्यदायी है। ध्यान से देखने पर यहां षष्ठ कुंड भी दिखाई देता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 1996 में हादसे के बाद बने आयोग ने भी इसी तथ्य को प्रचारित करने की सलाह दी थी। इसके बाद भी कोई काम इस दिशा में नहीं किया गया। अब सरकार से अपेक्षा की गई है कि इस पौराणिक तथ्य के बारे में विभिन्न शंकराचार्यो से बातचीत करके इसे बहुप्रचारित किया जाए। ताकि श्रद्धालुओं के मन में यह भावना उत्पन्न हो सके कि गंगाद्वार में किसी भी स्थान पर गंगा स्नान का समान पुण्य है। इससे कुंभ और अर्ध कुंभ समेत अन्य बड़े स्नान पवरें पर हरकी पैड़ी पर अधिक श्रद्धालुओं की भीड़ को कम करने में मदद मिलेगी।

Devbhoomi,Uttarakhand

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बहुत पुरानी बात है। संत रविदास हरिद्वार आए। पंडितों ने उनका दान लेने से मना कर दिया। पंडित गंगा राम ने कहा मैं आपका दान लूंगा और कर्मकांड संपन्न कराऊंगा। पंडित गोपाल आगे कहते हैं- उस वक्त हंगामा हो गया। ब्राह्मण पंडो ने कहा ऐसा होगा तो आपका सामाजिक बहिष्कार होगा। मगर पंडित गंगाराम ने परवाह नहीं की और संत रविदास से दान ले लिया। संत रविदास ने उन्हें पांच कौड़ी और कुछ सिक्के दान में दिये।
 उसके बाद पंडों की पंचायत बुलाकर कई फैसले किए गए। फैसला यह हुआ कि अब से कोई सवर्ण और ब्राह्मण पंडित गंगाराम से कोई धार्मिक कर्मकांड संपन्न नहीं कराएगा। पंडित गंगाराम ने भी कहा कि उन्हें कोई परेशानी नहीं लेकिन वो अपने फैसले पर अडिग हैं और उन्हें कोई पछतावा नहीं है। उसके बाद तय हुआ कि कोई पंडित गंगाराम के परिवार से बेटी-बहिन का रिश्ता नहीं करेगा।

पंडित गोपाल कहते हैं आज भी पंडों की आम सभा गंगा सभा में उन्हें सदस्य नहीं बनाया जाता। तब के फैसले के अनुसार कोई सवर्ण हमसे संस्कार कराने नहीं आता। हमारे पास सिर्फ हरिजन और पिछड़ी जाति के ही लोग आते हैं। पंडित गोपाल कहते हैं पुराने ज़माने में कोई हरिजन हरिद्वार नहीं आता था। एक तो उनके पास यात्रा के लिए पैसे और संसाधन नहीं होते थे दूसरा उन्हें गंगा स्नान से वंचित कर दिया जाता था।
 साथ ही पंडा लोग दलित तीर्थयात्रियों का बहिखाता भी नहीं लिखते थे। हरिद्वार आने वाले सभी तीर्थयात्रियों का बहिखाता लिखा जाता था जिससे आप जान सकते हैं कि आपके गांव या शहर से आपके परिवार का कोई सदस्य यहां आया था नहीं। बहरहाल हरिजन का बहिखाता नहीं होता था। लेकिन पंडित गंगा राम ने वो भी शुरू कर दिया। पंडित गंगाराम कहते हैं कि पिछले तीस साल से दलित ज़्यादा आने लगे हैं। दान भी ख़ूब करते हैं। हमारे परिवार का कारोबार भी बढ़ा है। अब हमारे परिवार के चार सौ युवक पंडा का काम कर रहे हैं। हमारी शादियां बाहर के ब्राह्मणों में होती है।
यहां बात समझ में आ रही है कि यह वही तीस साल है जब आरक्षण से दलितों की आर्थिक हैसियत में सुधार आया होगा। और अब जब उन्होंने सत्ता हासिल कर ली है तो उनके दान की क्षमता और भावना में भी वृद्धि हुई है। पंडित गोपाल का यह सामाजिक विश्लेषण किसी भी शोधकर्ता के लिए महत्वपूर्ण हो सकती हैं।
उन्हें इनके यहां रखे बहिखाते को देख कर पता लगाया जा सकता है कि कब से और कहां से दलितों ने सबसे पहले हरिद्वार आना शुरू किया? अब आने वालों का पारिवारिक विवरण क्या है? इन बहिखातों से दलितों के नामकरण में आ रहे बदलाव का भी अध्ययन किया जा सकता है।

 

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