जागेश्वर अल्मोडा से ३० किलोमीटर दूर है, आरतोला से मुख्य मार्ग से 1.5 किलोमीटर अंदर यह मंदिर समूह स्थित है। सडक से अच्छी तरह जुडा होने के कारण यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां एक साथ बने हुए १२४ मंदिर हैं, जिनमें मुख्य मंदिर भगवान शिव का है। इसके अलावा मां दुर्गा का भी मंदिर है। इस जगह की खासियत यहां भगवान कुबेर के मंदिर का होना भी है, जो अपने आप में अनोखा है। कुबेर का मंदिर मेरी अद्यतन जानकारी के मुताबिक कहीं और नहीं है।
ये मंदिर पहाडी स्थापत्य और कला के बेजोड नमूने होने के साथ पुरातत्त्व के नजरिये से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। जिसको देखते हुए भारतीय पुरात्तत्व विभाग ने यहां संग्रहालय भी बनाया है। इसमें जागेश्नवर के मंदिरो से निकली बेशकीमती मूर्तियों को रखा गया है। इन मंदिरों को कुमायुं के कत्यूरी राजाओं ने आठवीं से दसवीं शताब्दी के बीच बनवाया था। इन मंदिरो को बडे-बडे पत्थरों से जोड़कर बनाया गया। आज से लगभग बारह सौ साल पहले बने इन मंदिरो के पत्थरों को जोड़ने के लिए लोहे की कीलों का प्रयोग किया गया था। जागेश्वर देवदार के पेडों से घिरी घाटी है जिसकी सुन्दरता देखते ही बनती है। ये जगह समुद्र तल से १८७० मीटर की ऊंचाई पर होने के कारण किसी भी हिल स्टेशन से कम नहीं है।
जागेश्वर को शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। इस मंदिर के पुजारियों के बारे में माना जाता है कि ये लोग शंकराचार्य के साथ दक्षिण भारत से आये थे। इसलिए इन पंडितों को दक्खिनी भट्ट भी कहा जाता है।
कैसे जाएं-
दिल्ली से करीब साढे तीन सौ किलोमीटर दूर है। ऐसे में दिल्ली से सीधी बस और ट्रेन की सुविधा से आप सीधे काठगोदाम तक जा सकते हैं। वहां से सीधी बस से आप अल्मोड़ा तक जा सकते हैं। जागेश्वर अल्मोड़ा से महज तीस किमी की दूरी पर है। अल्मोड़ा से आप बस से या प्राइवेट टैक्सी लेकर जागेश्वर तक जा सकते हैं।
कहां ठहरें--
जागेश्वर में ठहरने के लिए ज्यादा सुविधा नहीं हैं। यहां कुमायुं मंडल विकास निगम का बनाया होटल है, जहां ठहरा जा सकता है। इसमें रुकने के लिए पहले से बुकिंग करवा लें, तो अच्छा रहेगा। अब लोग यहां आने लगे हैं जिसके बाद कुछ गांव वालों ने घरो में छोटे रेस्ट हाउस बना लिए हैं जहां रुकना भी अच्छा अनुभव है। कुमायुं मंडल के होटल का खाना भी बढिया है। जिसके कारण यहां रुकने में किसी भी तरह की असुविधा नहीं होती।