Tourism in Uttarakhand > Religious Places Of Uttarakhand - देव भूमि उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध देव मन्दिर एवं धार्मिक कहानियां

Jageshwar Temple - जागेश्वर मंदिर

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Anil Arya / अनिल आर्य:

--- Quote from: Anil Arya on June 01, 2011, 12:31:26 AM ---

--- End quote ---
ॐ नमः शिवाय नमः . एक शिव भक्त की हमारे फोरम को , फोरम के सभी सदस्यों एवं फोरम के मेहमानों को सप्रेम भैट. आपका दिन शुभ हो ! धन्यवाद 

dramanainital:
जागेश्वर धाम होने के साथ साथ एक बहुत ही सुन्दर स्थान भी है.मैं इस जगह से बहुत प्यार करता हूँ.

Devbhoomi,Uttarakhand:
जागेश्वर धाम जटागंगा में विशेष सफाई अभियान का आगाज किया। उन्होंने कहा कि धार्मिक एवं पर्यटन के लिहाज से अहम इस धाम को साफ सुथरा रखना सभी का दायित्व है। इससे पर्यटकों में भी अच्छा संदेश जाएगा।

मंगलवार को डीएम गुप्ता जागेश्वर धाम पहुंचे। उन्होंने कहा कि जागनाथ धाम पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है और केंद्र व राज्य सरकार की ओर से यहां के लिए कई महत्वाकांक्षी योजनाएं भी शुरु की हैं। धाम किनारे बहने वाली पवित्र नदी जटागंगा को श्रावणी मेले से पूर्व साफ सुथरा रखने के निर्देश देते हुए उन्होंने अन्य स्थानों पर भी अभियान शुरु किया जाएगा।

डीएम ने मेले की तैयारियों की समीक्षा बैठक भी ली और निर्देश दिए कि मेला अवधि में दुग्ध आपूर्ति तथा विद्युत व्यवस्था दुरुस्त रखी जाय। मंदिर परिसर में हाईमास्ट लाइटों को समय पूर्व ठीक कराने की हिदायत देते हुए उन्होंने होटलों में तैयार हो रहे भोजन की शुद्धता पर भी विशेष ध्यान रखने को कहा।

 उन्होंने मेले के दौरान कृषि, उद्यान, उरेडा, उद्योग आदि विभागों के स्टॉलों पर स्थानीय स्तर पर तैयार उत्पादों की प्रदर्शनी लगाने के निर्देश भी अधिकारियों को दिए।

इस मौके पर सीडीओ सी.रविशंकर, एसडीएम भनोली सीएस डोभाल, संग्रहालय प्रभारी मंजू तिवारी, डीएसओ डीआर राज, जीएम उद्योग कविता रानी, एडीईओ बेसिक आरसी पुरोहित आदि उपस्थित थे।


Sabhar Dainik Jagran

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Saroj Upreti जागेश्वर धाम उत्तरा खंड

 जागेश्वर धाम उत्तर खंड के प्रचीनतम मंदिरों में से है यहाँ १२४ भगवान् भोले नाथ के मंदिर हैं अल्मोरा से ३७ किलोमीटर दूर यह स्थान अत्यंत मनोमुग्घ करी है जबसे यहाँ का प्रचार बढा है इस धार्मिक स्थल पर १००० से अधिक यात्री यहाँ आते हैं धार्मिक महत्व के साथ यहाँ का प्रकृति का मनोरम दृश्य मन को मोह लेता है यहाँ से जाने को दिल ही नहीं करता लगता है अगर पृथ्वी पर स्वर्ग है तो यहीं पर है यहाँ के मुख्य मंदिरों में देनदेश्वेवर मंदिर, चंडी देवी का मंदिर, जागेश्वर का मुख्य मंदिर कुबेर मंदिर ,भगवान मृतुन्जय का मंदिर सब से प्राचीन मंदिर हैं बताया जाता है इन मंदिरों का निर्माण गुप्त काल मै किया गया गया था यानि ७ वीं ८ वीं सदी में इनका निर्माण किया गया होगा ये लगभग २५०० वर्ष पुराने हैं कहते हैं बद्री नाथ जाने से पहले आदि गुरु शंकराचार्य ने बदरीनाथ जाने से पहिले इनको renovate किया था जागेश्वर जाने के लिए अप्रैल  सितम्बर तक का मौसम सबसे अच्छा रहता है उत्तर खंड में यहाँ की बहुत मान्यता है लोग शुभ अवसरों पर यहाँ जाते है सावन के महीने में यहाँ बहुत भीड़ रहती है लोग पार्थी पूजन के लिए यहाँ एकत्रित होते है
 सरोज उप्रेती

Pawan Pathak:
जागेश्वर धाम में पार्थिव पूजा का विशेष महत्व
दर्शन मात्र से पूरी होती हैं मनोकामना
अद्भुत : आपस में जुड़ हैं दो पेड़ं की टहनियां
पांच सौ साल से होती है पूजा, मानसरोवर जाने वाले यात्री भी करते हैं दीदार
धारचूला (पिथौरागढ़)। पेड़ दो लेकिन दोनों की टहनियां आपस में जुड़ हुईं। कुदरत का यह करिश्मा सीमांत तहसील धारचूला के छिंदू गांव में दिखाई देता है। यहां चीड़ के दो पेड़ दो टहनियों से आपस में जुड़ हुए हैं। वनस्पति शास्त्रियों के लिए शोध का विषय इन वृक्षों की स्थानीय लोग पूजा करते हैं। इन्हें लला तिति (आमा- बुबू अर्थात दादी-दादा) के नाम से पुकारते हैं। कैलास मानसरोवर, छोटा कैलास के साथ ही ऊँ पर्वत के दर्शनों को जाने वाले लोग इन पेड़ं को देख आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रहते।
गर्व्यांग गांव से डेढ़ किलोमीटर आगे छिंदू गांव में स्थित इन पेड़ं की खासियत यह भी है कि इनके पत्ते भी नहीं सूखते। स्थानीय लोगों के अनुसार लगभग पांच सौ साल से ये पेड़ जस के तस हैं। किंवदंती है कि पांच सौ साल पहले छिंदू गांव के दो लोग तड़के कैलास मानसरोवर की यात्रा पर निकले।
मान्यता के अनुसार इन लोगों को ब्रह्म मुहूर्त में ही बिनकू (पहाड़ का टाप) पार करना होता था लेकिन ये लोग ऐसा नहीं कर सके। तब अनिष्ट की आशंका पर उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए देवता का आह्वान किया।
ऐसा करते वक्त दोनों एक-दूसरे के हाथ पकड़ हुए थे और उसी स्थिति में चीड़ के वृक्ष में तब्दील हो गए। गर्व्यांग के प्रधान अरुण सिंह बताते हैं तब से इन वृक्षों की आमा-बुबू के रूप में पूजा की जाती है। राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्राध्यापक डा. सीएस नेगी का कहना है कि ऐसे वृक्ष कौतूहल का विषय हैं। चीड़ का पेड़ एवरग्रीन होता है। उसमें पतझड़ नहीं होता। इन पेड़ं की लंबाई और उम्र भी बहुत ज्यादा होती है। उधर मुख्य वन संरक्षण पर्यावरण एआर सिंहा कहते हैं कि इस तरह के उदाहरण सामने आते रहते हैं। यह एक प्राकृतिक क्रिया का हिस्सा है।

Source-http://earchive.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20090725a_006115006&ileft=401&itop=379&zoomRatio=156&AN=20090725a_006115006
size=14pt]दन्यां (अल्मोड़ा)। प्रसिद्ध जागेश्वर धाम मनोरम पर्यटक स्थल के साथ ही धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र है। सावन माह में यहां की जाने वाली शिव पूजा (पार्थिव पूजा) का विशेष महत्व है। शिव पूजन के लिए यहां काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। मान्यता है कि जागेश्वर धाम के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
जिला मुख्यालय से करीब 38 किमी दूर आरतोला-नैनी मोटर मार्ग में जागेश्वर धाम स्थित है। देवदार के घने जंगल के मध्य जागेश्वर मंदिर समूह वास्तुकला की अद्भुत धरोहर है। जागेश्वर धाम 124 मंदिरों का समूह है। मंदिर परिसर में महांमृत्युंजय, जागनाथ, पुष्टि माता, केदारनाथ, नीलकंठ, कुबेर आदि मंदिर स्थापित हैं।
जागेश्वर धाम में पूजा अर्चना के लिए वर्ष भर श्रद्धालु पहुंचते हैं। सावन के माह में यहां एक महीने तक श्रावणी मेला लगता है। विशेषकर इस माह के प्रत्येक सोमवार को यहां पूजा अर्चना करने के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। मंदिर में पार्थिव पूजन करने का विशेष महत्व है। मनोकामना सिद्धि के लिए श्रद्धालु मिट्टी, चावल के आटे (सालिग), गोबर, मक्खन आदि से पार्थिव बनाते हैं और उनकी पूजा अर्चना कर जलाभिषक करते हैं।
दूर-दूर से आकर भक्तजन इस माह में पूजा अर्चना करने आते हैं। इन दिनों जागेश्वर धाम में प्रतिदिन काफी संख्या में लोग पूजा अर्चना के लिए आ रहे हैं।[/size]
Source- http://earchive.amarujala.com/svww_zoomart.php?
Artname=20090720a_009115005&ileft=535&itop=65&zoomRatio=235&AN=20090720a_009115005

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