This about the Jakh Devta Temple Himanchal
न्याय के लिए भक्तों के हाथों दण्डित होते हैं जाख देवता
नरेंद्र चौहान & रोहà छौहारा विकास खंड की आखिरी पंचायत तांगणू जांगलिख के सबसे दुर्गम गंाव में जांगलिख का एतिहासिक फाग मैला शुरू हो गया है। मेले की अनूठी रस्मों व परंपराओं को देखने के लिए रोहड, चिडगांव, डोडरा क्वार व किन्नौर से सैंकडो लोग जांगलिख पंहुचने लगे हैं। तीन दिनों तक चलने वाले इस मेले के दौरान गावं में जश्न का माहौल रहेगा और ग्रामीण सदियों से चली आ रही मेहनबाजी व पारंपरिक रस्मों को पुरी शिद्वत के साथ निभाऐंगे। कठिन भगौलिक परिस्थितियों के चलते भले ही संपूर्ण छौहारा क्षेत्र को पिछड़ा करार दिया जाता है,लेकिन यहां की समृद्व संस्कृति और परंपराओं के मामले यह क्षेत्र प्रदेश की अगुवाई करने की क्षमता रखता है। यहां देव उत्सवों ,रीति रिवाजों व प्राचीन परंपराओं कावह मौजूद है जिस पर शोध कर्ता शोध करके कई प्रकार की दिलचस्प, रोचक व अनूठी जानकारियां हासिल कर सकते हैं। यहां हर साल मनाया जाना वाला फाग उत्सव भी इसी खजाने का एक हिस्सा है।
मान्यता है कि प्राचीनकाल में बेतियाणी गांव में जाख देवता जो अब जखनोटी में स्थापित है का वास था। इसी बीच जांगलिख केदेवता जाख किन्नौर से जांगलिख पहंचे और दोनों देवताओं में वर्चस्व की जंग शुरू हो गई। जिसके चलते जांगलिख व बेतियाणी गांव के लोगों के बीच भी आपसी बैर उत्पन्न हो गया। कई वर्षों तक चले इस विवाद को समाप्त करने के लिए दोनों देवताओं के बीच एक समझौता हुआ। जिसके मुताबिक बेतियाणी गावं के जाख देवता को बेतियाणी गांव के जाख देवता को गांव छोडने की बात कही गई। दोनों गावों के बीच बढ रही शत्रुता को खत्म करने के लिए बेतियाणी के जाख देवता ने गांव को छोडने का प्रस्ताव स्वीकार किया और छौहारा क्षैत्र के ही जखनोटी गांव में जाकर स्थापित हो गए।
इसके बाद जांगलिख व बेतियाणी गावों के बिगडे रिश्तों को सुधारने के लिए औड़ा प्रथा की शुरूआत की गई। प्रथा के अनुसार जांगलिख गांव के हर परिवार को बेतियाणी गांव के एक परिवार के साथ औडा प्रथा के मुताबिक मित्रता का संबध बनाना था। इतना ही नही जांगलिख के जाख देवता ने बेतियाणी के देवता को उनके गांव से बहार करने के अपराध स्वरूप खुद के लिए एक सजा भी तय की जिसके अनूसार साल में एक बार बेतियाणी गांव के हर परिवार को जांगलिख के जाख देवता को दंडित करने का अधिकार दिया गया। दंड के रूप में बेतियाणी गांव के हर परिवार का एक सदस्य पारंपरिक वेश भूषा में देवता के मंदिर पर बर्फ के गोले दागता है।
जाख देवता के मंदिर मे देवता के चिन्ह के रूप में पवित्र घास क ी एक गु'छी को रखा जाता है। जिस पर बेतियाणी गांव के लोग निशाना साधते है। देवता को दंडित करने क ी इस प्रक्रिया के लिए बनाए गए नियमों के अनूसार इस प्रक्रिया में भाग लेने वाला बेतियाणी गांव के हर व्यक्ति को एक विशेष प्रकार की पांरपरिक पौशाक पहननी पड़ती है जिसे केवल इसी रस्म को निभाने के लिए पहना जाता है। इस पौशाक को इतना पवित्र माना जाता है कि इसको पहनने से पूर्व दो दिन पहले इसे धोया जाता है। फाग मेले से दो दिन पहले यदि मौसम खराब भी हो तो ग्रामीणों को न केवल इस पौशाक को किसी भी हाल में धोना पड़ता है कई बार गिली पौशाक को पहन कर यह रस्म निभानी पड़ती है। अमूमन फरवरी माह में आयोजित होने वाले इस मेले के दौरान जांगलिख में दो से तीन फुट बर्फ रहती है। बावजूद इसके ग्रामीण इस फाग की किसी भी रस्म को निभाने में कोई कसर बाकी नही छोड़ते।
इस रस्म को निभाने वाली टीम का हर सदस्य केवल बर्फ के 13 गोलों का ही इस्तेमाल कर सकता है। नियमानुसार यदि बेतियाणी गांव के लोग अगर मंदिर में लगाई गई घास पर निशाना साधने में असफल रहते हैं तो उन्हें देवता जाख को दंड के रूप में एक बकरा देना पड़ता है। अगर बर्फ के गोले के घास पर लगने के बाद भी घास नही गिरती तो देवता जाख के पूजारी व घास लगाने वाले व्यक्ति को दंडित करने का प्रावधान है। देव आस्था व न्यायप्रियता पर अटूट विश्वास रखने वाले इस गांव में आज भी अधिकांश विवाद देवता के मंदिर में ही निपटाए जाते हैं। जांगलिख निवासी जिशन लाल, महावीर सिंह, व पुजारी बालम सिंह का कहना है कि जांगलिख की फाग अपने अनुठे अंदाज व रस्मो रिवाज की वजह से पुरे क्षैत्र में मशहूर है।
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