Author Topic: Jakh Devta Temple, Rudraprayag- जाख देवता मंदिर, रुद्रप्रयाग उत्तराखंड  (Read 13914 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 दोस्तों,

 हम आज मेरापहाड़ फोरम में जाख देवता के महिमा का वर्णन करंगे और जाख देवता के मंदिर के बारे में जानकारी दंगे ! गुप्तकाशी (रुद्रप्रयाग),  देवशाल गांव में स्थित है प्रसिद्ध भगवान का मंदिर! जाख देवता यक्ष व कुबेर के रुप में भी माने जाते है!

 सबसे पहले आप जाख देवता के बारे में यह खबर पड़िए!




दहकते अंगारों पर आस्था का सैलाबगुप्तकाशी (रुद्रप्रयाग), निज प्रतिनिधि: देवशाल गांव में स्थित प्रसिद्ध भगवान जाख मेले में भगवान जाखराजा के पश्वा ने दहकते अंगारों के बीच नृत्य कर श्रद्धालुओं को आशीर्वाद दिया। बीते गुरुवार को संक्रांति के दिन सुबह ग्रामीणों ने नंगे पांव भगवान की पूजा- अर्चना व अग्नि प्रज्ज्वलित करने के लिए काफी संख्या में लकड़ियां एकत्रित की। इसी दिन सांय को नारायणकोटी व कोठेडा के ग्रामीणों ने देवशाल स्थित जाखराजा के मंदिर से भगवान की डोली को गाजे-बाजों के साथ जाख मंदिर में स्थापित किया। अग्निकुंड व मंदिर के दोनों दिशाओं में स्थित देवी देवताओं के पारंपरिक पूजा-अर्चना के बाद अग्निकुंड में रखी लकड़ियों पर अग्नि प्रज्ज्वलित की गई। जो कि रात भर जलती रही। अग्नि की रक्षा के लिए नारायणकोटी व कोठेडा के ग्रामीण रात्रिभर जागरण कर जाख देवता के नृत्य के लिए अंगारें तैयार करते रहे। दूसरे दिन जाख देवता का पश्वा नारायणकोटी से जनसमूह के साथ कोठेडा व देवशाल होते मेला स्थल पहुंचे। यहां पर जाखराजा के पश्वा भी मौजूद थे, ढ़ोल-दमाऊ की थाप पर जैसे ही जागरों से जाखराजा का अह्वान किया गया तो वे पश्वा पर अवतरित हुए, और दहकते अंगारों में काफी देर तक नंगे पांव नृत्यकरश्रद्धालुओं को विराट रुप में दर्शन देकर आशीर्वाद दिया। इस अवसर पर मुख्य पुजारी आचार्य उत्तमप्रसाद भट्ट ने बताया कि जाख देवता यक्ष व कुबेर के रुप में भी माने जाते है। उनके दिव्य स्वरूप की अलोकिक लीला प्रतिवर्ष अग्निकुंड में दहकते अंगारों पर नृत्य कर विश्व कल्याण की कामना करते हैं। जाख मेला समिति के सचिव आत्माराम बहुगुणा का कहना है कि जिले के  प्रसिद्ध जाखमेले को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए शासन-प्रशासन को पहल करनी चाहिए। (Source-Dainik Jagran)
 

M S Mehta

Devbhoomi,Uttarakhand

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दहकते अंगारों में होता जाख देवता का नृत्य
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गुप्तकाशी क्षेत्र अंतर्गत जाख मंदिर में बैशाखी पर्व पर विशेष रूप से आस्थावान लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। जाखमेला धार्मिक भावनाओं एवं सांस्कृतिक परम्पराओं से जुड़ा हुआ है। इस मेले में भगवान जाखराजा के पश्वा दहकते अंगारों के बीच नृत्य कर श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हैं, मेले का यह दृश्य आस्थावान लोगों को अपने ओर आकर्षित करता है। दूर दराज से बड़ी संख्या में भक्त इस अवसर पर दर्शन हेतु पहुंचते हैं।
ऊखीमठ के विभिन्न गांवों के साथ ही बड़ी संख्या में लोगों की आस्था जाख मेले से जुड़ी हुई है। यह मेला प्रतिवर्ष बैशाखी के दिन ही लगता है। चौदह गांवों के मध्य स्थापित जाखराजा मंदिर में प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष वर्ष भी देवशाल व कोठेडा के ग्रामीणों के आपसी सहयोग से मेले की तैयारियां शुरू कर दी गई है।

मेला शुरू होने से दो दिन पूर्व से भक्तजन बड़ी संख्या में पौराणिक परंपरानुसार नंगे पांव, सिर में टोपी और कमर में कपड़ा बांधकर लकडियां, पूजा व खाद्य सामग्री एकत्रित करते हैं तथा भव्य अग्निकुंड तैयार किया जाता है। इस अग्निकुंड के लिए हर वर्ष अस्सी कुंतल से अधिक कोयला एकत्रित किया जाता है।

वैशाखी के पर्व पर मेले के दिन नारायणकोटी गांव से ढोल-दमाऊ के साथ भगवान जाखराजा के पश्वा कोठेडा व देवशाल होते हुए मंदिर परिसर पहुंचते हैं। इसके बाद पूजा-अर्चना एवं ढोल सागर पर देवता के  पश्वा को अवतरित किया जाता है। तब देवता के पश्वा नंगे पांव अग्निकुंड में प्रवेश करके दहकते अंगारों के बीच काफी देर तक नृत्य करते हैं।


और वहीं से अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। इस मेले को देखने के लिए दूर-दराज के गांवों के लोग बड़ी संख्या में आते हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से जाख मेले में आकर जाखराजा के दर्शन करते हैं, उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

Devbhoomi,Uttarakhand

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ग्रामीण व जिला पंचायत सदस्य केशव तिवारी, लखपत सिंह, सुरेश बगवाड़ी, कहते है कि जाखमेले को उत्तराखंड मानचित्र पर एक विशेष पहचान मिले इसके लिए प्रदेश सरकार को इसके लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए, जिससे पर्यटन व तीर्थाटन को गति मिल सके। और स्थानीय लोगों के साथ ही देश-विदेश के लोग इस मेले को देखने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचे।


Source Dainik jagran

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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कांडा जाख देवता

टेहरी गढ़वाल के जौनपुर विकासखंड में यूँ तो जाख देवता का अनेक स्थानों पर पूजा होती है लेकिन प्रमुख देवालय कांडा ग्राम में है जिसे कांडा जाख देवता के नाम से माना जाता है!


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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थौलू मेला

इस स्थान पर प्रतिवर्ष बैसाखी के दिन थौलू मेले का आयोजन किया जाता है जिसमे जाख देवता को नचाया जाता है! पहले जाख देवता का यह सामूहिक रूप से होता था जिसमे जाख देवता के डोले के यहाँ के तीन ग्रामो कांडा, लगडासु और कोल्टी घुमाया जाता था कितु परस्परिक विवाद होने के के कारण अब ये मेले अलग-२ गावो में होता है!

लगडासु में १३ अप्रैल, कांडा में १४ अप्रैल और कोल्टी मद १५ अप्रैल को इस मेले का आयोजन होता है!

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Jakh Devta Mandir in Himanchal also.
    photo height=640  Temple of Devta Jakh Just few kms ahead of Rampur in Distt. Shimla,Himachal Pradesh, nestled in a small hamlet named Racholi, lies this temple dedicated to a powerful deity of the region known as Devta Jakh. Photo - By HimalayanVolunteer

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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The temple of Jakh Devta is also in Gujrat. In Gujrat Jakh devta is known as Jakh Dada.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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This about the Jakh Devta Temple Himanchal
 
 
न्याय के लिए भक्तों के हाथों दण्डित होते हैं जाख देवता
 
  नरेंद्र चौहान & रोहà     छौहारा विकास खंड की आखिरी पंचायत तांगणू जांगलिख के सबसे दुर्गम गंाव में जांगलिख का एतिहासिक फाग मैला शुरू हो गया है। मेले की अनूठी रस्मों व परंपराओं को देखने के लिए रोहड, चिडगांव, डोडरा क्वार व किन्नौर से सैंकडो लोग जांगलिख पंहुचने लगे हैं। तीन दिनों तक चलने वाले इस मेले के दौरान गावं में जश्न का माहौल रहेगा और ग्रामीण सदियों से चली आ रही मेहनबाजी व पारंपरिक रस्मों को पुरी शिद्वत के साथ निभाऐंगे। कठिन भगौलिक परिस्थितियों के चलते भले ही संपूर्ण छौहारा क्षेत्र को पिछड़ा करार दिया जाता है,लेकिन यहां की समृद्व संस्कृति और परंपराओं के मामले यह क्षेत्र प्रदेश की अगुवाई करने की क्षमता रखता है। यहां देव उत्सवों ,रीति रिवाजों व प्राचीन परंपराओं कावह मौजूद है जिस पर शोध कर्ता शोध करके कई प्रकार की दिलचस्प, रोचक व अनूठी जानकारियां हासिल कर सकते हैं। यहां हर साल मनाया जाना वाला फाग उत्सव भी इसी खजाने का एक हिस्सा है।

मान्यता है कि प्राचीनकाल में बेतियाणी गांव में जाख देवता जो अब जखनोटी में स्थापित है का वास था। इसी बीच जांगलिख केदेवता जाख किन्नौर से जांगलिख पहंचे और दोनों देवताओं में वर्चस्व की जंग शुरू हो गई। जिसके चलते जांगलिख व बेतियाणी गांव के लोगों के बीच भी आपसी बैर उत्पन्न हो गया। कई वर्षों तक चले इस विवाद को समाप्त करने के लिए दोनों देवताओं के बीच एक समझौता हुआ। जिसके मुताबिक बेतियाणी गावं के जाख देवता को बेतियाणी गांव के जाख देवता को गांव छोडने की बात कही गई। दोनों गावों के बीच बढ रही शत्रुता को खत्म करने के लिए बेतियाणी के जाख देवता ने गांव को छोडने का प्रस्ताव स्वीकार किया और छौहारा क्षैत्र के ही जखनोटी गांव में जाकर स्थापित हो गए।

इसके बाद जांगलिख व बेतियाणी गावों के बिगडे रिश्तों को सुधारने के लिए औड़ा प्रथा की शुरूआत की गई। प्रथा के अनुसार जांगलिख गांव के हर परिवार को बेतियाणी गांव के एक परिवार के साथ औडा प्रथा के मुताबिक मित्रता का संबध बनाना था। इतना ही नही जांगलिख के जाख देवता ने बेतियाणी के देवता को उनके गांव से बहार करने के अपराध स्वरूप खुद के लिए एक सजा भी तय की जिसके अनूसार साल में एक बार बेतियाणी गांव के हर परिवार को जांगलिख के जाख देवता को दंडित करने का अधिकार दिया गया। दंड के रूप में बेतियाणी गांव के हर परिवार का एक सदस्य पारंपरिक वेश भूषा में देवता के मंदिर पर बर्फ के गोले दागता है।

जाख देवता के मंदिर मे देवता के चिन्ह के रूप में पवित्र घास क ी एक गु'छी को रखा जाता है। जिस पर बेतियाणी गांव के लोग निशाना साधते है। देवता को दंडित करने क ी इस प्रक्रिया के लिए बनाए गए नियमों के अनूसार इस प्रक्रिया में भाग लेने वाला बेतियाणी गांव के हर व्यक्ति को एक विशेष प्रकार की पांरपरिक पौशाक पहननी पड़ती है जिसे केवल इसी रस्म को निभाने के लिए पहना जाता है। इस पौशाक को इतना पवित्र माना जाता है कि इसको पहनने से पूर्व दो दिन पहले इसे धोया जाता है। फाग मेले से दो दिन पहले यदि मौसम खराब भी हो तो ग्रामीणों को न केवल इस पौशाक को किसी भी हाल में धोना पड़ता है कई बार गिली पौशाक को पहन कर यह रस्म निभानी पड़ती है। अमूमन फरवरी माह में आयोजित होने वाले इस मेले के दौरान जांगलिख में दो से तीन फुट बर्फ रहती है। बावजूद इसके ग्रामीण इस फाग की किसी भी रस्म को निभाने में कोई कसर बाकी नही छोड़ते।

इस रस्म को निभाने वाली टीम का हर सदस्य केवल बर्फ के 13 गोलों का ही इस्तेमाल कर सकता है। नियमानुसार यदि बेतियाणी गांव के लोग अगर मंदिर में लगाई गई घास पर निशाना साधने में असफल रहते हैं तो उन्हें देवता जाख को दंड के रूप में एक बकरा देना पड़ता है। अगर बर्फ के गोले के घास पर लगने के बाद भी घास नही गिरती तो देवता जाख के पूजारी व घास लगाने वाले व्यक्ति को दंडित करने का प्रावधान है। देव आस्था व न्यायप्रियता पर अटूट विश्वास रखने वाले इस गांव में आज भी अधिकांश विवाद देवता के मंदिर में ही निपटाए जाते हैं। जांगलिख निवासी जिशन लाल, महावीर सिंह, व पुजारी बालम सिंह का कहना है कि जांगलिख की फाग अपने अनुठे अंदाज व रस्मो रिवाज की वजह से पुरे क्षैत्र में मशहूर है।
 
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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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धधकते अंगाराें पर नाचे जाख देवता
Story Update : Saturday, April 16, 2011    12:01 AM
 
 
 
     
[/t][/t] गुप्तकाशी। केदारनाथ घाटी के प्रसिद्ध जाख मेले में शुक्रवार को जैसे ही धधकते अंगारों पर जाख देवता के पश्वा ने अग्निकुंड में प्रवेश कर नृत्य किया, वहां पहुंचे सैकड़ों श्रद्धालुओं के शीश श्रद्धा से झुक गए। इस दौरान पूरा मंदिर प्रांगण यक्षराज के जयकाराें से गूंज उठा।
गुप्तकाशी के जाखधार में दो गते बैसाख को आयोजित होने वाले प्रसिद्ध जाख मेले के आयोजन को लेकर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचे थे। मेले से पूर्व कोठेड़ा के पुजारियों, देवशाल के वेदपाठियों और नारायणकोटि के सेवक-श्रद्धालुओं द्वारा विधि-विधान से अग्नि कुंड की रचना की जाती है। बैसाख संक्रांति को ही अग्नि प्रज्वलित की जाती है और अग्निकुंड की रात को चार पहर की पूजा की जाती है।
शुक्रवार को जैसे ही यक्षराज जाख देवता के पश्वा ने नारायणकोटि गांव से कोठेड़ा और देवशाल होते हुए अपराह्न पौने तीन बजे जाख मंदिर में बने अग्निकुंड में प्रवेश किया। वैसे ही पूरा परिसर यक्षराज के जयकाराें से गुंजायमान हो उठा। कई जोड़े ढोल-दमांऊ की गर्जना और पारंपरिक बाध्य यंत्रों की थाप पर जाख देवता धधकते अग्निकुंड अद्भुत नृत्य करते रहे। नृत्य के बाद पावन राख को प्रसाद के रूप में श्रद्धालु अपने साथ ले गए।   
(Source -Amar Ujala)
 
 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गुप्तकाशी से 7 किमी. दूर जाखधार में प्रति वर्ष वैशाख में लगने वाला ‘बिखोत मेला’ नयी सोच के लोगों के लिये शोध का विषय है। यहाँ तेरह गाँवों का देवता जाख, भक्त लोगों की वर्षा या धूप की फरियाद अवश्य पूरी करता है। जाख, यक्ष का दूसरा रूप है। वनवास में रह रहे पांडव जब एक पोखर में प्यास बुझाने पहुँचे तो पोखर के रखवाले यक्ष के जवाब न देने के कारण मर गये। अन्ततः युधिष्ठिर ने सभी प्रश्नों का उत्तर देकर अपने भाइयों के प्राण बचाये। किंवदन्ती है कि वह जलाशय यही है। अब उस जलाशय में पेड़ों के टुकड़े काटकर धधकती अग्नि में जाख देवता लाल-लाल अंगारों पर नाचता है। माना जाता है कि उस पल देवता को कोयलों की जगह पानी ही नजर आता है। आश्चर्य वाली बात यह है कि नर देवता लगभग 3 मिनट तक इस अग्निकुण्ड में नाचता है, परन्तु उसके नंगे पैरों पर लेशमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ता। लोग आँखें फाड़कर इस दृश्य को देखते हैं। इस दिन हजारों की संख्या में स्थानीय लोगों के साथ देश-विदेश के पर्यटक भी उपस्थित रहते हैं। परदेशी बेटियाँ अपनी ‘खुद’ मिटाने के लिये अपने मायके के लोगों के साथ कुछ क्षण बिता कर प्रसन्न होने की कोशिश करती हैं। अल्हड़ कुँवारी लड़कियाँ चूड़ियों की दुकानों से रंग-बिरंगी चूड़ियाँ खरीदती हैं। विवाहितायें इन चूड़ियों को भगवान जाख का प्रसाद समझ लम्बे समय तक सुहागिन बनने की चाह के साथ पहनती हैं। अग्निकुण्ड की राख लोग अपने घर ले जाते हैं। मान्यता है कि यह भभूत हर मर्ज की दवा है। यह रहस्य अभी भी वैज्ञानिकों के लिये खोज का विषय है।

(http://www.hindi.indiawaterportal.org)


 

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