Author Topic: Joshimath,one of the four cardinal institutions, Adi Shankarachary,जोशीमठ  (Read 24794 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
जोशीमठ मैं आदि गुरु शंकराचार्य का आगमन

आदि शंकराचार्य अपने 109 शिष्यों के साथ जोशीमठ आये तथा अपने चार पसंदीदा एवं सर्वाधिक विद्वान शिष्यों को चार मठों की गद्दी पर आसीन कर दिया, जिसे उन्होंने देश के चार कोनों में स्थापित किया था।

 उनके शिष्य ट्रोटकाचार्य इस प्रकार ज्योतिर्मठ के प्रथम शंकराचार्य हुए। जोशीमठ वासियों में से कई उस समय के अपने पूर्वजों की संतान मानते हैं जब दक्षिण भारत से कई नंबूद्रि ब्राह्मण परिवार यहां आकर बस गए तथा यहां के लोगों के साथ शादी-विवाह रचा लिया।जोशीमठ के लोग परंपरागत तौर से पुजारी और साधु थे जो बहुसंख्यक प्राचीन एवं उपास्य मंदिरों में कार्यरत थे तथा वेदों एवं संस्कृत के विद्वान थे।

नरसिंह और वासुदेव मंदिरों के पुजारी परंपरागत डिमरी लोग हैं। यह सदियों पहले कर्नाटक के एक गांव से जोशीमठ पहुंचे। उन्हें जोशीमठ के मंदिरों में पुजारी और बद्रीनाथ के मंदिरों में सहायक पुजारी का अधिकार सदियों पहले गढ़वाल के राजा द्वारा दिया गया।

वह गढ़वाल के सरोला समूह के ब्राह्मणों में से है। शहर की बद्रीनाथ से निकटता के कारण यह सुनिश्चित है कि वर्ष में 6 महीने रावल एवं अन्य बद्री मंदिर के कर्मचारी जोशीमठ में ही रहें। आज भी यह परंपरा जारी है।

बद्रीनाथ मंदिर की पहुंच में इस शहर की महत्वपूर्ण स्थान से लाभ उठाने के लिये दो-तीन पीढ़ी पहले कुछ कुमाऊंनी परिवार भी जोशीमठ में आकर बस गये। वे बद्रीनाथ तक आपूर्ति ले जाने वाले खच्चरों एवं घोड़ों के परिवहन व्यवसाय में लग गये।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध से पहले भोटिया लोग ऊंचे रास्ते पार कर तिब्बत के साथ व्यापार करते थे। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद लोग ऊंचे पर्वतीय मार्ग पर तिब्बत के साथ व्यापार करते थे। सीमापार व्यापार में संलग्न भोटिया लोग इन ऊंचे पर्वतीय रास्तों को पार करने में निपुणता एवं कौशल प्राप्त लोग थे।

वे ऊन, बोरेक्स, मूल्यवान पत्थर तथा नमक बेचने आया करते थे। आज भी नीति एवं माना घाटियों के ऊंचे स्थल पर भोटिया लोग केवल गर्मी के मौसम (मई से अक्टूबर) में ही रहते हैं। मरचा एवं तोलचा समूह के भोटिया लोग ऊंचे स्थानों पर गेहूं तथा जड़ी-बूटियों को उपजाते हैं तथा बर्फ से मुक्त पांच महीने मवेशियों तथा भेड़ों को पालते हैं।

 अपने गढ़वाली पड़ोसियों के साथ वे राजपूतों के नामधारण कर हिंदू बन जाते हैं। वर्ष 1960 के दशक में तिब्बती सीमा बंद हो जाने से तथा सीमा पर सैनिकों के आ जाने से परंपरागत भोटिया लोगों का व्यापारिक रास्ता भी बंद हो गया है, जिससे सामाजिक एवं आर्थिक अव्यवस्था आ गयी है। इनमें से कई लोगों ने जोशीमठ को अपना घर बना लिया है।

तीर्थयात्री इस शहर की अस्थायी आबादी का हमेशा एक भाग रहे हैं जो पहले विभिन्न मंदिर स्थलों पर रहते थे और जो अब कई होटलों एवं निवासों में रहते हैं, जो उनके लिये पिछले चार से पांच दशकों में खुल गये हैं।

आज शहर की अधिकांश आबादी पर्यटन व्यापार में होटलों, रेस्तरांओं, छोटे व्यापारों, पर्यटन संचालनों एवं मार्गदर्शकों (गाइडों) के रूप में नियोजित हैं। स्की ढलान औली से इस शहर की निकटता के कारण जाड़ों में भी आमदनी का जरिया बना रहता है।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
जोशीमठ का पहनावा

पुरूष एवं महिलाओं दोनों का परंपरागत पोशाक कंबलनुमा सिर से पैर तक ढंकने वाला एक ऊनी कपड़ा लावा था, जिसे सूई-संगल से बांधे रखा जाता था। यह तब होता जब जाड़ा बहुत अधिक रहता। बाद में पुरूष लंगोट (धोती) एवं मिर्जई पहनते जो बाद में कुर्ता-पायजामा हो गया जिसके ऊपर एक ऊनी कोट या जैकैट रहता तथा सिर पर एक गढ़वाली टोपी होती।

महिलाएं धोती (साड़ीनुमा एक लंबा वस्त्र) एवं अंगडा या ब्लाऊज के साथ एक पगड़ा (कमर के इर्द-गिर्द बंधा एक लंबा कपड़े का टुकड़ा जो खेतों में काम के दौरान चोट लगने से उनकी पीठ की रक्षा करता) पहनतीं। इसके ऊपर सिर को ढंककर रखने वाला एक साफा भी होता।



परंपरागत जेवर सोने के बने होते, जिनमें एक बुलाक (दोनों नथुनों के बीच चिबुक तक झुलता एक छल्ला), नथुनी (नाक की बाघी), गलाबंद (हार), एक हंसुली (गले के इर्द-गिर्द मोटे चांदी का छड़नुमा जेवर) तथा एक धांगुला जिसे पुरूष एवं महिलाएं दोनों पहनते, शामिल होते। महिलाएं वेसर, झुमका आदि जेवर भी अपने कानों में तथा सोने का मांग-टीका बालों के बीच धारण करती हैं।

जबकि अब भी आस-पास के गांवों के पुरूष एवं महिलाएं परंपरागत पोशाक एवं जेवर धारण करते हैं, शहरी क्षेत्रों में पोशाक अधिक आधुनिक हो गये हैं जहां सामान्यत: महिलाएं सलवार-कमीज एवं साड़ियां पहनने लगी हैं तथा पुरूष वर्ग पैंट-शर्ट, जींस-टी-शर्ट पहनने लगा है।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
इन इलाकों में खेती पहाड़ी ढलानों पर चबूतरा बनाकर की जाती है। परंपरागत फसल गेहूं, चावल, मडुआ तथा झिंगोरा के अलावा कौनी, चीना, आलू जैसे पदार्थ चोलाई, गैथ, उड़द एवं सोयाबीन आदि भी उपजाये जाते हैं।

ऊन एवं मांस के लिये भेड़ एवं बकरी पालन, ऊन की कताई एवं बुनाई तथा अन्य कुटीर उद्योगों का सहारा आय को पूरा करने के लिये लिया गया है। वास्तव में गांव के प्रत्येक परिवार में भेड़ों एवं बकरों के बालों से ऊन निकाला जाता है।



परंपरागत ग्रामीण अर्थव्यवस्था आत्म निर्भर होती थी। समुदाय में कार्यों का बंटवारा होता था तथा वस्तुओं तथा सेवाओं का आदान-प्रदान, विनिमय-प्रणाली द्वारा होता था। प्रत्येक गांव में अपने रूदियास (श्रमिक), लोहार, नाई, दास (बाजा बजाने वाला) पंडित तथा धोंसिया हुआ करता, जो ईष्ट देवी-देवता की पूजा के समय हरकू बजाता।

लोगों का परंपरागत मुख्य भोजन गेहूं, चावल, मक्का, मडुआ तथा झिंगोरा जैसे अन्न तथा उड़द, गहट, भट्टसूंथा, तुर, लोबिया तथा मसूर जैसी दालें होतीं। राजमा जोशीमठ की खास फसल है जो अक्टूबर के बाद होती है। बद्रीनाथ मंदिर में भोग के लिये प्रयुक्त फाफर जैसे अन्न की उपज होती है। यहां कई फलोद्यान हैं, खासकर जोशीमठ के आस-पास आडू उगता है।

परंपरागत भोजन में जौ या चोलाई की रोटी, कौनी या झिंगोरा का भात, चैंसुल, कोडा, फानू, बड़ी तथा पापस और बिच्छु का साग होता है।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
वनस्पतियां

अलकनंदा के किनारे जोशीमठ के नजदीक का इलाका वनस्पतियों का धनी है। यहां की खासियत है– एन्सलिया एपटेरा, बारबरिस स्पप, सारोकोका प्रियुनिफॉरमस स्पप जैसे पौधे, जो यहां के वन में पैदा होते हैं, जहां की जलवायु नम है। यहां बंज बलूत के जंगल भी हैं, जहां बुरांस, अयार, कारपीनस, विमिनिया तथा ईलेक्स ओडोराला के पेड़ पाये जाते हैं।



 तिलौज वन में लौरासिया, ईलेक्स, बेतुला अलन्वायड्स के पेड़ तथा निचले नीले देवदार के वन में यूसचोल्जिया पोलिस्टाच्या, विबुमन फोक्टेन्स, रोसा माउक्रोफाइला, विबुमन कोटोनिफोलियन, एक्सायकेरिया एसीरीफोलिया आदि झाड़ियां भी होती हैं। चिड़ के पेड़ भी बहुतायत में है तथा इसके ऊपर बलूत एवं सिमुल पाये जाते हैं, जहां पहले की लकड़ी सख्त होती है जिसका इश्तेमाल कृषि उपकरणों के लिये तथा बाद वाले का जलावनों में होता है।

 जिले में भवनों में चीड़ की लकड़ी का इश्तेमाल होता है और इसके तख्ते एवं जड़ों को अलकनंदा में बहाकर मैदानों में भेजा जाता है।


http://hi.wikipedia.org

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
जोशीमठ  मैं पाए जाने वाले जीव-जंतु

जोशीमठ के इर्द-गिर्द पाये जाने वाले जंगली जानवरों में लकड़बग्घे, जंगली बिल्लियां, भेड़िये, गीदड़, साही तथा पहाड़ी लोमड़ी शामिल हैं। यह क्षेत्र पक्षियों से भरा पड़ा है तथा शिकारी पक्षी बाज, चील, श्येनपक्षी तथा गिद्ध सामन्य रूप से मिलते हैं। अन्य पक्षियों में राम चिरैया, सफेद छाती वाला चिरैया, छोटी चिरैया, नीलमी पक्षी, काले परों का ओड़ियाल, छोटी कोयल, भारतीय कोयल तथा यूरोपीय कोयल शामिल हैं।

 अन्य सामान्य पक्षियों में गोरैया, बागरेल, पिटपिटी चिड़िया, भारतीय पिटपिटी, ऊंचाई की छिपकिली, घरेलू छिपकिली, पाराकीट चट्टानी कबूतर तथा हिमालयी कठफोड़वा शामिल हैं।

जोशीमठ के आस-पास गांवों की झीलों में मछलियां पायी जाती है जो भोजन को स्वादिष्ट बनाती है। यहां की सामान्य प्रजाति असेला, सौल, मदशेर, कलावंश या करोच तथा फक्ता या फार कटा है।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
जोशीमठ के पर्यटन स्थल

कुछ लोगों के अनुसार जोशीमठ शहर 3,000 वर्ष पुराना है जिसके महान धार्मिक महत्त्व को यहां के कई मंदिर दर्शाते हैं। यह बद्रीनाथ गद्दी का जाड़े का स्थान है यह बद्रीनाथ मंदिर के जाड़े का बद्रीनाथ गद्दी एवं बद्रीनाथ का पहुंच शहर है।

यात्रियों के लिये यह कुछ असामान्य आकर्षण पेश करता है, जैसे प्रिय औली रज्जुमार्ग तथा चढ़ाई के अवसर जो प्राचीन एवं पौराणिक स्थलों के अलावा होता है।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
जोशीमठ,गढ़वाल मंडल विकास निगम रज्जुमार्ग

आता-जाता रज्जुमार्ग जोशीमठ से औली को जोड़ता है जो गर्मी एक सुंदर बुगियाल तथा जाड़े में स्की ढलान होता है, तथा यह भारत का सबसे लंबा 4.15 किलोमीटर मार्ग है। 6,000 फीट से 10,200 फीट ऊंचाई पर कार्यरत यह दूसरा सबसे ऊंचा मार्ग भी है।

 3 मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से यह 22 मिनट में पहुंच जाता है। गर्मियों में 8 बजे सुबह से 6.50 शाम तक तथा जाड़ों में 8 बजे सुबह से 4.30 बजे शाम तक कार्यरत है एवं इसका भाड़ा वर्षभर 400 रूपये प्रति व्यक्ति होता है। वर्ष 1992 में यह रज्जुमार्ग जीएमवीएन ने चालू किया जो बहुत सफल हुआ।



जबकि जाड़ों में रज्जुमार्ग स्कीईंग के गंभीर इच्छा रखने वाले को ही औली क्रीड़ा के लिये ले जाता है जो प्रतिदिन 50-75 लोग होते हैं, पर गर्मियों में वैसे यात्री होते हैं जो केवल आनंद सैर के लिये औली जाते हैं।

 गर्मियों में 400-500 यात्रियों द्वारा इसका इस्तेमाल होता है। शहर की एक प्रमुख विशेषता द्रोणगिरी, कामेत, बरमाल, माना, हाथी-घोड़ी-पालकी, मुकेत, बरथारटोली, नीलकंठ एवं नंदा देवी जैसे पर्वतों के मनोरम दृश्य होते हैं।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
कल्पवृक्ष एवं आदि शंकराचार्य गुफा

कहा जाता है कि 8वीं सदीं में सनातन धर्म का पुनरूद्धार करने आदि शंकराचार्य जब उत्तराखंड आये थे तो उन्होंने इसी शहतूत पेड़ के नीचे जोशीमठ में पूजा की थी।



यहां उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। कहा जाता है कि उन्होंने राज-राजेश्वरी को अपना ईष्ट देवी माना था और इसी पेड़ के नीचे देवी उनके सम्मुख एक ज्योति या प्रकाश के रूप में प्रकट हुई तथा उन्हें बद्रीनाथ में भगवान विष्णु की मूर्ति को पुनर्स्थापित करने की शक्ति तथा सामर्थ्य प्रदान किया। जोशीमठ, ज्योतिर्मठ का बिगड़ा स्वरूप है, जो इस घटना से संबद्ध है।

अब यह पेड़ 300 वर्ष पुराना है तथा इसके तने 36 मीटर में फैले हैं। यह भी कहा जाता है कि यह पेड़ वर्षभर हरा-भरा रहता है एवं इससे पत्ते कभी नहीं झड़ते।पेड़ के ठीक नीचे आदि शंकराचार्य की गुफा है तथा इसमें आदि गुरू की एक मानवाकार मूर्ति स्थापित है।

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22